देश के 90 फीसदी लोग विटामिन डी की समस्या से ग्रसित हैं । गरीब तबके के मुकाबले आर्थिक रूप से संपन्न परिवारों में इसकी कमी अधिक मिल रही है । लड़कों की तुलना में लड़कियों में विटामिन डी की कमी ज्यादा है । उष्णकटिबंधीय देश होने के कारण भारत में सूर्य का प्रकाश यानी धूप पर्याप्त है । इसके बावजूद लोगों में विटामिन डी की कमी है । ज्यादातर लोगों को लगता है कि सुबह की धूप लेने से विटामिन डी की कमी पूरी हो सकती है । यह गलत धारणा है । सिर्फ उन्हीं लोगों में विटामिन डी की पूरी मात्र हो सकती है, जो खेतों में नंगे बदन घंटों काम करते हैं । विटामिन डी की कमी को परा करने के लिए कम से कम 75 प्रतिशत शरीर को रोजाना सूरज की सीधी रोशनी की जरूरत होती है । इस कमी को साधारण बात समझकर नजरअंदाज न करें क्योंकि इससे अनेक गंभीर और जानलेवा रोग भी हो सकते हैं । यदि विटामिन डी का सेवन पर्याप्त मात्र में किया जाए, तो अनेक रोगों से बचाव भी हो सकता है।
विटामिन डी का महत्व (Vitamin D in Hindi)
देश की एक प्रमुख डायग्नोस्टिक लैब कंपनी द्वारा लगभग 37 हजार लोगों पर 2014 में की गई एक स्टडी के मुताबिक 84 प्रतिशत भारतीयों में विटामिन डी की कमी का जोखिम पाया गया। इसी तरह 69 प्रतिशत लोगों में विटामिन डी की कमी और 15 प्रतिशत लोगों में अपर्याप्त मात्रा में विटामिन डी होने की जानकारी सामने आई है। सिर्फ 15 प्रतिशत भारतीयों में ही यह विटामिन पर्याप्त मात्रा में पाया गया। 16 साल की किशोरियों और 30 साल की गर्भावस्था वाली महिलाओं में भी विटामिन डी की कमी विकसित होने के तथ्य का पता चला। 81 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में विटामिन डी की मात्रा कम देखी गई। यही नहीं, 66.7 प्रतिशत 3 वर्ष से कम उम्र के नवजातों में भी इस विटामिन की कमी देखी गई है।
कैंसर से बचाव में विटामिन डी के फायदे (Vitamin D Deficiency and Cancer in Hindi)
मेडिकल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ कैरालिना के ब्रूस होलिस द्वारा किए गए एक शोध में कहा गया है कि विटामिन डी का सप्लीमेंट लेने से बिना सर्जरी या रेडिएशन के ही कम तीव्रता या हलके स्तर के प्रोस्टेट कैंसर को रोकना संभव है। यहां तक कि ट्यूमर को खत्म करने में भी यह सक्षम है। बायोप्सी के बाद इलाज से पहले परीक्षण के 60 दिनों के दौरान मरीज को विटामिन डी सप्लीमेंट के आश्चर्यजनक प्रभाव देखे गए।
विटामिन डी की कमी से हानि –
- विटामिन डी की कमी से कोलन, स्तन व प्रोस्टेट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
- यदि फेफड़ों को पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी नहीं मिले, तो उनमें कैंसर भी हो सकता है।
- विटामिन डी का सेवन करने से स्तन कैंसर होने का खतरा कम हो जाता है।
- विटामिन डी मोटी महिलाओं की आंतों में कैंसर को रोकने वाले जीन पीटाइन को मजबूत बनाता है। इस जीन के निष्क्रिय हो जाने से आंतों में कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
विटामिन डी युक्त आहार का सेवन करने तथा सूर्य की रोशनी के संपर्क में रहने से महिलाओं को स्तन कैंसर होने का खतरा कम हो जाता है। फ्रांस के शोधकर्ताओं ने 10 साल से भी अधिक समय तक करीब 67 हजार महिलाओं पर शोध किया।
