Last Updated on December 2, 2019 by admin
अतीस क्या है ? : Atish (atis) in Hindi
अतीस के पौधे हिमालय में कुमायू से हसोरा तक, शिमला और उसके आस-पास तथा चम्बा में बहुत होते हैं । इसका पौधा एक से तीन फुट तक ऊँचा होता हैं। उसकी डण्डी सीधी और पत्तेदार होती है, इसके पत्ते दो से चार इञ्च तक चौड़े और नोकदार होते हैं । डण्डों की जड़ से शाखाएँ निकलती हैं। इसके पुष्प बहुत लगते हैं। वे एक या डेढ़ इञ्च लम्बे, चमकदार, नीले या पीले, कुछ हरे रङ्ग के बैगनी धारी वाले होते हैं। इसके बीज चिकने-छाल वाले और नोकदार होते हैं। इसके नीचे डेढ़ दो इञ्च लम्बा और प्रायः आधा इञ्च मोटा कन्द निकलता है । इसी को अतीत कहते हैं । इसका आकार हाथी की सूड़ के सदृश होता है जो ऊपर से मोटा और नीचे की ओर से पतला होता चला आता है । यह बाहर से खाकी और भीतर से सफेद रङ्ग का होता है । इसका स्वाद कसेला होता है । अतीस सफेद, काला और लान तीन प्रकार का होता है । इसमें से सफेद अधिक गुणकारी होता है ।
अतीस का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Atees (atis) in Different Languages
Atees in –
✦ संस्कृत – विषा, अतिविषा
✦ हिन्दी – अतीस
✦ मराठी – अतिविष
✦ गुजराती – अति बखनी कली
✦ बंगला – आतइच
✦ तेलगू – अतिबसा
✦ कन्नड़ – अति विषा
✦ तामिल – अति विषम
✦ पंजाबी – अतीस
✦ फारसी – बज्जे तुर्की
✦ इंगलिश – इण्डियन अतीस (Indian Atees)
✦ लैटिन – एकोनाइटम हेटरोफाइलम (Aconitim heterophylum)
अतीस के उपयोग : Atees Uses in Hindi
☛ यह जड़ी त्रिदोष शामक है।
☛ अत्यन्त कड़वा होने के कारण कफ और पित्त का तथा उष्ण होने से वात का शमन करने वाली होती है।
☛ इन तीनों गुणों के कारण यह दीपन, पाचन, ग्राही, अर्शनाशक, कृमि नाशक, आम पाचन, रक्त शोधन तथा शोथ हर के कार्य करने वाली होती है अतः इन व्याधियों को दूर करने वाली औषधि बनाने में इसका उपयोग किया जाता है।
☛ अतीस बालकों के कई रोगों में बहुत उपयोगी व लाभप्रद सिद्ध होती है अतः इसे ‘शिशु भैषज्य’ कहा जाता है। बच्चों के लिए जितनी भी घुटियां बाज़ार में मिलती हैं उन सब में अतीस ज़रूर होती है।
☛ यह एक निरापद जड़ी है अतः इसका सेवन निर्भीक होकर किया जा सकता है।
औषधि के रूप में इसके घरेलू उपयोग का विवरण प्रस्तुत है।
अतीस की सेवन विधि और मात्रा : Dosage of Atees
इसकी मात्रा 1 या 2 रत्ती की है। इसे सुबह शाम शहद में मिला कर या दूध के साथ लेना चाहिए। इसका फाण्ट भी बनाया जाता है। आमातिसार होने पर इसका फाण्ट 2-2 चम्मच दिन में तीन बार लेना चाहिए।
फाण्ट बनाने की विधि –
एक चम्मच (5 ग्राम) अतीस आधा गिलास उबलते पानी में डाल कर घोल दें और ढक्कन से ढक दें। इसमें चाय पत्ती डालना चाहें तो डाल सकते हैं और शक्कर भी डाल दें। 20-25 मिनिट बाद इसे उतार कर थोड़ा ठण्डा करके छान लें और बराबर वजन में दूध मिला लें। यह फाण्ट है।
