दारूहल्दी के बेशकीमती फायदे और नुकसान

Last Updated on February 3, 2023 by admin

दारूहल्दी का पेड़ कैसा होता है ? : 

        दारूहल्दी के पेड़ हिमालय क्षेत्र में अपने आप झाड़ियों के रूप में उग आते हैं। यह बिहार, पारसनाथ और नीलगिरी की पहाड़ियों वाले क्षेत्रों में भी पाई जाती है। इसका पेड़ 150 से लेकर 480 सेमी ऊंचा, कांटेदार, झाड़ीनुमा होता है। जिसका तना 8-9 इंच की मोटाई का होता है। इसके कांटेदार पत्ते 2 से 3 इंच लंबे होते हैं। इसके फूल 2-3 इंच लम्बी मंजड़ियों पर गुच्छों में, सफेद या पीले रंग के होते हैं। इसके फल को जरिश्क के नाम से जाना जाता है। इसकी जड़ पीलापन लिए हुए छोटी-बड़ी गांठदार होती है। हल्दी के समान पीले कड़ुवे, हल्की गंध वाले जड़ के टुकड़े ही बेचे जाते हैं। डंठल और जड़ में पूरी तरह से पीलापन समाया रहने के कारण ही इसका नाम दारूहल्दी पड़ा है। सामान्य हल्दी से इसका कोई मेल नहीं है। इसकी 6 जातियां पाई जाती हैं। लेकिन गुणों में ये लगभग समान होती है।

दारूहल्दी का विभिन्न भाषाओं में नाम :

हिंदीदारूहल्दी
संस्कृतदारुहरिद्रा
मराठीदारुहलद
गुजरातीदारुहल्दर
बंगालीदारूहरिद्रा
लैटिनबर्बेरिस अरिसटेटा

दारूहल्दी के औषधीय गुण (Daruhalad ke Gun)

दारूहल्दी के गुण भी हल्दी के समान ही हैं। विशेष करके यह घावों, प्रमेह, खुजली, और रक्तविकार नाशक होता है, यह त्वचा के दोष, जहर और आंखों के रोगों को नष्ट करता है।

  • रंग : दारूहल्दी पीले रंग की होती है।
  • स्वाद : इसका स्वाद तीखा होता है।
  • स्वरूप : दारूहल्दी एक पेड़ की लकड़ी है जो अत्यंत चीमर और कठोर होती है।
  • स्वभाव : इसकी प्रकृति गर्म होती है।
  • तुलना : दारूहल्दी की तुलना हल्दी से की जा सकती है।
  • आयुर्वेदिक मतानुसार : आयुर्वेदिक मतानुसार दारूहल्दी लघु, स्वाद में कडु़वा, कषैला, तीखा, तासीर में गर्म, पाचनशक्तिवर्द्धक, पौष्टिक, रक्तशोधक, यकृत उत्तेजक, कफनाशक, घाव शोधक एवं सूजन को दूर करने वाली होती है। यह बुखार, श्वेत व रक्तप्रदर, आंखों के रोग, त्वचा विकार, गर्भाशय के रोग, पीलिया, पेट के कीड़े, मुंह के रोग, दांतों-मसूढ़ों के रोग, गर्भावस्था का जी मिचलाना आदि रोगों में उपयोगी है।
  • यूनानी चिकित्सानुसार : इसके फल जरिश्क को यूनानी पद्धति में एक उत्तम औषधि माना गया है। यह आमाशय, जिगर और दिल के लिए लाभकारी होती है। इसके सेवन से जिगर और मेदे (आमाशय) की खराबी से दस्त लगना, मासिक-धर्म की अनियमितता, सूजन और बवासीर के कष्टों में आराम मिलता है।
  • वैज्ञानिक मतानुसार : वैज्ञानिक मतानुसार दारूहल्दी के रासायनिक संगठन का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इसमें अनेक एल्केलाइड उपस्थित होता है। जिनमें बर्बेरिन नामक पीले रंग का कड़वा, पानी में घुलनशील एल्केलाइड्स प्रमुख होता है। बर्बेरीन सल्फेट का उपयोग फोड़ों के इलाज में काफी लाभप्रद पाया जाता है।

सेवन की मात्रा :

 3 से 6 ग्राम।

विभिन्न रोगों को दूर करने में दारूहल्दी के फायदे (Daruhalad ke Fayde)

1. बुखार:- दारूहल्दी की जड़ से तैयार किये गये काढे़ को 2 चम्मच की मात्रा में रोजाना 3 बार पिलाने से बुखार उतर जाता है।

2. दस्त:- दारूहल्दी की जड़ की छाल और सोंठ को बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लेते हैं। 1 चम्मच की मात्रा दिन में 3 बार सेवन करने से दस्त लगने बंद हो जाते हैं।

3. दांत और मसूढ़ों के रोग:- दारूहल्दी के काढे़ को बराबर की मात्रा में शहद में मिलाकर 2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम रोगी को पिलाने से दांतों और मसूढ़ों के रोग में शीघ्र लाभ मिलता है।

4. श्वेतप्रदर:- दारूहल्दी, दालचीनी और शहद को बराबर मात्रा में मिलाकर 1 चम्मच की मात्रा में रोजाना 3 बार सेवन करने से श्वेत प्रदर में लाभ मिलता है।

5. सूजन:- दारूहल्दी का बनाया हुआ लेप 2-3 बार लगाने से सूजन की कठोरता दूर होकर दर्द में आराम मिलता है।

6. घाव:- दारूहल्दी का लेप चोट और घाव पर लगाने से खून जमता नहीं और घाव जल्द ही भर जाता है।

7. टूटी हड्डी का जुड़ना:- दारूहल्दी के चूर्ण को अण्डे की सफेदी में बराबर मात्रा में मिलाकर 2 चम्मच की मात्रा में रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से टूटी हड्डी शीघ्र जुड़ जाती है।

