माजूफल के 33 दिव्य फायदे और उपयोग : Majuphal ke Fayde

Last Updated on October 20, 2024 by admin

माजूफल का सामान्य परिचय (majuphali in hindi)

माजूफल के वृक्ष भारतवर्ष में पैदा नहीं होते। ये ईरान से यहाँ पर आते हैं। इसके वृक्ष की आकृति सरु के वृक्ष के समान होती है । इस वृक्ष के फलो में एक प्रकार की मक्खी के समान नीले रंग के कोड़े छेद करके घुस जाते हैं और उसकी गूदा को साफ करके उसमें बच्चे दे देते हैं। ये बच्चे उसी फल में बढ़ते रहते हैं और पूर्ण होने पर निकल जाते हैं । इसलिये माजूफल के हर एक फल में एक छेद होता है। कुछ लोगों का कहना है कि ये फल नहीं होते बल्कि उस वृक्ष पर एक जाति का कीड़ा अपने बच्चों के लिये घर बनाता है वे ही घर माजूफल के नाम से कहे जाते हैं ।

विभिन्न भाषाओं में नाम :

  • संस्कृत – मायाफल, माइफलम्, माइका, छिद्राफलम्, केशरञ्जन, शिशुभेषज । 
  • हिन्दी – माजूफल । 
  • बंगाल – भाइफल, माजूफल । 
  • गुजराती – माँयाँ । 
  • मराठी – मायफल । 
  • पंजाब – माजूफल । 
  • तेलगू – माचकाया । 
  • अरबी – अफ्त । 
  • फारसी – माजू । 
  • अंग्रेजी -The gallnut ( गैल नट )। 
  • लेटिन – Quercus infectoria ( करकस इनफेक्टोरिया )।

माजूफल के औषधीय गुण (majuphali ke gun)

