दिव्य औषधि धमासा के बेशकीमती स्वास्थ्य लाभ – Dhamasa ke Fayde aur Nuksan in Hindi

Last Updated on December 31, 2020 by admin

धमासा क्या है ? (What is Dhamasa in Hindi)

रेगिस्तान की प्राकृतिक स्थिति विषम होती है। वर्षा का अभाव, धूल भरी आँधियाँ चलने अधिकांश रेत के टीले होने से प्रायः अकाल की स्थिति रहने से प्राकृतिक वन सम्पदा भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहती। ऐसी स्थिति में ईश्वर ने तदनुकूल जड़ी-बूटियाँ उत्पन्न की हैं। उन कुछ जड़ी बूटियों में धमासा (दुरालभा) भी एक है, जिसे देखकर कृति के साथ कृतिकार के भी दर्शन होते हैं, क्योंकि ईश्वर अस्तित्व का पर्यायवाची है।

धमासा का विभिन्न भाषाओं में नाम (Name of Dhamasa in Different Languages)

Dhamasa in –

  • संस्कृत (Sanskrit) – दुरालभा (कठिनता से प्राप्त होने वाली), धन्वयास (मरूभूमि में होने वाला यवास), गान्धारी (गान्धार-अफगानिस्तान में विशेष होने वाली), अनन्ता (गम्भीरमूल वाली), कच्छुरा (कंटकित), दुःस्पर्शी आदि।
  • हिन्दी (Hindi) – धमासा
  • गुजराती (Gujarati) – धमासो
  • मराठी (Marathi) – धमासा
  • बंगाली (Bangali) – दुरालभा
  • पंजाबी (Punjabi) – धमांह, धम्मा
  • राजस्थानी (Rajasthani) – धमासो
  • तामिल (Tamil) – तुलगनरि
  • तेलगु (Telugu) – गिलारेगाति
  • अंग्रेजी (English) – खोरासान थार्न (Khorasan Thorn)
  • लैटिन (Latin) – फेगोनिया क्रेटिका (Fagonia Cretica)

धमासा का पौधा कहां पाया या उगाया जाता है ? :

धमासा अफगानिस्तान, खुरासान व अरब देश की प्रमुख वनस्पति है। यह भारत के दक्षिण प्रदेशों के खेतों में, पंजाब, पश्चिमी राजस्थान, कच्छ आदि स्थानों में पाया जाता है।

धमासा का पौधा कैसा होता है ? :

  • धमासा का पौधा – इसका पीताभ हरितवर्ण का बहुशाखा युक्त कंटकित 1 से 3 फुट ऊँचा क्षुप होता है। इसकी शाखाएं कठिन, ग्रन्थियुक्त एवं नई शाखायें धारीदार होती हैं।
  • धमासा की पत्ती – धमासा की पत्तियाँ तीन पत्रकों वाली अभिमुख क्रम से स्थित होती हैं। पत्रक 1 इंच से 1.5 इंच तक लम्बे, सरल धार वाले तथा रूप रेखा में रेखाकार-अंडाकार होते हैं। अंत में ये देखने में सनाय पत्रकों जैसे लगते हैं। प्रत्येक पत्ती के मूल में 2-2 कांटे होते हैं, जो वास्तव में कांटों में रूपान्तरित अनुपत्र होते हैं।
  • धमासा के फूल – धमासा के पुष्प-छोटे छोटे एवं गुलाबी रंग के होते हैं। अन्तर्दल से बहिर्दल
  • लम्बाई में दूना होता है।
  • धमासा के फल – धमासा के फल रोमश, पंचकोण, कंटकाग्र, प्रायः मुड़े हुए फलवृन्त जितना लम्बा होता है।
  • धमासा की जड़ – धमासा का मूल दूर तक जमीन में घुसा हुआ होने से इसे “अनन्ता” एवं ताम्र वर्ण का मूल होने से इसे “ताम्रमूली” कहा जाता है।

इसके काँटे शरीर में चुभने से बहुत पीड़ा होती है, अतः इसे दुःस्पर्शा कहा गया है। शाखा पर दोनों ओर दो-दो काँटे होने से इसे “हरि-विग्रहा” (चतुर्भुज हरि-विष्णु के समान) भी कहते हैं।
इस पर शरद् ऋतु (कुवार-कार्तिक) में पुष्प आते हैं।

