Last Updated on July 22, 2019 by admin
समाचार पत्रों, रेडियो, सिनेमा के पर्दे और टी.बी. पर किए गए शीतल पेयों (कोल्ड ड्रिंक्स) के आकर्षक, धुंआधार विज्ञापनों के कारण अब शहरों से गांवों तक गर्मी के मौसम में, इनका उपयोग अधिक बढ़ गया है। बच्चों और युवा पीढ़ी पर तो उसका जादुई असर हुआ है। यहीं कारण है कि प्रतिवर्ष इनकी बिक्री में वृद्धि होती ही जा रही हैं। बच्चों की पसंद
इनकी पसंद का आलम यह है कि नासमझ छोटे बच्चे तक अब पौष्टिक दध की जगह इन पेयों का सेवन करना पसंद करने लगे हैं। जन साधारण ये नहीं जानते कि इन पेयों के पीने से न तो प्यास बुझती है और न ही गर्मी से राहत मिलती है। हां, थोड़े समय के लिए ऐसा अहसास जरूर होता है। इन पेयों में मिश्रित कार्बन-डाइआक्साइड गैस पेट में पहुंचते ही डकारें आना शुरू हो जाती है और यदि इन्हें रोकने की कोशिश की जाए, तो ये गैस नाके से निकल कर जलन पैदा करती है। डकारें आने से लोगबाग यह सोचते है कि पाचन संस्थान को राहत मिल रहीं है, जो एक गलत धारणा
स्टैंडई मेंटेनेंस का चक्कर :
अपना स्तर प्रदर्शित करने के चक्कर में लोगबाग अब नाश्ते के बाद चाय, दूध या काफी के बजाय शीतल पेय का सेवन करना जरूरी समझने लगे हैं। इससे कुछ करोड़ का व्यवसाय करने वाले शीतल पेयों का व्यवसाय बढ़कर अब हजारों करोड़ों से उपर पहुंच गया है। यह कम आश्चर्य की बात नहीं कि जो बोतल सब खर्चे मिलार्केर एक से दो रुपये में पड़ती है, वह धड़ल्ले से 7 से 10 रुपये तक बिकती है। दुनिया भर में लोकप्रिय अमेरिका का कोका कोला पेय हमारे देश में भी प्रसिद्ध है। परंतु राष्ट्रीय पोषण प्रयोगशाला, हैदराबाद के निष्कर्ष का आधार बनाकर जनता सरकार के समय तत्कालीन उद्योग मंत्री जार्ज फर्नान्डीस ने कोका कोला को हानिकारक पेय मानकर प्रतिबंधित करा दिया था। अब फिर प्रतिबंध हटने से कोका कोला दोबारा मार्केट में छा गया है।
भारत में कोका कोला की विदाई के तुरंत बाद से ही मॉडर्न फूड इंडस्ट्रीज ने डबल सेवन, पार्ले ने थम्स अप और प्योर ड्रिंक्स ने कैम्पा बाजार में पहुंचा दिया था। भारत में बनने वाले अन्य शीतल पेयों में लिम्का, गोल्ड स्पॉट, कैम्पा आरेंज, स्प्रिंट, मिरिंडा रश, थ्रिल, टिंक्लर, पेप्सी, 7अप, स्लाइश, इयूक आदि ब्रांड नामों से भी कोल्ड ड्रिंक्स की बिक्री की जाती है। इसके अलावा कुछ वर्षों से रसना, टिंकल, फ्लोरिडा आदि, कोल्ड ड्रिंक कंसंट्रेट’ तथा फ्रंटी, एप्पी, रसिका, जम्पिन, बालफूट आदि तैयार फलों के स्वाद जैसे पेय भी अत्यधिक लोकप्रिय हो गए है।
अकसर लोगों को यह मालूम नहीं होता है कि शीतल पेयों में मुख्य रूप से सैक्रीन, चीनी, साइट्रिके या फास्फोरिक एसिड, कैफ्रीन, कार्बन डाइआक्साइड, रंग-सोडियम ओएंजाइड आदि पदार्थ मिलाए जाते हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते है। वास्तव में यदि देखा जाए, तो शीतल पेय में पौष्टिक भोजन का, फलों के वास्तविक रसों का नाममात्र अंश भी नहीं होता।
