Trailokya Chintamani Ras in Hindi | त्रैलोक्य चिंतामणि रस के फायदे ,उपयोग और नुकसान

Last Updated on April 3, 2020 by admin

त्रैलोक्य चिंतामणि रस क्या है ? : What is Trailokya Chintamani Ras in Hindi

त्रैलोक्य चिंतामणि रस टैबलेट के रूप में उपलब्ध एक आयुर्वेदिक औषधि है । इस औषधि का विशेष उपयोग शरीर में खून की कमी दूर करने, सभी प्रकार के ज्वर ,वात विकार सहित कई अन्य व्याधियों के उपचार के लिए किया जाता है। इसके सेवन से पाचन शक्ति ठीक होती है एवं शरीर में ऊर्जा व स्फूर्ति आती है।

घटक एवं उनकी मात्रा :

  • शुद्ध प्रारद – 5 ग्राम,
  • हीरक भस्म – 5 ग्राम,
  • स्वर्ण भस्म – 5 ग्राम,
  • रजत भस्म – 5 ग्राम,
  • ताम्र भस्म – 5 ग्राम,
  • तीक्ष्ण लोह (फौलाद) भस्म – 5 ग्राम,
  • अभ्रक भस्म शतपुटी – 5 ग्राम,
  • मोती भस्म – 5 ग्राम,
  • गंधक शुद्ध – 5 ग्राम,
  • शंख भस्म – 5 ग्राम,
  • प्रवाल भस्म – 5 ग्राम,
  • हरताल भस्म – 5 ग्राम,
  • शुद्ध मन:शिला – 5 ग्राम ।

कपर्दिका, मुखलेपनार्थ, शुद्धटंकण एवं अर्कदुग्ध अवश्यकतानुसार।

भावनार्थ : चित्रक मूल क्वाथ, अर्क दुग्ध, निर्गुण्डी स्वरस, सूरण स्वरस सेहुड़ दुग्ध, आवश्यकतानुसार।

प्रमुख घटकों के विशेष गुण :

  1. कजली : जन्तुघ्न योगवाही, रसायन ।
  2. वज्रभस्म : बृष्य, बल्य, सर्व रोग नाशक, रसायन।
  3. रजत भस्म : शुक्र बर्धक, स्नायु शूल शामक, वातवाहिनी बलबर्धक।
  4. स्वर्ण भस्म : बल्य, बृष्य, ओजोबर्धक, योगवाही, रसायन।
  5. ताम्रभस्म : यकृत पित्तोतेजक, पित्तसारक, लेखन, कुष्टघ्न ।
  6. फौलाद भस्म : रक्त बर्धक, वीर्य बर्धक, बल्य, रसायन।
  7. अभ्रक भस्म : बल्य, बृष्य, नाड़ी बल कारक, मज्जाधातु प्रसादक।
  8. मोती भस्म : हृदय, मस्तिष्क बलदायक, पित्तशामक, बल्य।
  9. शुद्ध गंधक : रक्तशोधक, श्लेष्म नि:सारक जन्तुघ्न, लेखनीय ।
  10. शंख भस्म : ग्राही, बलबर्धक, ग्रहणी, परिणामशूलनाशक।
  11. प्रवाल भस्म : शीतल, शामक, बल्य, बृष्य, पित्त शामक, हृद् ।
  12. हरताल भस्म : कफवात शामक, रक्तशोधक, कुष्ठघ्न ।
  13. मनः शिला शुद्ध : कफवात शामक, रक्तशोधक, कुष्ठघ्न, ।
  14. अर्क दुग्ध : वात कफ शामक, दीपन, पाचन, जन्तुघ्न, कुष्टघ्न, शोथन, श्वासघ्न।
  15. चित्रक क्वाथ : दीपक पाचक, अग्निबर्धक, कुष्टघ्न, आम पाचक।
  16. निर्गुण्डी स्वरस : शोथघ्न, वेदनास्थापक, वात नाशक, ब्रणरोपक, कण्डुघ्न,कुष्टघ्न।
  17. सूरण स्वरस : कफवात शामक, दीपक, पाचक, रोचक, अर्शीघ्न, बल्य,
  18. थोहर का दूध : लेखन, रेचक, कफ निःसारक, विषघ्न ।
  19. रस सिन्दूर : बल्य, वृष्य, योगवाही, कफवातनाशक, रसायन।
  20. कपर्दिक : उष्ण, दीपन, अग्निबर्धक, अपचीनाशक, ग्रहणीनाशक रसायन ।
  21. सुहागा (टंकण) : कफ निसारक, सारक, मलवातानुलोमक, विषघ्न ।
  22. शोभाञ्जन : मेदनाशक, लेखन, स्वेद जनन, कुष्टघ्न।
  23. वैक्रान्त भस्म : यक्ष्मा, प्रमेह, अर्श ग्रहणीनाशक।
  24. वछनाग : ज्वरघ्न, शूलघ्न, वेदनाशामक।
  25. काली मिर्च : दीपन, पाचन, शूलघ्न, क्रिमिघ्न ।
  26. लंवग : दीपन, पाचन, शूलघ्न, पित्तशामक।
  27. सोठ : दीपन, पाचन, वातशामक, मलवातानुलोमक।
  28. हरड़ : दीपन, पाचक, सारक, रसायन।
  29. पिप्पली : दीपन, पाचन, अग्निबर्धक, वातकफ नाशक, रसायन।
  30. जायफल : दीपन, पाचन, कफवात शामक, बृष्य ।
  31. निम्बू स्वरस : दीपन, पाचन, रोचन, गुल्मघ्न, छर्दि निग्रह।
  32. अदरक स्वरस : दीपन, पाचन, अग्निबर्धक, वातकफ शामक।