आयुर्वेदिक मत-

  • निघण्टु रत्नाकर के मत से माजूफल गरम, तीक्ष्ण, शिथिलता नाशक, प्रशस्त और वातनाशक होता है ।
  •  राजनिघण्टु के मतानुसार माजूफल वातनाशक, चरपरा, गरम, शिखिलता को संकुचित करने वाला और केशों को काला करने वाला होता है ।
  • माजूफल में स्तम्भक, कफनाशक, विषनाशक, ज्वरनाशक, संकोचक और दीपन धर्म रहते हैं ।
  • इसके अन्दर गौलक एसिड और टैनिक एसिड दो प्रकार के अम्ल द्रव्य पाये जाते हैं । इन दोनों प्रकार के अम्ल द्रव्यों के धर्म समान होते हैं। मगर इसमें पाये जानेवाले गैलिक एसिड का धर्म इस औषधि को लेते ही तत्काल दृष्टिगोचर होता है और टैनिक एसिड की क्रिया शनैः शनैः होती है ।
  • माजूफल को 2 से 4 रत्ती तक की मात्रा में दालचीनी इत्यादि सुगन्धित द्रव्यों के साथ पुराने अतिसार
    और संग्रहणी में दिया जाता है।
  •  पुराने आम दस्तों में इसका क्वाथ विशेष उपयोगी होता है ।
  • आमाशय के जीर्ण मदशोथ और उससे होने वाली विकृतियाँ माजूफल से दूर हो जाती है ।
    जीर्ण ज्वर और मलेरिया ज्वर में माजूफल को 10 से 25 रत्ती तक की मात्रा में दिन में तीन बार चिरायते के काढ़े के साथ देते हैं। इसमें कषाय रस और स्तम्भक धर्म होने की वजह से यह ज्वरनाशक और पौष्टिक माना जाता है । यद्यपि ज्वर के ऊपर इसकी कोई प्रत्यक्ष क्रिया नहीं पर जीर्ण ज्वर की वजह से जब सारा शरीर शिथिल हो जाता है और मनुष्य को कमजोर शारीरिक क्रिया प्रत्यक्ष ज्वरनाशक औषधियों के धर्म को ग्रहण करने में असमर्थ हो जाती है उस समय माजूफल के समान स्तम्भक द्रव्यों को देने से शरीर की शिथिलता कम हो कर शरीर क्रिया ज्वर नाशक औषधियों के धर्म को ग्रहण करने के काबिल हो जाती है । इसीलिए आयुर्वेद में जीर्ण ज्वर की चिकित्सा में कषाय और स्तम्भक द्रव्यों. को उपयोग करने की व्यवस्था दी गयी है। जिस समय जीर्ण ज्वर में माजूफल का व्यवहार किया जाय उस समय घी का सेवन अधिक करना चाहिये ।
  • प्राचीन सुजाक और तन्तु प्रमेह में माजूफल को १० रत्ती की मात्रा में दिन में तीन बार देना चाहिये । इनसे मूत्र मलिका में जोम पैदा होकर पीब का बहना कम हो जाता है । जिसे सुजाक में बिना वेदना के पीव बहता हो उस में भी इस औषधि को देने से लाभ होता है ।
  • श्वेत प्रदर में इस औषधि को खिलाने से और इसके काढ़ की एनिमा योनि में देने से लाभ होता है ।
    माजूफल के अन्दर स्थावर विषों को नष्ट करने की शक्ति भी रहती है। कुचला, धतूरा, बच्छनाग, अफीम, इत्यादि के विपों में एहिले रोगी को वमन कराकर फिर विष का दोष दूरने के लिये माजूफल का कड़क काढ़ा बनाकर दिया जाता है, यह काढ़ा थोड़ी -थोड़ी देर में और अधिक मात्रा में दिया जाना चाहिये ।
  • माजूफल में मंकोचक धर्म होने की वजह से इसका काढ़ा बनाकर अथवा इसका मरहम बनाकर घाव.और फोड़ों पर लगाने से उनका संकोचन होकर वे जल्दी भर जाते हैं। ताजे जखम पर इसको लगाने से सूक्ष्म रक्तवाहीनियों का संकोचन होकर रक्त का बहन। बंद हो जाता है ।
  • मसूड़े सूज कर उनसेक बहता हो अथवा मुँह में छाले हो गए हो तो माजूफल के उपयोग से दूर हो जाते हैं ।
  • इसको पीसकर गले में लगाने से गले में बढ़े हुए टांसिल ठीक हो जाते हैं और उनसे पैदा हुई सूवी खाँसी मिट जाती है ।
  • माजूफल को औटाकर उसके क्वाथ को बवासीर पर लगाने से बवासीर की जलन कम होती है और उनका संकोचन होकर सुजन उतर जाती है । अगर बवासीर की वेदना बहुत अधिक हो तो माजूफल को थोड़ी अफीम के साथ घिसकर उस लेप को लगाने से वेदना दूर हो जाती है।
  • जिस प्रकार बाह्य उपयोग में माजूफल रक्तस्राव और पीव को बन्द करता है उसी प्रकार इसका अन्तः प्रयोग करने से अर्थात् इसको खिलाने से कफ के साथ रक्त का गिरना, अमाशय और अतों के द्वारा रक्त का बहना और मासिक धर्म में अधिक रक्त का जाना बन्द हो जाता है।
  • श्लेष्म त्वचा के ऊपर भी माजूफल की क्रिया अच्छी होती है । माजूफल से श्लेष्म त्वचा का आकर्षण होकर कफ का पैदा होना कम हो जाता है । खाँसी, दमा; इत्यादि ऐसे कफ रोगी में जिनमें बहुत अधिक पतला कफ गिरता हो माजूफल का प्रयोग उपयोगी होता है । ( देसाईकृत औषधिसंग्रह )

माजूफल के फायदे व उपयोग (majuphali ke fayde aur upyog)

1. रक्तस्राव : किसी भी स्थान से होने वाले रक्तस्राव को रोकने के लिए माजूफल और अफीम का मलहम बनाकर लगाना चाहिये ।

