आयुर्वेद में मोर पंख का महत्व इसके फायदे और उपयोग | Benefits of Peacock Feather in Ayurveda

Last Updated on September 28, 2019 by admin

मयूर पंख का परिचय :

मोर नामक पक्षी के पंख को मयूर पंख या मोर पंख कहते हैं । इस वस्तु को सब लोग जानते हैं। इसलिये इसके विशेष विवेचन की जरूरत नहीं ।

विभिन्न भाषाओं में मोर पंख के नाम :

संस्कृत – मयूरपंख
हिन्दी – मयूरपंख ,मोर पंख
गुजराती – मोरनपीछा
बंगाल – मसूर पुच्छ
अंग्रेजी – Peacock’s Feathers

मोर पंख के गुण और प्रभाव :

☛ आयुर्वेदिक निघण्टुओं में मयूरपंखों के सम्बन्ध में कोई विशेष विवेचन देखने में नहीं आया। तंत्रविद्या को करने वाले लोग इन पखों को काम में लेते हैं और बहुत से वैद्य भी इन पंखों को जलाकर इसकी राख को शहद के साथ हिचकी, वमन इत्यादि रोगों को रोकने के लिये देते हैं। मगर इसका कोई शास्त्रीय विवेचन देखने में नहीं आया।

☛ जंगलनी जड़ी बूटी नामक ग्रन्थ में इस वस्तु के संबंध में बहुत विस्तार के साथ लिखा गया है । इस ग्रन्थ के लेखक का कथन है कि उनको ये प्रयोग अयोध्या निवासी गोस्वामी सरजूदास महाराज की कृपा के प्राप्त हुए हैं ।

मोर पंख के फायदे / रोगों का उपचार :

1- संग्रहणी रोग के उपचार में मोर पंख(मयूरपंख) के फायदे –

३०० ग्राम उत्तम जाति के गेहूँ लेकर उनकी आकड़े ( मदार ) के दूध में सात बार तर कर के छाया में सुखा लेना चाहिये । इसके पश्चात् उन गेहूं को किसी मिट्टी के बरतन में रखकर आग पर चढ़ा कर जला डालना चाहिये।

उसके बाद मयूर पंख के उपर जो तुर की तरह रेशमी बालों का रंगीन भाग रहता है । उसको निकाल कर १०० नग इकट्ठे करना चाहिये । उनको भी जला कर उनकी राख कर लेना चाहिये ।

फिर ऊंची जाति के छुहारे [ खारक ] लेकर उनकी गुठलियां निकाल कर गुठली की जगह एक एक कली लहसुन की और तीन-तीन रत्ती(1 रत्ती= 0.1215 ग्राम) अफीम रख कर उनका मुह बन्द कर के पानी में गलाया हुआ आटा उनके ऊपर लेप कर देना चाहिये और उस आटे के ऊपर कपड़ मिट्ठी करके ऊपले कंडों की आग में रख देना चाहिये । जब वे सब तप्त होकर लाल हो जाँय तब उन को बाहर निकाल कर ठण्डी करके कपड़ मिट्ठी हटा कर खारक लहसून और अफीम को साथ पीसकर चूर्ण कर लेना चाहिए। फिर इस चूर्ण में वे जलाये हुये गेहूँ और मयूर पंख की राख मिलाकर खरल कर के एक एक बोतल में भर लेना चाहिये । प्रतिदिन सबेरे शाम इस चूर्ण का डेढ़ ग्राम की मात्रा में ठण्ढे पानी के साथ लेने से और पथ्य में सिर्फ दूध पीने से कुछ समय में संग्रहणी और अतिसार के रोग नष्ट हो जाते हैं।

मयूर पंखों के अन्दर ताँबा रहता है और वह तांबा खदान से निकालने वाले तांबे की अपेक्षा बहुत सौम्य होता है । इसलिये संग्रहणी, अतिसार, गुल्म तथा दूसरे उदर रोगों की जीर्णावस्या में यहाँ दूसरा तांबा बहुत उग्र साबित होता है वहाँ उपर्युक्त प्रयोग लाभदायक सिद्ध होता है।