संग्रह एवं संरक्षण :

धमासा (दुरालभा) को मुखबंद पात्रों में अनार्द्र शीतल स्थान में रखना चाहिए। इसका शुष्क पञ्चाङ्ग पंसारी भी रखते हैं।

धमासा का उपयोगी भाग (Beneficial Part of Dhamasa in Hindi)

उपयोगी अङ्ग – पञ्चाङ्ग

धमासा सेवन की मात्रा :

  • चूर्ण – 5 से 10 ग्राम
  • फाण्ट – 40 से 80 मिलि0
  • क्वाथ – 20 से 60 मिलि0
  • मूलत्वक् चूर्ण (जड़ की छाल का चूर्ण) – 1से 2 ग्राम।

अनुपान में जल, मधु, गन्ने का रस इत्यादि देने चाहिए। इसके समग्र क्षुप को कूटने से रस किंचित् ही प्राप्त होता है इसलिए इसका हिम या फाण्ट (शर्बत) बनाकर ही देना चाहिए।

धमासा के औषधीय गुण (Dhamasa ke Gun in Hindi)

  • रस – कषाय, तिक्त
  • गुण – लघु, स्निग्ध
  • वीर्य – शीत
  • विपाक – कटु
  • दोषकर्म – पित्त कफ हर
  • वीर्य कालावधि – एक वर्ष।

धमासा का औषधीय उपयोग (Medicinal Uses of Dhamasa in Hindi)

आयुर्वेदिक मतानुसार धमासा के गुण और उपयोग –

  • भगवान् चरक ने धमासा को पित्तश्लेष्महर कहा है ।
  • त्वग्दोषहर (त्वचा रोगों को हरने वाला) होने से त्वचा के विकारों में भी यह प्रयुक्त किया जाता है।
  • इसके अतिरिक्त धमासा मूत्रल होने से मूत्रकृच्छ्र, मूत्राघात आदि में लाभप्रद कहा गया है।
  • मस्तिष्क के लिए धमासा बल्य होने से भ्रम-मुर्छा में प्रयुक्त किया जाता रहा है।
  • महाप्राचीरा पेशी के अनियमित संकोच के कारण हिक्का रोग (हिचकी) की उत्पत्ति होती है और इस पेशी के अनियमित संकोच के कारण पाचन संस्थान की विकृति है। आचार दृढ़ बल ने “पित्तस्थान समुभव’ कह कर इसी ओर इंगित किया है। इस पाचनसंस्थान की विकृति को दूर करने में धमासा श्रेष्ठ है।
  • पाचन संस्थान की विकृति से उत्पन्न दुर्बलता को दूर करने में भी धमासा प्रमुख भूमिका निभाता है।
  • धमासा तिक्त होने से कटुपौष्टिक का कार्य करता है। तब ही तो राजयक्ष्मा में भगवान् चरक ने दुरालभादिघृत को उपयोगी कहा है।
  • आचार्य वृद्ध वाग्भट ने अर्शोघ्न (बवासीर नाशक) द्रव्यों में धमासा की मुख्यता प्रकट की है।
  • चरक संहिता में दुरालभारिष्ट को अर्श रोगोपयोगी कहा है जिसे फलारिष्ट या शर्करोऽरिष्ट के नाम से निर्दिष किया है।
  • दुरालभादि क्वाथ अर्थ, अरोचक, गुल्म, शूल, प्लीहोदर और अग्निमांद्य को दूर करने वाला है।
  • अन्तः प्रयोगों के अतिरिक्त यह दाह प्रशमन, कोथ प्रशमन एवं व्रणरोपण होने से बाह्यप्रयोगों के रूप में भी प्रयुक्त किया जाता है।
  • इसके द्वारा निर्मित क्वाथ या फाण्ट से देह का परिषेक करने से देहगत दाह, ज्वर और कण्डू (खुजली) शान्त होती है।
  • कंठगत रोग एवं सर्वसर (मुखपाक) में भी इसके क्वाथ का गण्डूश (कुल्ला) हितावह कहा गया है।
  • धमासा के क्वाथ से व्रणों (घाव) को धोने से उनका शोधन होकर उनके रोपण (घाव भरना) में सहायता मिलती है।
  • अपची (कंठमाला) को मिटाने के लिए धमासा के कल्क (चटनी) का लेप किया जाना चाहिए।

