Last Updated on August 31, 2020 by admin
मधुमेह को उत्पन्न करने का प्रमुख कारण अग्न्याशय ग्रंथि (पैन्क्रियाज ग्लैंड) में होने वाली विकृति है। उदर में बायीं ओर के ऊपरी हिस्से में आमाशय ( Stomach) के ठीक नीचे अग्न्याशय ग्रंथि स्थित होती है। यह आमाशय से ढंकी 15 से 23 cm लम्बी व 5 से 8 cm चौड़ी शहतूत जैसी आकृति वाली ग्रंथि होती है, जिसका रंग मटमैला होता है। इसके अंदर सफेद रंग की एक मोटी नली होती है, जो पित्त नलिका के साथ मिलकर ड्यूडिनम (छोटी आंत) में खुलती है। पैन्क्रियाज की संरचना में द्वीप आकार की लैंगर हेन्स आइलैंड में विशेष प्रकार की कोशिकाएं होती हैं, जिनमें अल्फा कोशिकाएं 20%, बीटा कोशिकाएं 75% तथा गामा कोशिकाएं 5% होती हैं। ये क्रमशः ग्लूकेगान, इंसुलिन और लिपोकाइक हार्मोन्स सीधे रक्त में छोड़ती हैं।
मधुमेह (डायबिटीज) – बीटा कोशिकाओं की भूमिका अहम :
मधुमेह उत्पन्न करने में बीटा कोशिकाओं की प्रमुख भूमिका रहती है। जब बीटा कोशिकाओं की मात्रा कम हो जाती है या वे निष्क्रिय हो जाती हैं, तब इंसुलिन आवश्यक मात्रा में नहीं निकलता हैं, जिससे कार्बोहाइड्रेट का पर्याप्त उपयोग शरीर में नहीं हो पाने से शरीर को इससे प्राप्त होनी वाली ऊर्जा या शक्ति और उष्णता नहीं मिल पाती है।
इंसुलिन यकृत और पेशियों में अतिरिक्त ग्लूकोज को ग्लाइकोजेन में रूपांतरित कर संग्रह करता है। इंसुलिन के अभाव में लिवर द्वारा ग्लूकोज को फैटी एसिड तथा लिपिड्स में संश्लेषित करने का काम नहीं हो पाता है। दूसरा कोशिकाओं को जरूरत के मुताबिक ऊर्जा नहीं मिल पाती है। इससे सारा चयापचय चक्र अस्त-व्यस्त होने लगता है। इस प्रकार कह सकते हैं कि मधुमेह एक चयापचयी रोग (Metabolic Disorder) है, जो शरीर की जैव रासायनिक प्रक्रियाओं पर दुष्प्रभाव डालकर उसे असंतुलित कर देता है।
मधुमेह रोग का विभिन्न अंगों पर दुष्प्रभाव :
मधुमेह रोग के कारण शरीर के विभिन्न अंगों पर गंभीर घातक दुष्प्रभाव होते हैं। रोगियों के गुर्दे, आंखें, स्नायु, दिन धमनियां, हृदय, मस्तिष्क, आंतें, त्वचा इत्यादि अंग क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।
शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है जिससे संक्रमण आसानी से व बार-बार हो सकते हैं।
मधुमेह के रोगियों में सबसे अधिक गुर्दो (किडनी) के रोग होते हैं। गुर्दो की रचना, कार्य के अनुरूप इस प्रकार की होती है कि शरीर के आवश्यक तत्व निचोडकर पुनः रक्त में भेज दिए जाते हैं तथा अनावश्यक तत्व छानकर गर्दो द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिए जाते हैं। किडनी या गुर्दे की प्राथमिक इकाई वृक्काणु या नेफ्रोन होती है। लगभग 10 लाख नेफ्रोन्स मिलकर किडनी का निर्माण करते हैं।