2. बच्चों को कांच का निकलना : माजूफल और अनार के छिलकों को पीसकर भुरभुराने से बच्चों को कांच का निकलना बंद हो जाता है ।

3. कान का बहना : इसको कूटकर, सिरके में औटाकर, छानकर कान में टपकाने से कान का बहना बंद हो जाता है ।

4. नकसीर:  

  • माजूफल को पीसकर किसी नली के द्वारा नाक में फेंकने से नकसीर का बहना बन्द हो जाता है ।
  • माजूफल को पीसकर और किसी कपड़े में छानकर नाक से सूंघने से नकसीर (नाक से खून बहना) ठीक हो जाती है।

5. दाँत से खून बहना : माजूफल और सुपारी को औटाकर उससे कुल्ले करने से दाँतों से खून का बहना बन्द हो जाता है ।

6. अण्ड वृद्धि : माजूफल और असगंध को पानी के साथ पीसकर गरम करके लेप करने से अंड वृद्धि मिट जाती है ।

7. ताजा जखम : माजूफल को जलाकर उसकी राख को ताजा जखम पर भुरभुराने से जखम से रुधिर का बहना बन्द हो जाता है ।

8. बच्चों का जीर्ण ज्वर : दो छोटे माजूफल रात में ठंडे पानी में भिगों देना चाहिये । सबेरे उनको तीन तोला गाय के दूध में औटाकर वह दूध बच्चे को पिला देना जाहिए । इस प्रकार 14  दिन देने से बच्चों का जीर्ण ज्वर मिट जाता है।

9. दाँत का हिलना : माजूफल 1  तोला, सफेद कत्था 1  तोला इन दोनों चीजों को पीसकर कपड़े में छानकर दिन में दो बार मंजन करना चाहिसे और मुंह से लार बहा देना चाहिये । इस प्रकार चार पाँच दिन करने से दाँतों का हिलना बन्द हो जाता है ।

10. स्थावर विष : कुचला, धतूरा, बच्छनाग इत्यादि विषों को दूर करने के लिए किसी वामक औषधि से वमन कराकर फिर माजूफल का कडक क्वाथ थोड़ी-थोड़ी देर में पिलाना चाहिए ! स्थावर विषों को नष्ट करने के लिए माजूफल एक बहुत उत्तम वस्तु है ।

11.कांच निकलना (गुदाभ्रंश):

  • 2 ग्राम भुनी फिटकरी को 2 माजूफल के साथ पीसकर 100 मिलीलीटर पानी में मिलाकर घोल बना लें। इस घोल में रूई को भिगोकर गुदा पर लगाएं और गुदा को अन्दर कर लंगोट बांध दें। लगातार 4-5 दिन तक इसका प्रयोग करने से गुदाभ्रंश (कांच निकलना) बंद हो जाता है।
  • माजूफल और फिटकरी का पाउडर बनाकर गुदा पर छिड़कने से दर्द में आराम आता है।
  • 1 गिलास पानी में 2 माजूफल को पीसकर डालें और आग पर उबाल लें। ठंडी होने पर उस पानी से मलद्वार को धोने से गुदा का बाहर आना बंद हो जाता है।
  • 10-10 ग्राम माजूफल, फिटकरी तथा त्रिफला चूर्ण को लेकर पानी में भिगो दें। 1 से 2 घंटे भिगोने के बाद पानी को कपड़े से छानकर मलद्वार को धोने से गुदाभ्रंश ठीक हा जाता है।

12. गर्भधारण : 60 ग्राम माजूफल को पीसकर छान लें। इसे 10-10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम मासिक-धर्म समाप्त होने के बाद 3 दिनों तक गाय के दूध से सेवन करना चाहिए। इससे गर्भ स्थापित होता है।

13. मुंह के छाले:

  • माजूफल के टुकड़े को सुपारी की तरह चबाते रहने से मुंह के छाले और दाने आदि खत्म हो जाते हैं।
  • 5-5 ग्राम माजूफल, कत्था, वंशलोचन तथा छोटी इलायची के दाने लेकर पीसकर और छानकर चूर्ण बना लें। इस 1 चुटकी चूर्ण को बच्चे के मुंह में सुबह-शाम छिड़कने से बच्चों के मुंह के छाले खत्म हो जाते हैं।

