Last Updated on March 19, 2021 by admin
बसंत तिलक रस क्या है ? (What is Basant Tilak Ras in Hindi)
बसंत तिलक रस टेबलेट के रूप में उपलब्ध एक आयुर्वेदिक दवा है। इस आयुर्वेदिक औषधि का विशेष उपयोग वात रोग, अपस्मार, उन्माद (पागलपन), प्रमेह, बहुमूत्र, मधुमेह, वीर्य विकार तथा शुक्रदोष के उपचार के लिए किया जाता है।
यह आयुर्वेदिक औषधि दिल तथा दिमाग को बल प्रदान करती है तथा मानसिक तनाव को दूर कर अच्छी नींद लाने में मदद करती है।
यह योग अत्योत्कृष्ट औषधियों का मिश्रण है और इसका प्रभाव शरीर के उत्तमाङ्गों मस्तिष्क, हृदय, फेफड़ों (फुफ्फुस), लिवर (यकृत), किडनी आदि अवयवों पर बल वर्द्धक रसायन के रूप में होता है।
घटक और उनकी मात्रा :
- लोह भस्म शतपुटी – 10 ग्राम,
- वंग भस्म (विजया मारित) – 10 ग्राम,
- स्वर्ण माक्षिक भस्म – 10 ग्राम,
- स्वर्ण भस्म (शतपुटी) – 10 ग्राम,
- अभ्रक भस्म – 10 ग्राम,
- प्रवाल भस्म – 10 ग्राम,
- रौप्य भस्म – 10 ग्राम,
- मुक्ता भस्म – 10 ग्राम,
- जायवत्री – 10 ग्राम,
- जायफल – 10 ग्राम,
- दालचीनी – 10 ग्राम,
- छोटी इलायची – 10 ग्राम,
- तेज पत्र – 10 ग्राम,
- नाग केशर – 10 ग्राम।
भावनार्थ : त्रिफला क्वाथ आवश्यकतानुसार।
प्रमुख घटकों के विशेष गुण :
- लोह भस्म : रक्तवर्धक, बल्य (बलकारक), बृष्य (पुरुषत्व बढ़ाने वाला), रसायन।
- वंग भस्म : बल्य, बृष्य, अण्डकोष, बलवर्धक, रसायन ।
- स्वर्ण माक्षिक भस्म : विषघ्न (विष नाशक), कुष्टघ्न, प्रमेहघ्न, बल्य, बृष्य, रसायन।
- स्वर्ण भस्म : सर्व रोग हर, योग वाही, बल्य, बृष्य, वर्ण्य, रसायन।
- अभ्रक भस्म : मज्जा धातु प्रसादक, बल्य, बृष्य, रसायन ।
- प्रवाल भस्म : हृद्य (ह्रदय के लिए लाभप्रद), दाह नाशक, बल्य, विषघ्न, पित्त शामक।
- रौप्य भस्म : नाड़ी तन्त्र बल कारक, बल्य, बृष्य, मेध्य (बुद्धि बढ़ानेवाला), रसायन।
- मुक्ता भस्म : हृदय, दाह शामक, बल्य, बृष्य, मनः प्रसादक।
- जायवत्री : दीपन, पाचन, सुगन्धित, मलवातानुलोमक।
- जायफल : दीपन, पाचन, स्तम्भक, उष्ण, आम पाचक।
- चतुर्जात : सौगन्ध्य, दीपन, पाचन, हृदय, मलवातानुलोमक।
बसंत तिलक रस बनाने की विधि :
सर्व प्रथम जायफल, जायवत्री एवं चतुर्जात को खरल में अतिसूक्ष्म पीस लें फिर सभी भस्में मिलाकर एक दिन दृढ़ हाथों से खरल करवाएं। दूसरे दिन प्रात: त्रिफला क्वाथ मिलाकर एक दिन खरल करके 100 मि.ग्रा. की वटिकाएँ बनवा कर छाया में सुखा कर सुरक्षित कर लें।
बसंत तिलक रस की खुराक (Dosage of Basant Tilak Ras)
मात्रा : एक गोली प्रातः सायं भोजन से पूर्व ।
अनुपान : रोगानुसार मधु, दूध अथवा अन्य अनुपान।
बसंत तिलक रस के फायदे और उपयोग (Benefits & Uses of Basant Tilak Ras in Hindi)
बसंत तिलक रस के कुछ स्वास्थ्य लाभ –
1). वात रोग में बसंत तिलक रस का उपयोग फायदेमंद
वात बड़ा व्यापक दोष है वात दुष्टि के कारण अनेक रोगों की उत्पत्ती सम्भव है, ननात्मज रोगों में सर्वाधिक 80 रोग वातननात्मज गिनाए हैं यदि वात के साथ पित्त और कफ के अनुबन्ध का भी विचार किया जाए तो यह संख्या सहस्रों तक पहुँच जाती है और यदि धातुओं, मलों इत्यादि के अनुबन्धों को सम्मिलित किया जाए तो वात रोग असंख्य हो जाते हैं।
