Last Updated on February 8, 2023 by admin
इन्द्रायण क्या है ? (Indrayan in Hindi)
इन्द्रायण एक लता होती है जो पूरे भारत के बलुई क्षेत्रों में पायी जाती है यह खेतों में उगाई जाती है। इन्द्रायण 3 प्रकार की होती है। पहली छोटी इन्द्रायण, दूसरी बड़ी इन्द्रायण और तीसरी लाल इन्द्रायण होती है। तीनों प्रकार की इन्द्रायण में लगभग 50 से लेकर 100 फल आते हैं।
इन्द्रायण का विभिन्न भाषाओं में नाम :
हिन्दी | इन्द्रायण |
अंग्रेजी | कोलोसिनथ, बाईटर ऐपल |
संस्कृत | इन्द्रवारुणी, विशाला, महाफला |
गुजराती | इन्द्रावण |
मराठी | इन्द्रायण, इन्द्रफल |
बंगाली | राखालशा |
अरबी | इंजल, अलकम |
फारसी | खरबुज-ए-तल्ख |
तेलगू | एतिपुच्छा |
इन्द्रायण का पौधा कैसा होता है व इसके प्रकार :
इन्द्रायण की तिन प्रजातियाँ पाई जाती है –
1. छोटी इन्द्रायण : छोटी इन्द्रायण को संस्कृत में एन्द्री, चित्रा, गावाक्षी, इन्द्रवारुणी आदि नाम से जाना जाता है। छोटी इन्द्रायण की बेलों के पत्ते खण्डित तथा इसकी डंठलों में रोम (छेद) होते हैं। पत्र वृन्त के पास में इसका फूल तथा एक लम्बा सूत्र निकलता है। इसी सूत्र की सहायता से इसकी बेले पेड़ों में लिपटकर आसानी से पूरे पेड़ों में फैल जाती हैं। छोटी इन्द्रायण के फूल घंटे के आकार के गोल, पीले रंग के होते हैं। एकलिंगी नर और मादा फूल अलग-अलग होते हैं।
2. बड़ी इन्द्रायण : बड़ी इन्द्रायण को संस्कृत में महाफला और विशाला कहते हैं। बड़ी इन्द्रायण की लताएं कुछ ज्यादा बड़ी होती हैं, इसके पत्ते तरबूज के पत्तों के जैसे कई भागों में बटे हुए होते हैं। बड़ी इन्द्रायण के फूल पीले रंग के होते हैं। बड़ी इन्द्रायण के फल 4 से 12 सेमी गोल और लंबे होते हैं। बड़ी इन्द्रायण का छोटा फल रोमों से ढका रहता है। बड़ी इन्द्रायण के कच्चे फलों में सफेद रंग की धारिया प्रतीत होती हैं तथा फल के पकने पर ये धारिया स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ने लगती हैं और फल का रंग नीला हरा हो जाता है। बड़ी इन्द्रायण के फल की मज्जा (बीच का भाग) लालरंग का तथा बीज पीले और काले रंग के होते हैं।
3. लाल इन्द्रायण : लाल इन्द्रायण बेल बड़ी इन्द्रायण के ही समान होती है लेकिन इसके फूल सफेद रंग के तथा फल पकने पर नींबू के समान लाल रंग के हो जाते हैं।
इन्द्रायण का रासायनिक संघटन :
इन्द्रायण की कली में कोलोसिन्थिन तथा एक प्रकार का गोंद के आकार का पदार्थ, कोलोसिन्थिटिन, पैन्टिन, गम तथा भस्म पाये जाते हैं। इसके बीजों में स्थिर तेल, एलब्यूमिन तथा भस्म तीन प्रतिशत रहती है।
इन्द्रायण के गुण (Indrayan ke Gun)
- इन्द्रायण दस्त लाने वाली औषधि है।
- कफ-पित्तनाशक है।
- यह कामला (पीलिया), प्लीहा (तिल्ली) तथा पेट के रोग में लाभदायक है ।
- यह श्वांस (दमा), खांसी तथा सफेद दाग की उपयोगी औषधि है ।
- इन्द्रायण गैस, गांठ, व्रण (जख्म) को ठीक करती है ।
- प्रमेह (वीर्य विकार), गण्डमाला (गले में गिल्टी का हो जाना) तथा विष को नष्ट करता है।
- ये गुण छोटी और बड़ी दोनों इन्द्रायण में होते हैं।
सेवन की मात्रा :
