Last Updated on January 21, 2021 by admin
पित्त पापड़ा क्या है ? (What is Pitt Papda in Hindi)
पित्त पापड़ा आयुर्वेद का एक प्रमुख औषधिय पौधा है । भगवान् चरक ने पित्त पापड़ा (पर्पट) को तृष्णा निग्रहण (प्यास को रोकने वाला) कहा है। प्राकृतिक वर्णन के अनुसार यह अपराजिता उपकुल (पैपिलिओनेटी- Papilionatae) की वनौषधि है।
पित्त पापड़ा का विभिन्न भाषाओं में नाम (Name of Pitt Papda Plant in Different Languages)
Pitt Papda in –
- संस्कृत (Sanskrit) – पर्पट, रेणु, वरतिक्त,
- हिन्दी (Hindi) – पित्तपापड़ा, मिगजरा
- गुजराती (Gujarati) – पित्तपापड़ो
- मराठी (Marathi) – पित्तपापड़ा, सिरपटी
- बंगाली (Bangali) – बनशुलफा
- पंजाबी (Punjabi) – शाहतरा
- फ़ारसी (Farsi) – शाहतर
- अरबी (Arbi) – शाहतरज
- तामिल (Tamil) – तुरा
- तेलगु (Telugu) – चतरासी
- अंग्रेजी (English) – फाइव लीब्ड फ्यूमिटरी (Five-Leaved Fumitory)
- लैटिन (Latin) – फ्यूमेरिया वेलेण्टिआई (Fumaria – Vailantii)
पित्त पापड़ा का पौधा कहां पाया या उगाया जाता है ? :
पित्त पापड़ा भारत के अनेक भागों में गंगा नदी के प्रदेश, खेतों में पाया जाता है। इसके स्वयंजात (अपने आप उत्पन्न होनेवाला) पौधे, भी पाये जाते हैं।
पित्त पापड़ा का पौधा कैसा होता है ? :
- पित्त पापड़ा का पौधा – पित्त पापड़ा का पौधा बहुशाओं वाला, हरे रंग का फैला हुआ वर्षायु क्षुप 1/2 से 2 फुट तक ऊंचा होता है जो शीतकाल में जौ, गेहू, चने के खेतों में बहुलता से देखा जाता है।
- पित्त पापड़ा की पत्ती – पित्त पापड़ा के पत्र गाजर या धनिये के पत्तों जैसे सूक्ष्म, कटे हुए, चपटे, रेखाकार होते हैं तब ही इसे धमगजरा कहा जाता है।
- पित्त पापड़ा के फूल – इसके पुष्प छोटे, श्वेत या गुलाबी (अग्र भाग बैंगनी) रंग के होते हैं। पुष्पमंजरी 1-2 इंच लम्बी होती है। बहिर्दल अन्तर्दलनलिका से बहुत छोटे होते हैं। श्री विश्वनाथ द्विवेदी ने गुलाबी पुष्प वाले पित्त पापड़ा (पर्पट) को श्रेष्ठ कहा है।
- पित्त पापड़ा के फल – पित्त पापड़ा के फल छोटे एवं गोल होते हैं जिनके अग्रभाग पर दो खात होते हैं।
इस पर पुष्प और फल शीत ऋतु में आते हैं। यह गेहूं के साथ अंकुरित होता है, हेमन्त ऋतु में बढ़ता है तथा ग्रीष्म ऋतु आते ही धूप में गेहूं के साथ सूख जाता हैं
पित्त पापड़ा के प्रकार :
पित्त पापड़ा की एक विशेष जाति यवनपर्पट (शाहतरा) है, यह भारत में नहीं होता। प्रायः ईरान से इसका आयात होता है। यूनानी चिकित्सक इसे ही उपयोग में लाते हैं। इसका लैटिन नाम फ्यूमेरिआ आफ्फीसिनालिस (FO Officinalis) है। यह स्वाद में अधिक कड़वा होता हे। जो पित्त पापड़ा अधिक कड़वा होता है वह अधिक गुणकारी होता हे। बाजार में इसके सूखे पौधे के टूटे फूटे टुकड़े मिलते हैं। क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग पित्त पापड़ा मिलता है। जिनके गुणों में प्रायः समानता ही होती है।