अत: वात रोगों को रसगत वात (आमवात) रक्तगत वात (वात रक्त) मांसगत वात (पेशी वेदना, मस्क्यूलर पेन) मेदगत वात (स्थौल्य चुल्लिका ग्रथिस्राव हीनत्व) अस्थिगत वात (सन्धिवात) मज्जागत वात (मज्जा अर्कमन्यता वोन मैरो डिप्रेशन) और शुक्रगत वात (शीघ्र पतन-हर्षाभाव), नाड़ीगत वात (तन्त्रिका जन्य रोग) में विभाजित किया गया है।
बसंत तिलक रस का कार्यक्षेत्र, सभी वात रोगों में हैं परन्तु इसका विशेष प्रभाव क्षेत्र तन्त्रिका जन्य वात रोगों पर है, उनमें भी संज्ञा वह नाड़ियों पर इस महौषधि का सर्वाधिक प्रभाव होता है। एक गोली प्रात: सायं मधु से चटाने से इसका लाभ शीघ्रपतन, अर्धाङ्ग घात (दाहिने या बाएँ सब अंग बिलकुल सुन्न हो जाते हैं), साइटिका (गृध्रसी), मन्या स्तंभ (गले की मन्या शिरा कड़ी हो जाती है और गरदन इधर उधर नही घूम सकती), शरीर स्तम्भ (स्टिफनैस) इत्यादि रोगों में तीन दिन के भीतर ही लाभ दृष्टिगोचर होने लगता है।
सहायक औषधियों में – चतुर्भुज रस, रस राज रस, बृहद्वात चिन्तामणि रस, कृष्ण चतुर्मुख रस, रास्नादि क्वाथ, दशमूल क्वाथ, नारायण चूर्ण, व्योषाद्य वटी इत्यादि का प्रयोग भी करवाना चाहिए।
( और पढ़े – वात रोग का आयुर्वेदिक इलाज )
2). मिर्गी (अपस्मार) में बसंत तिलक रस के इस्तेमाल से फायदा
जैसा कि ऊपर पढ़ चुके हैं कि बसंत तिलक रस का प्रभाव क्षेत्र वात नाड़ी संस्थान और विशेष रूप से संज्ञा वाहिनि नाड़ियों पर इस महौषधि का प्रभाव सर्वाधिक होता है । मिर्गी में विकृति संज्ञा वाहिनियों की होती है और विकृत दोष होता है वात, अतः बसंत तिलक रस की एक मात्रा प्रातः सायं बचा क्वाथ में मधु का प्रक्षेप देकर पिलाने से अपस्मार के आक्रमण बाधित होते हैं और धीरे-धीरे एक वर्ष में रोग से छुटकारा मिलं जाता है।
ध्यान रहे आक्रमण काल में इस औषधि का उपयोग नहीं होता। विराम काल में इसके सेवन से पूर्व रोगी का स्नेहन करवा कर विरेचन अवश्य करवा देना चाहिए।
सहायक औषधियों में – ब्राह्मीवटी (स्वर्णयुक्त) , आरोग्य वर्धिनी वटी, स्मृति सागर रस, चैतन्योदय रस, उन्माद गज केशरी, सारस्वत चूर्ण, सारस्वतारिष्ट इत्यादि का प्रयोग भी करवाना चाहिए।
( और पढ़े – डरें नहीं जानिये मिर्गी के कारण और बचाव के आसान उपाय )
3). उन्माद (पागलपन) मिटाए बसंत तिलक रस का उपयोग
बसन्त तिलक रस का प्रभाव मन पर भी सकारात्मक होता है। यह वात नाशक होने के कारण मन को नियंत्रित करता है। “इन्द्रीयाणां मनोनाथं मनः नाथस्तु मारुतः” के अनुसार वात नियन्त्रित होने से मन भी नियन्त्रित होने लगता है अत: उन्माद की चिकित्सा में बसन्त तिलक रस का उपयोग अवश्य करवाना चाहिए।
इस महौषधि की एक वटिका प्रातः सायं मांस्यादि क्वाथ के साथ प्रयोग करवाने से तीन दिवस के भीतर रोग की उग्रता कम होने लगती है, अधिक उग्र रोगियों को दिन में तीन से चार मात्रा दे सकते हैं।