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विटामिन डी की कमी से हृदय रोग होने की आशंका (Vitamin D Deficiency and Heart Disease in Hindi)
क्लीनिकल एंडोक्रिनोलॉजी एंड मेटाबोलिज्म जर्नल में प्रकाशित एक शोध के अनुसार जिन बच्चों में विटामिन डी का स्तर सामान्य से कम होता है, बड़े होने पर उन्हें हृदयरोग होने की संभावना दोगुनी हो जाती है। करीब 35 साल चले इस शोध में 18 वर्ष की आयु के 2148 बच्चों की मेडिकल रिपोर्ट का लगातार अध्ययन किया गया। एक अन्य शोध फिनलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ टुरकु के मारकुस जुओनाला द्वारा किया गया है, जिसके मुताबिक बचपन में विटामिन डी की कमी और वयस्क अवस्था में सर्वलीनिकल एथेरोस्क्लेरोसिस की समस्या के बीच संबंध पाया गया है।
विटामिन डी की पर्याप्त मात्रा नहीं मिलने से 25 साल की आयु के बाद वयस्क अवस्था में यह बीमारी हृदय की गतिविधियों को प्रभावित करती है। विटामिन डी की कमी से दिल का दौरा पड़ने की आशंका होती है। खून में विटामिन डी की कमी हृदय रोग बढ़ाती है। विटामिन डी का सेवन हृदय रोग से बचाता है।
आयुर्वेद में कहा गया है कि जो व्यक्ति सूर्योदय के समय सूर्य की लाल रश्मियों का सेवन करता हो, उसे हृदय रोग कभी नहीं होता। एक शोध के मुताबिक जिन लोगों में विटामिन डी का स्तर अच्छा होता है, उनमें हृदय रोग होने की संभावना 45 प्रतिशत कम होती है।
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विटामिन डी का मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव (Vitamin D and Mental Health in Hindi)
‘मेडिकल हाइपोथेसिस’ में प्रकाशित एक शोध के अनुसार विटामिन डी की कमी आपके मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डाल सकती है। अमेरिका यूनिवर्सिटी ऑफ जार्जिया के कॉलेज ऑफ एजुकेशन के एलन स्टीवर्टके ने विटामिन डी तथा मौसमी अवसाद के बीच संबंध पाया। मौसमी अवसाद एक ऐसा अवसाद है, जो मौसम के बदलाव से संबंधित होता है। विटामिन डी मस्तिष्क में सेरोटोनिन तथा डोपामिन के निर्माण में भूमिका निभाता है। यूएस इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिन के अनुसार विटामिन डी का स्तर प्रति लीटर 50 नैनोमोल्स होना चाहिए।
‘न्यूरोलॉजी जर्नल’ में प्रकाशित एक शोध के अनुसार शरीर में विटामिन डी की कमी के कारण लोगों में पागलपन का खतरा बढ़ सकता है। ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी ऑफ एकेस्टर मेडिकल स्कूल के शोधकर्ताओं ने 1650 लोगों पर अध्ययन किया। इनमें 1169 लोगों में विटामिन डी का स्तर अच्छा था और उनमें से एक व्यक्ति में पागलपन का खतरा होने की संभावना थी। जिन 70 व्यक्तियों में विटामिन डी का स्तर बहुत कम था, उनमें से पांच में से एक में पागलपन का खतरा होने की संभावना जताई गई।
हड्डियों को मजबूत करने में विटामिन डी लाभदायक (Benefits of Vitamin D for Bone Health in Hindi)
विटामिन डी की कमी से हड्डियों की सतह कमजोर पड़ जाती है। शरीर के भार का केंद्र कमर होती है। रीढ़ की हड्डी पूरी तरह से कमर पर टिकी होती है। विटामिन डी की कमी के कारण रीढ़ के लिए शरीर का भार ढोना एक चुनौती बन जाता है। हड्डियों की मजबूती के लिए कैल्शियम का होना बहुत जरूरी है और कैल्शियम के अवशोषण में विटामिन डी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विटामिन डी के सेवन से हड्डियों से जुड़ी बीमारियों से बचा जा सकता है।
