Last Updated on September 12, 2019 by admin
गलसुआ (कनफेड) क्या है ? : mumps in hindi
गलसुआ (Mumps) रोग को कनफेड,गले का संक्रमण,हप्पु, औपसर्गिक कर्णमूलिक शोथ आदी नामो से भी जाना जाता है ।
यह एक औपसर्गिक रोग है जिसमें कर्णमूलिक लालाग्रन्थियों का शोथ(सूजन) होता है, ज्वरादि सार्वदैहिक सौम्य लक्षण होते हैं और पुरुषों में वृषणों(अंडकोष) में शोथ(सूजन) उत्पन्न होने की प्रवृत्ति होती है।
गलसुआ (कनफेड) के कारण :
इसका कारण एक विषाणु है। यह रोग शहरों में तथा घनी बस्तियों में बसन्त और शरद ऋतु में होता है। ५-२५ उम्र के बालक और नौजवान इससे अधिक व शिशु और बूढ़े कम पीड़ित होते हैं। स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों में अधिक होता है। इसका प्रारंभ अधिकतर पाठशाला, छात्रालय, जेल इत्यादि स्थानों में शुरू होता है और प्राय: वही मर्यादित रहता है।
रोग का संक्रमण :
✦ रोग प्रकट होने से पहले कुछ दिन रोग के कारणभूत विषाणु रोगी की लाला में उपस्थित रहते हैं जो खांसते छींकते समय हवा में लाला कणों के साथ उड़कर समीपस्थ मनुष्य पर आक्रमण करते हैं।
✦ क्वचित् लाला दूषित पदार्थों से भी इनका संवहन हो सकता है।
✦ कनफेड़ रोग बच्चों में होता है। ५ से १६ वर्ष की अवस्था तक के बालकों में पाया जाता है। लेकिन इस रोग को उम्र सीमा में नहीं बांधा जा सकता है। यह इससे भी बड़ी उम्र के बालक, बालिकाओं में हो सकता है।
✦ इसके जीवाणु कान के आगे और नीचे गिल्टियों को प्रभावित करके उस स्थान पर शोथ (सूजन) उत्पन्न कर देते हैं।
✦ कभी-कभी इसके पास की ग्रन्थियां यथा जिह्वा को प्रभावित करके उनमें सूजन उत्पन्न कर देती हैं, जिससे भोजन निगलने में असुविधा होती है।
✦ इस रोग के प्रकोप से छोटे बालकों में हल्का ज्वर भी आ सकता है। लेकिन बड़े बालकों में हल्का ज्वर भी आ सकता है। लेकिन बड़े बालकों में बुखार तीव्र होकर निरन्तर कई दिनों तक चलता है।
✦ अक्सर कनफेड़ मुंह के दोनों तरफ होकर संक्रमण होकर विषाणुओं द्वारा फैलती है। ये विषाणु प्राय: पेरोटिड ग्रन्थि में सूजन उत्पन्न कर देते हैं, जो कि कान के आगे तथा नीचे स्थित होती हैं।
✦ यह रोग एक सप्ताह बाद अपने आप ठीक होने लगता है।
✦ बालकों के वृषण या अण्डाशयों में कई बार उपद्रवस्वरूप यह शोक उत्पन्न कर उनमें बन्ध्वत्व उत्पन्न कर देता है। इसकी रोकथाम या बचाव के लिए Mumps vaccine आता है। इसको एक बार ही लगाना उचित है।
गलसुआ (कनफेड) के लक्षण :
१. जबड़े के कोण पर कान के नीचे सूजन उत्पन्न हो जाती है, जिनमें दर्द होने लगता है।
२. धीरे-धीरे यह सूजन गले तक पहुंच जाती है।
३. छोटे बालकों में हल्का ज्वर आ जाता है, जबकि कई बार वयस्कों में बड़ा तीव्र ज्वर आ जाता है जोकि कई दिनों तक बना रहता है।
४. भोजन करने में कठिनाई महसूस करता है।
५. कान के आगे और नीचे की ग्रन्थियों में सृजन आ जाती है।