शरीर में गुर्दो की संख्या 2 होती है। इनमें उपस्थित इन नेफ्रोन्स से ही रक्त शुद्धिकरण की प्रक्रिया चलती है। सामान्यतः एक व्यक्ति का एक दिन में लगभग 1500 सी.सी. दूषित पदार्थ मूत्र के रूप में बाहर निकल जाता है। यदि गुर्दे में कोई विकार हो जाए तो दूषित पदार्थ को गुर्दे द्वारा बाहर निकालने की प्रक्रिया में बाधा पहुंचती है। गुर्दो की सहनीय मर्यादा 160 से 180 मि.ग्रा. प्रतिशत रक्त शर्करा है अर्थात् रक्त में 160-180 मि.ग्रा. प्रतिशत शर्करा होने पर भी बढ़ी हुई रक्त शर्करा को गुर्दे मूत्रमार्ग से बाहर नहीं जाने देते। इसमें अधिक दबाव पड़ने या गुर्दो के अधिक कार्य करने के कारण उनमें विकार उत्पन्न होने लगते हैं, जिससे वे अपना कार्य पूर्ण रूप से निष्पादित नहीं कर पाते और मूत्रमार्ग से अतिरिक्त रक्त शर्करा का उत्सर्ग होने लगता है।
किडनी (गुर्दे) के लिए खतरा है मधुमेह :
मधुमेह में इंसुलिन की कमी के कारण रक्त शर्करा में जब तेजी से वृद्धि होने लगती है, तो गुर्दे (किडनी) रक्त की इस अतिरिक्त शर्करा को बाहर निकालने का यथाशक्ति प्रयत्न करते हैं। फिर भी रक्त में शर्करा की मात्रा अधिक रहने लगती है, परिणामस्वरूप उसकी अम्लता में भी वृद्धि होने लगती है। रक्त में दीर्घकालीन अतिरिक्त शर्करा के कारण गुदों में सूजन, दुबेलता आदि दोष उत्पन्न हो जाते हैं।
रक्त को छानकर साफ करने वाली गुर्दो की इकाई नेफ्रोन्स में कठोरता आने लगती है। इसके बाद गुर्दो की रक्तवाहिनियां भी संकरी होने लगती हैं। इन सब परिवर्तनों के कारण सर्वप्रथम पेशाब में प्रोटीन निकलने लगती है और गुर्दे (किडनी) क्रमशः निष्क्रिय होने लगते हैं। उनकी शिराओं के बीच की सूक्ष्म कोशिकाओं के कठोर हो जाने से मूत्र में एलब्यूमिन आने लगता है, जो क्रमशः बढ़ता है। रक्त में यूरिया बढ़ने लगता है और यूरेमिया के कारण रक्तचाप (B.P.) बढ़ जाता है।
मधुमेह रोग में किडनी (गुर्दे) की जटिलताएं :
मधुमेह रोग से किडनी में क्या समस्याएं हो सकती हैं?
मधुमेह के कारण गुर्दो को अपनी कार्यक्षमता से अधिक काम करना पड़ता है। परिणामस्वरूप वे विकारग्रस्त हो जाते हैं, जिसे ‘डायबिटिक नेफ्रोपैथी’ कहते हैं। कभी-कभी यह रोग इतना खतरनाक रूप धारण कर लेता है कि गुर्दे (किडनी) फेल हो जाते हैं।
इस रोग में शुरू में शरीर में सूजन आ जाती है। सूजन होने के साथ-साथ मूत्र में एलब्युमिन (प्रोट्रीन) बहुत जाता है। इस रोग में धमनी गुच्छों में शोथ (सूजन) होने से, उनमें रक्तगत प्रोटीन्स अधिक हो जाते हैं।
सामान्यतः एलब्युमिन की मात्रा एक दिन में करीब 30 मि.ग्रा. मूत्र द्वारा विसर्जित होती है। यदि एलब्युमिन 30 से 300 मि.ग्रा. प्रतिदिन से अधिक मूत्र द्वारा निकलती है, तब इसे प्रोटीनियूरिया कहते हैं। यह स्थिति गुर्दो के लिए खतरनाक होती है। इसमें गुर्दो से प्रोटीन्स का इतना नुकसान होता है कि लिवर इसकी पूर्ति नहीं कर पाता और रक्त में एलब्युमिन प्रोटीन का स्तर गिर जाता है। मधुमेह जनित नेफ्रोपैथी में यूरिया, लवण तथा कोलेस्ट्राल साधारण मात्रा से बहुत अधिक हो जाता है।
अन्य आशंकाए –
- प्रोटीन के साथ कैल्शियम के निकलने से रक्त में कैल्शियम घट जाता है और स्निग्ध तत्व बढ़ जाता है, जिससे रोगी का रक्तचाप तेजी से बढ़ जाता है। इससे सिरदर्द, निद्रा, बेचैनी, दृष्टिमंदता तथा श्वास लेने में तकलीफ जैसे लक्षण हो सकते हैं। जब गुर्दो की कार्यक्षमता कम हो जाती है, तो उच्च रक्तचाप से ग्रसित मधुमेही में रक्तचाप तेजी से बढ़ने लगता है।
