हरड़ (हरीतकी) क्या है ? : harad in hindi
आयुर्वेद तथा अन्य शास्त्रों में हरीतकी यानी हरड़ की बहुत प्रशंसा की गई है। आयुर्वेद ने इसके गुण, कर्म और प्रभाव की विस्तार से चर्चा की है और इसे रसायन माना है। जो पदार्थ सेवन करने वाले को जरा (वृद्धावस्था) तथा व्याधि (बीमारी) से बचाता है उसे रसायन कहते हैं। खाद्य पदार्थों में पाये जाने वाले प्रमुख रस छः हैं यथा- मधुर, अम्ल, लवण, कुटु, तिक्त और कषाय । हरड़ की बहुत बड़ी विशेषता यह है कि एक लवण रस छोड़ कर शेष पांचों रस हरड़ में पाये जाते हैं इसलिए भी यह रसायन मानी जा सकती है।
पत्याय मज्जनि स्वादः स्नायवम्लो व्यवस्थितः ।
वृन्ते तिक्तस्त्वचि कटुरस्थिस्थ स्तुवरो रसः ।।
भाव प्रकाश निघण्टु के अनुसार हरड़ की मज्जा (गूदा) में मधुर रस, इसके तन्तुओं में अम्ल (खट्टा) रस और इसके वृन्त (ठूसे) में चरपरा रस, छाल में कड़वा रस पाया जाता है। इस प्रकार हरड़ में पांचो रस उपलब्ध रहते हैं।
उत्तम क़िस्म की हरड़ के विषय में भी आयुर्वेद ने उपयोगी जानकारी दी है –
यथा‘नवा स्निग्धा घना वृत्ता गु क्षिप्ता च याऽम्भसि।
निमज्जेत्सा सुप्रशस्ता कथितापि गुण प्रदा।
नवादि गुण युक्तत्वं तथैवात्र द्विकर्षता।
हरीतक्याः फले यत्र द्वयं तच्छ-ष्ठ मुच्यते ।।
(भावप्रकाश निघण्टु)
अर्थात् – जो हरड़ नई, चिकनी, घनी गोल तथा भारी हो और जल में डालने पर डूब जाए। वह हरड़ उत्तम और गुणकारी होती है। जो हरड़ उपर्युक्त लक्षणों से युक्त हो तथा | तौल में 20 ग्राम के लगभग वज़न की हो वही हरड़ उत्तम कही गई है।
हरड़ का विभिन्न भाषाओं में नाम :
- संस्कृत – हरीतकी।
- हिन्दी – हरड़, हर्रा ।
- मराठी – हरडा, हर्तकी ।
- गुजराती – हरडे, हिम ।
- बंगला – हरीतकी।
- तैलुगु – करक्काई, करक्वाप ।
- तामिल – कदुक्काई, करकैया ।
- कन्नड़- अणिलेय, अनिलैकाय ।
- उड़िया – हरिडा करेडा।
- आसामी- हिलिखा, सिल्लिका ।
- मारवाड़ी – हरड़े।
- सिक्किम – हन, सिलिमकंग ।
- पंजाबी – हरड ।
- फ़ारसी – हलीलः, हलैले ।
- अरबी – अहलीलज ।
- उर्दू – हरडे ।
- इंगलिश – मायरो बेलं स (Myro-balans) ।
- लैटिन – टरमिनेलिया चेबुला (Terminalia chebula) ।
हरड़ के प्रकार : different types of harad (haritaki )
harad ke prakar in hindi
व्यावहारिक दृष्टि से हरड़ तीन प्रकार की मानी गई है।
- छोटी हरड़ जिसे बाल हरड़ भी कहते हैं और फ़ारसी भाषा या यूनानी पद्धति में ‘हलीलः स्याह’ यानी काली हरड़ कहते हैं।
- पीली हरड़ जिसे फ़ारसी भाषा या यूनानी पद्धति में हलीलः जर्द और
- तीसरी बड़ी हरड़ (हलीलः काबुली) कही जाती है।
दरअसल ये तीनों प्रकार की हरड़ एक ही वृक्ष से पैदा होती हैं। जो अवस्था भेद से तीन प्रकार की मानी जाती हैं। हरड़ के वृक्ष से कच्ची और कोमल अवस्था में, गुठली आने से पहले ही, जो फल गिर जाते हैं या तोड़ कर सुखा लिये जाते हैं वे छोटी हरड़ या बाल हरड़ या काली हरड़ होते हैं। इनका रंग काला होता है। फल में गुठली आ जाने के बाद, प्रौढ़ अवस्था में जो अपरिपक्व (पूरे पके न होना) यानी कच्चे फल लिये जाते हैं, उनका रंग पीला होता है इसलिए ऐसी हरड़ को पीली हरड़ कहते हैं और पूरे आकार में आने पर इसे बड़ी हरड़ कहते हैं।
हरड़ के औषधीय गुण : harad ayurvedic benefits
