वसा (फैट) क्या है? इसके फायदे और नुकसान | Fat Sources ,Benefits and Side Effects in Hindi

Last Updated on July 22, 2019 by admin

फैट (वसा) क्या है ? : Vasa Kya Hoti Hai

What is Fat
कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के एक साथ मिलने से वसा (चिकनाई) वाले पदार्थ बनते हैं। इनमें कार्बन की मात्रा 79 प्रतिशत, हाइड्रोजन 11 प्रतिशत और ऑक्सीजन 10 प्रतिशत की मात्रा में होता है। यह 2 प्रकार का होता है- (1)प्राणीजन्य और (2)वनस्पतिजन्य।
दूध, मक्खन, घी, पनीर, मीट-मछली, चर्बी और अंडा प्राणिजन्य तथा काला तिल, सरसों, महुआ, सोयाबीन, जैतून, अखरोट, मूंगफली, चिलगोजा, बादाम, गिरी और हर प्रकार के तेल और खली वनस्पतिजन्य कहलाते हैं। इन पदार्थो में नाइट्रोजन नहीं होता है।

वसा के फायदे : Vasa Ke Fayde in Hindi

Benefits of fat in hindi
1-वसा हमारे शरीर में स्टैंरोल्स व हारमोन्स संश्लेषण को निर्मित करते हैं। यहीं इनकी विशेष उपयोगिता भी है।
2-वसा शरीर के कुछ अंगों जैसे- गुर्दों, आंखों आदि को सहारा देती है।
3-वसा शरीर में ऊष्मा और ऊर्जा पैदा करती है।
4-वसाअवत्वचीय परत के रूप में त्वचा से होने वाले ऊष्मा के नुकसान को कम कर देती है।
5-वसा शरीर में कॉलेस्ट्रॉल एवं स्टीरॉयड हॉर्मोन्स का संश्लेषण करती है।
6-यह वसा में घुलनशील विटामिंस जैसे- A, D, E एवं K का परिवहन एवं भण्डारण करती है।
7-जरूरत से अधिक वसा लेने पर वसाएं त्वचा के नीचे वसीय ऊतक (adipose tissue) और मीजेन्ट्री (आन्त्रयोजनी) में जमा हो जाती है, जो ऊर्जा का मुख्य सुरक्षित भण्डार होता है।
8-एक ग्राम वसा से लगभग 9 कैलोरी ऊर्जा पैदा होती है। एक सामान्य वयस्क को रोजाना 35 से 60 ग्राम वसा की जरूरत होती है।

आवश्यक बातें :

1. ध्यान रहे कि रासायनिक रूप से वसा फैटी एसिड व उनके एस्टरस से तैयार होते हैं।
2. कोलेस्ट्रोल-यह केवल पशुजन्य वसा से होता है।
3. एरगैस्ट्रोल-इसे हम केवल वनस्पतिज़न्य वसा से प्राप्त करते हैं।

वसा के प्रकार : Vasa ke Prakar

Types of Fat in Hindi
वसा दो प्रकार की होती है :
(1) संतृप्त वसा (saturated fatty acid)
(2) असंतृप्त वसा।(unsaturated fatty acid)

संतृप्त वसा क्या है ? : Santrip‍t Vasa kya Hai

What is Saturated Fatty Acid
1. इसे अंग्रेजी में ‘सैचुरेटिड फैटी एसिड्स’ के तौर पर जानते हैं।
2. इनकी संरचना से हाइड्रोजन के डबल बांड की संख्या कम होती है।
3. ये आसानी से सामान्यत नहीं पिघलते। इन्हें पिघलाने के लिए हलका सा ताप देना होता है।
4. साधारण तापमान में रखने पर ये सदा ठोस बने रहते है। हमारे कमरे का तापमान इन्हें ठोस अवस्था में रखता है।
5. ऐसे संतृप्त वसा के उदाहरण है-(i) नारियल का तेल (ii) वनस्पति घी (iii) हाइड्रोजनेटेड तेल भी संतृप्त वसा में आते हैं।

असंतृप्त वसा क्या है ? : Aantrip‍t Vasa kya Hai

What is Unsaturated Fatty Acid
1. इसे अंग्रेजी में ‘अनसैचुरेटिड फैटी एसिड’ कहते हैं।
2. ये सामान्य तापमान में भी पिघली अवस्था में रहते हैं।
3. कमरे के तापमान में रखें, तो भी ठोस नहीं होते। पिघले रहते हैं।
4. इनकी संरचना में हाइड्रोजन डबल बांड अर्थात् सदा दो से अधिक संख्या में पाए जाते हैं।
5. ऐसे असंतृप्त वसा के उदाहरण हैं-(i) सरसों का तेल, (ii) मकई का तेल, (iii) मूंगफली का तेल, (iv) बिनौले का तेल, (v) अखरोट का तेल, (vi) तिल का तेल आदि।

