Last Updated on November 29, 2023 by admin
हरड़ (हरीतकी) क्या है ? : harad in hindi
आयुर्वेद तथा अन्य शास्त्रों में हरीतकी यानी हरड़ की बहुत प्रशंसा की गई है। आयुर्वेद ने इसके गुण, कर्म और प्रभाव की विस्तार से चर्चा की है और इसे रसायन माना है। जो पदार्थ सेवन करने वाले को जरा (वृद्धावस्था) तथा व्याधि (बीमारी) से बचाता है उसे रसायन कहते हैं। खाद्य पदार्थों में पाये जाने वाले प्रमुख रस छः हैं यथा- मधुर, अम्ल, लवण, कुटु, तिक्त और कषाय । हरड़ की बहुत बड़ी विशेषता यह है कि एक लवण रस छोड़ कर शेष पांचों रस हरड़ में पाये जाते हैं इसलिए भी यह रसायन मानी जा सकती है।
पत्याय मज्जनि स्वादः स्नायवम्लो व्यवस्थितः ।
वृन्ते तिक्तस्त्वचि कटुरस्थिस्थ स्तुवरो रसः ।।
भाव प्रकाश निघण्टु के अनुसार हरड़ की मज्जा (गूदा) में मधुर रस, इसके तन्तुओं में अम्ल (खट्टा) रस और इसके वृन्त (ठूसे) में चरपरा रस, छाल में कड़वा रस पाया जाता है। इस प्रकार हरड़ में पांचो रस उपलब्ध रहते हैं।
उत्तम क़िस्म की हरड़ के विषय में भी आयुर्वेद ने उपयोगी जानकारी दी है –
यथा‘नवा स्निग्धा घना वृत्ता गु क्षिप्ता च याऽम्भसि।
निमज्जेत्सा सुप्रशस्ता कथितापि गुण प्रदा।
नवादि गुण युक्तत्वं तथैवात्र द्विकर्षता।
हरीतक्याः फले यत्र द्वयं तच्छ-ष्ठ मुच्यते ।। – (भावप्रकाश निघण्टु)
अर्थात् – जो हरड़ नई, चिकनी, घनी गोल तथा भारी हो और जल में डालने पर डूब जाए। वह हरड़ उत्तम और गुणकारी होती है। जो हरड़ उपर्युक्त लक्षणों से युक्त हो तथा | तौल में 20 ग्राम के लगभग वज़न की हो वही हरड़ उत्तम कही गई है।
हरड़ का विभिन्न भाषाओं में नाम :
- संस्कृत – हरीतकी।
- हिन्दी – हरड़, हर्रा ।
- मराठी – हरडा, हर्तकी ।
- गुजराती – हरडे, हिम ।
- बंगला – हरीतकी।
- तैलुगु – करक्काई, करक्वाप ।
- तामिल – कदुक्काई, करकैया ।
- कन्नड़- अणिलेय, अनिलैकाय ।
- उड़िया – हरिडा करेडा।
- आसामी- हिलिखा, सिल्लिका ।
- मारवाड़ी – हरड़े।
- सिक्किम – हन, सिलिमकंग ।
- पंजाबी – हरड ।
- फ़ारसी – हलीलः, हलैले ।
- अरबी – अहलीलज ।
- उर्दू – हरडे ।
- इंगलिश – मायरो बेलं स (Myro-balans) ।
- लैटिन – टरमिनेलिया चेबुला (Terminalia chebula) ।
हरड़ के प्रकार : different types of harad (haritaki )
harad ke prakar in hindi
व्यावहारिक दृष्टि से हरड़ तीन प्रकार की मानी गई है।
- छोटी हरड़ जिसे बाल हरड़ भी कहते हैं और फ़ारसी भाषा या यूनानी पद्धति में ‘हलीलः स्याह’ यानी काली हरड़ कहते हैं।
- पीली हरड़ जिसे फ़ारसी भाषा या यूनानी पद्धति में हलीलः जर्द और
- तीसरी बड़ी हरड़ (हलीलः काबुली) कही जाती है।
दरअसल ये तीनों प्रकार की हरड़ एक ही वृक्ष से पैदा होती हैं। जो अवस्था भेद से तीन प्रकार की मानी जाती हैं। हरड़ के वृक्ष से कच्ची और कोमल अवस्था में, गुठली आने से पहले ही, जो फल गिर जाते हैं या तोड़ कर सुखा लिये जाते हैं वे छोटी हरड़ या बाल हरड़ या काली हरड़ होते हैं। इनका रंग काला होता है। फल में गुठली आ जाने के बाद, प्रौढ़ अवस्था में जो अपरिपक्व (पूरे पके न होना) यानी कच्चे फल लिये जाते हैं, उनका रंग पीला होता है इसलिए ऐसी हरड़ को पीली हरड़ कहते हैं और पूरे आकार में आने पर इसे बड़ी हरड़ कहते हैं।
हरड़ के औषधीय गुण : harad ayurvedic benefits
- हरड़ में, लवण रस छोड़ कर, शेष पांचों रस- (मधुर, अम्ल, कटु, तिक्त , कषाय) होते हैं और अन्य रसों की अपेक्षा कषाय रस अधिक मात्रा में होता है यानी विशेषतः यह कसैली होती है।
- यह रूखी, उष्ण वीर्य, अग्निदीपक, मेधा (धारणा शक्ति) के लिए हितकारी, मधुर विपाक वाली, रसायन (वृद्धावस्था व रोगों को दूर रखने वाली) है।
- यहआयु बढ़ाने वाली, नेत्रों के लिए हितकारी,जल्दी पचने वाली यानी हलकी, बृहण (शरीर में मांस आदि धातुओं की वृद्धि-पुष्टी करने वाली) होती है।
- यह अनुलोमन (मल आदि को नीचे की तरफ़ ले जाने वाली) होती है।
- इसके सेवन से श्वास,कास (खांसी) प्रमेह, बवासीर, कुष्ठ, शोथ, पेट के कीड़े या उदर सम्बन्धी कोई रोग, स्वर भेद (आवाज़ खराब होना), ग्रहणी सम्बन्धी रोग, विबन्ध (मल-मूत्र की रुकावट होना), विषम ज्वर, गुल्म, आध्मान, प्यास, वमन, हिचकी, खुजली, हृदय रोग, कामला, शूल, आनाह, प्लीहा व यकृत के विकार, पथरी, मूत्र कृच्छ तथा मूत्राघात आदि व्याधियां दूर होती हैं।
- हरड़ मधुर, तिक्त व कसैले रसों वाली होने से पित्त का शमन करती है, कटु, तिक्त और कषाय रसों वाली होने से कफ का और अम्ल रस के प्रभाव से वात का शमन करती है।
- इस प्रकार अकेली एक हरड़ ही तीनों दोषों का शमन करके, उन्हें ‘दोष’ से ‘धातु’ में परिवर्तित करने की विशेष गुणवत्ता रखती है।
- हरड़ की व्यापक गुणवत्ता और उपयोगिता को देखते हुए शास्त्रों में इसे माता के समान दर्जा दिया है यथा-‘हरीतकी मनुष्याणां मातेव हितकारिणी। कदाचित् । कुप्यते माता नोदरस्था हरीतकी।’ अर्थात् मनुष्यों के लिए हरड़ माता के समान हित करने वाली होती है। कदाचित माता तो कभी-कभी क्रोधित भी हो जाती है मगर पेट में गई हुई हरड़ कभी कुपित नहीं होती। एक स्थान पर और भी कहा है- ‘यस्य गृहे माता नास्ति तस्य माता हरीतकी।’ अर्थात् जिसके घर में माता न हो उसकी माता हरड़ है। इन दो सूत्रों से यह तथ्य स्पष्ट होता है कि हरड़ हमारे शरीर का हित और पोषण उसी प्रकार करती है जैसे माता अपने शिशु का करती है।