- हरड़ में, लवण रस छोड़ कर, शेष पांचों रस- (मधुर, अम्ल, कटु, तिक्त , कषाय) होते हैं और अन्य रसों की अपेक्षा कषाय रस अधिक मात्रा में होता है यानी विशेषतः यह कसैली होती है।
- यह रूखी, उष्ण वीर्य, अग्निदीपक, मेधा (धारणा शक्ति) के लिए हितकारी, मधुर विपाक वाली, रसायन (वृद्धावस्था व रोगों को दूर रखने वाली) है।
- यहआयु बढ़ाने वाली, नेत्रों के लिए हितकारी,जल्दी पचने वाली यानी हलकी, बृहण (शरीर में मांस आदि धातुओं की वृद्धि-पुष्टी करने वाली) होती है।
- यह अनुलोमन (मल आदि को नीचे की तरफ़ ले जाने वाली) होती है।
- इसके सेवन से श्वास,कास (खांसी) प्रमेह, बवासीर, कुष्ठ, शोथ, पेट के कीड़े या उदर सम्बन्धी कोई रोग, स्वर भेद (आवाज़ खराब होना), ग्रहणी सम्बन्धी रोग, विबन्ध (मल-मूत्र की रुकावट होना), विषम ज्वर, गुल्म, आध्मान, प्यास, वमन, हिचकी, खुजली, हृदय रोग, कामला, शूल, आनाह, प्लीहा व यकृत के विकार, पथरी, मूत्र कृच्छ तथा मूत्राघात आदि व्याधियां दूर होती हैं।
- हरड़ मधुर, तिक्त व कसैले रसों वाली होने से पित्त का शमन करती है, कटु, तिक्त और कषाय रसों वाली होने से कफ का और अम्ल रस के प्रभाव से वात का शमन करती है।
- इस प्रकार अकेली एक हरड़ ही तीनों दोषों का शमन करके, उन्हें ‘दोष’ से ‘धातु’ में परिवर्तित करने की विशेष गुणवत्ता रखती है।
- हरड़ की व्यापक गुणवत्ता और उपयोगिता को देखते हुए शास्त्रों में इसे माता के समान दर्जा दिया है यथा-‘हरीतकी मनुष्याणां मातेव हितकारिणी। कदाचित् । कुप्यते माता नोदरस्था हरीतकी।’ अर्थात् मनुष्यों के लिए हरड़ माता के समान हित करने वाली होती है। कदाचित माता तो कभी-कभी क्रोधित भी हो जाती है मगर पेट में गई हुई हरड़ कभी कुपित नहीं होती। एक स्थान पर और भी कहा है- ‘यस्य गृहे माता नास्ति तस्य माता हरीतकी।’ अर्थात् जिसके घर में माता न हो उसकी माता हरड़ है। इन दो सूत्रों से यह तथ्य स्पष्ट होता है कि हरड़ हमारे शरीर का हित और पोषण उसी प्रकार करती है जैसे माता अपने शिशु का करती है।
- छोटी हरड़ उदर (पेट) की मित्र मानी जाती है और उदर रोगों में छोटी हरड़ का ही उपयोग होता है।
- बड़ी हरड़ का उपयोग ‘त्रिफला’ नामक योग (हरड़, बहेड़ा, आंमला) में होता है और ऋतु के अनुसार अलग-अलग अनुपान के साथ ली जाने वाली हरड़ भी यह बड़ी हरड़ ही होती है।
रासायनिक संघटन :
इसके फल में टैनिन होता है। टैनिन के घटकों में चेबुलेनिक एसिड, चेबुलिनिक एसिड और कोरिलेजिन प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त शर्करा , 18 एमिनो एसिड तथा अल्प मात्रा में फास्फरिक, सक्सिनिक, क्विनिक, शकिमिक अम्ल होते हैं। फल के परिपाक काल में टैनिन घटता जाता है तथा अम्लता बढ़ती जाती है। बीज मज्जा से एक पीले रंग का तैल निकलता है।
मात्रा और सेवन विधि : harad powder dosage
हरड़ के चूर्ण की सामान्य मात्रा 3 से 6 ग्राम होती है और अनुपान के रूप में हरड़ के चूर्ण के साथ जो पदार्थ लिया जाए उसकी मात्रा लगभग हरड़ के चूर्ण के बराबर लेना चाहिए लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर यह मात्रा, व्यक्ति की क्षमता और आवश्यकता के अनुसार कम ज्यादा करनी होती है जिसे सेवन करने वाला 3-4 दिन में अपने अनुभव के आधार पर स्वयं निश्चित करता है।