अतीस के औषधीय गुण और प्रभाव : Atish ke Gun in Hindi
आयुर्वेदिक मत –
✥ भावप्रकाश के मतानुसार अतीस गरम, चरपरा, कड़वा, पाचक, जठराग्नि को दीपन करने वाला तथा कफ, पित्त, अतिसार, आम, विष, खांसी और कृमिरोग को नष्ट करने वाला है।
✥ निघण्टु रत्नाकर के मतानुसार अतीस किञ्चित् उष्ण, कड़वा, अग्निदीपक, ग्राही, त्रिदोष-पाचक तथा कफ, पित्त, ज्वर, आमातिसार, खांसी, विष, यकृत, वमन, तृषा, कृमि, बवासीर, पीनस, पित्तोदर और सर्व प्रकार की व्याधि को नष्ट करने वाला है ।
यूनानी मत –
✥यूनानी मत के अनुसार यह दूसरी कक्षा में गर्म और पहली कक्षा में रूक्ष है।
✥ यह काबिज और अमाशय के लिए हानिकारक है ।
✥इसके अतिरिक्त यह कामोद्दीपक, क्षुधावर्धक, ज्वरप्रतिरोधक, कफ तथा पित्तजन्य विकारों को नाश करने वाला तथा बवासीर, जलोदर, वमन और अतिसार में लाभ करने वाला है ।
रासायनिक विश्लेषण –
✥इसके अन्दर अतिसीन ( Atisine ) और एकोनाइटिक एसिड ( Aconitic Acid ) तथा टेनिन एसिड नामक क्षार और आलीइक, पामीटिक, स्टीयरिक, ग्लिसराइट्स सुगर और वानस्पतिक लुआब इत्यादि द्रव्य होते हैं ।
आधुनिक अन्वेषण –
✥डाक्टर कोमान के मत से अतीस की जड़ ने भयंकर पेचिश के रोगियों को तन्दुरुस्त किया और आंतों की सूजन के पुराने रोगियों को भी ठीक किया ।
✥कर्नल चोपरा के मतानुसार इसकी जड़ सामयिक ज्वरनिवारक, संकोचक, कामोतेजक और पौष्टिक होती है । इसमें क्षार की मात्रा भी अधिक होती है । इसकी मात्रा एक से दो ड्राम तक अर्थात् तीन से छः माशे तक है । ढाई ड्राम तक यह सर्वथा निरापद है ।
✥सुश्रुत, वाग्भट इत्यादि आचार्यों ने इसकी जड़ को सर्प और बिच्छु के विष को नष्ट करने वाली माता हैं। मगर आधुनिक खोजों के अनुसार इस सम्बन्ध में यह निरुपयोगी सिद्ध हुई है ।
•उपर्युक्त अवतरणों से यह बात मालूम होती है कि यह औषधि अग्नि को दीप्त करने वाली तथा ज्वर, खून की दस्ते और पेट के कृमियों को नष्ट करने में अद्भुत शक्ति रखती है ।
• इसके अतिरिक्त बालकों के तमाम रोगों पर यह औषधि अमृतोपम अक्सीर सबित हुई है। बालकों की बुखार, खांसी, दस्ते, सर्दी, अजीर्ण, उल्टी, कृमि, कफ, यकृत की वृद्धि इत्यादि तमाम रोगों को यह औषधि नष्ट करती है । आइए अतीस से होने वाले लाभ आपको बताएं ।
अतीस के फायदे व इससे रोगों का उपचार : Atish Ke Fayde Hindi Mein
ज्वर ठीक करे अतीस का प्रयोग (Atees Benefits in Cures Fever in Hindi)
- ज्वर आने के पहले इसके दो माशे की फंकी चार २ घण्टे के अन्तर से देने से ज्वर उतर जाता है ।
- बड़ी आयु वाले स्त्री-पुरुष या प्रसूता स्त्री को ज्वर हो तो विषम ज्वर में, ज्वर को रोकने और बढ़े हुए ज्वर को उतारने के लिए अतीस का चूर्ण 1-1 रत्ती, गर्म पानी के साथ सुबह शाम दें।