शीतल पेय के नुकसान :
अमेरिका में किए गए एक अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि सैक्रीन और कैफीन युक्त पदार्थों के सेवन करने से बच्चे पढ़ाई से जी चुराने लगते है। ऐसे पेयों के सेवन से मनुष्य का व्यवहार बदल सकता है। यहां तक कि अपराध की प्रवृति जन्म ले सकती है। अनुसंधान के अनुसार बच्चों को खाली पेट शीतल पेयों का सेवन नहीं करने देना चाहिए तथा बारह वर्ष से कम आयु के बच्चों और गर्भवती महिलाओं को कोका युक्त शीतल पेय सेवन नहीं करना चाहिए। सैक्रीन युक्त पेयों के सेवन से ब्लड शुगर की बीमारी हो सकती है। बच्चे मोटापे के शिकार हो सकते है, मधुमेह से लेकर दिल की बीमारियां तक हो सकती है। शीतल पेयों के आदेती बनाने में कैफीन का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है।
ज्यादातर शीतल पेयों में साइट्रिक या फास्फोरिक एसिड मिलाया जाता है , जो पेट में जाकर अम्लीयता बढ़ा देता है। इससे भूख नहीं लगती।। एसिड की अधिकता के परिणामस्वरूप पेप्तिक अल्सर भी हो सकता हैं। शरीर में फास्फोरिक अम्ल लौह तत्व सोखने की शक्ति घटा देता है जिससे लौहह तत्व की शरीर में कमी की संभावना बढ़ जाती है।
सामान्यतया शीतल पेयों को रंगीन बनाने के लिए कृत्रिम रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। जब शीतल पेय अधिक और नियमित रूप से सेवन किए जाते है, तो इन कृत्रिम रंगों से एलर्जी भी हो सकती है।
आमतौर से शीतल पेयों में एक और दो श्रेणी के प्रिजरवेटिव रसायन मिलाए जाते है। नमक, सिरका, ग्लूकोज, शहद आदि श्रेणी-एक के अंतर्गत आते हैं, जबकि श्रेणी-दो में आने वाले पदार्थ नशीले होते है, जिन्हें अधिकतम सीमा से ज्यादा मिलाना अवैध माना गया है। जबकि श्रेणी-एक के पदार्थों के कम या ज्यादा मिलाने से दुष्प्रभाव नहीं होते।
भारत में 23 मार्च, 1985 को जारी अधिनियम से शीतल पेयों की बोतलों और विज्ञापनों पर यह लिखना जरूरी को गया है कि इस पेय में फलों का रस या गुदा नहीं है तथा बेवजह किसी रंगीन फल का चित्र बोतल पर छापने पर कड़ी पाबंदी लगा दी। इससे आम उपभोक्ता इस गलतफहमी में नहीं रहेगा कि शीतल पेयों में फलों का रस या गुदा होने के कारण उससे पौष्टिकताभरी शक्ति प्राप्त होती है।
रुचिकर, स्वादिष्ट बनाने के लिए शीतल पेयों में अकसर ज्यादा मात्रा में शक्कर मिलाई जाती है। एक बोतल पेय में 2 से 3 बड़े चम्मच शक्कर होने का अनुमान है। भोजन काल के मध्य में ऐसे पेय सोने से दांतों में खोल होने की संभावना बढ़ जाती है। इनमें विद्यमान साइट्रिक या फास्फोरिक एसिड, दांतों की परत को नष्ट करता है।
इसमें कोई दो मत नहीं कि तपती गर्मी में शीतल पेय की ठंडी बोतल का सेवन हमें तुरंत राहत का अहसास कराती है, लेकिन इनका अधिक मात्रा में या लंबी अवधि तक किया गया सेवन सेहत के लिए हानिकारक सिद्ध होता है। शीतल पेय के बजाय फलों का जूस लें।
फलों का जूस पिने के फायदे :