पित्त पापड़ा पौधे का उपयोगी भाग (Beneficial Part of Pitt Papda Plant in Hindi)
- प्रयोज्य अङ्ग – पञ्चाङ्ग।
- वीर्यकालावधि – एक वर्ष
- संग्रह एवं संरक्षण – जिस समय ताजा पौधा उपलब्ध होता हे उस समय तो इसके ताजी पंचाग को ही उपयोग में लाना चाहिए। अन्य समय में उपयोग के लिए माघ-फागुन में जब इस पर फलागम हो जाय तब पौधा छाया में सुखाकर मुखबंद पात्रों में रखकर सूखे शीतल स्थान पर इसे रखना चाहिए।
पित्त पापड़ा के औषधीय गुण (Pitt Papda ke Gun in Hindi)
- रस – तिक्त
- गुण – लघु
- वीर्य – शीत
- विपाक – कटु
- दोषकर्म – यह तिक्त होने से कफ का तथा तित्त शीत होने से पित्त का शामक हैं।
सेवन की मात्रा :
- चूर्ण – 3 से 6 ग्राम,
- स्वरस – 10 से 20 मिलि0
- क्वाथ – 50 से 100 मिलि0
रासायनिक संघठन :
इसमें पेण्टाट्राइएकोन्टेन नामक क्षाराभ, टैनिन, फ्लोबेफीन तथा शर्करा होती है। इसकी भस्म
में पोटाशियम लवणों की बहुलता होती है। इन लवणों के कारण ही इसमें मूत्रल प्रभाव पाया जाता है।
पित्त पापड़ा का औषधीय उपयोग (Medicinal Uses of Pitt Papda in Hindi)
आयुर्वेदिक मतानुसार पित्त पापड़ा के गुण और उपयोग –
- पित्त पापड़ा तृष्णाशामक होने के अतिरिक्त दीपन ग्राही, कृमिघ्न और यकृत उत्तेजक भी हैं।
- पित्त पापड़ा अरूचि, छर्दि (उल्टी), अम्लपित्त, अग्निमांद्य, कृमि एवं कामला आदि रोगों में हितकर कहा गया है।
- रक्तशोधक योगों में तथा रक्त स्तम्भ योगों में इसका मिश्रण इसकी उपादेयता प्रकट करता है।
- मस्तिष्क पर इसका शामक प्रभाव होने से नाड़ी संस्थानगत भ्रम, मूर्छा, मदात्यय (अत्यधिक शराब पीने से उत्पन्न शारीरिक विकार) आदि रोगों को नष्ट करने में भी यह सहायता पहुंचता है।
- मूत्रकृच्छ्र में इसको उपयोग में लाया जाता है।
- यकृत विकारों में यह विशेष उपयोगी है।
- पित्त पापड़ा पत्रशाक के रूप में पित्तज रोगों में, ज्वर, तृष्णा, रक्तविकार आदि में इसको पथ्य कहा गया है।
यूनानी मतानुसार पित्त पापड़ा के गुण और उपयोग –
- यूनानी मतानुसार यह समशीतोष्ण तथा दूसरे दर्जे में खुश्क है।
- पित्त पापड़ा मूत्रल, अग्निवर्धक, रक्त और चर्म सम्बन्धी बीमारियों को दूर करने वाला, फेफड़े और दांतों को मजबूत करने वाला, वमन रोकने वाला तथा आंखों को शुद्ध करने वाला है।
- सूखा पित्त पापड़ा पुराने बुखार, वायु के रोग और पीलिया में मुफीद है।
रोगोपचार में पित्त पापड़ा के फायदे (Benefits of Pitt Papda in Hindi)
1). हाथ पैर के तलवों की जलन में पित्त पापड़ा के प्रयोग से लाभ
पित्त पापड़ा पत्र स्वरस का हाथ पैरों पर लेप करें। ( और पढ़े – हाथ पैरों के तलवे या शरीर मे जलन के कारण लक्षण और इलाज )
2). खुजली ठीक करे पित्त पापड़ा का प्रयोग
पित्त पापड़ा और हल्दी को नवनीत (मक्खन) में मिलाकर लेप करने से खुजली मिटती है।
3). मधुमक्खी काटने पर पित्त पापड़ा का उपयोग लाभदायक