यूनानी मतानुसार धमासा के गुण और उपयोग –

  • धमासा पहले दर्जे में गरम और खुश्क है।
  • धमासा दाद, मुँह के छाले, खाँसी, ज्वर और दमें में मुफीद है।
  • खून, पित्त और कफ की खराबी को धमासा दूर करता है।
  • यह प्यास को मिटाता है, वमन को रोकता है और फोड़े फुन्सी व कोढ को मिटाता है।
  • धमासा जलोदर, सुजाक और पेशाब की जलन में भी लाभदायक है।
  • शरीर के किसी अंग से होने वाले रक्तस्राव को यह रोकता है।
  • मेदे (आमाशय) और जिगर को धमासा ताकत देता है।

रोगोपचार में धमासा के फायदे (Benefits of Dhamasa in Hindi)

1). श्वास रोग में लाभकारी है धमासा का प्रयोग

  • धमासा पञ्चाङ्ग को सुखाकर चूर्ण बना चिलम में रखकर धूम्रपान करने से श्वास का दौरा मिटता है।
  • इसे अधिक प्रभावी बनाने के लिए धमासा (दुरालभा) के साथ काला धत्तूरा व अजवाइन का चूर्ण भी मिलाकर धूम्रपान किया जाता है।

( और पढ़े – दमा(श्वास) रोग में क्या खाएं क्या नहीं व सावधानियां )

2). कंठमाला में धमासा का उपयोग लाभदायक

  • धमासा के पञ्चाङ्ग पीसकर लेप करना चाहिए।
  • कंठमाला में धमासा कल्क का लेप लाभप्रद है।

( और पढ़े – कण्ठमाला के घरेलू उपचार )

3). सुप्तिवात (सुन्नता) मिटाए धमासा का उपयोग

धमासा स्वरस 200 मि0 लि0 सरसों के तेल 100 मि0 लि0 लेकर मन्दाग्नि पर पकावें। जब तैल मात्र शेष रहे तब उतार कर छान लें। इसकी मालिश करने से त्वचा की सुन्नता मिटती है।

4). मुह के छाले (मुखपाक) में लाभकारी है धमासा का प्रयोग

  • धमासा क्वाथ के गण्डूष (कुल्ला) लाभप्रद हैं।
  • रोग की उग्रता में धमासा, द्राक्षा, अमृता, त्रिफला, चमेली के पत्तों का क्वाथ बनाकर मधु मिलाकर गण्डूष (गरारे) कराना चाहिए।

( और पढ़े – मुंह के छाले का आयुर्वेदिक इलाज )

5). खुजली (कण्डू) दूर करे धमासा के औषधीय गुण

धमासा पञ्चाङ्ग के क्वाथ से स्नान करना या कल्क का लेप करना कच्छू, खुजली में लाभप्रद है।

6). दाह (जलन) में धमासा का उपयोग लाभदायक

दाह को मिटाने के लिए भी धमासा के क्वाथ का स्नान हितकर है।

( और पढ़े – शरीर मे जलन दूर करने के घरेलू उपाय )

7). घाव (व्रण) मिटाए धमासा का उपयोग

धमासा के क्वाथ से व्रण धोने से शीघ्र रोपण (घाव भरना) होता है।

8). बुखार में लाभकारी है धमासा का प्रयोग

  • वातज्वर – धमासा, मोथा, सोंठ और गिलोय का क्वाथ दें।
  • पित्तज्वर – धमासा, मोथा, पित्तपापड़ा, कुटकी, चिरायता का क्वाथ दें।
  • कफज्वर – धमासा (दुरालभा), मोथा, सोंठ एवं वासा का क्वाथ दें।
  • वातपित्त ज्वर – धमासा, सोंठ चिरायता, गिलोय, मोथा का क्वाथ दें।
  • वातकफ ज्वर – धमासा, मोथा, गिलोय, पित्तपापड़ा, सोंठ का क्वाथ दें।
  • सन्निपात ज्वर – धमासा, गिलोय, बनप्सा, ‘कुटकी, नीम की छाल का क्वाथ दें।
  • सन्निपात ज्वर – धमासा, दोनों कटेरी, परवल के पत्ते, काकड़ासिंगी, भारंगी, पुष्करमूल, कुटकी, कचूर और इन्द्र जौ का क्वाथ कफोल्वण सन्निपात को मिटाता है।
  • विषमज्वर – मासा, सारिवा, त्रायमाण, कुटकी क्वाथ सन्तत ज्वर में लाभप्रद कहा गया है।