हरड़ के फायदे और उपयोग : harad benefits in hindi
harad ke fayde in hindi
1. भाव प्रकाश निघण्टु में बताया है कि हरड़ को विभिन्न प्रकार से प्रयोग करने पर इसके परिणाम भी अलग अलग होते हैं जैसे दांतों से चबा कर खाई हुई हरड़ जठराग्नि को प्रबल करती है।
2. पीस कर चूर्ण के रूप में, अपने अनुकूल मात्रा के अनुसार, जल के साथ लेने से दस्त साफ़ लाती है।
3. जल में उबाल कर खाने पर यही हरड़ दस्त बन्द भी करती है।
4. भून कर खाई हुई हरड़ तीनों दोषों का शमन करती है।
5. भोजन के अन्त में खाई हुई हरड़ बुद्धि व बल की वृद्धि करती है, इन्द्रियों को हर्षित और पुष्ट करती है और त्रिदोष का शमन करती है, मल मूत्र को निकालती है साथ ही ग़लत खान-पान से होने वाले वात पित्त कफ के विकारों को नष्ट करती है।
इस तरह से यह साबित होता है कि हरड़ एक अद्भुत दिव्य गुणों वाला, रसायन फल है। अनुपान बदल कर सेवन करने से हरड़ के गुण व प्रभाव बदल जाते हैं।
6. हरड़ का सेवन सेन्धा नमक के साथ करने से कफ का शमन होता है, शक्कर के साथ करने से पित्त का शमन होता है, घृत के साथ वात का और गुड़ के साथ सेवन करने पर सब रोगों का शमन होता है।
7. जो रसायन के रूप में हरड़ का सेवन करना चाहते हों उन्हें बड़ी हरड़ का चूर्ण वर्षा ऋतु में सेन्धा नमक के साथ, शरद ऋतु में शक्कर के साथ, हेमन्त ऋतु में सोंठ, शिशिर ऋतु में पीपल, वसन्त ऋतु में शहद और ग्रीष्म ऋतु में गुड़ के साथ रोज़ाना प्रातः काल खाली पेट सेवन करना चाहिए। यहां हरड़ के दो क़ब्ज़नाशक उपयोग प्रस्तुत किय जा रहे हैं जो बहुत ही गुणकारी और लाभप्रद सिद्ध होते हैं।
8. कब्ज दूर करने में हरड़ के फायदे –
पहला प्रयोग- आजकल क़ब्ज़ होने की शिकायत आम तौर से होती पाई जा रही है। बाल हरड़ जैसी क़ब्ज़नाशक और रसायन के गुण रखने वाली वस्तु के होते हुए भी यदि कोई क़ब्ज़ से ग्रस्त और पीड़ित रहे तो यह उसके लिए दुर्भाग्य की बात हीहोगी। क़ब्ज़ के रोगी स्त्री-पुरुषों को काफ़ी देर तक, मल विसर्जन की प्रतीक्षा करते हुए शौचालय में बैठना पड़ता है। कई लोग तो अखबार साथ ले जाते हैं ताकि इन्तज़ार करने की बोरियत से बच सकें। देर तक मल विसर्जन न होने पर अधिकांश लोग मल निकालने के लिए ज़ोर लगाते हैं जिससे मस्सों पर दबाव और ज़ोर पड़ता है, उनमें शोथ हो जाता है और धीरे-धीरे इसका परिणाम होता है बवासीर हो जाना।
मल विसर्जन हो इसके लिए दूसरा कोई भी उचित उपाय किया जाए पर ज़ोर कदापि न लगाया जाए। इसके लिए बाल हरड़ के चूर्ण का सेवन करना ऐसा ही एक निरापद उपाय है। बाल हरड़ के चूर्ण का सेवन करने पर ज़ोर लगाने की नौबत ही नहीं आती क्योंकि मल सरलता और शीघ्रता से विसर्जित हो जाता है। क़ब्ज़ दूर करने के लिए हरड़ के चूर्ण का सेवन करना निरापद और सर्व श्रेष्ठ उपाय है। इसकी विधि इस प्रकार है
छोटी हरड़ (बाल हरड़) को खूब कूट पीस कर और छान कर महीन चूर्ण करके शीशी में भर कर रख लें। रात को सोते समय, जबकि शाम का भोजन किये हुए ढाई-तीन घण्टे हो चुके हों, हरड़ के चूर्ण को ठण्डे जल के साथ उचित मात्रा में सेवन करना चाहिए । उचित मात्रा क्या और कितनी हो इसका निर्णय अपने. मलाशय की कठोरता और क़ब्ज़ की स्थिति को देखते हुए खुद ही करना होगा। यदि आधा या एक चम्मच चूर्ण को सामान्य मात्रा मान लें तो इस मात्रा में रात को चूर्ण का सेवन करें। जो चूर्ण के अरुचिकर स्वाद के कारण, चूर्ण का फांकने में असुविधा का अनुभव करें वे चूर्ण को थोड़े से पानी में घोल कर सटाक से पी जाएं और ऊपर से शेष पानी पी लें । जो सोते समय दूध पीने के आदी हों वे पहले दूध पी लें फिर इसके आधा घण्टे के बाद हरड़ का चूर्ण लें।