इन्द्रायण के फलों का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लेकर लगभग आधा ग्राम तक तथा जड़ का चूर्ण 1 से 3 ग्राम तक लेना चाहिए।
विभिन्न रोगों में इन्द्रायण के फायदे व उपयोग (Indrayan ke Fayde aur Upyog)
1. बालों को काला करना:
- इन्द्रायण के बीजों का तेल नारियल के तेल के साथ बराबर मात्रा में लेकर बालों पर लगाने से बाल काले हो जाते हैं।
- इन्द्रायण की जड़ के 3 से 5 ग्राम चूर्ण को गाय के दूध के साथ सेवन करने से बाल काले हो जाते हैं। परन्तु इसके परहेज में केवल दूध ही पीना चाहिए।
- सिर के बाल पूरी तरह से साफ कराके इन्द्रायण के बीजों का तेल निकालकर लगाने से सिर में काले बाल उगते हैं।
- इद्रायण के बीजों का तेल लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं।
2. बहरापन (कान से न सुनाई देना): इन्द्रायण के पके हुए फल को या उसके छिलके को तेल में उबालकर और छानकर पीने से बहरापन दूर होता है।
3. दांत के कीड़े: इसके पके हुए फल की धूनी दान्तों में देने से दांत के कीड़े मर जाते हैं।
4. अपस्मार (मिर्गी): इन्द्रायण की जड़ के चूर्ण को नस्य (नाक में डालने से) दिन में 3 बार लेने से अपस्मार (मिर्गी) रोग दूर हो जाता है।
5. कास (खांसी): इन्द्रायण के फल में छेद करके उसमें कालीमिर्च भरकर छेद को बंद करके धूप में सूखने के लिए रख दें या गर्म राख में कुछ देर तक पड़ा रहने दें, फिर काली मिर्च के दानों को रोजाना शहद तथा पीपल के साथ एक सप्ताह तक सेवन करने से कास (खांसी) के रोग में लाभ होता है।
6. स्तन के कष्ट: स्त्रियों के स्तन में सूजन आ जाने पर इन्द्रायण की जड़ को घिसकर लेप करने से लाभ होता है।
7. पेट दर्द:
- इन्द्रायण का मुरब्बा खाने से पेट के रोग दूर होते हैं।
- इन्द्रायण के फल में काला नमक और अजवायन भरकर धूप में सुखा लें, इस अजवायन की गर्म पानी के साथ फंकी लेने से दस्त के समय होने वाला दर्द दूर हो जाता है।
8. विसूचिका: विसूचिका (हैजा) के रोगी को इन्द्रायण के ताजे फल के 5 ग्राम गूदे को गर्म पानी के साथ या इसके 2 से 5 ग्राम सूखे गूदे को अजवायन के साथ देना चाहिए।
9. मूत्रकृच्छ (पेशाब में दर्द और जलन):
- इन्द्रायण की जड़ को पानी के साथ पीसकर और छानकर 5 से 10 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से पेशाब करते समय का दर्द और जलन दूर हो जाती है।
- 10 से 20 ग्राम लाल इन्द्रायण की जड़, हल्दी, हरड़ की छाल, बहेड़ा और आंवला को 160 मिलीलीटर पानी में उबालकर इसका चौथाई हिस्सा बाकी रह जाने पर काढ़ा बनाकर उसे शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से मूत्रकृच्छ (पेशाब में दर्द और जलन) का रोग समाप्त हो जाता है।
10. मासिक-धर्म की रुकावट:
- मासिक-धर्म के रुक जाने पर 3 ग्राम इन्द्रवारूणी के बीज और 5 दाने कालीमिर्च को एक साथ पीसकर 200 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को छानकर रोगी को पिलाने से रुका हुआ मासिक धर्म दुबारा शुरू हो जाता है।
- इन्दायण की जड़ को योनि में रखने से योनि का दर्द और पुष्पावरोध (मासिक-धर्म का रुकना) दूर होता है।
11. आंतों के कीड़े: इन्द्रायण के फल के गूदे को गर्म करके पेट में बांधने से आंतों के सभी प्रकार के कीड़े मर जाते हैं।
