Last Updated on February 24, 2024 by admin
आयुर्वेद के अनुसार स्वस्थ होने की व्याख्या है –
समदोषः समाग्निश्च समधातुमलक्रिया
प्रसन्नात्मेंद्रिय मनः स्वस्थ इत्यभिधीयते।।
शरीर के त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) सम अवस्था में होना, अग्नि (जठराग्नि), सप्त धातु इनकी साम्यता होना और मलों का (मूत्र, पुरिष, स्वेद) ठीक प्रकार से विसर्जन होना, इंद्रिय तथा मन प्रसन्न रहना ये सब स्वस्थ होने के लक्षण बताए हैं। फिर यह सब प्राप्त करने के लिए दिनचर्या, ऋतुचर्या का विस्तार से किया हुआ वर्णन आयुर्वेद में मिलता है।
आयुर्वेद के अनुसार सुबह नींद से उठने के बाद रात तक किस तरह आचरण होना चाहिए इसका विश्लेषण दिनचर्या में दिया गया है।
आयुर्वेद के अनुसार दिनचर्या (Ayurved ke Anusar Dincharya in Hindi)
स्वस्थ और निरोगी रहने के लिए अपनाएं आयुर्वेद के अनुसार दिनचर्या के यह नियम, फिर रोग आपको छू भी नहीं सकता।
1) ब्रह्म मुहूर्त में जागरण : ब्रह्म मुहूर्त पर मतलब सुबह ४-६ के बीच नींद से उठना चाहिए। इस वक्त हवा शुद्ध होती है और शरीर व मन दोनों प्रसन्न रहते हैं।
2) उषःपान : रात को तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी सुबह पीना चाहिए। इससे पित्त, मलबद्धता में आराम मिलता है। ( और पढ़े – सुबह बासी मुंह तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने के फायदे )
3) मलमूत्र विसर्जन : आयुर्वेद में दोषों के बराबर मलों को भी विशेष महत्त्व दिया है। क्योंकि मलविसर्जन ठीक तरीके से हुआ तो ही जठराग्नि अच्छा रहता है। पाचन अच्छा होता है और स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है।
4) दंतधावन : दाँतों का स्वास्थ्य अच्छा रहने के लिए विशेष कषाय (कसैले) पौधों का इस्तेमाल बताया गया है। जैसे : नीम, अर्जुन इत्यादि। इससे दाँत और मसूढ़े मजबूत होते हैं। मुँह का चिपकना दूर होता है।
5) जिव्हानिर्लेखन : जिव्हा या जुबान हमारे पाचन का आइना है। साफ जुबान आपके अच्छे पाचन का संकेत है। इसलिए जुबान घिसकर साफ रखें।
6) व्यायाम : हर दिन व्यायाम आवश्यक है। इससे शरीर मज़बूत होता है और लचीलापन आता है। ( और पढ़े – व्यायाम करने के तरीके और उनके लाभ )
7) अभ्यंग : पूरे शरीर को तेल से मसाज करें । त्वचा मुलायम, तेजस्वी बनती है। जोड़ों को मज़बूती मिलती है।
8) शिरोभ्यंग : बालों में तेल लगाने से बालों का स्वास्थ्य बढ़ता है।
9) उद्वर्तन : तेल का मसाज होने के बाद त्वचा को तेजस्वी बनानेवाली औषधि चूर्ण जैसे – चंदन, आँबी हल्दी, मसूर इत्यादि शरीर पर लगाएँ। इससे त्वचा को सौंदर्य प्राप्त होता है।
10) स्नान : स्नान करने से त्वचारोग नहीं होते। थकान दूर होती है। ( और पढ़े – स्नान करने के जरुरी नियम )
11) आराधना : ईश्वर की प्रार्थना और पूजा करें। इससे मन का सत्वगुण बढ़ता है।
12) नस्य : नाक में 2-2 बूंद अणु तेल डालें। इससे गरदन के ऊपरी हिस्से को बल मिलता है। इंद्रिय विकार टल जाते हैं। ( और पढ़े – नाक में देशी गाय के घी को डालने से मिलेंगे यह 6 जबरदस्त फायदे )
13) कवल, गंडूष : मुँह में पानी लेकर गरारा करें। इससे मुँह के, दाँतों के तथा गले के विकार नहीं होते।
14) कर्णपूरण : हर दिन कान में औषधी युक्त तेल या घी की 3-4 बूंद डालें। इससे कर्णविकार टल जाते हैं । वात का नियमन होता है।
15) आहार : ऋतु के अनुसार आहार लें। योग्य मात्रा में संतुलित आहार का सेवन करें। ( और पढ़े – भोजन करने के 33 जरुरी नियम )
ऐसी दिनचर्या बनाई तो बीमारी हमारे आस-पास आएगी भी नहीं । स्वास्थ्य तो बना ही रहेगा।
दिनचर्या के अनुसार ऋतुचर्या का पालन भी आवश्यक है। मतलब ऋतु के अनुसार आहार, विहार में परिवर्तन किया तो दोषों की साम्यता बनी रहती है। इस तरह, आयुर्वेद के नियमों का पालन करने से शारीरिक स्वास्थ्य 100% बना रहता है।