( और पढ़े – बुखार के कारण ,लक्षण और इलाज )

9). भ्रम रोग दूर करने में धमासा करता है मदद

  • धमासा क्वाथ 60 मि0लि0 में 12 ग्राम गोघृत और 6 ग्राम मिश्री मिलाकर दिन में चार बार चार-चार घण्टे पर पिलाना चाहिए।
  • धमासा का क्वाथ बनाकर उसमें गाय का घृत सिद्ध कर लें। यह घृत दुग्ध के साथ देने से भ्रम, मूर्छा, अपस्मार आदि रोग मिटते हैं।

10). ज्वरातिसार में धमासा के सेवन से लाभ

  • धमासा और मुनक्का का क्वाथ ज्वरातिसार को मिटाता है ।
  • धमासा, बला, सोनापाठा, धनियां, सोंठ और नागरमोथा का क्वाथ गर्भवती स्त्रियों को होने वाला ज्वरातिसार दूर करता है।

11). रक्तमेह में धमासा का उपयोग फायदेमंद

धमासा के कोमल पत्ते 10 ग्राम, कालीमिर्च 7 नग को 125 मि0लि0 जल में घोटकर छानकर 40 ग्राम मिश्री मिलाकर पीने से अधोगरक्तपित्त मिटता है।

12). मूत्रकृच्छ में धमासा के प्रयोग से लाभ

धमासा, अमलतास, हरीतकी (हरड), पाषाणभेद और गोखरू के क्वाथ में मधु मिलाकर पीने से मूत्र खुलकर आने लगता है। अश्मरी (पथरी) युक्त मूत्रकृच्छ होने पर उक्तद्रव्यों के साथ दशमूल एवं कासमूल भी मिलाना चाहिए।

( और पढ़े – पेशाब रुक जाने के घरेलू उपचार )

13). उदावर्त (बड़ी आँत का एक रोग) में धमासा से फायदा

मूत्रावरोधजन्य उदावर्त में धमासा पञ्चाङ्ग स्वरस में थोड़ा सेंधानमक मिलाकर पिलाना चाहिए।

14). बवासीर (अर्श) मिटाए धमासा का उपयोग

  • धमासा मूल, पाठा और पिप्पली का चूर्ण 3 ग्राम सेवन करना चाहिए।
  • धमासा, सोंठ, विल्वफल मज्जा, हरड़, पिप्पली और चित्रक का क्वाथ अर्श, अरोचक, गुल्म, शूल, प्लीहा और मन्दाग्नि को दूर करता है।
  • धमासा पञ्चाङ्ग का धूपन या प्रलेप हितकारी है।

( और पढ़े – बवासीर के 52 देशी नुस्खे )

15). कंठरोग मिटाता है धमासा

  • कंठरोगों में धमासा का फांट (सर्बत) थोड़ा-थोड़ा पिलाना चाहिए।
  • धमासा स्वरस को गन्ने के रस के साथ उबालकर अवलेह बनाकर गले के रोगों में एवं फेफड़ों के रोगों में देना चाहिए। क्वाथ में शहद मिलाकर भी सेवन कराया जा सकता

16). तृष्णा (बार-बार प्यास) रोग दूर करे धमासा का प्रयोग

धमासा, पित्तपापड़ा, गिलोय और सोंठ का शीतकषाय बनाकर पीने से तृष्णा में लाभ होता है। यह विसर्प में भी लाभप्रद है।

17). खांसी (कास) दूर करने में मदद करता है धमासा का सेवन

  • धमासा, सोंठ, पिप्पली, वासा, बहेड़ा व अमृता का क्वाथ हितावह है।
  • धमासा, मुलेठी, वासा और मिश्री का क्वाथ भी खांसी में हितकर है।
  • धमासा, कचूर, मुलेठी, पिप्पली और शर्करा का समभाग चूर्ण बनाकर मधु के साथ सेवन करने से विशेषतः वातिक कास का शमन होता है।
  • धमासा, सोंठ, कचूर, मुनक्का, काकड़ासिंगी और मिश्री का समभाग चूर्ण तेल में मिलाकर चाटने से भी वातिक खांसी में लाभ होता है।
  • धमासा, पिप्पली, नागरमोथा, भारंगी, काकड़ासिंगी और कचूर के समभाग चूर्ण को पुराने गुड़ और तेल में मिलाकर चाटने से भी लाभ प्राप्त होता है।