त्रैलोक्य चिंतामणि रस बनाने की विधि :

कजली से मनःशिला तक की 12 औषधियों को खरल में डालकर दो दिन तक खरल करवाएँ फिर चित्रक मूल का क्वाथ डालकर सात दिन तक खरल करवाऐं उसके उपरान्त तीन दिन अर्क दुग्ध, तीन दिन निर्गुण्डी स्वरस, तीन दिन सूरणकन्द स्वरस और तीन दिन स्नूही क्षीर में मर्दन करके बड़ी-बड़ी (25 ग्राम भार की) पीली कौड़ियों में भर दे। उसके उपरान्त कौड़ियों का मुख अर्क दुग्ध मिश्रित टंकण से बन्द करके धुप में सुखा ले।

एक छोटे मृत्पात्र (कूजे) को अन्दर से चूने के जल से लेप करके सुखा लें और उक्त कौड़ियों को उसमें डालकर उसका मुँह कपरोटी से बन्द करके धूप में सुखा लें। सूख जाने पर गजपुट में फूंक दें। स्वाङ्गशीतल होने पर निकाल करके कौड़ियों समेत बारीक पीस लें। अब इस औषधि के बराबर रससिन्दूर (षडगुण बलजारित) और रस सिन्दूर से चौथाई वैक्रान्त भस्म मिलाकर सोहांजन मूलस्वरस की सात भावनायें, चित्रक मूल क्वाथ की 21 भावनायें और अदरक के स्वरस तथा निम्बू के स्वरस की सात सात भावनायें देकर श्लक्षण चूर्ण करके, इस का चौथाई भाग शुद्ध टंकण, टंकण का चौथाई भाग शुद्ध वत्सनाभ और वत्सनाभ के समान काली मिर्च एवं काली मिर्च के समान लवंग, सोंठ, हरड़, पिप्पली, जायफल सव का पृथक पृथक चूर्ण मिलाकर निम्बू और अदरक के रस में खरल करके 100 मिग्रा. की वाटिकायें बनवाकर छाया में सुखाकर सुरक्षित कर लें।

त्रैलोक्य चिंतामणि रस की खुराक : Dosage of Trailokya Chintamani Ras

1 गोली (100 मि.ग्रा.) प्रातः सायं।

अनुपान :

जल, दुग्ध, मधु अथवा रोगानुसार।

त्रैलोक्य चिंतामणि रस के फायदे और उपयोग : Benefits & Uses of Trailokya Chintamani Ras in Hindi