पित्त पापड़ा के पंचांग को पीसकर दंश स्थान पर लेप करने से लाभ होता है। ( और पढ़े – कीड़े-मकोड़े बिच्छू ततैया काटने के 40 घरेलु उपचार )
4). नेत्र रोग में पित्त पापड़ा के इस्तेमाल से लाभ
पित्त पापड़ा स्वरस को नेत्रों में डालने से अशुद्ध पानी निकल जाता है और नेत्र शुद्ध हो जाते हैं जिससे दृष्टि शक्ति बढ़ती है।
5). मस्तिष्क शूल (सर दर्द) मिटाए पित्त पापड़ा का उपयोग
पित्त पापड़ा के व करेला पत्र रस को गोघृत में मिलाकर मर्दन करने से लाभ होता है। ( और पढ़े – सिर दर्द दूर करने के 145 सबसे असरकारक घरेलू उपचार )
6). सर्दी जुखाम (प्रतिश्याय) में पित्त पापड़ा का उपयोग फायदेमंद
पित्त पापड़ा 25 ग्राम, बनफ्सा 6 ग्राम, कालीमिर्च 3 ग्राम, सोंठ 3 ग्राम और मुनक्का 10 ग्राम को एक लीटर जल में डालकर क्वाथ बना चतुर्थांश जल शेष रखकर 50-50 मिलि0 दिन में 3-4 बार पीने से प्रतिश्याय में लाभ होता है। यह यकृत विकार, आत्र शेथिल्य एवं राजयक्ष्मा आदि रोगों में भी लाभप्रद है।
7). मुँह के छाले (सर्वसर) ठीक करे पित्त पापड़ा का प्रयोग
पित्त पापड़ा क्वाथ का गण्डूष (कुल्ला) धारण करने से जीभ तालु आदि के व्रण मिटते है। मुख की जलन मिटती है और मसूढें मजबूत होतें है । ( और पढ़े – मुह के छाले दूर करने के 101 घरेलू नुस्खे )
8). आमाशय की जलन में पित्त पापड़ा के सेवन से लाभ
पित्त पापड़ा पत्र स्वरस में दूध शक्कर मिलाकर पीना हितकारी है ।
9). कृमि रोग में पित्त पापड़ा के इस्तेमाल से लाभ
पित्त पापड़ा विडंग क्वाथ का सेवन हितकारी कहा गया है।
10). रक्तविकार में लाभकारी है पित्त पापड़ा का प्रयोग
- पित्त पापड़ा, मंजीठ, खदिर का क्वाथ हितकारी है। इसे मधु के साथ भी सेवन किया जा सकता है।
- पित्त पापड़ा ,पटोल पत्र ,निम्ब की छाल और दुरालभा का क्वाथ भी रक्त शोधक हैं ।
( और पढ़े – खून की खराबी दूर करने के आयुर्वेदिक उपाय )
11). पथरी (अश्मरी) दूर करने में पित्त पापड़ा फायदेमंद
पित्त पापड़ा चूर्ण को दिन में 4-5 बार तक के साथ सेवन करना अश्मरी में लाभदायक है। छाछ में रस मिलाकर भी पिया जा सकता है। इससे मूत्रकृच्छ्र समाप्त होता है। मूत्राशय की पथरी निकल जाती है। वृक्काश्मरी (किडनी की पथरी) में यह अनुपयोगी है। ( और पढ़े – किडनी स्टोन या गुर्दे की पथरी का इलाज सिर्फ पानी से )
12). मदात्यय (अत्यधिक शराब पीने से उत्पन्न शारीरिक विकार) मिटाता है पित्त पापड़ा
पित्त पापड़ा, नागरमोथा चूर्ण 2-3 बार जल से देवें।
13). अनिद्रा दूर करे पित्त पापड़ा का प्रयोग
पित्त पापड़ा एवं खुरासानी अजवाइन भैंस के दूध से देवें।
14). रक्तपित्त में पित्त पापड़ा का उपयोग लाभदायक
- पित्त पापड़ा का शीत कषाय बना उसमें चन्दन चूर्ण एवं मधु मिलाकर दें।
- पित्त पापड़ा, अनार का छिलका 10-10 ग्राम, सफेद जीरा 5 ग्राम लेकर क्वाथ बनाकर मिश्री मिलाकर बार-बार पिलाने से मुख व नाक से गिरता खून रूकता है।
- पित्त पापड़ा, चन्दन, खस, नागरमोथा, कमलपुष्प का क्वाथ बना शीतल कर पिलावें।