सुबह शौच क्रिया पर कोई असर दिखाई न दे तो समझें कि रात को जिस मात्रा में चूर्ण लिया वह मात्रा पर्याप्त नहीं थी। और यदि पतले दस्त लग जाएं तो समझें कि मात्रा ज़रूरत से ज्यादा रही। जिस मात्रा के सेवन से, सुबह शौच के लिए बैठते ही, बिना इन्तज़ार किये, बिना ज़ोर लगाए, बड़ी सरलता से एक बंधा हुआ साफ़ दस्त हो जाए और पेट हलका हो जाए वही मात्रा अपने लिए अनुकूल और उचित समझें। इस तरह अपने लिए हरड़ की अनुकूल और उचित मात्रा का निश्चय स्वयं ही करना होगा। एक मात्रा सभी व्यक्तियों के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती।
दूसरा प्रयोग – हरड़ के सेवन की एक दूसरी विधि यह है कि सुबह का भोजन करके उठे तब जैसे कुछ लोग पान या सौंफ सुपारी खाते हैं वैसे आप छोटी हरड़ के बारीक टुकड़े कर के मुंह में रख लें और घण्टे भर तक चूसते रहें फिर चबा कर निगल जाएं, थूकना नहीं है। यह दूसरी विधि ऐसी है जिसे आप जीवन भर प्रयोग कर सकते हैं। सिर्फ़ सुबह के भोजन के बाद, दिन भर में एक ही बार, करना है, रात के भोजन के बाद नहीं। शुरू शुरू में छोटी हरड़ के दो टुकड़े करके एक टुकड़ा रख दें और दूसरे टुकड़े को सरोते से बारीक टुकड़े करके सेवन करें। आधा बचा टुकड़ा, दूसरे दिन उपयोग में लें। धीरे धीरे मात्रा बढ़ा कर थोड़े दिन बाद पूरी एक बाल हरड़ का उपयोग करने लगे। इससे ज्यादा मात्रा न बढ़ाएं। बाल हरड़ पांच रसों से युक्त रसायन है। भोजन के बाद इसको मुंह में डाल कर चूसने, चबाने और निगल जाने का प्रयोग आप जीवन भर कर सकते हैं ।
लाभ –इस प्रयोग से दोनों वक्त शौच क्रिया ठीक से होती रहेगी तो पेट साफ़ होता रहेगा और क़ब्ज़ का नामोनिशान न रहेगा, मसूढे व दांत मज़बूत और स्वस्थ बने रहेंगे और पूरे शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति बनी रहेगी।
तो देर न कीजिए, यह प्रयोग आप तत्काल शुरू कर दीजिए, शुभस्य शीघ्रम।
हरड़ के नुकसान : harad side effect in hindi
harad ke nuksan in hindi
इतनी उपयोगी होते हुए भी कुछ स्थितियों में हरड़ का सेवन वर्जित भी किया गया है
यथा अध्वाति खिन्नो बलवर्जितश्च रूक्षः कृशो लंघन कर्षितश्च पित्ताधिको गर्भवती च नारी विमुक्तरक्त स्त्वभयां न खादेत् ॥
– भावप्रकाश निघण्टु
अर्थात् – जो मनुष्य मार्ग चलने से थका हुआ हो, निर्बल हो, रूखा और दुबला-पतला हो, लघंन करने से जिसका शरीर दुबला हो गया हो, अधिक पित्त प्रकोप से पीड़ित, जिसका रक्त निकाला गया हो और गर्भवती स्त्री- इनको हरड़ का सेवन नहीं करना चाहिए।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)
सामग्री : हरड 100 ग्राम , गुड 10 ग्राम.
विधि : हरड और गुड को अच्छी तरह मिला कर एक जान कर लें , इसके बाद इसकी चने के आकार की गोलियां बना कर छाव में सुखा लें.
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