६. कई बार अगर इसकी रोकथाम नहीं की जाती है तो यह बालकों के वृषणों या अण्डाशयों में शोथ उत्पन्न कर देती है जिससे कालान्तर में बालक नपुंसकता या बन्ध्यत्व से पीड़ित हो जाता है। इसलिए इस रोग के प्रति कभी भी लापरवाह नहीं होना चाहिये। यह रोग होते ही शीघ्र चिकित्सा करनी चाहिए।
७. साधारणत: यह रोग एक सप्ताह में ठीक होने लग जाता है। लेकिन एक सप्ताह के बाद भी संक्रमण हो सकता है जिसका काल एक सप्ताह और होता है।
इसके रोगाणु लार तथा मांस में विद्यमान रहते हैं। यह रोग निकट सम्पर्क तथा उसके थूक के द्वारा फैलता है। जब कोई स्वस्थ व्यक्ति इससे पीड़ित रोगी के पास ज्यादा रहता है, तो भी वह रोग होने की संभावना बनी रहती है। रोगी के थूकने से इसके जीवाणु वातावरण में चारों तरफ फैल जाते हैं। जब कोई स्वस्थ इसके सम्पर्क में आता है तो वह इससे पीड़ित हो जाता है।
रोगी की देखभाल :
रोगी को यथासंभव ठंड से बचाना चाहिये, आराम कराना चाहिये। रोग मुक्त होने तथा हल्का एवं सुपाच्य भोजन दें। गले तथा चेहरे के पास क्रमश: ठण्डी और गर्म पट्टियां बदलते रहना चाहिये। गले के पास जहां सूजन हो वहां पर प्लास्टर (बेलाडोना प्लास्टर) थोड़ा गर्म करके चिपका दें। दर्द हेतु दर्दशामक औषधियों की व्यवस्था करें।
गलसुआ (कनफेड) से बचने के उपाय :
१. रोगी को स्वच्छ हवादार कमरे में रखें।
२. रोगी के प्रयोग में लाई गई वस्तुओं को रोगाणुरहित औषधियों के प्रयोग से विसंक्रमित कर लें।
३. रोगी के थूक या लार को नष्ट कर दें।
४. रोग के प्रकोप से कम से कम पन्द्रह-बीस दिनों तक प्रसारकी संभावना रहती है अतः ध्यान रखें।
५. रोग के प्रारम्भ से रोगी को हवादार कमरे में गले की सूजन पूर्णतया बैठ जाने के बाद एक सप्ताह तक पृथक् रखना चाहिये।
६. रोगी के साथ सम्बन्ध में आये हुए लोगों को अगर वे पहले इससे पीड़ित न हुए हों तो चार सप्ताह तक अलग रखना चाहिए।
७. उपसर्गनाशक द्रव्य से मुख की सफाई रखनी चाहिए।
गलसुआ(कनफेड) का इलाज :
(१) गलसुआ का घरेलू उपाय – धत्तूरमूल २ तोला, सेंधा नमक ४ रत्ती को जल के साथ पीस किंचित गरमकर दिन में ३-४ बार शोथ पर लगावें। शोथ नष्ट होता है।
(२) मैनसिल, कूठ, हल्दी, हरताल देवदारु सब समभाग लेकर जल के साथ पीस किंचित गरम कर शोथ पर ३-४ बार लगावें।
(३) गरम जल में तारपीन का तेल डाल मोटा कपड़ा या तौलिया भिगोकर पानी निचोड़कर सुहाता २ वाष्प स्वेद करना लाभकारी होता है।
(४) बेलाडोना प्लास्टर या बी.आई. फ्लोजिस्टीन प्लास्टर कनपेडू पर चिपका दें।
(५) एक्रोमाइसीन, टेरामाइसीन, डाइक्रिस्टीसिन ओम्नेसिलीन के इलेक्शन या कैपसूल दें।
(६) दर्द के लिए नोवाल्जिन, पेरासिटामाल, डोलोनेक्स- डी.टी., एसजीपाइरीन दर्द निवारक इत्यादि गोलियां देनी चाहिये।
(दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)
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