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विषम ज्वर में अतीस के प्रयोग से लाभ (Atees Benefits in Asymmetric fever Treatment in Hindi)
विषमज्वर, जूड़ी बुखार और पाली के बुखार में इसके चूर्ण को छोटी इलायची और वंशः लोचन के चूर्ण में मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है ।
अतिसार रोग में अतीस से फायदा (Atees Benefits to Cure Diarrhea in Hindi)
अतिसार और आमातिसार में दो माशे चूर्ण को फंकी देकर आठ पहर की भिगी पई दो माशे सोंठ को पीसकर पिलाना चाहिए ।
( और पढ़े – दस्त रोकने के रामबाण 13 देशी इलाज )
कृमिरोग में अतीस का उपयोग फायदेमंद (Atees Uses to Cure Worm Disease in Hindi)
- इसके चूर्ण में वायविडंग का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से कृमिरोग दूर होता है ।
- बच्चों के पेट में छोटे-छोटे कृमि हो गये हों तो अतीस और वायविडंग का महीन पिसा चूर्ण मिला कर शीशी में भर लें। यह चूर्ण 22 रत्ती सुबह शाम शहद में मिला कर या दूध के साथ बच्चे को दें। तीन दिन यह प्रयोग करने के बाद चौथे दिन सोते समय एक कप गरम दूध में एक चम्मच एरण्ड तैल (Castor oil) डाल कर पिलाने से कृमि मल के साथ निकल जाते हैं।
कृमि के कारण यदि बच्चे को बुखार खांसी और रक्त की कमी की भी शिकायत हो तो ये व्याधियां भी समाप्त हो जाती हैं।
बालकों का ज्वर मिटाए अतीस का उपयोग (Atees Cures Fever in children in Hindi)
अतीस का चूर्ण 1-1 रत्ती (1 रत्ती = 0.1215 ग्राम) , दिन में तीन बार शहद में मिला कर चटाएं। शिशु को माता के दूध में मिला कर दें। ज्वर के साथ जुकाम, उलटी और बार-बार पतले दस्त लगना आदि शिकायतें भी ठीक होती हैं।
आमातिसार में अतीस का उपयोग लाभदायक (Atees Uses to Cures Bische in Hindi)
अतीस कटु और पौष्टिक होती है अतः आमातिसार रोग के लिए उपयोगी सिद्ध होती है। दस्त में आम (आंव) जाता हो, पतला दुर्गन्धयुक्त दस्त बार-बार होता हो, मल का रंग सफेद हो तो अतीस और सोंठ का महीन पिसा चूर्ण 2-2 ग्राम, अतीस की फाण्ट के साथ दिन में तीन बार लेना चाहिए। बालकों को ऐसी व्याधि हो तो अतीस का सेवन 1-1 रत्ती मात्रा में देने से मल का रंग पीला हो जाता है आम का पाचन होने लगता है जिससे मल विसर्जन ठीक समय पर और ठीक तरह से होने लगता है और अतिसार होना बन्द हो जाता है, दस्तों की दुर्गन्ध दूर हो जाती है।
संग्रहणी में अतीस के इस्तेमाल से फायदा (Atees Benefits to Cure Diarrhea in Hindi)
पाचनशक्ति बिल्कुल काम न करती हो, बार-बार पतले और बदबूदार दस्त लगते हों और मल के साथ, आहार पदार्थों के टुकड़े निकलते हों तो अतीस, सोंठ और इन्द्र जौ- इन तीनों को 20-20 ग्राम लेकर खूब बारीक चूर्ण कर लें। यह चूर्ण 3 ग्राम एक गिलास चावल के धोवन के साथ सुबह शाम दें।