( और पढ़े – खांसी और कफ दूर करने के घरेलू उपाय )

18). अतिसार में लाभकारी है धमासा का सेवन

धमासा, दारूहरिद्रा, विल्वफल मज्जा, नेत्रबला, और रक्तचन्दन का चूर्ण शीतल जल के साथ सेवन करने से पित्तातिसार का शमन होता है।

19). हिचकी (हिक्का) मिटाए धमासा का उपयोग

  • धमासा, कचूर और बेर के फल की मज्जा का सेवन हिचकी को मिटाता है।
  • धमासा के क्वाथ में मधु मिलाकर सेवन करने से भी हिचकी का निवारण होता है।

20). अन्तर्विद्रधि (पेट के अंदर का एक प्रकार का फोड़ा) में धमासा का उपयोग फायदेमंद

धमासा को मांड (चावलों के धोवन) में पीस उसमें शहद मिलाकर सेवन करने से अन्तर्विद्रधि वाले रोगी को कुछ शान्ति महसूस होती है।

21). अम्लपित्त मिटाए धमासा का उपयोग

धमासा, हरीतकी, पिप्पली, मुनक्का और मिश्री का चूर्ण बनाकर इसे शहद के साथ लेह बनाकर चाटने से अम्लपित्त में लाभ होता है। इससे कंठ व हृदय का दाह, मूर्छा में भी लाभ होता है। कफवृद्धि में भी इसका उपयोग किया जा सकता है। इससे गला तर हो जाता है और बलगम निकल जाता है।

22). कमजोरी में लाभकारी धमासा का प्रयोग

सामान्य दौर्बल्य में विशेषतः अतिसार के बाद की दुर्बलता में इसकी उपादेयता प्रकट की गई है। इसमें इसके सेवन की विधि इस प्रकार है – धमासा पञ्चाङ्ग के यवकूट किये हुए चूर्ण एक भाग में 16 भाग जल मिलाकर 12 घण्टों तक रखकर मसल छानकर 60 मिलि0 से 120 मिली0 तक की मात्रा में दोनों समय सेवन करते रहना चाहिए। इस प्रकार कुछ दिनों समय सेवन करते रहना चाहिए। इस प्रकार कुछ दिनों तक सेवन करने से दुर्बलता दूर होकर बल की प्राप्ति होती है।

23). खुजली (कण्डू) दूर करने में धमासा फायदेमंद

कण्डू आदि विकारों में धमासा का क्वाथ या फाण्ट सेवन करना लाभप्रद हैं

24). कब्ज (विबन्ध) मिटाता है धमासा

धमासा, हरड़ और अमलतास फलमज्जा का क्वाथ विबन्ध को दूर करने वाला कहा गया है।

धमासा से निर्मित आयुर्वेदिक दवा (कल्प) :

दुरालभा क्वाथ –

दुरालभा, पाषाणभेद, हरीतकी, छोटी कण्टकारी, मुलेठी और धनियां को समभाग लेकर यवकुट कर 12 ग्राम द्रव्यों का क्वाथ बनाकर उसमें मिश्री मिलाकर पिलाने से मूत्र कच्छ्र विबन्ध दूर होते हैं। सशूल, दाहयुक्त मूत्रकृच्छ्र में यह क्वाथ उपयोगी है। – भै0र0

दुरालभादि हिम –

धमासा (दुरालभा) 10 ग्राम, चिरायता 10 ग्राम इन दोनों को सायंकाल एक मिट्टी के पात्र में डालकर 50 मि0ली0 या वे अच्छी तरह से भीग जाय इतना जल डालकर ढंकदे। प्रातः काल उसमें 250 ग्राम दूध मिलाकर वस्त्र से छान कर निचोड़लें एवं रोगी को पिलादें। कैसा भी पुराना चर्मज या रक्तज विकार क्यों न हो इसके कुछ दिनों तक निरन्तर प्रयोग से अवश्य लाभ होगा। यह हिम उक्त रोगों के अतिरिक्त ज्वर (पित्तजन्य) एवं प्रमेह में भी लाभप्रद है। -सि0भे0म0मा0