8. खूनी बवासीर:- दारूहल्दी का तना, जड़ और फल को बराबर मात्रा में मिलाकर लेप तैयार करें। इसे गुदा और मस्सों पर लगाने से खूनी बवासीर के रोग में बहुत लाभ मिलता है।

9. नेत्र रोग:- दारूहल्दी का लेप आंखे बंद कर पलकों पर लगाकर सोने से आंखों का दर्द, लाली, किरकिराहट आदि रोगों में लाभ होता है।

10. मुंह के छाले:-

  • 20 ग्राम दारूहल्दी को लेकर 300 ग्राम पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को छानकर दिन में 2 से 3 बार कुल्ला करने से मुंह के घाव, छाले और दाने खत्म हो जाते हैं।
  • दारूहल्दी, हल्दी, दालचीनी, पाढ़ल, नागरमोथा तथा इन्द्रजौ का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से गले तथा जीभ के रोग दूर होते हैं।
  • दारूहल्दी के गाढ़े रस में शहद मिलाकर पीने से मुंह के घाव और छाले दूर हो जाते हैं।

11. कान का बहना:- दारूहल्दी के बारीक चूर्ण को कान में रोजाना थोड़ा-थोड़ा डालने से कान में से मवाद बहने का रोग दूर हो जाता है।

12. भगन्दर:

  • दारूहल्दी का चूर्ण बनाकर आक के दूध के साथ अच्छी तरह से मिलाकर हल्का गर्म कर उसका वर्तिका (बत्ती) बनाकर व्रणों (घाव) पर लगाना अधिक लाभकारी होता है।
  • दारूहल्दी, घर का धुआंसा, हल्दी, लोध्र, बच, तिल, नीम के पत्ते और हरड़ को बराबर मात्रा में लें और उसे पानी के साथ बारीक पीसकर लेप करने से भगन्दर का घाव शुद्ध होकर भर जाता है।

13. प्रदर रोग:-

  • 10-10 ग्राम दारूहल्दी, बबूल का गोंद और शुद्ध रसांजन, 5-5 ग्राम, पीपल की लकड़ी, नागरमोथा, सोनागेरू और 20 ग्राम मिश्री को पीसकर और छानकर, लगभग 2 से 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से सभी प्रकार के प्रदर रोग मिट जाते हैं।
  • दारूहल्दी को पीसकर लुगदी बना लें। फिर इसमें शहद मिलाकर पीने से ‘श्वेत प्रदर मिट जाता है।
  • दारूहल्दी, रसौत, चिरायता, अड़ूसा, नागरमोथा, बेलगिरी, लाल चन्दन, आक के फूल और शहद को मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढे़ में शहद मिलाकर पीने से वेदनायुक्त लाल और सफेद प्रदर मिट जाता है।
  • दारूहल्दी के काढ़े को रोजाना सुबह-शाम शहद में मिलाकर सेवन करने से श्वेत प्रदर और रक्त प्रदर दोनों मिट जाते हैं।

14. रक्तप्रदर:- गर्भाशय की शिथिलता के चलते उत्पन्न रक्तप्रदर में दारूहल्दी के काढ़े को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता है। यह श्वेत प्रदर में भी लाभकारी होता है।

15. नाक के रोग:– दारूहल्दी की जड़ के काढ़े से फुंसियों को साफ करने से नाक की फुंसियां ठीक हो जाती हैं।

16. उपदंश:-

  • दारूहल्दी, रास्ना, पुण्डरिया, मुलहठी, देवदार, अगर, कूठ, इलायची को एकसाथ मिलाकर बने काढ़े से उपदंश के घाव पर लेप करने से पूरा लाभ मिलता है।
  • दारूहल्दी की छाल, शाखनाभि, रसौत, लाख, गाय का गोबर, तेल, घी, दूध बराबर मात्रा में मिलाकर बारीक पीसकर लेप करने से उपदंश के घाव, सूजन, दर्द और जलन में लाभ मिलता है।    

17. नासूर:- थूहर और आक (मदार) के दूध को दारूहल्दी के चूर्ण के साथ बत्ती बनाकर गुदा के नासूर (जख्म बढ़ना) में रखने से जल्दी आराम आता है।

18. कामला (पीलिया का रोग):- दारूहल्दी के फांट में शहद मिलाकर पीने से कामला रोग (पीलिया रोग) शान्त हो जाता है।

19. नाड़ी का घाव:- दारूहल्दी, थूहर का दूध और आक के दूध को मिलाकर एक बत्ती बना लें। उसके बाद उस बत्ती को नाड़ी के घाव पर लगाने से नाड़ी के रोग में जल्द आराम मिलता है।

20. टांसिल का बढ़ना:- दारूहल्दी, नीम की छाल, रसौत तथा इन्द्रजौ को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर सेवन करें तथा इस बात का ध्यान रखें कि काढ़ा 4 चम्मच से ज्यादा न हो, क्योंकि ज्यादा काढ़ा गले में खुश्की (गला सूख जाना) पैदा करता है।

21. विनसेण्ट एनजाइना के रोग में:- दारूहल्दी के काढ़े से रोजाना 2-3 बार गरारे करने से विनसेण्ट एनजाइना के रोग में आराम आता है।

22. गले के रोग में:- दारुहल्दी, नीम की छाल रसौत और इन्द्र-जौ का काढ़ा बनाकर पीने से गले के रोग समाप्त हो जाते हैं।

 दारूहल्दी के दुष्प्रभाव (Daruhalad ke Nuksan)

 इसका अधिक मात्रा में सेवन गर्म स्वभाव वालों के लिए हानिकारक होता है।

(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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