शीतल पेयों के स्थान पर यदि हम उपलब्ध मौसमी फलों का उपयोग करें, तो उससे अधिक पौष्टिक तत्व प्राप्त होंगे। संक्षेप में निम्न फलों का जूस लेना लाभकारी रहेगा।
आम का रस (मैंगो जूस):
इसे पीने से गुर्दे की दुर्बलता दूर होती है नींद अच्छी आती है त्वचा का सौंदर्य निखरता है दुबले-पतले व्यक्ति का वजन बढ़ता है, शरीर में खून बनता है स्फूर्ति आती हैं, पेट साफ करता है ह्रदय यकृत को शक्ति मिलती हैं। यह वीर्य की दुर्बलता दूर कर वीर्य भी बढ़ाता है। इसमें विटामिन ‘ए’ अधिक होने के कारण रतौंधी रोग में लाभदायक है।
अंगूर का रस (ग्रेप जूस):
इसका रस पीने से थकावट दूर होती है, शरीर में शक्ति एबं स्फूर्ति का संचार होता है, मन प्रसन्न रहता है। बार-बार जुकाम होना, कैंसर क्षय पायोरिया, बच्चों का सखा रोग, बार-बार मूत्र त्याग, दुर्बलता, आमाशय के घाव मिरगी, जुकाम के साथ खांसी, हृदय का दर्द, मासिक धर्म की अनियमितता, नकसर, मां का दूध बढ़ाने, नशीले पदार्थों की आदत छोड़ने में भी लाभप्रद है।
संतरे का रस (ऑरेंज़ जूस):
इसका रस पीने से पाचन-शक्ति सुधरती है, इसमें विटामिन ‘सी’ प्रचरं मात्रा में होने से सर्दी-खांसी में लाभ मिलता है, फ्लू में गणकारी है। यह शरीर का वजन बढ़ाता है। बच्चों को रोज संतरे का रस मिलाने से वे मोटे-ताजे हो जाते हैं। पायोरिया, मधुमेह, कब्ज, भूख न लगने, बच्चे के दस्त, गैस की तकलीफ, कमजोरी, पीलिया रोगी में भी इसका रस गुणकारी है।
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अनार का रस (पोमेग्रेनेट जूस):
इसका रस पीने से पेट मुलायम रहता है, कामेंद्रियों के बल मिलता है, अरुचि नष्ट होती है, मन प्रसन्न होता है, शरीर की गर्मी दूर करता है, कृमि को नष्ट करता है। यकृत रोगों, दस्त, दुबलापन, बवासीर, बुखार पेट के रोगों में भी इसका रस लाभदायक है।
तरबूज का रस (वाटरमेलोन जूस):
इसका रस पीने से तरावट बनी रहती है, गर्मी कम महसूस होती है, लू से बचाव होता है, थकावट दूर होती है, प्यास कम लगती है।
नीबू का रस (लेमन जूस):
इसका रस पीने से नेत्र ज्योति बढ़ती है, प्यास बुझाता है, भूख बढ़ाता है, तरावट आती है, शरीर में जल की कमी नहीं होती, पेट ठीक रहता है, थकावट दूर रहता है, जी मिचलाहट नहीं होती , मोटापा घटता है, सौंदर्य बढ़ता है, खून को साफ करता है, दिल की घबराहट दूर करता है।
दही की लस्सी:
इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए बहुत गुणकारी है। इसका 81 प्रतिशत अंश एक घंटे के अंदर शरीर में आत्मसात् हो जाता है, जिससे तुरंत शक्ति मिलती है शरीर पुष्ट होता है कांति, ओज की वृद्धि होती है। शरीर को पालतू चर्बी कम होती है। ह्रदय रोगों में गुणकारी है।
गन्ने का रस:
इसका सेवन करने से शरीर में बल बढ़ता है, भोजन पचता एवं कब्ज़ दूर होता है, वीर्य बढ़ता है, तृप्ति प्रदान करता है शीतलता देता है। स्वंय की जलन दूर करता है। शरीर में मोटापा लाता है और खून साफ करता है।
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