14. मुंह का रोग: 10 ग्राम माजूफल, 10 ग्राम फिटकरी और 10 ग्राम कत्था को पीसकर व कपड़े में छानकर चूर्ण बना लें। रोजाना 2 से 3 बार इस चूर्ण को मुंह में छिड़कने से मुंह के रोगों में आराम मिलता है।

15. दस्त: माजूफल को घिसकर या पीसकर बने चूर्ण को 3 से 6 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम खुराक के रूप में सेवन करने से अतिसार (दस्त) में लाभ मिलता है।

16. कान का बहना:

  • 5 ग्राम माजूफल को पीसकर और कपड़े में छानकर 50 ग्राम शराब में मिला लें। इसकी 2-2 बंदे कान को साफ करके सुबह-शाम डालने से कान से मवाद बहना बंद होता है।
  • माजूफल को बारीक पीसकर सिरके में डालकर उबाल लें। उबलने के बाद इसे छानकर कान में डालने से कान में से मवाद बहना बंद हो जाता है।

17. घाव:

  • माजूफल को जलाकर उसकी राख एकत्र कर लें। इस राख को कपड़े से छानकर घाव पर छिड़कने से घाव ठीक हो जाता है।
  • माजूफल को पानी में पीसकर घाव पर पट्टी बांधने से लाभ मिलता है। इससे घाव जल्दी ठीक हो जाता है और घाव से खून भी आना बंद हो जाता है और हड्डी भी जुड़ जाती है।

18. श्वेतप्रदर: 1-2 ग्राम की मात्रा में माजूफल का चूर्ण ताजे पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से श्वेतप्रदर ठीक हो जाता है।

19. रक्तप्रदर: 25 ग्राम माजूफल को लेकर 200 मिलीलीटर पानी में मिलाकर काढ़ा बना लें। फिर उसमें 3-3 ग्राम रसौत, फिटकरी मिलाकर योनि को साफ करने से रक्तप्रदर में लाभ मिलता है।

20. पायरिया:

  • 20 ग्राम माजूफल, 1 ग्राम पोटेशियम परमैगनेट और 30 ग्राम पांचों नमक को मिलाकर बारीक पाउडर बना लें। इसके पाउडर से मंजन करने से पायरिया रोग दूर हो जाता है।
  • माजूफल के चूर्ण का दांतों पर मंजन करने से मुंह व मसूढ़ों के घाव एवं मसूढ़ों से खून का निकलना बंद होता है तथा पायरिया रोग में लाभ मिलता है।

21. तंग योनि को शिथिल करना: 10 ग्राम माजूफल को पीसकर रख लें, फिर इसमें आधा ग्राम कपूर का चूर्ण और शहद मिलाकर योनि पर लगायें। इससे योनि शिथिल (ढीली) हो जाती है।

22. योनि का दर्द: माजूफल को पानी के साथ पीसकर लुगदी बना लें। फिर इसमें रूई को भिगोकर स्त्री की योनि में संभोग (सहवास) करने से पहले रख दें, इसके बाद संभोग करने से योनि में दर्द नहीं होता हैं। ध्यान रहे कि इसका प्रयोग गर्भ को रोकने के लिए भी प्रयोग किया जाता है, इसलिए सोच समझकर ही इस्तेमाल करें।

23. योनि का संकोचन: प्रसूति के पश्चात् अथवा वृद्धावस्था के कारण स्त्रियों की योनि में ढीलापन आ जाय तो माजूफल का प्रयोग करने से मिट जाता है ।

  • माजूफल, शहद और कपूर को एक साथ पीसकर मिला लें, फिर इसे अंगुली की मदद से योनि में लगाने से योनि संकुचित हो जाती है।
  • माजूफल, धाय के फूल, फिटकरी को पीसकर बेर के आकार की गोली बनाकर योनि के अन्दर रखने से योनि छोटी हो जाती है।