वात रोग ठीक करे त्रैलोक्य चिंतामणि रस का प्रयोग

वातरोग 80 प्रकार के माने गए हैं, उन सभी वात रोगों के निवारण में त्रैलोक्य चिन्तामणि रस एक प्रभावशाली औषध है। परन्तु इसका प्रयोग सामान्य वात रोगों पर न होकर अर्धाङ्ग वात, अस्थिगत वात, एवं मजागत वात में होता है। सन्धिवात में भी इसका सफलता पूर्वक उपयोग होता है ।

सहायक औषधियों में कृष्ण चतुर्मुख रस, बृहद्वात चिन्तामणि रस, रस राज रस, इत्यादि का प्रयोग एवं गुग्गुलों का प्रयोग लाभदायक होता है।

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विद्रधी (पेट के अंदर का फोड़ा) में त्रैलोक्य चिंतामणि रस का उपयोग फायदेमंद

विद्रधी से अभीप्राय यहाँ अन्तर विद्रधी से है। यकृत विद्रधी आमाशय ब्रण, ग्रहणी ब्रण, उपान्त्रशोथ इत्यादि रोगों में यह रस परम लाभदायक है, मात्रा एक गोली प्रातः सायं अनुपान रोग और रोग के स्थानानुसार।

सहायक औषधियाँ भी रोग के स्थानानुसार ही प्रयोग करनी चाहिए जैसे यकृत विद्रधी में आरोग्य वर्धिनीवटी, यकृदारिलोह, पुनर्नवादि मण्डूर, रोहीतिक लोह, रोहीतिकारिष्ट, कुमार्यासव, इत्यादि ।

ग्रहणी (उदर एवं पक्वाशय के बीच की आँत) आमाशय ब्रण में कामदुधा रस, अम्लपित्तातंक लोह, सप्तामृत लोह, प्रवाल पंचामृत रस, लीलाविलास रस इत्यादि ।

उपान्त्र शोथ (एपेंडिक्स) में अग्नितुण्डी वटी, शोथारी मण्डूर, रस पर्पटी इत्यादि का प्रयोग करवाएँ । सेवनावधि पाँच सप्ताह।

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परिणाम शूल में आराम दिलाए त्रैलोक्य चिंतामणि रस का सेवन

शूल से यहाँ तात्पर्य परिणाम शूल (रोग जिसमें भोजन करने के उपरांत पेट में पीड़ा) से है। इस महौषधि के सेवन से दो दिन में शूल शान्त हो जाता है।

सहायक औषधियों में लीलाविलास रस, अम्लपित्तान्तक लोह, सप्तामृत लोह, प्रवाल पंचामृत रस, कामदुधा रस का प्रयोग करवाएं पूर्ण लाभ के लिए तीन सप्ताह तथा चिकित्सा की आवश्यकता होती है।

पाण्डु रोग (पीलिया) रोग में त्रैलोक्य चिंतामणि रस से फायदा

यह घातक प्रकार के पाण्डु रोगों जिनमें रक्त कणों के आकार में अन्तर आ जाता है अथवा अस्थि मज्जा के दूषित हो जाने से रक्त निर्माण का कार्य रुक जाता है इस स्थति में इसका प्रयोग होता है । मात्रा एक गोली प्रात: सायं फलत्रिकादि क्वाथ से इसके सेवन से दो सप्ताह में अस्थि मज्जा में रक्तकणोत्पत्ती प्रारम्भ हो जाती है। पूर्ण लाभ के लिए छः सप्ताह की चिकित्सा आवश्यक है।

सहायक औषधियों में लोकनाथ रस, रक्त पित्तान्तक लोह, कामदुधा रस, तृण कान्तमणि पिष्टि इत्यादि का प्रयोग भी करवाना चाहिए।

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ग्रहणी रोग में त्रैलोक्य चिंतामणि रस के इस्तेमाल से लाभ