- छोटी हरड़ उदर (पेट) की मित्र मानी जाती है और उदर रोगों में छोटी हरड़ का ही उपयोग होता है।
- बड़ी हरड़ का उपयोग ‘त्रिफला’ नामक योग (हरड़, बहेड़ा, आंमला) में होता है और ऋतु के अनुसार अलग-अलग अनुपान के साथ ली जाने वाली हरड़ भी यह बड़ी हरड़ ही होती है।
रासायनिक संघटन :
इसके फल में टैनिन होता है। टैनिन के घटकों में चेबुलेनिक एसिड, चेबुलिनिक एसिड और कोरिलेजिन प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त शर्करा , 18 एमिनो एसिड तथा अल्प मात्रा में फास्फरिक, सक्सिनिक, क्विनिक, शकिमिक अम्ल होते हैं। फल के परिपाक काल में टैनिन घटता जाता है तथा अम्लता बढ़ती जाती है। बीज मज्जा से एक पीले रंग का तैल निकलता है।
मात्रा और सेवन विधि : harad powder dosage
हरड़ के चूर्ण की सामान्य मात्रा 3 से 6 ग्राम होती है और अनुपान के रूप में हरड़ के चूर्ण के साथ जो पदार्थ लिया जाए उसकी मात्रा लगभग हरड़ के चूर्ण के बराबर लेना चाहिए लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर यह मात्रा, व्यक्ति की क्षमता और आवश्यकता के अनुसार कम ज्यादा करनी होती है जिसे सेवन करने वाला 3-4 दिन में अपने अनुभव के आधार पर स्वयं निश्चित करता है।
हरड़ के फायदे और उपयोग : harad benefits in hindi
harad ke fayde in hindi
1. मुंह के छाले:
- छोटी हरड़ को पानी में घिसकर छालों पर 3 बार प्रतिदिन लगाने से मुंह के छाले नष्ट हो जाते हैं।
- छोटी हरड़ को बारीक पीसकर छालों पर लगाने से मुंह व जीभ के छाले मिट जाते हैं।
- छोटी हरड़ को रात को भोजन करने के बाद चूसने से छाले खत्म होते हैं।
- पिसी हुई हरड़ 1 चम्मच रोज रात को सोते समय गर्म दूध या गर्म पानी के साथ फंकी लें। इससे छालों में आराम मिलता है।
2. गैस:
- छोटी हरड़ एक-एक की मात्रा में दिन में 3 बार पूरी तरह से चूसने से पेट की गैस नष्ट हो जाती है।
- छोटी हरड़ को पानी में डालकर भिगो दें। रात का खाना खाने के बाद चबाकर खाने से पेट साफ हो जाता और गैस कम हो जाती है।
- हरड़, निशोथ, जवाखार और पीलू को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से आधा चूर्ण सुबह और शाम खाना खाने के बाद खाने से लाभ मिलता है।
3. घाव:
- हरड़ को जलाकर उसे पीसे और उसमें वैसलीन डालकर घाव पर लगायें। इससे लाभ पहुंचेगा।
- 3-5 हरड़ को खाकर ऊपर से गिलोय का काढ़ा पीने से घाव का दर्द व जलन दूर हो जाती है।
4. एक्जिमा: गौमूत्र में हरड़ को पीसकर तैयार लेप को रोजाना 2-3 बार लगाने से एक्जिमा का रोग ठीक हो जाता है।
5. बच्चों के पेट रोग (उदर): हर हफ्ते हरड़ को घिसकर एक चौथाई चम्मच की मात्रा में शहद के साथ सेवन कराते रहने से बच्चों के पेट के सारे रोग दूर हो जाते हैं।
6. बुद्धि के लिए: भोजन के दौरान सुबह-शाम आधा चम्मच की मात्रा में हरड़ का चूर्ण सेवन करते रहने से बुद्धि और शारीरिक बल में वृद्धि होती है।
7. भूख बढ़ाने के लिए: हरड़ के टुकड़ों को चबाकर खाने से भूख बढ़ती है।
8. पतले दस्त: कच्चे हरड़ के फलों को पीसकर बनाई चटनी एक चम्मच की मात्रा में 3 बार सेवन करने से पतले दस्त बंद हों जाएंगे।
9. गर्मी के फोड़े, व्रण: त्रिफला को लोहे की कड़ाही में जलाकर उसकी राख शहद मिलाकर लगाना चाहिए।
10. शनैमेह पर: त्रिफला और गिलोय का काढ़ा पिलाना चाहिए।
11. अण्डवृद्धि:
- सुबह के समय छोटी हरड़ का चूर्ण गाय के मूत्र के साथ या एरण्ड के तेल में मिलाकर देना चाहिए या त्रिफला दूध के साथ देना चाहिए।
- त्रिफला के काढ़े में गोमूत्र मिलाकर पिलाना चाहिए।
12. खांसी:
- हरड़ और बहेड़े का चूर्ण शहद के साथ लेना चाहिए।
- हरड़, पीपल, सोंठ, चाक, पत्रक, सफेद जीरा, तन्तरीक तथा कालीमिर्च का चूर्ण बनाकर गुड़ में मिलाकर खाने से कफयुक्त खांसी ठीक हो जाती है।
13. दर्द: हरड़ का चूर्ण घी और गुड़ के साथ देना चाहिए।
14. आंख के रोग:
- त्रिफला का चूर्ण 7-8 ग्राम रात को पानी में डालकर रखें। सुबह उठकर थोड़ा मसलकर कपड़े से छान लें और छाने हुए पानी से आंखों को धोएं। इससे कुछ ही दिनों के बाद आंखों के सभी तरह के रोग ठीक हो जाएंगे।
- त्रिफला चूर्ण के साथ आधा चम्मच हरड़ का चूर्ण घी के साथ लें। इससे नेत्रों के रोगों में लाभ मिलता है।
15. पेशाब की जलन:
- हरड़ के चूर्ण में शहद मिलाकर चाटकर खाने से, पेशाब करते समय होने वाला जलन और दर्द खत्म हो जाता है।
- हरड़ के चूर्ण को मट्ठे के साथ रोज खाने से पेशाब के रोग ठीक हो जाते हैं।
16. गैस के कारण पेट में दर्द: हरड़ का चूर्ण 3 ग्राम गुड़ के साथ खाने से गैस के कारण पेट का दर्द दूर हो जाता है।
17. आन्त्रवृद्धि:
- हरड़ों के बारीक चूर्ण में कालानमक, अजवायन और हींग मिलाकर 5 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम हल्के गर्म पानी के साथ खाने या इस चूर्ण का काढ़ा बनाकर पीने से आन्त्रवृद्धि की विकृति खत्म होती है।