24. होठ को पतला करना: माजूफल को पीसकर दूध या पानी में पीसकर रात को सोते समय होठों पर लगातार 1 सप्ताह तक लगाने से होठ पतले हो जाते हैं।

25. बवासीर में दर्द का होना और मलद्वार का निकलना: 1 गिलास पानी में माजूफल पीसकर डालें और 10 मिनट तक उबाल लें, ठंडी होने के बाद इससे मलद्वार को धोयें। इससे मलद्वार का बाहर निकलना और बवासीर का दर्द दूर होता है।

26. अंडकोष के रोग: 12 ग्राम माजूफल और 6 ग्राम फिटकरी को पानी में पीसकर अंडकोष पर लेप करें। 15 दिन लेप करने से अण्डकोषों में भरा पानी सही हो जाता है।

27. अंडकोष की सूजन: 10-10 ग्राम माजूफल और असगंध लेकर पानी के साथ पीस लें, फिर इसे थोड़ा-सा गर्म करके अण्डकोष पर बांधें। इससे अंडकोष की सूजन मिट जाती है।

28. दांतों का दर्द:

  • 1 माजूफल एवं 1 सुपाड़ी को आग पर भून लें तथा 1 कच्चे माजूफल के साथ मिलाकर बारीक पाउडर बनाकर मंजन बना लें। इससे रोजाना 2 बार मंजन करने से दांतों का दर्द ठीक हो जाता है।
  • फिटकरी को फुला लें। माजूफल और हल्दी के साथ फूली हुई फिटकरी को बराबर मात्रा में मिलाकर बारीक पीसकर पाउडर बना लें। इससे मंजन करने पर दांतों की पीड़ा शांत होती है।
  • दांतों में तेज दर्द होने पर माजूफल को पीसकर दांतों के नीचे दबाकर रखें। इससे तेज दर्द में जल्द आराम मिलता है तथा दांतों से खून का आना बंद हो जाता है।

29. आंखों की खुजली: माजूफल और छोटी हरड़ को पीसकर आंखों में लगाने से आंखों की खुजली समाप्त होती है।

30. मसूढ़ों का रोग: माजूफल को बारीक पीसकर और छानकर सुबह-शाम मसूढ़ों पर मालिश करने से मसूढ़ों के सारे रोग समाप्त हो जाते हैं।

31. दांतों से खून आना: दांतों से खून निकल रहा हो तो माजूफल को बारीक पीसकर मंजन बना लें। इससे मंजन करने से दांतों से खून का निकलना बंद हो जाता है।

32. दांत मजबूत करना: 5 ग्राम माजूफल, 4 ग्राम भुनी फिटकरी, सफेद कत्था 6 ग्राम और 1 ग्राम नीलाथोथा भुना हुआ को बारीक पीसकर मंजन बना लें। इससे रोजाना मंजन करने से दांत मजबूत होते हैं।

33. दांतों में ठंडी लगना: माजूफल को बारीक पीसकर मंजन बना लें। इसे दांतों में लगाने से दांतों में पानी का लगना और खून निकलना बंद हो जाता है तथा दांत मजूबत होते हैं।

माजूफल से निर्मित आयुर्वेदिक दवा :

दन्तमञ्जन :  माजूफल, त्रिफला (हरड़, बहेड़ा और आँवला), त्रिकुटा (सोठ, मिर्च और पीपर ), नीला थुवा, तीनों प्रकार के नमक ( सेंधा, काला और साम्भर नमक ) और पतङ्ग इन सब चीजों को पीसकर कपड़छान चूर्ण कर लेना चाहिए । इस चूर्ण से मञ्जन करने से दाँत वज्र के समान दृढ़ होते हैं ।

माजूफल के नुकसान / दुष्प्रभाव :

  • माजूफल की उच्च खुराक कब्ज जैसी परेशानी का कारण बन सकती है ।
  • इसे डॉक्टर की देख-रेख में ही लें ।

अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।

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