वर्तमानकाल में ‘अल्सरेटिव कोलाइटिस’ नाम से ज्ञात सन्निपातज ग्रहणी जिसमें रोगी को दो से छ: बार रक्तयुक्त अतिसार होता है। रोगी कृश, चिन्तित; पाण्डु वर्ण, अल्प क्षुधा, अल्पनिद्रा, युक्त होता है। आधुनिक चिकित्सा में केवल ‘स्टीरायड’ ही उपचार है, ऐसे रोगी को त्रैलोकय चिन्तामणि रस एक गोली प्रातः सायं वत्सकादि क्वाथ से देने से तीन दिन में लाभ दृष्टिगोचर होने लगता है। पूर्ण लाभ के लिए छ: सप्ताह तक प्रयोग करवाना आवश्यक है।

सहायक औषधियों में कुटजारिष्ट, कुटजादिलोह, कर्पूर रस, चतु:सम चूर्ण, ग्रहणी कपाट रस, प्रवाल पंचामृत, वसन्त कुसुमाकर, इत्यादि औषधियो का प्रयोग प्रशस्त होता है।

प्रमेह मिटाए त्रैलोक्य चिंतामणि रस का उपयोग

मधुमेह के अतिरिक्त सभी प्रमेह रोगों में त्रैलोक्य चिन्तामणि एक अत्यन्त लाभदायक औषधि है, इसके दो सप्ताह प्रयोग से ही प्रमेह में लाभ हो जाता है।

सहायक औषधियों में चन्द्रप्रभावटी प्रमदानन्द रस, गोक्षुरादिचूर्ण, वंग भस्म इत्यादि औषधियों का प्रयोग करवाना चाहिए।

यकृत (liver) एवं प्लीहा (तिल्ली/Spleen) वृद्धि में त्रैलोक्य चिंतामणि रस के इस्तेमाल से फायदा

त्रैलोक्य चिन्तामणि रस, यकृत एव प्लीहा वृद्धि की एक अनुपम औषधि है। पत्थर की तरह कठोर यकृत या प्लीहा इसके सेवन से एक सप्ताह में ही कोमल और शोथ (सूजन) रहित हो जाते हैं ।

अनुपान फलत्रिकादिक्वाथ, रोहीतक त्वक क्वाथ, सहायक औषधियों में मण्डूर वज्रवटक, आरोग्य वर्धिनी वटी, रोहीतक लोह, यकृदारिलोह, कुमार्यासव इत्यादि का प्रयोग भी लाभदायक होता है।

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जलोदर में त्रैलोक्य चिंतामणि रस का उपयोग लाभदायक

यकृदाल्योदर के उपद्रव स्वरूप हुए जलोदर और हृदय रोगों के उपद्रव स्वरूप उत्पन्न जलोदर में त्रैलोक्य चिन्तामणि रस का प्रयोग लाभदायक है। परन्तु वृक्क रोगों के उपद्रव स्वरूप जलोदर में इसका प्रयोग नहीं होता। गोमूत्र 25 मि.लि. जल 25 मी.लि. के अनुपान से देने में पाँचदिनों में लाभ दृष्टिगोचर होने लगता है ।

सहायक औषधियों में यकृदारि लोह, रोहीतक लोह, मण्डूर वज्रवंटक, हृदय चिन्तामणि रस, सर्वेश्वर रस, सूक्ष्मैलादि चूर्ण का प्रयोग भी करवना चाहिए, चिकित्साकालावधि 40 दिन।

कैंसर की गाँठ मिटाए त्रैलोक्य चिंतामणि रस का उपयोग

त्रलोकय चिन्तामणिरस कर्कटावूद की दूसरी एवं तीसरी अवस्था में लाभदायक है। एक गोली प्रातः सायं मधुशिग्रु अतत्वक क्वाथ से सेवन करवाने से एक सप्ताह में लाभ दृष्टिगोचर होने लगता है, ग्रथियाँ सिकुड़ने लगती है ब्रण भरने लगते हैं, पीड़ा और अन्य लक्षणों में भी लाभ होने लगता है, अर्बुद (ट्यूमर) के स्थान के अनुसार अन्य कल्पों यथा आरोग्य वर्धिनी वटी, पंच निम्ब चूर्ण, चोपचिन्यादि चूर्ण, बगलामुखी गुटिका, अमृत भल्लातक, अमृतवटी, बैक्रान्त भस्म, तुत्थामृता, महामंजिष्ठादि क्वाथ इत्यादि का प्रयोग भी करवाएं । चिकित्सावधि रोग के शमन होने तक।