- रोगी अत्यधिक कमजोरी महसूस करता है।
- थोड़े से श्रम से सांस फूलने लगती है।
- गुर्दो की सूजन के कारण हाथ-पैर तथा कमर में हमेशा दर्द बना रहता है।
- जब रोग पुराना हो जाता है और गुर्दे (किडनी) निष्क्रिय हो जाते हैं, तो शरीर में दूषित तत्व जमा होने लगते हैं। इससे रक्त में क्रियेटेनिन, यूरिया, अमोनिया का स्तर बढ़ने लगता है। रोगी का जी मिचलाना, भूख न लगना, पैरों में सुन्नता, मुंह में गंदा स्वाद, शरीर पर खून के चट्टे बनना, नींद न आना, वजन कम होना आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं।
- विकारग्रस्त गुर्दे से शरीर में नमक व पानी एकत्र होने लगते हैं, जिससे शरीर में सूजन तथा रक्तचाप बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में मस्तिष्क, यकृत तथा हृदय आदि पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। इससे रोगी को हार्ट अटैक या मस्तिष्काघात भी हो सकता है।
मधुमेह के कारण किडनी पर दुष्प्रभाव इन लोगों पर पड़ सकता है –
- यदि मधुमेह हुए 5 से 10 वर्ष से अधिक समय हो गया है।
- मधुमेह में रक्तगत शर्करा का स्तर अनियंत्रित हो।
- पेशाब में बार-बार संक्रमण होता हो।
- मधमेह के साथ-साथ उच्च रक्तचाप (HighB.P.) भी हो।
- परिवार में अन्य मधुमेह रोगियों का भी गुर्दे (किडनी) खराब होने का इतिहास हो।
मधुमेह रोग में किडनी बचाव के उपाय :
मधुमेह से किडनी का बचाव कैसे किया जा सकता है ?
- मधुमेह जनित गुर्दो के विकार से बचने के लिए रोगी को सर्वप्रथम मधुमेह पर नियंत्रण रखना जरूरी है। ऐसे आहार एवं औषधियों का सेवन करना चाहिए, जिससे रक्तगत शर्करा (Blood Sugar) में वृद्धि न हो।
- मधुमेह रोगी को नियमित अंतराल में ब्लड शुगर की जांच तथा मूत्र में एलब्युमिन की जांच कराते रहना चाहिए।
- गुर्दे के रोगग्रस्त होने पर ब्लड यूरिया, सीरम क्रियेटेनिन आदि जांच करायी जानी चाहिए।
- मूत्र में प्रोटीन का पाया जाना गुर्दे (किडनी) के रोग की पहली निशानी है।
- अगर शुरुआती स्तर पर इसका पता लग जाए तो रक्त शर्करा, वसा, कोलेस्ट्रॉल एवं रक्तचाप पर नियंत्रण कर तथा प्रोटीनयुक्त पदार्थों का कम सेवन कर रोग बढ़ने की गति को कम किया जा सकता है। लेकिन अंतिम चरण में पहुंच जाने पर डायलिसिस अथवा गुर्दा प्रत्यारोपण ही एकमात्र इलाज है।
आयर्वेदिक उपचार :
- आयुर्वेदानुसार लंघन, दीपन, पाचन तथा रूक्षण चिकित्सा करनी चाहिए। इनमें शारीरिक सूजन कम होती है तथा अन्य लक्षणों में भी कमी आती है।
- रोगी को श्रम तथा शीत से बचकर त्वचा को गर्म रखना चाहिए। इनसे गुर्दे की रक्तवाहिनियां फैलती हैं।
- आयर्वेदिक औषधियों में पनर्नवा मण्डूर, चंद्रप्रभा वटी, क्षार गुटिका अत्यंत प्रभावकारी औषधियां हैं, जिन्हें चिकित्सक की सलाह पर प्रयोग करना चाहिए।
यदि रोगी पथ्य आहार-विहार का पालन करे, जीवनशैली में बदलाव लाए व औषधियों का नियमित सेवन कर ब्लड शुगर व रक्तचाप पर नियंत्रण रखे, तो गुर्दो पर होने वाले दुष्प्रभावों से बचकर सुरक्षित जीवन व्यतीत कर सकता है।