महिलाओं के लिए विटामिन डी का सेवन विशेष तौर पर फायदेमंद है। इससे उन्हें रजोनिवृत्ति के बाद हड्डियों से जुड़ी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा। विटामिन डी न केवल मांसपेशियों को मजबूत बनाता है, अपितु शरीर में आस्टियोकैल्किन नामक प्रोटीन के निर्माण में भी मदद करता है, जो बोन मास को बढ़ाता है। इससे फ्रैक्चर के खतरे कम हो जाते हैं।
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डायबिटीज के जोखिम से बचाने में विटामिन डी उपयोगी (Vitamin D Deficiency and Diabetes in Hindi)
सैन डिएगो स्कूल ऑफ मेडिसिन कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने विटामिन डी 3 सीरम स्तर और टाइप-वन डायबिटीज में अंतरसंबंध पाया है। करीब दो हजार लोगों पर 7 वर्ष तक चले अध्ययन में इस मर्ज में विटामिन डी 3 की रक्षात्मक भूमिका के प्रमाण मिले। इसके पूर्व के अध्ययनों में विटामिन डी की कमी और टाइप-वन डायबिटीज के जोखिम की जानकारी थी।
इंसुलिन से प्रतिरोधक रखने वाले डायबिटीज मरीजों को विटामिन डी का सेवन करना चाहिए। टाइप-2 डायबिटीज से पीड़ित लोगों में इंसुलिन के प्रति प्रतिरोधकता के लक्षण नजर नहीं आते, लेकिन विटामिन डी से इसकी पूर्ति की जा सकती है। शोध में 275 लोगों को शामिल किया गया तथा छह माह तक विटामिन डी लेने से उनकी सेहत में सुधार देखा गया।
विटामिन डी की कमी का सीधा प्रभाव फेफड़ों की बनावट और उनकी कार्यक्षमता पर पड़ता है, जो कि सिकुड़ जाते हैं। इस वजह से वायु को बहुत ज्यादा प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है। मेसाचुएट्स जनरल हॉस्पिटल, कारलोस कारमारगो द्वारा किये जा रहे शोध के अनुसार विटामिन डी की कमी से लड़कियों को किशोरावस्था में दिक्कत आ सकती है। इससे उन्हें सांस लेने संबंधी बीमारी भी हो सकती है।
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गर्भावस्था में लाभप्रद विटामिन डी (Vitamin D Benefits During Pregnancy in Hindi)
आधुनिक शोधों से पता चलता है कि गर्भावस्था के 6-7 महीने तक जिन महिलाओं में विटामिन डी की कमी होती है, उनके गंभीर प्रीएक्लेम्सिया से पीड़ित होने की आशंका बढ़ जाती है। वहीं, जो महिलाएं इसे पर्याप्त मात्रा में लेती हैं, उनमें यह आशंका 40 प्रतिशत कम हो सकती है। यही कारण है कि गर्भावस्था में विटामिन डी के सेवन की सलाह दी जाती है। गर्भावस्था में विटामिन डी का सेवन मल्टीपल सिरोसिस से 80 प्रतिशत तक बचाव करता है। यह विटामिन एक तरह के जीन को रेग्यूलेट करता है। विटामिन डी की कमी से मोटापा भी बढ़ता है। यदि विटामिन डी का सेवन किया जाए तो शरीर पर चर्बी नहीं चढ़ती और मोटापे से निजात मिलती है।
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विटामिन डी की कमी से कमर दर्द की संभावना (Vitamin D Improves Back Pain in Hindi)