- हरड़, मुलहठी, सोंठ 1-1 ग्राम पाउडर रात को पानी के साथ खाने से लाभ होता है।
18. आंख आना: हरड़ को रात को पानी में डालकर रखें। सुबह उठकर उस पानी को कपड़े से छानकर आंखों को धोने से आंखों का लाल होना दूर होता है।
19. श्वास या दमा रोग:
- सोंठ और हरड़ के काढ़े को 1 या 2 ग्राम की मात्रा तक गर्म पानी के साथ लेने से श्वास रोग ठीक हो जाता है।
- हरड़, बहेड़ा, आमला और छोटी पीपल चारों को बराबर मात्रा में लेकर उसका चूर्ण तैयार कर लेते हैं। इसे एक ग्राम तक की मात्रा में शहद के साथ मिलाकर चाटने से श्वासयुक्त खांसी खत्म हो जाती है।
- हरड़ को कूटकर चिलम में भरकर पीने से श्वास का तीव्र रोग थम जाता है।
20. मलेरिया का बुखार: हरड़ का चूर्ण 10 ग्राम को 100 मिलीलीटर पानी में पकाकर काढ़ा बना ले। यह काढ़ा दिन में 3 बार पीने से मलेरिया में फायदा होता है।
21. वात-पित्त का बुखार: हरड़, बहेड़ा, आंवला, अडूसा, पटोल (परवल) के पत्ते, कुटकी, बच और गिलोय को मिलाकर पीसकर काढ़ा बना लें, जब काढ़ा ठण्डा हो जाये तब उसमें शहद डालकर रोगी को पिलाने से वात-पित्त का बुखार समाप्त होता है।
22. भगन्दर:
- खदिर, हरड़, बहेड़ा और आंवला का काढ़ा बनाकर इसमें भैंस का घी और वायविडंग का चूर्ण मिल कर पीने से किसी भी प्रकार का भगन्दर ठीक होता है।
- हरड़, बहेड़ा, आंवला, शुद्ध भैंसा गूगल तथा वायविडंग इन सबका काढ़ा बनाकर पीने से तथा प्यास लगने पर खैर का रस मिला हुआ पानी पीने से भगन्दर नष्ट होता है।
23. दांतों का दर्द: दांतों में शीतादि रोग (ठण्डा लगना) होने पर हरड़, बहेड़ा, आंवला, सोंठ और सरसों का तेल इन सबका काढ़ा बनाकर प्रतिदिन दो से तीन बार कुल्ला करने से शीतादि रोग नष्ट होता है।
24. बुखार: हरड़ 20 ग्राम, कुटकी 20 ग्राम, अमलतास 20 ग्राम और रसौत 20 ग्राम को बराबर मात्रा में लेकर कूटकर, 500 मिलीलीटर गर्म पानी में उबाल लें। जब एक-चौथाई पानी बच जाने पर, छानकर शीशी में भर दें। इस काढ़े में 20 ग्राम शहद मिलाकर रख लें। इसे 2-2 घंटे के अन्तर से दिन में 2 से 3 बार पीने से बुखार मिट जाता है।
25. दांत साफ और चमकदार बनाना: हरड़ के चूर्ण से मंजन करने से दांत साफ होते हैं और चमकदार बनते हैं।
26. दांत मजबूत करना: हरड़ और कत्था को मिलाकर चूसें। इससे दांत मजबूत होते हैं।
27. आंखों की खुजली और ढलका: पीली हरड़ के बीज के दो भाग, बहेड़ा की मींगी के 3 भाग और आंवले के बीजों की गिरी के 4 भाग को लेकर इन सबको पीसकर और छानकर पानी के साथ गोलियां बना लें। इन गोलियों को पानी के साथ घिसकर आंखों में काजल की तरह लगाने से आंखों की खुजली और ढलका समाप्त हो जाता है।
28. गुदा चिरना: पीली हरड़ 35 ग्राम को सरसों के तेल में तल लें और भूरे रंग का होने पर पीसकर पाउडर बना लें। उस पाउडर को एरण्ड के 140 मिलीलीटर तेल में मिला लें। रात को सोते समय गुदा पर 10 से 20 मिलीग्राम की मात्रा में लगायें। इससे गुदा चिरने का विकार दूर होता है।
29. कांच निकलना (गुदाभ्रंश): छोटी हरड़ को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 2-2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम हल्के गर्म पानी के साथ लें। इसको पीने से कब्ज नष्ट होती है और मलद्वार से गुदा (कांच) बाहर नहीं आता।
30. जीभ और मुंख का सूखापन: हरड़ का काढ़ा बनाकर पीने से मुंह के सभी रोग ठीक होते हैं तथा मुंह का सूखापन दूर होता है।
31. गर्भाशय के कीडे़: गर्भाशय में कीडे़ पड़ गये हो तो हरड़, बहेड़ा और कायफल तीनों को साबुन के पानी के साथ सिल पर महीन पीस लेते हैं फिर उसमें रूई का फोहा भिगोकर तीन दिनों तक योनि में रखना चाहिए। इस प्रयोग से गर्भाशय के कीड़े नष्ट हो जाते हैं।
32. पलकें और भौहें: हरड़ का छिलका, 10 ग्राम माजूफल को पानी में पीसकर पलकों के ऊपर लगाएं इससे पलकों को लाभ होता है।
33. योनि की जलन और खुजली: बड़ी हरड़ की मींगी (बीज, गुठली) और माजूफल दोनों को एक समान मात्रा में लेकर बारीक पीसकर शीशी में रख लें। इस चूर्ण को पानी में घोलकर योनि को धोने से योनि की जलन और खुजली नष्ट हो जाती होती है।
34. कब्ज (कोष्ठबद्वता):
- बड़ी हरड़ को पीस लें। 5 ग्राम चूर्ण को हल्के गर्म पानी के साथ सेवन करने से कब्ज़ (कोष्ठबद्वता) दूर होती है।
- बड़ी पीली हरड़ का छिलका 6 ग्राम को काला नमक या लाहौरी नमक आधा ग्राम में मिलाकर कूटकर रख लें। इसे सोने से पहले पानी के साथ लेने से पेट साफ होता है।
- काबुली हरड़ को रात में पानी में डालकर भिगों दे। सुबह इसी हरड़ को पानी में रगड़कर नमक मिलाकर एक महीने तक लगातार पीने से पुरानी से पुरानी कब्ज मिटती जाती है।
- हरड़, सनाय और गुलाब के गुलकन्द की गोलियां बनाकर खाने से मलबंद (कब्ज) दूर होती है।
- 10 भाग हरड़, 20 ग्राम बहेड़ा और 40 भाग आंवला आदि को मिलाकर चूर्ण बना लें। रात को सोते 1 चम्मच चूर्ण दूध या पानी के साथ लेने से लाभ होता है।