बच्चों में अग्निमांद्य रोग में अतीस से फायदा (Benefits of Atees in Indigestion Disease Treatment in Hindi)
बच्चों को मन्दाग्नि होने पर वे दूध कम पीते हैं, पतला दुर्गन्ध युक्त दस्त होता है, बच्चे सुस्त बने रहते हैं, पेट में दर्द होता रहता है जिससे बच्चा अक्सर रोता रहता है। इस व्याधि को दूर करने के लिए अति विषादि वटी 1-1 गोली सुबह शाम पानी के साथ देते रहने से बच्चा फुर्तीला, सशक्त और स्वस्थ हो जाता है।
बालरोग मिटाए अतीस का उपयोग (Atees Cures Child Disease in Hindi)
( १ ) अकेली अतीस को पीसकर चूर्ण कर शीशी में भरकर रखना चाहिए । बालकों के तमाम रोगों के ऊपर आंख मीचकर इसका व्यवहार करना चाहिये । इससे बहुत लाभ होता है । बालक की उम्र को देखकर इसे एक से चार रत्ती तक शहद के साथ चाटना चाहिए ।
( २ ) अतीस, काकडासिंगी, नागरमोथा और बच्छ चारो औषधियों का चूर्ण बनाकर ढाई रत्ती से १० रत्ती तक की खुराक में शहद के साथ चटाने से बालकों की खांसी, बुखार, उल्टी, अतिसार वगैरह दूर होता है ।
( ३ ) अतीस, नागरमोथा, पीपर, काकड़ासिगी और मुलेठी इन सब को समान भाग लेकर चूर्ण करके ४ रत्ती से ६ रत्ती की मात्रा में शहद के साथ चटाने से बच्चों की खांसी, बुखार व अतिसार बन्द होता है ।
(४) अतीस और वायबिडङ्ग का समान भाग चूर्ण शहद के साथ चटाने से बच्चों के कृमि नष्ट होते हैं ।
अतीस का बहुत ही लाभप्रद घरेलू नुस्खा :
जन्म से ले कर दो वर्ष तक की आयु के शिशु के उदर विकारों जैसे क़ब्ज़ रहना, मल सूखा होना या बार बार पतले और बदबूदार दस्त होना, पेट फूलना व दर्द होना, भूख कम हो जाना, खाने में अरुचि होना आदि को दूर करने के लिए एक घरेलू नुस्खा । यह नुस्खा हजारों शिशुओं को रोगमुक्त करके सुडौल बनाने में हर बार सफल सिद्ध हुआ है।
यह नुस्खा हमें आयुर्वेद शास्त्र’ के हमारे वैध स्व. कविराज सीतारामजी अजमेरा ने बताया था। वे स्वयं इस घरेलू नुस्खे का प्रयोग शिशुओं को करवाते थे। नुस्खा इस प्रकार है-
अतीस, नागरमोथा, काकड़ासिंगी, सोंठ और आम की गुठली से निकलनेवाली गिरी (मींगी) इन पांचों द्रव्यों को साबुत (यानी बिना कूटे पिसे ) बारी बारी से एक-एक द्रव्य को पानी के साथ, पत्थर पर चन्दन की तरह 20 या 25 बार घिस कर पूरा लेप कटोरी में उतार लें। इसे अंगुली से खूब अच्छी तरह से घोल लें फिर चाय वाले चम्मच से आधा चम्मच घोल लें और एक चम्मच पानी में मिला कर बच्चे को पिला दें और बाकी बचे घोल को फेंक दें यानी रोजाना ताज़ा घसारा तैयार करें और सिर्फ आधा चम्मच घोल लेकर बाकी घोल फेंक दें। यह घोल सिर्फ एक बार दोपहर में बच्चे को पिलाना है। यह प्रयोग कम से कम 21 दिन तक करें फिर जब जब पेट में विकार पैदा हो तब तब इस नुस्खे का प्रयोग शुरू कर दें और आराम होने पर प्रयोग बन्द कर दें।
अनीस के निर्मित आयुर्वेदिक दवा (योग) :