त्रैलोक्य चिंतामणि रस के इस्तेमाल से नपुंसकता में लाभ

नपुंसकता में त्रैलोक्य चिन्तामणि रस एक प्रमाणिक औषधि सिद्ध हुई है। इसके सेवन से दो दिन में ही लाभ मिलने लगता है। पूर्ण लाभ के लिए दो सप्ताह प्रयोग करवाऐं ।

सहायक औषधियों में वृ. कामचूड़ामणि रस, वसन्त कुसुमाकर रस, शुक्रवल्लभ रस, बृहद् वंगेश्वर रस, अश्वगंधादि चूर्ण, गोक्षुरादि चूर्ण, कौंच पाक इत्यादि का प्रयोग भी करवाऐं।

पौरुष ग्रंथी वृद्धि में त्रैलोक्य चिंतामणि रस फायदेमंद

त्रैलोक्य चिन्तामणि रस एक गोली प्रातः सायं वरुणादि कषाय के साथ देने से तीन दिन में लाभ हो जाता है। पूर्ण लाभ के लिए 90 दिन औषधि का प्रयोग करवाऐं ।

सहायक औषधियों में गोक्षुरादि गुग्गुलु, चन्द्र प्रभावटी, तुत्थामृत वटी, शीतल पर्पटी, पुनर्नवा वटी, गुग्गुलु का प्रयोग भी करवाऐं। चिकित्सावधि 5 मास।

शक्ति बढ़ाने में लाभकारी त्रैलोक्य चिंतामणि रस

केवल एक गोली प्रात: हरिद्राक्षीरपाक से एक मास तक औषधि सेवन करना पर्याप्त होता है। धनवान लोग इस कल्प को अधिक समय तक भी ले सकते हैं।

रोग प्रतिरोधक शक्ति बढाने में त्रैलोक्य चिंतामणि रस का उपयोग लाभदायक

रोग प्रतिरोधक शक्ति (व्याधिक्षमत्व) के नष्ट हो जाने से बालक युवा या वृद्ध रोगों की चपेट में शीघ्र आ जाते हैं। एक रोग हटता नहीं तो दूसरा आ टपकता है। ऐसे क्षीण रोगियों को त्रैलोक्य चिन्तामणि रस प्रातः सायं दूध के साथ सेवन करवाने से व्याधिक्षमत्व की वृद्धि होकर वह रोग मुक्त हो जाते हैं । रोग मुक्त हो जाने के उपरान्त भी एक मास के लिए इस महारसायन का प्रयोग करवा देने से जीर्ण रोग जो पुनः-पुन: आक्रमण करते हैं से मुक्ति मिलती है।

सहायक औषधियों में आमलकी रसायन, च्यवन प्राश, अगस्त हरीतकी तथा अन्य उपयोगी रसायनों का सेवन करवाएँ।

त्रैलोक्य चिंतामणि रस के दुष्प्रभाव और सावधानीयाँ : Trailokya Chintamani Ras Side Effects in Hindi

  1. त्रैलोक्य चिंतामणि रस लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
  2. त्रैलोक्य चिन्तामणि रस भस्मों पर आधारित रस योग है। वनस्पतियों के क्षीर एवं क्वाथों की भावनाएँ देने से यह पूर्ण रूपेन निरापद योग बन जाता है। परन्तुं फिर भी रसौषधियों और भस्मों में अपनाए जाने वाले पूर्वोपाय इसमें भी अवश्य अपनाये जाने चाहिऐं।
  3. त्रैलोक्य चिंतामणि रस को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
  4. बच्चों की पहुच से दूर रखें ।

त्रैलोक्य चिंतामणि रस का मूल्य : Trailokya Chintamani Ras Price

  • Baidyanath Trailokya Chintamani Ras GOLD – Rs – 492
  • DABUR Trailokya Chintamani Ras (10 Tablet) – Rs – 532

कहां से खरीदें :

अमेज़न (Amazon)

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