- पित्त पापड़ा, द्राक्षा, धनिया, आंवला का हिम कषाय बनाकर पीना हितकर है।
15). भ्रम में लाभकारी है पित्त पापड़ा का सेवन
पित्त पापड़ा और जवासा बराबर लेकर क्वाथ बनाकर पीना हितकर है।
16). उल्टी (छर्दि) में आराम दिलाए पित्त पापड़ा का सेवन
- पित्त पापड़ा क्वाथ में मधु मिलाकर सेवन करें।
- पित्त पापड़ा, विल्व छाल एवं गुडूची क्वाथ भी लाभप्रद है।
( और पढ़े – उल्टी रोकने के 16 देसी अचूक नुस्खे )
17). अम्लपित्त में पित्त पापड़ा के सेवन से लाभ
पित्त पापड़ा, चिरायता, गिलोय, शृंगराज, त्रिफला, वासा, नीम और पटोलपत्र का क्वाथ मधुयुक्त अम्लपित्त हर है।
( और पढ़े – एसिडिटी के सफल 59 घरेलू उपचार )
18). तृष्णा (अत्यधिक प्यास) में लाभकारी है पित्त पापड़ा का प्रयोग
- पित्त पापड़ा, मुस्तक, सौंफ, खस, चन्दन क्वाथ तृष्णाहर है।
- पित्त पापड़ा, उशीर, चन्दन, विल्व क्वाथ भी हितकारी है।
19). मूर्छा दूर करे पित्त पापड़ा
पित्त पापड़ा, सोंठ, आंवला, शतावरी, कास कुश क्वाथ मूर्छाहर है।
20). ज्वरातिसार में पित्त पापड़ा का उपयोग फायदेमंद
पित्त पापड़ा, गिलोय, चिरायता, वासा, सोंठ और नागरमोथा का क्वाथ बनाकर ठंडाकर पिलावें।
21). ज्वर दूर करने में मदद करता है पित्त पापड़ा का सेवन
पित्त ज्वर –
- पित्त पापड़ा, मुस्तक, चिरायता, खस क्वाथ लाभप्रद है।
- पित्त पापड़ा, गिलोय, धनियां, कुटकी, नेत्रबाला क्वाथ हितकारी है।
- पित्त पापड़ा, अमलतास, हरड़, मुनक्का, कुटकी क्वाथ वबन्ध की हालत में दें।
- पित्त पापड़ा, द्राक्ष, गिलोय, पद्माख (पर्वतीय प्रदेश में होनेवाला एक तरह का ऊँचा पेड़) क्वाथ भी गुणकारी
- पित्त पापड़ा, इन्द्रजौ, मुलेठी, धनियां क्वाथ बनाकर मधु मिला पिलावें।
- सामज्वर – पित्त पापड़ा, नागरमोथा, यवासा, चिरायता और सोंठ का क्वाथ दें।
- वात श्लेष्मिक ज्वर – पित्त पापड़ा, मुस्तक, यवासा, कटेरी, और सोंठ का क्वाथ दें। यह गर्भिणी के ज्वर में भी लाभदायक हैं।
- सामान्य ज्वर – पित्त पापड़ा क्वाथ में सोंठ का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से प्रातः सभी प्रकार के ज्वर ठीक होते हैं। पित्त पापड़ा एवं गिलोय के स्वरस में काली मिर्च का या पीपलामूल का चर्ण मिलाकर सेवन करना भी ज्वरों में हितकर है।
- जीर्ण ज्वर – पित्त पापड़ा, गिलोय या धनियां क्वाथ में पिप्पली चूर्ण मिलाकर सेवन करने से जीर्ण ज्वर में लाभ होता है।
22). रकतष्ठीवी सन्निपात मिटाए पित्त पापड़ा का उपयोग
पित्त पापड़ा, धमासा, अडूसा, रोहिस घास के क्वाथ में शक्कर डालकर पिलाने से रक्त गिरने के साथ हुआ सन्निपात ज्वर नष्ट होता है।
पित्त पापड़ा से निर्मित आयुर्वेदिक दवा (कल्प) :
क्वाथ –
पित्त पापड़ा, नागरमोथा, गिलोय, सोंठ और चिरायता सबको समभाग में लेकर मिलाकर जौकुट करें। इसमें 20 ग्राम लेकर क्वाथ करें। फिर 20 ग्राम लेकर शाम को कर पिलावें। इसे पंचभद्रादि क्वाथ भी कहते हैं। यह क्वाथ उदरास्थित (पेट के) दोषों का पाचन कर वातपित्त ज्वर को समस्त लक्षणों सहित नष्ट करता है। -वृ०मा०