जिन प्रसिद्ध आयुर्वेदिक योगों के घटक द्रव्यों में अतीस भी शामिल है उन योगों का संक्षिप्त परिचय आपकी ज्ञानवृद्धि के लिए यहां प्रस्तुत कर रहे हैं।
अतिविषादि वटी –
अतीस, नागरमोथा, काकड़ासिंगी, करंज 10-10 ग्राम लेकर कूट पीस कर खूब महीन चूर्ण बना लें। कूड़ा की छाल का काढ़ा बना कर , यह चूर्ण डाल कर खरल में घुटाई करके, एक-एक रत्ती की गोली बना लें। आधी-आधी गोली दिन में तीन बार पानी या दूध के साथ दें। बच्चों के उदर विकारों के लिए यह योग उत्तम है।
चन्द्रप्रभावटी विशेष नं.1 –
यह आयुर्वेद का सुप्रसिद्ध योग है जिसमें अतीस के साथ शुद्ध शिलाजीत, नागरमोथा, कबाब चीनी आदि घटक द्रव्यों के अलावा अन्य गुणकारी द्रव्य भी मिलाये जाते हैं। यह योग मूत्र और वीर्य सम्बन्धी रोगियों के लिए बहुत गुणकारी सिद्ध हुआ है। यह प्रमेह और मधुमेह के रोगी के लिए भी अति लाभप्रद सिद्ध हुआ है। इस वटी का लगातार 2-3 मास तक सेवन करने से शरीर पुष्ट होता है, पौरुष शक्ति बढ़ती है, नपुंसकता, स्वप्नदोष, शीघ्रपतन, इन्द्रिय शिथिलता आदि शिकायतें दूर होती हैं।
मन्मथ रस –
आयुर्वेद के इस सुप्रसिद्ध बल वीर्य शक्तिवर्द्धक और वाजीकारक योग में भी अतीस का उपयोग किया जाता है। यह योग धातु पौष्टिक, स्तम्भन शक्ति बढ़ाने वाला और नपुंसकता का नाश करने के लिए प्रसिद्ध है।
इन सुप्रसिद्ध श्रेष्ठ आयुर्वेदिक योगों के अतिरिक्त पंचतिक्तघृत गुग्गुलु, पंचनिम्बादि वटी, रक्त शोधान्तक आदि रक्त विकार, फोड़े, फुसी नाशक योग, कृमिनाशक कृमिनोल सीरप और टेबलेट, वातरोगनाशक योगराज गुग्गुलु, महायोगराज गुग्गुलु और ज्वरनाशक ज्वरान्तक वटी जैसे प्रसिद्ध योगों में अतीस को एक प्रमुख घटक द्रव्य के रूप में शामिल किया गया है।
अतिविषादि अर्क –
अतीश, नागरमोथा, मुलेठी, काकड़ासिगी, पीपर, वच, बायबिडङ्ग, जायपत्री, जायफर, केशर ये सब वस्तुएँ एक एक रुपये भर लेकर चूर्ण कर उसमें ३ माशे कस्तूरी मिलाकर उस चूर्ण को कांच के काग वाली स्टॉपर्ड बाटली में भरकर उसमें ४० रूपये भर रेक्टीफाइड स्पिरिट डाल कर काग लगाकर ७ दिन तक धूप में रखना चाहिये । आठवें दिन दवा को मसल कर ब्लाटिंग पेपर में छान लेना चाहिये । इस दवा में से १ बूंद से लेकर १० बूंद तक अवस्थानुसार पानी या मां के दूध में मिलाकर देने से बच्चों को होने वाली सर्दी, बुखार, खांसी कफ निमोनिया, कमजोरी, बेहोशी तथा शीतकाल में बालकों के ऊपर होने वाले अनेक भयंकर रोग आराम होते हैं ।
( और पढ़े –बच्चों के रोग और उनका घरेलू इलाज )
अतीस के नुकसान : Side Effect of Atish In Hindi
- अतीस केवल चिकित्सक की देखरेख में लिया जाना चाहिए।
- अतीस का अधिक मात्रा में उपयोग करना आमाशय और आंतों के लिए हानिकारक होता है, अत: इसके हानिकारक प्रभाव को नष्ट करने हेतु शीतल वस्तुओं का सेवन करना चाहिए।
(दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)