Last Updated on July 22, 2019 by admin
गुण, कर्म, स्वभाव में उत्कृष्ट, दिव्य स्वरूप और इच्छित फल देने की सामर्थ्य जिसके पास हैं, उसे देवता कहते हैं। कहा जाता है कि हिंदू धर्म में अनगिनत देवी-देवता हैं। बृहदारण्यक उपनिषद् के तीसरे अध्याय में याज्ञवल्क्य ने कहा है कि वास्तव में तो देव 33 ही हैं, जिनमें 8 वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य, 1 देवराज इंद्र और 1 प्रजापति सम्मिलित हैं। अग्नि, पृथ्वी, वायु, अंतरिक्ष, आदित्य, द्यौ, चंद्रमा और नक्षत्र ये 8 वसु हैं, जिन पर सारी सृष्टि टिकी हुई है। पांच ज्ञानेंद्रियां, पांच कर्मेंद्रियां और मन (आत्मा) ये 11 रुद्र हैं। संवत्सर के बारह माहों के सूर्यों को आदित्य कहा जाता है। मेघ, इंद्र है और प्रकृति रूप यज्ञमय सारा जीवन प्रजापति है।
वैसे अग्नि, पृथ्वी, वायु, अंतरिक्ष, आदित्य और द्यौ इन 6 देवों में ही सारा विश्व समा जाता है। किंतु आम लोगों में धारणा है कि 33 कोटि (करोड़) देवता होते हैं। कोटि शब्द के दो अर्थ श्रेणी और करोड़ लगाए जाते हैं। इसी वजह से 33 करोड़ की धारणा बनी होगी।
ऋग्वेद में ऋषि कहते हैं
इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमाहुथो दिव्यः स सुपर्णो गरुत्मान् ।।
एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति अग्निं यमं मातरिश्वानमाहुः ॥
-ऋग्वेद 1/164/46
अर्थात् एक सत्स्वरूप परमेश्वर को बुद्धिमान् ज्ञानी लोग अनेक प्रकारों से अनेक नामों से पुकारते हैं। उसी को वे अग्नि, यम, मातरिश्वा, इन्द्र, मित्र, वरुण, दिव्य, सुपर्ण, गरुत्मान इत्यादि नामों से याद करते हैं। सारा वैदिक वाङ्मय इसी प्रकार की घोषणाओं से भरा है, जिसमें एक ही तत्त्व को मूलतः स्वीकार करके उसी के अनेक रूपों में ईश्वर को मान्यता दी गई है।