अर्क –
पित्त पापड़ा, नागरमोथ, हाऊबेर (Juniper एक कोणधारी वृक्ष), धनियां, चन्दन, नेत्रवाला इनका अर्क शीघ्र ही सब प्रकार के तृषा रोग को निस्संदेह हरता है। -अर्क प्रकाश
पानक (शर्बत) –
पित्त पापड़ा, अडूसा, कुटकी, चिरायता, धमासा और फूलप्रियंगु सभी 40-60 ग्राम लेकर 3 लीटर जल में यवकुट कर रात्रि में भिगो दें। प्रातः क्वाथ करें। जब चतुर्थाश जल शेष रह जाय तो उसमें 750 ग्राम मिश्री मिलाकर एक तार की चासनी कर शर्बत बना लें। दिन में 3-4 बार 20-30 ग्राम की मात्रा में दें। इसमें गरम कर ठंडा किया हुआ पानी मिलाकर देवें। यह पित्त ज्वर में बढ़ी हुई प्यास, दाह, रक्तातिसार, रक्तपित्त आदि को शान्त करता है। -धन्व0अनु0 चि०
चूर्ण –
पित्त पापड़ा 20 ग्राम, लाल चन्दन, खस,धनिया 10-10 ग्राम लेकर बारीक चूर्ण बनालें। यह 4-5 ग्राम चूर्ण सेवन करने से पित्तज्वर में लाभ होता है। अनुपान-गरम जल। -धन्व0अनु० चिकि0
अरिष्ठ –
पित्त पापड़ा 5 किलो लेकर कूटकर 52 लीटर पानी में उबालें। चतुर्थाश शेष रह जाने पर ठंडा कर संधान में भर उसमें गुड़ 10 किलो, धाय पुष्प 780 ग्राम तथा गिलोय, नागरमोथा, दारूहल्दी, देवदारू, कटेरी, धमासा, चव्य, चित्रक, कटु, विडंग का चूर्ण प्रत्येक 40-40 ग्राम मिला पात्र का मुह अच्छी तरह बन्द कर एक मास तक सुरक्षित रखें। पश्चात् छानकर बोतलों में भर लेवे। यह 10-40 मिलि0 तक सेवन करने से पाण्डु रोग, गुल्म, उदररोग, अष्ठीला, यकृत् प्लीहा विकार, शोथ (सूजन), विषमज्वर आदि रोग नष्ट होते हैं। -भे0र0
अवलेह –
पित्त पापड़ा (शाहतरा) 147 ग्राम, पीली हरड़े की छाल 118 ग्राम, बीज निकाला हुआ मुनक्का 100 ग्राम, काबुली हरड़े की छाल 83 ग्राम, बहेड़ा का छिलका और आंवला प्रत्येक 100-100 ग्राम, सनाय 31 ग्राम, गुलाब पुष्प 15 ग्राम। मुनक्का के अतिरिकत सभी द्रव्यों को कूट छानकर यथावश्यक बादाम के तेल में स्नेहाक्त करें और मुनक्का को सिलपर पीस लें। पिछे तिगुना मधु में समस्त द्रव्य मिलाकर यथाविधि अतरीफल अवलेह बनाएं यह तैयार करने के दो माह बाद सेवन करना चाहिए। यह प्रतिदिन सबेरे 7 ग्राम अर्क मुसफ्फीखून (रक्तशोधक अर्क) के साथ खावें। यह रक्तविकार नाशक है। फिरंग (उपदंश) जन्य मस्तिष्कगत उष्णता के लिए लाभदायक है। यह दिमाग को बल देने वाला है। -यू०सि०यो0सं0
पित्त पापड़ा के दुष्प्रभाव (Pitt Papda ke Nuksan in Hindi)
- पित्त पापड़ा के सेवन से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
- पित्त पापड़ा का अधिक सेवन करने से प्लीहा, वृक्क (किडनी), फुफ्फस (फेफड़ें) तथा हृदय को हानि पहुँचाता हैं ।
दोषों को दूर करने के लिए : इसके दोषों को दूर करने के लिए बड़ी हरड़े, शहद, नीबू और कासनी का सेवन कराना हितकारी है। यदि अधिक मात्रा सेवन से बेचैनी अधिक हो तो आलू बुखारा देवें।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)