- हरड़ की छाल 10 ग्राम, बहेड़ा 20 ग्राम, आंवला 30 ग्राम, सोनामक्खी 10 ग्राम, मजीठ 10 ग्राम और मिश्री 80 ग्राम को मिलाकर चूर्ण बनाकर रख लें। फिर 10 ग्राम मिश्रण को शाम को सोने से पहले सेवन करने कब्ज नष्ट होती है।
- छोटी हरड़ और 1 ग्राम दालचीनी मिलाकर पीसकर चूर्ण बना लें, इसमें 3 ग्राम चूर्ण हल्के गर्म पानी के साथ रात में सोने से पहले लेने से कब्ज (कोष्ठबद्वता) को समाप्त होती है।
- छोटी हरड़ 2 से 3 रोजाना चूसने से कब्ज मिटती है।
- छोटी हरड़ को घी में भून लें। फिर पीसकर चूर्ण बना लें। दो हरड़ों का चूर्ण रात को सोते समय पानी के सेवन करने से शौच खुलकर आता है।
- छोटी हरड़, सौंफ, मिश्री को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें। इसमें से एक चम्मच चूर्ण रात को सोते समय पानी के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
- छोटी हरड़ का आधा चम्मच चूर्ण सुबह-शाम भोजन के बाद और सोते समय 1 चम्मच की मात्रा में जल के साथ सेवन से पेट साफ होगा।
- हरड़, बहेड़े और आंवले को बराबर मात्रा में लेकर कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर रखें। इस चूर्ण को त्रिफला चूर्ण कहते है। रात्रि को 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण गर्म जल या दूध के साथ सेवन करने से कब्ज नष्ट होती है।
- हरड़ सुबह-शाम 3 ग्राम गर्म पानी के साथ खाने से पेट के कब्ज में फायदा मिलता है और बवासीर रोग में भी लाभ होता है।
35. मसूढ़ों की सूजन: हरड़, बहेड़ा व आंवला 10-10 ग्राम लेकर मोटा-मोटा कूट लें। इसके कूट को 800 मिलीलीटर पानी में उबालें। जब 200 मिलीलीटर पानी बचे तो 30 से 60 मिलीलीटर पानी से दिन में 2 से 3 बार गरारे करें। इससे मसूढ़ों की सूजन ठीक होती है।
36. श्लेष्मपित्त:
- बराबर मात्रा में हरड़, जवासा, धनिया, मुनक्का, चीनी और पीपल को लेकर इन सबको पीसकर इनका चूर्ण बनाकर रख लें और लगभग 3 या 4 ग्राम की मात्रा में इस चूर्ण को शहद के साथ श्लेश्म पित्त के रोगी को चटाने से लाभ मिलता है।
- पीली हरड़ को 25 ग्राम की मात्रा में और बहेड़े के चूर्ण को 50 ग्राम की मात्रा में मिलाकर चने के आकार की गोलियां बना लें, रोजाना सुबह ताजे जल के साथ एक गोली को लेने से सभी प्रकार के पित्त रोग खत्म हो जाते हैं।
37. वमन (उल्टी): हरड़ को पीसकर उसमें शहद मिलाकर चाटने से उल्टी आना बंद हो जाती है।
38. काली (छोटी हरड़, बाल हरड़, जौ हरड़ जंग हरड़) हरड़ : काली हरड़ को पानी से धोकर किसी साफ कपड़े से पोंछकर साफ करके रख लें। सुबह और शाम खाना खाने के बाद एक हरड़ को मुंह में रखकर चूसने से यह कई रोगों में लाभ देती है-जैसे- पेट की गैस की शिकायत दूर करती है। भूख लगने लगती है। पाचन शक्ति को बढ़ाती है। जिगर (लीवर) और आंतड़ियों की गैस समाप्त करती है। खून को साफ करती है। त्वचा के रोगों को दूर करती है। दांत को मजबूत बनाती है और आंखों के चश्मे का नम्बर भी कम करने में सहायता करती है तथा इससे उपयोग से सिगरेट पीने की आदत भी छूट जाती है।
39. मलबंद: छोटी हरड़, मरोड़फली, जवाखार और निशोथ को मिलाकर बराबर मात्रा में लेकर बारीक मात्रा में पीसकर छान लें। इस बने चूर्ण को 3 से 6 ग्राम तक की मात्रा में देशी घी में मिलाकर चाटने से उदावर्त्त रोग दूर होते हैं।
40. दस्त:
- हरड़ का पिसा हुआ बारीक चूर्ण 50 ग्राम, सेंधानमक 10 ग्राम को लेकर पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें, इस चूर्ण को 1-1 चम्मच की मात्रा में सुबह और शाम ताजे पानी के साथ पीने से लाभ मिलता है।
- रात को सोने से पहले हरड़ का मुरब्बा खाकर ऊपर से दूध पी लें, इससे सुबह उठने पर शौच साफ आती है।
41. हिचकी का रोग: हरड़ के चूर्ण को गर्म पानी के साथ खाने से हिचकी मिट जाती है।
42. कान से कम सुनाई देना: आधी कच्ची जोगी हरड़ के चूर्ण को सुबह और शाम फांकने से बहरेपन का रोग दूर हो जाता है।
43. संग्रहणी (पेचिश): हरड़, छोटी पीपल, सोंठ और चित्रक (चीता) इन सभी का चूर्ण बनाकर मट्ठे (लस्सी) के साथ पीने से संग्रहणी अतिसार दूर हो जाता है।
44. पेट का फूलना: हरड़ 10 ग्राम, छोटी पीपल 10 ग्राम और निशोथ़ 10 ग्राम को बराबर मात्रा में लेकर इसे थूहर के दूध में पीसकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें। इसे रोजाना सुबह 1 से लेकर 2 गोलियां खाने से आनाह (पेट का फूलना) और पेट में कब्ज की बीमारियां मिट जाती हैं।
45. बवासीर (अर्श):
- काली हरड़ 200 ग्राम लेकर उसे 20 ग्राम घी में डालकर भून लें। उसमें थोड़े-सा आंवला का रस और गन्धक डालकर अच्छी तरह से मिला लें। रोजाना रात को सोते समय 6 ग्राम मिश्रण गर्म दूध के साथ पीयें।
- 75 ग्राम हरड़ के छिलके को कूट-छानकर इसमें 3 ग्राम गुड़ मिलाकर रोज खाली पेट लें। 21 दिन लगातार खाने से बवासीर में आराम मिलता है।
- छोटी हरड़, पीपल और सहजने की छाल का चूर्ण बनाकर उसी मात्रा में मिश्री मिलाकर खायें। इससे बादी बवासीर ठीक होती है।
46. चोट: हरड़, आमला, रसोत 50-50 ग्राम कूट छानकर 5-5 ग्राम सुबह-शाम पानी के साथ लेने से खून का बहना बंद होता है और लाभ भी होता है।