कीटो एसिड्स :

1. वसा के ऑक्सीडेशन से कीटो एसिड्स निर्मित हो जाते हैं।
2. यदि मनुष्य अपने भोजन से अधिक मात्रा में वसा खा ले, तो शरीर से इसका ऑक्सीडेशन होने से कीटो एसिड्स बन जाते हैं।
3. ध्यान रहे कि संतृप्त वसा के खाने से असंतृप्त वसा की बजाय काफी अधिक कीटों एसिड्स इकठ्ठे हो जाते हैं।
4. शरीर तथा भोजन विशेषज्ञों का मानना है कि वयस्को को अपने भोजन में असंतृप्त वसा अधिक मात्रा से लेनी बेहतर होती है। अत: हमें वनस्पति घी या नारियल का तेल प्रयोग करने की बजाय सरसों का तेल, मूंगफली का तेल आदि भोजन में सम्मिलित करने चाहिए। ये अधिक लाभकारी होते हैं।

कुछ और :

1. जैसा कि ऊपर संकेत रूप से कहा जा चुका है कि हमारे शरीर से कोलेस्ट्रॉल का निर्माण पशुजन्य वसा से अधिक होता है कोलेस्ट्राल पशुजन्य वसा ही है।
2. याद रखें कि अंडे में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा सभी पशुजन्य भोज्य पदार्थों से बहुत अधिक होती है।
3. जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि संतृप्त वसा आम तापमान से ठोस रहती है। हमारे शरीर में संतृप्त वसा के कोलेस्ट्रॉल का लेवल खून के सीरम से सामान्य से काफी ज्यादा होता है। यह उसे बढ़ने
में मदद करता है।
4. जबकि असंतृप्त वसा सीरम में बढ़ चुके कोलेस्ट्रॉल के लेवल को नीचे लाने में मददगार होते हैं। इसीलिए वयस्को को असंतृप्त वसा खाने की राय दी गई है।
5. यह भी याद रहे कि शरीर में जितना अधिक कोलेस्ट्रॉल का लेवल होगा, उतनी ही हृदय रोग की संभावना बढ़ जाएगी। रक्त में कोलेस्ट्रॉल का लेवल कम रखना बेहतर है। हृदय गति आहार शास्त्रियों तथा चिकित्सकों की यहीं सलाह है कि मनुष्य को संतृप्त वसा की बजाय असंतृप्त वसा सेवन करना चाहिए। इससे ह्रदय रोग होते या हृदय गति रुकने की संभावनाएं घट जाती हैं।

वसा के कार्य ? Vasa ke Karya

How Fat Works in Our Body
मनुष्य के शरीर में वसा का होना या भोजन में इसका सेवन करना आवश्यक तो है, मगर ज़रा संभलकर तथा सोच-समझकर खाए, वरना लेने के देने भी पड़ सकते हैं।
1. यदि शरीर में वसा की कमी आ जाए, तो शरीर की तत्रिकाएं असुरक्षित हो जाती है। अतः इन्हें सुरक्षित रखने के लिए वसा का सेवन अनिवार्य है।
2. यदि वसा की कमी आ जाए, तो शरीर अपने से विद्यमान प्रोटीन का प्रयोग करके काम चला लेगा, फिर प्रोटीन का अपना शरीर का निर्माण’ काम पीछे रह जाएगा।
3. हमारे शरीर को शक्ति चाहिए, उर्जा चाहिए और वसा इसका काफी बड़ा भंडार माना जाता है। अत: शरीर की शक्ति व ऊर्जा को बनाए रखने के लिए भोजन से वसा का उचित मात्रा से होना ज़रूरी है।
4. हमारा शरीर एक ग्राम वसा से 9 कैलोरीज़ शक्ति प्राप्त करता है। इसके मुकाबले कार्बोज़ आधे से कम शक्ति देते है। एक ग्राम कार्बोज़ तथा इतनी ही प्रोटीन, अलग-अलग से केवल चार कैलोरीज़ ऊर्जा उत्पन्न करते है। अत: शरीर के लिए वसा आवश्यक है, ताकि कार्बोज़ और प्रोटीन का क्षय न हो।
5. शरीर में होने वाले अम्ल के तीव्र प्रभाव को कम करने के लिए भी | वसा की भूमिका रहती है।
6. यदि हमारे भोजन से वसा न हो, तो हमें बार-बार भूख लगेगी। कार्बोज़ तथा प्रोटीन जल्दी पच जाते जबकि वसा अधिक समय लेती है, अत: संतोष व तृप्ति के लिए भी भोजन से वसा का होना जरूरी है।
7. शरीर में घुलनशील विटामिनों को हर जगह पहुंचाने में भी वसा अपनी अहम भूमिका निभाती है। अत: वसा से घुलनशील विटामिनों की उपयोगिता तभी होगी, जब हमारे शरीर से वसा मौजूद हो।
8. वसा की एक विशेषता यह भी है कि यह शरीर से आसानी से इकट्ठी हो जाती है। अत: वसा का सेवन आवश्यक होता है।
9. हमारे भोजन से यदि कार्बोज़ तथा प्रोटीन जरूरत से ज्यादा हो, तो भी कोई हानि नहीं होती। इन दोनों की अतिरिक्त मात्रा वसा में परिवर्तित होकर शरीर में इकट्टी हो जाती है। इस क्रिया को ‘ऐडिपोज़ टिशू’ नाम दिया गया है।
10. वसा हमारे शरीर के विभिन्न अंगों के इर्द-गिर्द गद्दी के रूप में जमा हो जाती है। इससे हमें जम्प, झटका, चोट आदि से सुरक्षा मिलती है। अंगों की टूट-फूट से बचाव होता है।
11. यह शरीर में विद्यमान वसा ही तो है, जो शरीर के तापमान को स्थिर रखने में सहायक होती है। अंगों के इर्द-गिर्द जमा होती वसा ही शरीर में उर्जा को क्षय होने से बचाती है।

