Last Updated on April 20, 2024 by admin
लौकी के सभी हिस्सों को मिलाकर तैयार किया हुआ रस हृदय रोगियों के लिए संजीवनी के जैसा महान कार्य करता है।
लौकी का रस बनाने हेतु लौकी का छिलका, गुद्दा, बीज ऐसे सभी हिस्से उपयुक्त होते हैं।
लौकी का रस तैयार करने की विधि (How to Make Lauki Juice in Hindi)
- लौकी का लगभग 200 से 250 ग्राम वजन का टुकड़ा लेकर उसे पानी से साफ धोना आवश्यक है।
- छिलकों के साथ उसके छोटे-छोटे टुकड़े करना चाहिए या उसे कद्दूकस कर लीजिए।
- लौकी के टुकड़ों में 5-7 तुलसी के पत्ते डालिए।
- उसी में 5-7 पत्ते पुदीने के डालिए।
- 4-5 काली मिर्च की पाउडर मिलाइए।
- स्वाद के लिए सेंधा नमक नाममात्र डालिए। (नमक मिलाना आवश्यक नहीं है, ब्लड प्रेशर के रुग्ण नमक का प्रयोग न करें।)
- यह पूर्ण मिश्रण मिक्सर में डालकर उसमें थोड़ा सा पानी मिलाकर ताजा रस निकालिए।
- पतले कपड़े से या बारीक छलनी से रस को अच्छी तरह से छान लीजिए।
लौकी के सभी हिस्सों से संपूर्ण रस प्राप्त करने हेतु इसमें पानी मिलाना है,अन्यथा रस निकालकर उसमें समभाग पानी मिलाना चाहिए।
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लौकी का रस सेवन विधि :
- जो भी रुग्ण हृदयरोग से बहुत ज्यादा पीड़ित है तथा विशेषज्ञ डॉक्टर ने उन्हें बायपास कराने की सलाह दी है, ऐसे रुग्णों को यह दिन में तीन बार लेना है।
- यह रस नाश्ते के बाद, दोपहर के खाने के बाद तथा रात्रि के भोजन के आधे घंटे के बाद लेना चाहिए, जिससे पचनक्रिया होते समय यह रस रक्त के साथ मिलकर अधिक क्रियाशील होता है।
- हृदयरोग अल्प मात्रा में होने से, दोनों समय के भोजन के आधे घंटे के बाद रस सेवन करना उपयुक्त होता है।
- अन्य लोगों ने (जिन्हें यह विकार नहीं है) कम से कम एक बार भोजन के आधे घंटे बाद यह रस लेना विशेष लाभदाई होता है।
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रस विषयक कुछ सावधानियाँ :
- लौकी हमेशा ताजी होनी चाहिए।
- वह कड़वी न हो यह चखकर देख लें।
- हर समय ताजा रस निकालना जरूरी है।
- एक ही बार रस निकालकर उसे फ्रीज में रखकर आवश्यकतानुसार उसका प्रयोग न करें।
- इमली, नींबू जैसी खट्टी चीजों का कम से कम प्रयोग करें। पूर्णतः बंद करने की आवश्यकता नहीं है।
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कुछ विशेष सूचनाएँ :
- आपकी व्याधि के लिए जो भी दवाइयाँ ले रहे हैं, उन्हें जारी रखते हुए लौकी रस प्रयोग करना है।
- रोज नियमित रूप से पैदल चलने का व्यायाम करें।
- पैदल चलने की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाएँ।
- थकने पर, थोड़ा रुककर, विश्राम करके फिर से चलना चाहिए।
- माह दो माह पश्चात परीक्षण करवा लें।
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