47. आंव रक्त (पेचिश): काली हरड़, को गाय के घी में भूनकर पीस लें। फिर इसमें इसी के बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर खाने से दस्त के साथ आंव आना बंद हो जाता है।
48. अग्निमान्द्यता (अपच): छोटी हरड़ 2 दाने, मुनक्का 4 दाने, अंजीर के 2 दाने का काढ़ा बनाकर सोने से पहले पीने से लाभ मिलता है।
49. जिगर का रोग:
- बड़ी हरड़ को पीसकर चूर्ण बना लें और उसमें पुराना गुड़ और हरड़ का चूर्ण मिलाकर 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर सुखा लें। 1-1 गोली सुबह-शाम लें, इसे 30-40 दिनों तक लगातार सेवन से बढे़ हुए यकृत रोग से राहत मिलती है।
- 2 ग्राम बड़ी हरड़ का चूर्ण गुड़ के साथ सेवन करने से यकृत वृद्धि मिट जाती है।
50. श्वेतप्रदर: हरड़, आंवला और रसौत को बराबर मात्रा में लेकर इसका चूर्ण बना लें, इसे 3-6 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से श्वेतप्रदर मिट जाता है।
51. अल्सर: 2 छोटी हरड़ और 4 मुनक्का के दाने लेकर उनकी चटनी पीस लें और रोजाना सुबह के समय खाएं।
52. अम्लपित्त:
- बड़ी हरड़ को पीसकर उसका चूर्ण बना लें। इसमें 180 मिलीग्राम जवाखार मिलाकर सुबह और शाम 3-3 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से लाभ होता है।
- हरड़ का चूर्ण 6 ग्राम में 6 ग्राम शहद, गुड़ या दाख (मुनक्का) को मिलाकर सेवन करने से तीन दिन में ही अम्लपित्त से छुटकारा पाया जा सकता है।
- हरड़ के 2 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर पिलाने से बच्चों के अम्लपित्त में लाभ होता है।
- हरड़, छोटी पीपल, दाख (मुनक्का), धनिया, जवासा और मिश्री या चीनी को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह कूट लें। इस बने चूर्ण को 3 से 4 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से `श्लेश्मपित्त´ और `अम्लपित्त´ समाप्त हो जाते हैं।
- हरड़, दाख (मुनक्का), छोटी पीपल, जवासा, धनिया और मिश्री को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से अम्लपित्त में लाभ होता है।
- हरड़ एक चम्मच की मात्रा में 2 किशमिश के साथ लेने से अम्लपित्त ठीक हो जाता है।
53. गला बैठना: छोटी हरड़ का चूर्ण बनाकर 6 ग्राम चूर्ण को गाय के दूध में मिलाकर सेवन करें। इसका प्रयोग 7 से 8 दिनों तक करने से गला बैठना व गले का दर्द तथा खुश्की आदि ठीक हो जाती है।
54. रक्तप्रदर की बीमारी: 10-10 ग्राम हरड़ आंवले और रसौत को लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें, इसके 5 ग्राम चूर्ण को पानी के साथ सेवन करने से रक्तप्रदर की बीमारी नष्ट जाती है।
55. जलोदर: हरड़, सोंठ, देवदारू, पुनर्नवा और गिलोय को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। इस काढे़ में शुद्ध गुग्गुल और गाय के पेशाब को मिलाकर पीने से जलोदर की बीमारी समाप्त हो जाती है।
56. मधुमेह का रोग: त्रिफला (हरड़ बहेड़ा, आंवला,) जामुन की गुठली, करेले के बीज, मेथी के दाने। सभी 50-50 ग्राम की मात्रा में लेकर 100 ग्राम गुड़मार में कूट-पीसकर मिला लें और सुबह नाश्ते के बाद 2 चम्मच पानी के साथ सेवन करें। इससे मधुमेह से आराम मिलता है।
57. मोटापा दूर करना:
- हरड़ 500 ग्राम, 500 ग्राम सेंधानमक, 250 ग्राम कालानमक और 20 ग्राम ग्वारपाठे के रस को मिलाकर अच्छी तरह पीसें, जब रस सूख जाए तो इसे 3 ग्राम की मात्रा में रात को गर्म पानी के साथ सेवन करने से मोटापे के रोग में लाभ होता है।
- हरड़, बहेड़ा, आंवला, सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, सरसों का तेल और सेंधानमक मिलाकर 6 महीने तक लगातार सेवन करने से मोटापा, कफ और वायु (गैस) की बीमारियां समाप्त होती जाती हैं।
58. गिल्टी (ट्यूमर): हरड़, रेण्डी के बीज, रेण्डी का तेल और सिरका-पीसकर एकत्र कर लें। इसके बाद गर्म करके गिल्टी पर बांधें। इससे नई गिल्टी जल्दी सही हो जाती है तथा पुरानी गिल्टी जल्दी पककर फूट जाती है। इससे शीघ्र आराम हो जाता है।
59. जुकाम: 6 ग्राम बड़ी हरड़ के छिलकों के चूर्ण को शहद में मिलाकर चाटने से जुकाम ठीक हो जाता है।
60. पेट के कीड़े:
- हरड़, कबीला, सेंधानमक और बायविंडग को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह पीसकर बारीक चूर्ण बना लें, फिर इस तीन ग्राम चूर्ण को छाछ के साथ सेवन करने से पेट के कीड़े मिट जाते हैं।
- हरड़ और बायविंडग को बराबर मात्रा में पीसकर थोड़ी-सी मात्रा में गर्म पानी के साथ रोजाना सुबह और शाम फंकी के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
- बड़ी हरड़ का छिलका 10 ग्राम, बायविंडग 10 ग्राम, कालानमक 10 ग्राम को बराबर मात्रा में बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें। 2 ग्राम चूर्ण को दिन में 2 बार सुबह और शाम गर्म पानी के साथ पीने से पेट के कीडे़ समाप्त हो जाते हैं।
- बड़ी हरड़ को पानी में घिसकर उसमें सुहागा का फूल मिलाकर खुराक के रूप में देने से बच्चों के अजीर्ण (पुरानी कब्ज) रोग में लाभ होता है और पेट के कीड़े मर जाते हैं।