सहायक औषधियों में – उन्माद गजकेसरी, चैतन्योदयरस, योगराज गुग्गुलु, स्मृति सागर रस, आदी में से एक या दो औषधियों का प्रयोग करवाएं।
उन्माद में शोधन चिकित्सा अति महत्त्वपूर्ण है, अतः पूर्ण पंचकर्म अथवा पंचकर्म के जितने कर्म सम्भव हो अवश्य करवाने चाहिएं।
( और पढ़े – उन्माद गजकेशरी रस के फायदे और उपयोग )
4). प्रमेह में लाभकारी बसंत तिलक रस
अपने रसायन प्रभाव के कारण बसन्त तिलक रस मधुमेह समेत सभी प्रमेहों के लिए उपकारी औषधि है। यह अग्निवर्धक, प्रमेह नाशक, रक्तादिधातु वर्धक एवं रसायन गुण सम्पन्न औषधि है।
एक गोली प्रात: सायं निशामलकी क्वाथ के अनुपान से देने से एक सप्ताह में लाभ दिखता है।
सहायक औषधियों में – चन्द्र प्रभावटी, मेहमुग्दर रस, वृहद्वंगेश्वर रस, सर्वेश्व रस, इत्यादि में से किसी एक या दो औषधियों की सहायता भी लेनी चाहिए। चिकित्सावधि चालीस दिन।
5). हृदय रोग में बसंत तिलक रस फायदेमंद
हृत्पेशी दुर्बलता एवं हृदय गति से सम्बन्धित हृदय रोगों में बसन्त तिलक रस एक उत्तम औषधि है इसके सेवन से हृत्पेशी को बल मिलता है अत: हृदय का संकुचन प्रसारण नियमित होता है फल स्वरूप नाड़ी की गति भी नियमित हो जाती है। रक्त क्षेपण सुचारु रूप से होने लगता है । अतः रोगी को घबराहट, क्षीणता, शिरोभम्र, तमः प्रवेश इत्यादि लक्षणों से मुक्ति मिलती है।
सहायक औषधियों में – विश्वेश्वर रस, चिन्तामणि रस, जवाहर मोहरा, खमीरा गावजवान अम्बरी, खमीरा मरवारीद इत्यादि में से किन्हीं दो औषधियों की सहायता भी अवश्य लेनी चाहिए। चिकित्साकाल 40 दिन।
( और पढ़े – हृदय रोग (दिल की बीमारी) के घरेलू उपचार )
6). शुक्र क्षय में बसंत तिलक रस के सेवन से लाभ
अति मैथुन जन्य शुक्रक्षय और उससे सम्बंधित कृशता, हर्षा भाव, शिर शूल, अण्ड कोष शूल, हृद्द्व, उत्साह हीनता इत्यादि लक्षण मिलने पर बसन्त तिलक रस एक गोली प्रातः सायं मलाई में लपेट कर खिला दें, अनुपान में मिश्री मिला दूध दें, एक सप्ताह के भीतर ही लक्षणों में सुधार दिखाई देने लगता है । पूर्ण लाभ के लिए चालीस दिनों तक औषधि प्रयोग अपेक्षित होता है।
सहायक औषधियों में – शुक्रवल्लभ रस, शुक्रमात्रिकावटी, काम चूड़ामणि रस, वसन्त कुसुमाकर रस, मकरध्वज वटी, गोक्षुरादि चूर्ण, अश्वगंधादि चूर्ण, कौंच पाक इत्यादि कल्पों में से किसी एक का प्रयोग भी अवश्य करवाएँ।
चिकित्सा काल में ब्रह्मचर्य पालन अत्यावश्यक है। साथ ही साथ उचित व्यायाम, प्रातः भ्रमण भी करवाएँ।
( और पढ़े – वीर्य को गाढ़ा व पुष्ट करने के आयुर्वेदिक उपाय )
7). मनो रोग मिटाए बसंत तिलक रस का उपयोग
बसन्त तिलक रस मनो रोगों की एक उत्तम औषधि है। इसके सेवन से मन का प्रसादन होता है, और नाड़ी तन्त्र सुदृढ़ होता है। चिन्ता, भय, क्रोध, अनिद्रा, घृणा, इत्यादि मानसिक वेगों में वसन्त तिलक रस की एक गोली प्रातः सायं मांस्यादि क्वाथ से देने से मनः प्रसादन होकर वेगों का शमन होता है ।
चिकित्सावधि कम से कम चालीस दिन अवश्यकता होने पर अधिक काल तक भी इसका प्रयोग किया जा सकता है।