12. विरेचन (दस्त लाने वाला): इन्द्रायण की फल मज्जा को पानी में उबालकर और छानकर गाढ़ा करके छोटी-2 चने के आकार की गोलियां गोलियां बना लेते हैं। इसकी 1-2 गोली ठण्डे दूध से लेने से सुबह साफ दस्त शुरू हो जाते हैं।
13. जलोदर (पेट में पानी की अधिकता):
- इन्द्रायण के फल का गूदा तथा बीजों से खाली करके इसके छिलके की प्याली में बकरी का दूध भरकर पूरी रात भर के लिए रख दें। सुबह होने पर इस दूध में थोड़ी-सी चीनी मिलाकर रोगी को कुछ दिनों तक पिलाने से जलोदर मिट जाता है। इन्द्रायण की जड़ का काढ़ा और फल का गूदा खिलाना भी लाभदायक है, परन्तु ये तेज औषधि है।
- इन्द्रायण की जड़ का चूर्ण 1 से 3 ग्राम ग्राम को सोंठ और गुड़ के साथ सुबह और शाम देने से लाभ होता है। ध्यान रहें की अधिक मात्रा में सेवन करने से विशाक्त (जहर) बन जाता है और हानि पहुंचाता है।
- इन्द्रायण को लेने से लीवर (यकृत) की वृद्धि के कारण पेट का बड़ा हो जाने की बीमारी में लाभ होगा।
- इन्द्रायण की जड़ की छाल के चूर्ण में सांभर नमक मिलाकर खाने से जलोदर समाप्त हो जाता है।
14. उपदंश (सिफलिस):
- 100 ग्राम इन्द्रायण की जड़ को 500 मिलीलीटर एरण्ड के तेल में डालकर पकाने के लिए रख दें। पकने पर जब तेल थोड़ा बाकी रह जाये तो इस 15 मिलीलीटर तेल को गाय के दूध के साथ सुबह-शाम पीने से उपदंश समाप्त हो जाता है।
- इन्द्रायण की जड़ों के टुकड़े को 5 गुना पानी में उबाल लें। जब उबलने पर तीन हिस्से पानी बाकी रह जाए तो इसे छानकर उसमें बराबर मात्रा में बूरा मिलाकर शर्बत बनाकर पीने से उपदंश और वात पीड़ा मिटती है।
15. सुख प्रसव:
- इन्द्रायण की जड़ को पीसकर गाय के घी में मिलाकर भग (योनि) पर मलने से प्रसव आसानी से हो जाता है।
- इन्द्रायण के फल के रस में रूई का फाया भिगोकर योनि में रखने से बच्चा आसानी से हो जाता है।
- इन्द्रायण की जड़ को बारीक पीसकर देशी घी में मिलाकर स्त्री की योनि में रखने से बच्चे का जन्म आसानी से होता है।
16. सूजन:
- इन्द्रायण की जड़ों को सिरके में पीसकर गर्म करके शोथयुक्त (सूजन वाली जगह) स्थान पर लगाने से सूजन मिट जाती है।
- शरीर में सूजन होने पर इन्द्रायण की जड़ को सिरके में पीसकर लेप की तरह से शरीर पर लगाने से सूजन दूर हो जाती है।
- इन्द्रायण को बारीक पीसकर इसका चूर्ण बना लें। 200 मिलीलीटर पानी में 50 ग्राम धनिये को मिलाकर काढ़ा बना लें। इसके बाद इन्द्रायण के चूर्ण को इस काढ़े में मिलाकर शरीर पर लेप की तरह लगाने से सूजन खत्म हो जाती है।
17. संधिगत वायु (घुटनों वायु का प्रकोप):
- इन्द्रायण की जड़ और पीपल के चूर्ण को बराबर मात्रा में लेकर गुड़ में मिलाकर 10 ग्राम की मात्रा में रोजाना सेवन करने से संधिगत वायु दूर होती है।
- 500 मिलीलीटर इन्द्रायण के गूदे के रस में 10 ग्राम हल्दी, काला नमक, बड़े हुत्लीना की छाल डालकर बारीक पीस लें, जब पानी सूख जाए तो चौथाई-चौथाई ग्राम की गोलियां बना लें। एक-एक गोली सुबह-शाम दूध के साथ देने से सूजन तथा दर्द थोड़े ही दिनों में अच्छा हो जाता है।