61. सभी प्रकार के दर्द: हरड़, बहेड़ा, आंवला और राई को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लें, फिर चूर्ण को 3 से 6 ग्राम की मात्रा में लेकर देशी घी और शहद के साथ चाटने से `आमशूल´ और अन्य कई प्रकार के रोगों से छुटकारा मिलता है।
62. स्तनों की गांठे (रसूली): बड़ी हरड़, छोटी पीपल और रोहितक की छाल को लेकर पकाकर काढ़ा बना लें, फिर इसी काढ़े में यवाक्षार 120 मिलीग्राम से लेकर 240 मिलीग्राम की मात्रा में सुबह और शाम पीने से स्तनों में होने वाली रसूली मिट जाती है।
63. वायु का गोला (गुल्म):
- हरड़ के चूर्ण को गुड़ में मिलाकर दूध के साथ सेवन करने से पित्त के कारण होने वाली गुल्म में लाभ होता है।
- बड़ी हरड़ का चूर्ण और अरण्डी के तेल को गाय के दूध में मिलाकर पीने से वात (वायु) गुल्म में लाभ होता है।
64. नाक के रोग: हरड़ का काढ़ा बनाकर नाक में डालने से पीनस (जुकाम) के रोग में आराम आ जाता है।
65. पेट में दर्द होना
- हरड़ का चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में गुनगुने पानी के साथ पीने से पेट की कब्ज के कारण होने वाले दर्द में लाभ होता है।
- छोटी हरड़ को पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें, फिर 1 चुटकी की मात्रा में गर्म पानी के साथ मिलाकर पीयें।
- हरड़ का बारीक पिसा हुआ चूर्ण 1 चम्मच गर्म पानी के साथ फंकी के रूप में लेने से पेट के दर्द में लाभ होता है।
- 6 ग्राम हरड़, बहेड़ा 6 ग्राम और राई को पीसकर पानी के साथ पीने से कब्ज के कारण होने वाले पेट के दर्द में लाभ होता है।
- काली (छोटी) हरड़ के चूर्ण में आधा चम्मच गुड़ मिलाकर प्रतिदिन सुबह खायें। इसे खाने के आधे घंटे के बाद पानी के साथ पीने से बहुत लाभ पहुंचता है।
- पिसी हुई हरड़ 1 चुटकी, आधा चुटकी पीपल में सेंधानमक मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।
- हरड़ को बारीक पीसकर बने चूर्ण को शहद के साथ चाटें।
66. गठिया रोग:
- 60 ग्राम हरड़ का छिलका, 40 ग्राम मीठी सुरंज और 20 ग्राम सौंठ को कूट-छानकर चूर्ण बना लें। इस 3 ग्राम चूर्ण को रोजाना सुबह-शाम गर्म पानी के साथ लेने से गठिया रोग ठीक होता है।
- हरड़ और सोंठ 3-3 ग्राम की मात्रा में जल के साथ लेने से घुटनों के तेज दर्द में लाभ होता है।
- 20 से 40 ग्राम हरीतकी (हरड़) का चूर्ण घी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से ठण्ड के कारण उत्पन्न गठिया दूर होती है।
67. उपदंश: हरड़ का छिलका, आंवला 10-10 ग्राम सुहागा भुना 5 ग्राम पीसकर उपदंश के जख्मों पर छिड़कने से लाभ मिलेगा।
68. योनि संकोचन:
- बड़ी हरड़ का बीज और माजूफल को मिलाकर चूर्ण बनाकर योनि में रखें, फिर 20 मिनट के बाद संभोग करें। इससे योनि टाईट-सी लगती है।
- हरड़, धाय के फूल, बहेड़ा, आंवला, जामुन की छाल, लोहसार, घी और मुलहठी को एक साथ मिलाकर पीसकर चूर्ण बना लें। इसे थोड़े दिनों तक योनि पर लेप लगाने से योनि काफी सख्त हो जाती है।
69. चक्कर आना: एक हरड़ का मुरब्बा इसमें लगभग 3 ग्राम धनिया और लगभग 1 ग्राम छोटी इलायची को पीसकर सुबह और शाम को खाने से चक्कर आना बंद हो जाता है।
70. खाज-खुजली:
- चकबड़, हरड़ और कांजी को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को खुजली वाले स्थान पर लगाने से लाभ होता है।
- दूब, हरड़, सेंधानमक, चकबड़ और बनतुलसी को लेकर अच्छी तरह से पानी के साथ पीस लें। फिर इसे खुजली वाले स्थान पर लगाने से खुजली दूर हो जाती है।
- दो चम्मच पिसी हुई हरड़ को 2 गिलास पानी में उबालकर छान लें। इस पानी के अन्दर रूमाल को भिगोकर शरीर में जहां पर भी खुजली हो वहां पर उस स्थान को साफ करने से खुजली चलना दूर हो जाती है।
71. त्वचा के रोग:
- हरड़, दूध, सेंधानमक, चकबड़ और बनतुलसी को बराबर मात्रा में लेकर कांजी में मिलाकर पीस लें। इसे दाद, खाज और खुजली पर लगाने से लाभ होता है।
- हरड़ और चकबड़ को कांजी के साथ पीसकर लेप करने से दाद ठीक हो जाता है।
72. सिर चकराना: हरड़ को पीसकर इतनी ही मात्रा में गुड़ मिलाकर मटर के दाने के बराबर गोलियां बनाकर रख लें और रोज़ाना सुबह गर्मी के मौसम में नाश्ते के बाद दो गोली खाकर पानी पीयें। ऐसा करने से गर्मी से होने वाले रोगों से बचा जा सकता है।
73. विसर्प (छोटी-छोटी फुंसियों का दल बनना): हरड़, बहेड़ा, आंवला, पद्याख, खस, लाजवन्ती, कनेर की जड़ और अनन्त-मूल का लेप करने से कफज-विसर्प रोग ठीक हो जाता है।
74. हृदय रोग:
- हरीतकी फल मज्जा और वचा को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लें। इस 1 ग्राम चूर्ण को 4 से 6 ग्राम शहद के साथ दिन में दो बार सुबह-शाम सेवन करें।
- हरीतकी फल मज्जा, वचा प्रकन्द, रास्ना मूल, शटी, पुश्करमूल, पिप्पलीफल व शुंठी बराबर लेकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 3 से 6 ग्राम की मात्रा में 100 से 250 मिलीलीटर दूध के साथ दिन में दो बार सेवन करें।