विटामिन डी की कमी पीठ और कमर दर्द का कारण बनती है। अध्ययन में कमर दर्द से पीड़ित 360 मरीजों में इस विटामिन के स्तर की जांच की गई। सभी में इसकी मात्रा अपर्याप्त थी। उम्र बढ़ने के साथ जोड़ों के दर्द की समस्या भी बढ़ती जाती है। लेकिन विटामिन डी उन्हें इस दर्द से छुटकारा दिलाने में सक्षम है। पैरों में ऐंठन की समस्या से भी यह विटामिन मुक्ति दिलाता है।
इंफ्लूएंजा होने का खतरा शोधकर्ताओं के अनुसार शरीर में विटामिन डी की मात्रा 30 एनजी प्रति एमएल से कुछ ज्यादा होनी चाहिए। ऐसा होने से इंफ्लूएंजा का खतरा कम होगा। इंफ्लूएंजा अथवा वायरल इंफेक्शन होने पर यदि मरीज अधिक मात्रा में विटामिन डी ले, तो उसकी तकलीफ कम हो सकती है। ग्रीनविच हॉस्पिटल और येन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि ठंड के मौसम और वसंत ऋतु में शरीर में विटामिन डी की मात्रा कम हो जाती है। इससे इंफ्लूएंजा के प्रकरण बढ़ जाते हैं।
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विटामिन डी से होने वाले अन्य लाभ (Vitamin D Benefits in Hindi)
- नवजात शिशुओं को पीलिया होने पर डॉक्टर उसे सूर्य की रोशनी में लिटाते हैं ताकि विटामिन डी मिल सके।
- बच्चों को नियमित रूप से विटामिन डी की खुराक देने से उनमें सर्दी, जुकाम और फ्लू जैसे सांस संबंधी संक्रमणों का खतरा कम हो जाता है।
- विटामिन डी शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाता है। इससे स्थानीय समस्याएं बहुत कम हो जाती है। रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ने से व्यक्ति की आयु भी बढ़ती है। डेनमार्क के वैज्ञानिकों के शोध के मुताबिक बढ़ती उम्र के साथ विटामिन डी की खुराक लेने वाले बुजुर्ग दीर्घायु हो सकते हैं।
- वैज्ञानिकों ने 57 हजार लोगों पर विटामिन डी के प्रभाव का अध्ययन किया और पाया कि जो इसका सेवन करते थे, उनमें स्वास्थ्य समस्याएं बहुत कम होती हैं।
विटामिन डी के स्रोत (Vitamin D ke Srot in Hindi)
विटामिन डी का सबसे अच्छा और मुख्य स्रोत सूर्य की किरणें यानी धूप है। यह प्रकृति का निःशुल्क उपहार ही है। इसके अलावा –
- दूध
- मक्खन
- पनीर
- हरी सब्जियां
- शलजम
- मूली
- पत्ता गोभी
- नींबू आदि भी इसके स्रोत हैं।
यदि डॉक्टर चाहे तो इसकी गोलियां भी दे सकता है। विटामिन डी की गोलियां स्वयं अपनी मर्जी से न खाएं। पहले अपना स्वास्थ्य परीक्षण कराएं और डॉक्टर के नुस्खे के मुताबिक ही इसकी खुराक लें।
विटामिन डी की कमी से क्या होता है ?
विटामिन डी की कमी से होने वाली संभावित बीमारियाँ निम्नलिखित हैं –
- बार-बार बीमार होना
- बच्चों का देर से चलना
- श्वास लेने में दिक्कत होना
- स्वभाव में चिड़चिड़ापन
- कमर में दर्द ( और पढ़े – कमर में दर्द के घरेलू उपचार )
- मांसपेशियों का कमजोर होना
- अत्यधिक पसीना आना ( और पढ़े – अधिक पसीना आने का उपचार )
- आत्मबल की कमी
- बालों का अत्यधिक झड़ना ( और पढ़े – 26 आयुर्वेदिक उपाय, जो बालों को झड़ने से रोकें)
- मधुमेह (diabetes)
- दिल की बीमारी ( और पढ़े – हृदय को मजबूत कैसे करें? )
- हड्डियों में दर्द होना
विटामिन डी के स्तर को जानने के लिए रूटीन सीरम कराया जाता है। यह टेस्ट महंगा है, इसलिए डॉक्टर इसे नहीं कराते हैं। लेकिन यह टेस्ट करा लेना इसलिए जरूरी है क्योंकि यदि शरीर में विटामिन डी की कमी है, तो समय रहते उसका उपचार हो सके।