Last Updated on August 18, 2019 by admin
एलर्जी नाशक योग शीत पित्तान्तक वटी : Shit Pittantak Tablet
शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति की कमी होने पर हमारा शरीर कुछ स्थितियों या कुछ पदार्थों को सहन नहीं कर पाता और व्याधि से ग्रस्त हो जाता है जिससे मनुष्य त्रस्त और अस्त-व्यस्त हो जाता है। इस स्थिति को मेडिकल साइंस एलर्जी होना कहता है। जिस स्थिति या पदार्थ के प्रति हमारा शरीर संवेदनशील हो जाता है
और उसके प्रभाव से पीड़ित हो जाता है, उसकी हमें एलर्जी है ऐसा कहा जाता है। त्वचा पर ऐसा दुष्प्रभाव पड़ने पर एक व्याधि पैदा होती है जिसे शीतपित्ती कहते हैं। मेडिकल भाषा में ‘आर्टिकेरिया’ कहते हैं इस व्याधि को नष्ट करने में सफल सिद्ध आयुर्वेदिक योग ‘शीत पित्तान्तक वटी’ का परिचय प्रस्तुत किया
जा रहा है।
एलर्जी क्या है और क्यों होती है ? :
शीत पित्तान्तक वटी के घटक द्रव्य :
✧ लघुसूत शेखर रस – 10 ग्राम
✧ मुलहठी चूर्ण -10 ग्राम
✧ सारिवा – 5 ग्राम
✧ मंजिष्ठा – 5 ग्राम
✧ भृगराज – 5 ग्राम
✧ स्वर्णमाक्षिक – 5 ग्राम
✧ प्रवाल पंचामृत रस – 5 ग्राम
✧ गिलोय – 5 ग्राम
भावना द्रव्य –
✧ सिरस छाल 15 ग्राम,
✧ आंबा हल्दी – 5 ग्राम
✧ आंवला – 5 ग्राम
✧ वायविडंग – 5 ग्राम
✧ गोरखमुण्डी – 5 ग्राम
✧ काली मिर्च – 5 ग्राम
✧ निशोथ – 5 ग्राम
शीत पित्तान्तक वटी की निर्माण विधि :
भावना द्रव्यों को जौ कुट (मोटा मोटा) कूट कर एक गिलास पानी में डाल कर उबालें। जब पानी एक कप रह जाए तब उतार कर छान लें। ऊपर लिखे गिलोय तक के द्रव्यों को कूट पीस कर बारीक चूर्ण करके खरल में डाल दें और भावना-द्रव्यों का काढ़ा डाल कर इतनी देर तक घुटाई करें कि सभी द्रव्य मिल कर एक जान हो जाएं। इसके बाद आधा आधा ग्राम की गोलियां बना कर छाया में सुखा लें फिर शीशी में भर लें।
उपलब्धता :
यह योग इसी नाम से बना बनाया आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता के यहां मिलता है।
मात्रा और सेवन विधि :
2-2 गोली सुबह शाम पानी के साथ लें।
शीत पित्तान्तक वटी के फायदे / लाभ :
इस वटी को, पूरा लाभ न होने तक सेवन करते रहें। इस वटी के सेवन से शीत पित्ती के अलावा एलर्जी के अन्य विकार व उपद्रव भी दूर हो जाते हैं। सोते समय आंवले का चूर्ण एक चम्मच मात्रा में, पानी के साथ लेने से भी लाभ होता है। इस व्याधि की चिकित्सा करने में देर नहीं करना चाहिए क्योंकि यदि देर तक यह व्याधि बनी रहे तो इसे दूर करना कठिन हो जाता है।
ठण्ड व गर्मी का एक साथ शरीर पर प्रभाव होने से, मलावरोध बने रहने से, गरम गरम पेय व चाय का अधिक सेवन करने से आमाशय में पित्त बढ़ता है और इससे उत्पन्न विष रक्त में मिल कर सारे शरीर में भ्रमण करता है जिससे त्वचा पर लाल लाल ददोड़े हो जाते हैं, ठण्डी हवा से ये पैदा होते हैं व बढ़ते हैं। इनमें निरन्तर खुजली चलती रहती है। कभी कभी त्वचा में जलन भी होती है।
इस वटी का सेवन करने से शीतपित्ती के अलावा अन्य प्रकार की एलर्जी भी दूर हो जाती है तथा वातरक्त, कण्डु, पामा, कृमि, पाण्डु आदि रोगों की चिकित्सा में भी इस वटी को सेवन करने से लाभ होता है।
स्नान करने से पहले और रात को सोने से पहले सरसों के तेल की मालिश करें। सरसों का तेल लगा कर, कम्बल ओढ़ कर, धूप में बैठे और अन्दर पसीना पोंछते रहें। लाभ न होने तक ये उपाय करते हुए का सेवन करते रहें। यह वटी इसी नाम से बनी बनाई बाज़ार में मिलती है।
शीत पित्तान्तक वटी के नुकसान :
1-शीत पित्तान्तक वटी को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
2-शीत पित्तान्तक वटी लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें
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