18. गर्भधारण (गर्भ ठहराने के लिए): इन्द्रायण की जड़ों को बेल पत्रों के साथ पीसकर 10-20 ग्राम की मात्रा में रोजाना सुबह-शाम पिलाने से स्त्री गर्भधारण करती है।
19. बिच्छू विष: इन्द्रायण के फल का 6 ग्राम गूदा खाने से बिच्छू का (विष) जहर उतरता है।
20. सर्पदंश (सांप के काटने) पर: 3 ग्राम बड़ी इन्द्रायण की जड़ का चूर्ण पान के पत्ते में रखकर खाने से सर्पदंश में लाभ मिलता है।
21. बच्चों के डिब्बा (पसली के चलने पर): बच्चों के डिब्बा रोग (पसली चलना) में इसकी जड़ के 1 ग्राम चूर्ण में 250 मिलीग्राम सेंधानमक मिलाकर गर्म पानी के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से लाभ मिलता है।
22. कान के घाव: लाल इन्द्रायण के फल को पीसकर नारियल के तेल के साथ गर्म करके कान के अन्दर के जख्म पर लगाने से जख्म साफ होकर भर जाता है।
23. सिर दर्द:
- इन्द्रायण के फल के रस या जड़ की छाल को तिल के तेल में उबालकर तेल को मस्तक (माथे) पर लेप करने से मस्तक पीड़ा या बार-बार होने वाली मस्तक पीड़ा मिटती है।
- इन्द्रायण के फलों का रस या जड़ की छाल के काढ़े के तेल को पकाकर, छानकर 20 मिलीलीटर सुबह-शाम उपयोग करने से आधाशीशी (आधे सिर का दर्द), सिर दर्द, पीनस (पुराना जुकाम), कान दर्द और अर्धांगशूल दूर हो जाते हैं।
24. श्वास: इन्द्रायण के फलों को चिलम में रखकर पीने से श्वास (सांस) का रोग मिटता है।
25. सुजाक (गिनोरिया): त्रिफला, हल्दी और लाल इन्द्रायण की जड़ तीनों का क्वाथ (काढ़ा) बनाकर 30 मिलीलीटर दिन में दो बार पीने से सुजाक में लाभ होता है।
26. बिद्रधि (फुन्सियां): लाल इन्द्रायण की जड़ और बड़ी इन्द्रायण की जड़ दोनों को बराबर लेकर लेप बनाकर लगाने से दुष्ट विद्रधि नष्ट होती है।
27. प्लेग (चूहों से होने वाला रोग): इन्द्रायण की जड़ की गांठ को (इसकी जड़ में गांठे होती हैं) यथा सम्भव सबसे निचली या 7 वें नम्बर की लें, इसे ठण्डे पानी में घिसकर प्लेग की गांठ पर दिन में 2 बार लगायें और लगभग 2 से 3 ग्राम तक की खुराक में इसे पिलाने से गांठ एकदम बैठने लगती है और दस्त के रास्ते से प्लेग का जहर निकल जाता है और रोगी की मुर्च्छा (बेहोशी) दूर हो जाती है।
28. बवासीर के मस्से: इन्द्रायण के बीजों को पानी में पीसकर लेप बनाकर बवासीर के मस्सों पर दिन में 2 बार कुछ हप्ते तक लगाने से लाभ होता है।
29. ग्रन्थि शोथ: इन्द्रायण के पत्तों का लेप गांठ पर बांधने से वह बैठ जाती है। नोट: गर्भवती स्त्रियों, बच्चों एवं कमजोर व्यक्तियों को इसका सेवन यथा सम्भव नहीं करना चाहिए अथवा सतर्कता से करना चाहिए।
30. मलेरिया का बुखार: इन्द्रयण की भूनी हुई चूर्ण को 1 से 4 ग्राम को शहद के साथ सुबह और शाम सेवन करने मलेरिया और शीत बुखार ठीक हो जाता है। इसका काढ़ा गुर्च (गिलोय) के साथ बनाकर देने से लाभ होता हैं।
31. कब्ज:
- इन्द्रायण की जड़ का चूर्ण 1-3 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम सोंठ और गुड़ के साथ देने से कब्ज दूर होती है। ध्यान रहे कि मात्रा अधिक न हो जाये क्योंकि ऐसा होने पर वह जह़र बन जाता है।