दुरालभादि घृत-

धमासा, गोखरू, शालपर्णी, पूश्निपर्णी मुग्दवन (मुग्दपर्णी) वन उड़द (मासपी), खरेटी की मूल-छाल और पित्तपापड़ा 48-48 ग्राम। इनका जौकुट चूर्ण 4 लीटर पानी में पकावें। 384 मि. ली. जल शेष रहने पर छान लें।
कल्कार्थ – कचूर, पोहकरमूल, पिप्पली, त्रायमाण, भूई आमला, चिरायता, कटुपरवल, इन्द्रजौ और
सारिवां 12-12 ग्राम, सबको जल के साथ पीस लें। फिर घृत 1 किलो, दूध 2 किलो और जल 2 किलो तथा उक्त क्वाथ व कल्क एकत्र मिला, यथाविधि घृत सिद्धकर लें।
मात्रा -6 ग्राम से 24 ग्राम तक सेवन से ज्वर, दाह, भ्रम, कास (खांसी), कन्धों की पीड़ा, पसली का दर्द, शिरःशूल, तृष्णा, वसन और अतिसार दूर होता है। -च0वि0अ0

दुरालभासव –

धमासा 1 किलो 600 ग्राम, आमला 730 ग्राम, चित्रकमूल और दन्ती 96-96 ग्राम तथा उत्तम वजनदार 100 हरड़, जौकुट कर 52 किलो जल में पकावे। 13 किलो शेष रहने पर छानकर, ठंडा हो जाने पर आसव पात्र में भर उसमें गुड़ 10 किलो तथा शहद फूल प्रियंगु, पिप्पली व वायविडङ्ग चूर्ण प्रत्येक 192 ग्राम मिला पात्र का मुख संधान कर 15 दिन तक रक्खें। फिर छानकर रखें।
मात्रा – 12 से 12 मि0ली0 तक सेवन से संग्रहणी, पाण्डू, अर्श, कुष्ठ, विषर्प, प्रमेह, रक्तपित्त एवं कफ का नाश होता है। स्वर वर्ण (कांति) का सुधार होता है। -चरकसंहिता

दुरालभारिष्ट-

धमासा 768 ग्राम, चीता, वासा, हरड़, आमला, पाठा, सोंठ और दन्तीमूल 96-96 ग्राम लेकर सबको अधकुटा करके 12 किलो 288 ग्राम जल में पकावें। जब 8 किलो पानी शेष रह जाय तो क्वाथ को छान लें और ठंडा करके उसमें 4 किलो 800 ग्राम खांड-मिलाकर उसे घृत से चिकने किये हुए मटके में पीपल चव्य और फूल प्रियंगु के चूर्ण को घी और शहद में मिलाकर लेप करके उसमें भर दें और उसका मुंह बन्द करके 15 दिन तक रक्खा रहने दें।

यह अरिष्ट अर्श, ग्रहणी, दोष उदावर्त अरूचि, मल-मूत्र अपान वायु और डकार का रूकना, अग्निमाद्य, हृदय रोग और पाण्डु रोग को नष्ट करता है। मात्रा 20 ग्राम। -चरकसंहिता

दुरालभादि क्षार-

धमासा, दोनों करंज (वृक्ष करंज व लता करंज) की छाल, सतौने की छाल, कुड़ाछाल, बच, मैनफल, मूर्वामूल, पाठा और अमलतास की छाल समभाग चूर्ण कर सबके बराबर गौमूत्र मिला, मटकी में बन्द कर कपड़मिट्टी कर, उपलों की आग में अन्तधूम भस्म या क्षार कर लें।
मात्रा – 500 मि0ग्राम से 1 ग्राम तक घृत या तक्र के अनुपान से ।
इस क्षार के सेवन से बल, वर्ण व अग्नि की वृद्धि होती है। यह रोगी के बल को बढ़ाता है। – चरकसंहिता

धमासा के दुष्प्रभाव (Dhamasa ke Nuksan in Hindi)

  • धमासा के सेवन से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
  • धमासा को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।

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