- हरीतकी फल मज्जा, त्रिवृत्, शटी, बला व पुश्कर मूल व शुंठी को एक समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इसकी 2 ये 4 ग्राम की मात्रा 7 से 14 मिलीलीटर गौमूत्र या 50 मिलीलिटर गर्म पानी के साथ दिन में दो बार लेना चाहिए।
- 50 ग्राम हरीतकी फल मज्जा, 100 ग्राम कृष्णलवण, 500 ग्राम घी, 2 किलो पानी में तब तक धीमी आंच पर उबालें जब तक 500 ग्राम की मात्रा में शेष न रह जाये। इसे 12 से 24 ग्राम की मात्रा में 50 ग्राम शर्करा के साथ दिन में दो बार सेवन करना चाहिए।
75. गांठ (गिल्टी): हरड़, मुण्डी, कचनार की छाल और विजयसार का काढ़ा बराबर मात्रा में लेकर उसमें शहद मिलाकर पिलाने से गले की गांठों में लाभ होता है।
76. गुल्यवायु हिस्टीरिया:
- बड़ी हरड़ के चूर्ण और गुलकन्द को गर्म पानी के साथ देने से हिस्टीरिया रोग ठीक हो जाता है।
- बड़ी हरड़ और सनाय की पत्तियां लगभग 50-50 ग्राम और 15 ग्राम कालानमक को कूट-छानकर लगभग 10-12 ग्राम की मात्रा में इस चूर्ण को गर्म पानी के साथ रात को सोते समय देना चाहिए। इससे दस्त लग जाते हैं और गैस बनना बंद हो जाती है।
77. कुष्ठ: हरड़, बायविडंग सेंधानमक, बावची के बीज, सरसों, करंज और हल्दी को बराबर मात्रा में लेकर गाय के पेशाब के साथ मिलाकर पीस लें। इसको लगाने से कुष्ठ (कोढ़) रोग समाप्त हो जाता है।
78. नाखून के रोग: नाखून में खुजली उत्पन्न होने पर बड़ी हरड़ को सिरके में घिसकर प्रतिदिन 2 से 3 बार लेप करने से नाखूनों की खुजली दूर हो जाती है।
79. पीलिया रोग:
- हरड़ को गाय के मूत्र में पकाकर खाने से पीलिया रोग और सूजन मिट जाती है।
- बड़ी हरड़ का छिलका 100 ग्राम और 100 ग्राम मिश्री को मिलाकर चूर्ण बना लें। यह 6-6 ग्राम दवा सुबह-शाम ताजे पानी के साथ खाने से पीलिया मिट जाता है।
- बड़ी हरड़ पांच ग्राम को करेले के पत्तों के रस में घिसकर पीने से पाण्डु (पीलिया) रोग मिट जाता है।
- बड़ी हरड़ को गोमूत्र में भिगोकर फिर गोमूत्र में ही मिलाकर सेवन करने से कफज पाण्डु रोग दूर होता है।
- हरड़ की छाल, बहेड़े की छाल, आंवला, सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, नागरमोथा, बायबिडंग, चित्रक। सब एक-एक चुटकी मात्रा में लेकर पीसकर मिला लें। इसकी चार खुराक बना लें। दिन भर में चारों खुराक शहद के साथ सेवन करें। इसी अनुपात में पन्द्रह दिन की दवा तैयार कर लें। यह प्रसिद्ध योग है।
- हरीतकी चूर्ण को गोमूत्र के साथ आधा चम्मच की मात्रा में लेना चाहिए।
80. दाद: चकबड़ और हरड़ को कांजी के साथ पीसकर दाद पर लगाने से दाद ठीक हो जाता है।
81. फीलपांव (गजचर्म): 5 ग्राम हरड़ के चूर्ण को घी में भूनकर गाय के पेशाब के साथ लेने से फीलपांव के रोगी को लाभ मिलता है।
82. कुष्ठ (कोढ़): छोटी हरड़ और समुद्रफेन खाने से कोढ़ का रोग समाप्त हो जाता है।
83. बच्चों का बुखार: 1 छोटी हरड़, 2 चुटकी आंवले का चूर्ण, 2 चुटकी हल्दी और नीम की 1 कली को एक साथ मिलाकर काढ़ा बना लें और बच्चे को पिला दें।
84. पसीने का अधिक आना: हरड़ को बारीक पीस लें। जहां पसीना अधिक आता हो, वहां पर इसकी मालिश करें। मालिश करने के बाद 10 मिनट बाद नहा लें। इससे ज्यादा पसीना आना बंद हो जाता है।
85. बालरोग (बच्चों के विभिन्न रोग):
- हरड़, बच और कूठ के चूर्ण को शहद में मिलाकर धुले हुए चावल या मां के दूध के साथ देने से तालुकंटक रोग शांत होता है।
- 20 ग्राम अजवाइन, 20 ग्राम छोटी हरड़, 20 ग्राम सौंफ, 20 ग्राम पीपल, 20 ग्राम सोंठ, 20 ग्राम पांचों नमक, 20 ग्राम गोल मिर्च, 20 ग्राम नींबू का रस, 80 ग्राम आक (मदार) के फूलों की कली को लेकर पीस लें और कपड़े से छानकर बेर के बराबर गोली बनाकर सुबह और शाम को बच्चे को खिलाने से लाभ होता है।
- हरड़, बच तथा मीठा कूठ- इन्हें पानी में पीसकर लुगदी जैसा बना लें। फिर इसे शहद में मिलाकर मां के दूध के साथ मिलाकर पिलाने से `तालुकंटक´ रोग दूर हो जाता है। (इस रोग में बच्चे के मुंह का तालु नीचे की ओर लटक जाता है जिसके कारण बच्चा दूध नहीं पी पाता है)
- हरड़, बहेड़ा, आंवला, लोध्र, पुनर्नवा, अदरक, कटेरी, तथा कटाई को पीसकर पानी में मिलाकर गर्म करके हल्का-सा गर्म गर्म पलकों पर लेप करने से पलकों पर होने वाला दर्द, मवाद बहना और `कुकूणक´ रोग (बच्चों का अपनी आंखों को मसलते रहना) दूर हो जाता है।
- बच्चे को कब्ज हो तो बड़ी हरड़ (जो साधारण हरड़ से बहुत बड़ी होती है तथा जिसे लोग काबुली हरड़ भी कहते है) को जरा सा घिसकर उसके ऊपर कालानमक गर्म पानी में मिलाकर पिला दें।
86. सिर का दर्द:
- लगभग 10-10 ग्राम की बराबर मात्रा में हरड़, आंवला, बहेड़ा, सुगन्धवाला और सिर धोने की सज्जी को लेकर अलसी के तेल में मिलाकर गाढ़ा लेप बना लें। इस लेप को सिर में लगाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
- 10 बड़ी हरड़ लेकर उसकी छाल को निकालकर 3 दिन तक पानी में भिगोकर धूप में रख दें। चौथे दिन उसमें 11 हरड़ की छाल कूटकर डाल दें और 3 दिन तक फिर धूप में रहने दें। अब इसमें 500 ग्राम शक्कर मिलाकर शर्बत बनाकर पीने से सिर के दर्द के साथ ही साथ गर्मी के कारण होने वाली अन्य बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं।