( और पढ़े – संग्रहणी के आयुर्वेदिक उपचार )

2- दमे रोग के उपचार में मोर पंख के फायदे –

रस सिंदूर एक भाग, शुद्ध गन्धक एक भाग, सेही ( सेड़ी) नामक जानवर के कांटे की राख एक भाग, मयूर पंख की राख १ भाग और काली कसौदी के बीजों का चूर्ण दो भाग ।

इन सब चीजों को पूराने घी के साथ खरल करके चार-चार रत्ती(1 ratti = 0.1215 gram) की गोलियां बना लेना चाहिये। इनमें से सबेरे शाम एक-एक गोली गरम पानी के साथ लेने से कुछ दिनों में दमे का रोग दूर हो जाता है।

तांबा श्वास के ऊपर बहुत लाभदायक होता है और मयूर पंख में भी तांबा रहता है। मगर खनिज ताम्बे की भस्म अगर पूरी सावधानी से न बनाई गई हो अथवा उसके सेवन के साथ उचित पथ्य का पालन न किया गया हो तो व लाभ के बदले हानि अधिक पहुचाती है। मगर मयूरपंख में रहनेवाले ताम्बे से किसी प्रकार का उपद्रव नहीं होता । इसलिये उपर्युक्त प्रयोग श्वास में विशेष लाभदायक है।

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3- मयूर की हंगार से बवासीर रोग का उपचार –

मयूर की हंगार 120 ग्राम और कबूतर की हंगार 120 ग्राम । इन दोनों को एक लोहे की कढाई में डाल कर लोहे के दस्ते से एक पहर(3 घंटे) तक घोटना चाहिये । फिर उसमें नीबू का रस डालकर आठ दिन तक छाया में पड़ी रखना चाहिये। आठ दिन के पश्चात् उसमें 48 ग्राम नागरमोथा, तीन ग्राम केसर, 12 ग्राम इन्द्रायन की जड़, 24 ग्राम अमरबेल, 48 ग्राम अपामार्ग के सूखे पत्ते, 48 ग्राम गोरखमुण्डी की जड़ों का चूर्ण ।

इन सब चीजों को उस कढ़ाई में डाल कर अच्छी तरह मिलाना चाहिये और फिर सब औषधि को खरल में डालकर चार दिन तक खूब खरल करना चाहिये । उसके बाद इसकी बड़ी-बड़ी गोलियां बनाकर छाया में सुखा कर बोतल में भर लेना चाहिये । इस गोली को प्रतिदिन सबेरे शाम पानी में घिस कर बवासीर के मस्सों पर लगाने से एक महीने में चाहे जैसे बवासीर हो मुझ कर गिर जाते हैं।

जंगलनी जडी बूटी के लेखक लिखते हैं कि यह प्रयोग हमको काशी के मधुसूदन सरस्वती नामक एक महात्मा से मिला है। उन महात्मा का कहना था कि इस औषधि को खूनी तथा बादी बवासीर के सैकड़ों रोगियों पर हमने अजमाया है और यह कभी असफल नहीं सिद्ध हुई।

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4- मयूर पंख से नाक के रोग का इलाज –

मयूर पंख को कूटकर उनका बारीक चूर्ण कर लेना चाहिये । फिर उस चूर्ण में समान भाग गुड़ मिलाकर तीन-तीन रत्ती की गोलियां बना लेना चाहिये । इन गोलियों में से एक से लेकर दो तक गोली हर छः घंटे के अन्तर से देने से नारू का कृमि मरकर सूख जाता है और नारू का रोग नष्ट हो जाता है।

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5- मयूर पंख से बिच्छु का विष दूर करने का उपाय –

मयूरपंख का चूर्ण और तमाखू को समान भाग लेकर चिलम में रखकर तमाखू की तरह पीने से बिच्छू का विष उतर जाता है ।

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(दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)

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