निष्कर्ष :

देखा आपने, कितनी उपयोगी है वसा हमारे शरीर के लिए। आयु, लिंग परिश्रम आदि का ध्यान रखते हुए हमें वसा का सेवन करना चाहिए। असंतृप्त वसा का प्रयोग अधिक लाभकारी होता है, जो हमारे रक्त को जमने से बचाती है तथा उसके संचालन में अवरोध उत्पन्न नहीं होने देती।
असंतृप्त वसा से सरसों का तेल, मूंगफली का तेल, बिनौले का तेल आदि आते हैं, जो कमरे के तापमान में भी तरल बने रहते हैं।

वसा के स्रोत : Vasa ke Srot in Hindi

Sources of Fat in Hindi
वसा की प्राप्ति के अनेक स्रोत हैं। मुख्य स्रोत इस प्रकार हैं-(1) देसी घी, (2) मक्खन, (3) सभी प्रकार के तेल, (4) डालडा या कोई भी वनस्पति घी, (5) अखरोट, (6) मूंगफली, (7) काजू, (8) बादाम, (9) नारियल गोला, (10) सभी दूध विशेषकर भैंस का, (11) मलाई, (12) कोई भी सूखा मेवा, (13) यदि गाय के एक पाव दुध में वसा 5 ग्राम है तो यह भैंस के दूध से 22 ग्राम होगी, (14) दही, (15) पनीर, छेना, (16) लस्सी, (17) खोया, (18) दलिया, (19) मैदा, (20) बेसन, (21) हरी सब्जियां, (22) सोयाबीन, (23) स्पज़ केक, (24) पेस्ट्री, (25) बर्फी, (26) आइसक्रीम, (27) रसगुल्ला, (28) बिस्कुट, (29) समोसा, (30) कचौरी, (31) पूरी, (32) दालमोठे, (33) तली सिवई, (34) तली मूंग आदि।

वसा के नुकसान: Vasa ke Nuksan

Fat Side Effects in Hindi
अगर शरीर में वसा (चिकनाई) की कमी हो जाए तो व्यक्ति का शरीर बदसूरत, सूखा, कमजोर और बैडोल सा हो जाता है। लेकिन अगर ये पदार्थ शरीर में ज्यादा मात्रा में भी पहुंच जाएं तब भी व्यक्ति का शरीर मोटा, बदसूरत और बेडौल हो जाता है।

वसा की सीधे घी, तेल आदि से तो प्राप्त कर ही सकते है, यह खाद्य पदार्थों से भी हासिल कर सकते है। यदि शरीर में वसा की कमी होगी, तो हमारे शरीर में विद्यमान कार्बोज़ तथा प्रोटीन को खर्च होना पड़ेगा तथा जो उनका अपना ऊर्जा देने तथा शरीर का निर्माण करने का कार्य है, उसमें बाधा पड़ेगी। अतः अपनी आयु, लिंग शारीरिक परिश्रम, स्वास्थ्य आदि का ध्यान रखते हुए शरीर से असंतृप्त वसा (सरसों, मुंगफ़ली, बिनौला आदि) के तेलों का प्रयोग करें।
वनस्पति घी, गरी का तेल, डालडा,अंडा आदि से बचें। ये शरीर से जाकर रक्त से कोलेस्टॉल की मात्रा बढ़ा देते हैं जो हमें ‘हृदय रोग होने की स्थिति में पहुंचा देते हैं।

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