सहायक औषधियों में – चैतन्योदय रस, सर्वेश्वर रस, चिन्तामणी रस, योगेन्द्र रस, चतुर्भुज रस में किसी एक की सहायता ले सकते हैं।
( और पढ़े – मानसिक रोग का आयुर्वेदिक इलाज )
8). पीलिया रोग (पाण्डु) में बसंत तिलक रस के इस्तेमाल से फायदा
गम्भीर रोगों के परिणाम स्वरूप उत्पन्न पाण्डु रोग में बसन्त तिलक रस एक अत्यन्त उपयोगी औषधि है, एक न केवल रक्त वर्धक है, अपितु जाठराग्नि, धात्वाग्नि और सप्त धातु वर्धक एवं रसायन होने के कारण पाण्डु, अग्निमान्द्य, धातुक्षीणता को दूर करके आरोग्य प्रदान करता है।
एक गोली प्रात: सायं आमला के मुरब्बे के साथ देना उपयुक्त होता है।
सहायक औषधियों में – मण्डूर वज्रवटक, आरोग्य वर्धनी वटी, नवायस चूर्ण, विन्धवासी योग, ताप्यादि लोह, में से किसी एक अथवा दो का प्रयोग भी करवाएं। चिकित्सावधि चालीस दिन।
9). रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में बसंत तिलक रस का औषधीय गुण फायदेमंद
कृशता चाहे वह किसी भी रोग की उत्तरावस्था में हो, रक्तस्राव या कृमि रोग के कारण अथवा, कुपोषण जन्य हो की चिकित्सा में बसन्त तिलक रस एक सफल औषधि है। इसके सेवन से जाठराग्नि और धात्वाग्नियाँ प्रदीप्त होती है अतः सप्त धातुओं की वृद्धि होती है। रसायन होने के कारण इसके सेवन से रोग निरोधक क्षमता विकसित होती है। अतः द्वितियक संक्रमण का अवरोध हो जाता है। अन्य गौण रोग भी उत्पन्न नहीं होते फलस्वरूप रोगी के बल मांस उत्साह में वृद्धि होती है ।
औषधि प्रयोग काल में पौष्टिक, सुपाच्य, संतुलित और स्वादु भोजन, ताजे फल, हरित शाक, सूखे मेवे दूध, दही, मक्खन इत्यादि का भरपूर उपयोग और प्रातः भ्रमण हल्के व्यायाम, सूर्य किरण स्नान, तेल मालिश, सुखोष्ण जल से स्नान एवं मनोनकूल वातावरण से रोगी शीघ्र लाभान्वित होते हैं।
( और पढ़े – रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएगी गिलोय )
आयुर्वेद ग्रंथ में बसंत तिलक रस के बारे में उल्लेख (Basant Tilak Ras in Ayurveda Book)
लौहं वङ्गं माक्षिकञ्च स्वर्णञ्चाभ्रकन्तथा।
प्रवाल तारे मुक्ता च जातिकोष फले तथा॥
एतेषां सम भागेन चतुर्जातञ्च मिश्रितम्।
मर्दयेत् त्रिफला क्वाथे वटिकां कुरुयत्नतः॥
रोगांश्च भिषगा ज्ञात्वा अनुपानं यथा यथम्।
वातिकं पैतिकश्चैव श्लेष्मिकं सन्निपातकम्॥
वायुं नाना विधं हन्ति अपस्मारं विशेषतः ।
विशूचिका क्षयोन्माद शरीरस्तम्भमेव च॥
प्रमेहान् विंशतिञ्चैव नाना रोग विशेषतः।
–भैषज्यरत्नावली (प्रमेहाधिकार 182-185)
बसंत तिलक रस के दुष्प्रभाव और सावधानीयाँ (Basant Tilak Ras Side Effects in Hindi)
- बसंत तिलक रस लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें।
- बसंत तिलक रस को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
- बसंत तिलक रस में स्वर्ण, रौप्य, वंग, लोह, स्वर्ण माक्षिक और अभ्रक भस्मों का समावेश है अतः भस्म सेवन में अपनाए जाने वाले पूर्वोपाय इसमें भी अवश्य अपनाए जाने चाहिए।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)