87. आग से जलने पर: हरड़ को पानी में पीसकर उसमें क्षारोदक और अलसी का तेल मिलाकर शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से जख्म जल्दी भरकर ठीक हो जाता है।
88. शारीरिक सौन्दर्यता: खूबसूरत बनने के लिए हरड़ का हमारे जीवन में बहुत ही खास स्थान है। हरड़ की फंकी को गर्म पानी के साथ हर 3 दिन के बाद दो चम्मच रात को सोते समय लेने से शरीर के जहरीले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। हरड़ खुद ही रसायन वाला द्रव्य है जिससे शरीर में हर समय चुस्ती-फुर्ती बनी रहती है।
89. जलन और घाव: हरड़ को जलाकर बारीक पीस लें और वैसलीन में मिलाकर शरीर के जले हुए भागों पर लगायें। इससे जलन कम होती है और जख्म भी भर जाते हैं।
90. दीर्घजीवी या लम्बी उम्र : 40 किलो की मात्रा में हरड़, 4 किलो की मात्रा में गोखरू का पंचांग और लगभग 10 किलो की मात्रा में पंवाड़ के बीजों को अच्छी तरह से बारीक पीसकर इसका चूर्ण बना लें। इसके बाद इसमें लगभग 40 लीटर की मात्रा में भांगरे के रस को मिलाकर घोंटे, जब भांगरे का रस अच्छी तरह से मिल जाए तो इसमें लगभग 11 किलो की मात्रा में गुड़ मिलाकर बारीक घोट लें। इसके बाद इसमें 10 किलो की मात्रा में शहद लेकर थोड़ा-थोड़ा कर मिलायें। इस तैयार मिश्रण में से बड़े आकार के लड्डू बना लें। इन लड्डुओं को रोजाना एक-एक कर सुबह खाली पेट खायें। इन लड्डुओं को खाने से चेहरा लाल, चेहरे और बदन की झुर्रियां नष्ट होती है, बाल और आंखों की नज़र तेज हो जाती है। इसका सेवन लगभग एक वर्ष तक करना चाहिए।
91. बलगम (कफ): हरीतकी चूर्ण सुबह-शाम काले नमक के साथ खाने से कफ खत्म हो जाता है।
92. नाड़ी का दर्द: नाड़ी में घाव होने पर निशोथ, काली निशोथ, त्रिफला, हल्दी तथा लोध्र बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में इससे चार गुना घी और घी में चार गुना पानी मिलाकर अच्छी तरह से आग पर पकायें, जब केवल घी शेष बचे तो उसे उतारकर छान लें। इस तैयार मिश्रण को दूध में मिलाकर पीने से `पित्तज´ के कारण उत्पन्न नाड़ी का घाव ठीक हो जाता है।
93. स्तनों की घुण्डी का फटना: हरीतकी (हरड़) को पानी में पीसकर शहद के साथ मिलाकर स्तनों की जख्मी चूंची (घुण्डी) पर लगाने से जख्म जल्दी भरने लग जाते हैं।
94. कण्ठमाला: छोटी हरड़ को पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 4 ग्राम सोते समय लेने से आराम मिलता है।
95. शरीर को मजबूत बनाना: लगभग 100-100 ग्राम की मात्रा में हरड़ का छिलका और पिसा हुए आमला को लेकर इसमें 200 ग्राम की मात्रा में चीनी मिलाकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को सुबह के समय लगभग 10 ग्राम की मात्रा में 250 मिलीलीटर हल्के गर्म दूध में एक चम्मच घी डालकर लेने से शरीर मजबूती होता है।
96. शरीर में सूजन:
- लगभग 50 मिलीलीटर हरड़ का काढ़ा और 5 ग्राम गुग्गुल के काढ़े को मिलाकर पीने से नाभि के नीचे के हिस्से (मूत्राशय) में होने वाली सूजन दूर हो जाती है।
- 300 मिलीलीटर पानी में 5-5 ग्राम की मात्रा में हरड़ का छिलका, हल्दी, देवदारू, सोंठ, सांठी की जड़, चित्रक, गिलोय और भारंगी को मोटा-मोटा कूटकर रात्रि को सोते समय भिगोयें और सुबह उठकर इसे गर्म करें, फिर एक चौथाई पानी रहने पर इसे छानकर हल्का गर्म रोगी को पीने को दें। इसी प्रकार इस मिश्रण को सुबह 300 मिलीलीटर जल में भिगोकर शाम को उबालें, जब यह एक चौथाई शेष बचे तो हल्के गर्म पानी को पीने से पूरे शरीर की सूजन ठीक हो जाती है।
- लगभग 50-50 ग्राम की मात्रा में हरड़ के छिलके, सोंठ, पीपल और गुड़ को एक साथ लेकर पीस लें। इसे 10-10 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम को पानी के साथ लेने से सभी प्रकार की सूजन दूर हो जाती है।
97. गले की सूजन:
- छोटी हरड़ चूसने से गले के रोगों में काफी आराम मिलता है।
- हरड़ के काढ़े में शहद मिलाकर पीने से गले के सारे रोगों में आराम आता है।
हरड़ के नुकसान : harad side effect in hindi
harad ke nuksan in hindi
इतनी उपयोगी होते हुए भी कुछ स्थितियों में हरड़ का सेवन वर्जित भी किया गया है
यथा अध्वाति खिन्नो बलवर्जितश्च रूक्षः कृशो लंघन कर्षितश्च पित्ताधिको गर्भवती च नारी विमुक्तरक्त स्त्वभयां न खादेत् ॥- भावप्रकाश निघण्टु
अर्थात् – जो मनुष्य मार्ग चलने से थका हुआ हो, निर्बल हो, रूखा और दुबला-पतला हो, लघंन करने से जिसका शरीर दुबला हो गया हो, अधिक पित्त प्रकोप से पीड़ित, जिसका रक्त निकाला गया हो और गर्भवती स्त्री- इनको हरड़ का सेवन नहीं करना चाहिए।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)
सामग्री : हरड 100 ग्राम , गुड 10 ग्राम.
विधि : हरड और गुड को अच्छी तरह मिला कर एक जान कर लें , इसके बाद इसकी चने के आकार की गोलियां बना कर छाव में सुखा लें.
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