- इन्द्रायण के फलों को घिसकर नाभि पर लगाएं और इसकी जड़ का चूर्ण 2 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सोते समय लें।
32. पृष्टाबुर्द (गर्दन के पिछले हिस्से में से मवाद निकलना): इन्द्रायण और विशाला की जड़ को ठण्डे पानी के साथ पीसकर पृष्टाबुर्द (गर्दन के पिछले हिस्से में से मवाद निकलना) पर गाढ़ा-गाढ़ा लगाने से पृष्टाबुर्द की सूजन और दर्द दूर हो जाता है।
33. गर्भवती स्त्री के रोग: इन्द्रायण की जड़ का लेप करने से गर्भवती स्त्री के स्तनों का दर्द और दुग्ध-बुखार उतर जाता है।
34. बहरापन (कान से कम सुनाई देना): इन्द्रायण के फल से बने तेल को रोजाना 2-3 बार कान में डाला जाये तो बहरापन दूर हो जाता है।
35. कान के रोग: इन्द्रायण के कच्चे फल को तिल के तेल में डालकर पका लें। फिर इसे छानकर एक शीशी में भर लें। इस तेल की 1-2 बूंदें सुबह और शाम कान में डालने से कान के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
36. नष्टार्तव (बंद मासिक-धर्म): इन्द्रायण की जड़ गर्भाशय के मुंह पर रखने से रुकी हुई माहवारी जारी हो जाती है।
37. अल्सर: इन्द्रायण, शंखाहुली, दन्ती और नेली को गौमूत्र (गाय का पेशाब) के साथ पीसकर सुबह के समय लगभग 25 दिन तक सेवन करना चाहिए।
38. पेट का बढ़ा होना: इन्द्रायण की जड़ का पिसा हुआ चूर्ण 120 मिलीग्राम से लेकर 480 मिलीग्राम की मात्रा में सोंठ और गुड़ के साथ सुबह और शाम लेने से जलोदर (पेट में पानी का भरना), लीवर (यकृत) या प्लीहा (तिल्ली) की बढ़ोत्तरी के कारण पेट के प्रसारण यानी फैलाव को रुकता है।
39. पेट के कीड़े: इन्द्रायण की जड़ को पानी में अच्छी तरह घिसकर गुदा (मल निकले के द्वार) पर बाहर और अन्दर लगाने से लाभ होता है।
40. अंगुलबेल (डिठौन): इन्द्रायण की जड़ और विशाला की जड़ एक साथ घिसकर उंगुलियों पर लगाने से अंगुली की सूजन और दर्द ठीक होता है।
41. उपदंश (सिफलिस):
- इन्द्रायण की ताजी जड़, रूसी की ताजी जड़ 5-5 ग्राम लेकर कालीमिर्च के 10 दानों के साथ पीसकर 200 मिलीलीटर पानी में घोलकर छान लें। इस मिश्रण को 7 दिनों तक खाने से उपदंश खत्म हो जाता है।
- 50 ग्राम इन्द्रायण की जड़ को 400 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बना लें और मिश्री मिलाकर पी लें। इससे उपदंश दूर हो जाता है।
42. फोड़ा: फोड़े पर इन्द्रायण की जड़ और विशाला (महाकाल, इन्द्रायण की एक भेद) को मिलाकर पत्थर पर पानी में घिसकर लेप की तरह फोड़े पर लगाने से सूजन और दर्द ठीक हो जाता है।
इन्द्रायण के हानिकारक प्रभाव (Indrayan ke Nuksan in Hindi)
इन्द्रायण का सेवन बड़ी ही सावधानी से करना चाहिए। क्योंकि इसके ज्यादा और अकेले सेवन करने से पेट में मरोड़ पैदा होता है और शरीर में जहर के जैसे लक्षण पैदा होते हैं।
नोट : गर्भवती स्त्रियों, बच्चों एवं कमजोर व्यक्तियों को इसका सेवन यथासम्भव नहीं करना चाहिए अथवा सतर्कता से करना चाहिए।
(अस्वीकरण : ये लेख केवल जानकारी के लिए है । myBapuji किसी भी सूरत में किसी भी तरह की चिकित्सा की सलाह नहीं दे रहा है । आपके लिए कौन सी चिकित्सा सही है, इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करके ही निर्णय लें।)