Last Updated on May 2, 2024 by admin
ज्वार परिचय एवं स्वरूप (Jowar in Hindi)
ज्वार की फसल को अधिक पानी (सिंचाई) की जरूरत नहीं पड़ती है, यह खरीफ की फसल है और यह मोटे अनाजों में गिनी जाती है। इसकी खेती के लिए 25 से 35 सेग्रे. तापमान तथा 40 से 60 सेमी. वर्षा पर्याप्त है।
यह भारी दोमट, हलकी दोमट तथा जलोढ़ भूमि में खूब बढ़ती है। इसका पौधा नरकट की तरह सीधा, 15-20 फीट ऊँचा, तने में सात-आठ अंगुल पर गाँठे, यहीं से तलवार सरीखे लंबे पत्ते निकलते हैं। आखिर में सिरे पर फूल के जीरे और सफेद दानों के गुच्छे (भुट्टे) लगते हैं।
ज्वार के भुट्टे अक्तूबर के अंत तक पककर तैयार हो जाते हैं, तब पक्षियों से इनकी रखवाली करनी पड़ती है। पकने पर भुट्टे काटकर उनसे दाने अलग कर लिए जाते हैं। इसके हरे तने को चारे के काम में लाते हैं, इसे ‘चरी’ कहा जाता है। इसे घना बोने से हरा चारा पतला एवं नरम रहता है।
भारत में राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उ.प्र., म.प्र. में खूब उगाई जाती है। इसके अलावा चीन, अरब, अफ्रीका, अमरीका, पाकिस्तान, रूस में बड़े पैमाने पर खेती होती है। कहीं-कहीं इसकी दो फसल ली जाती हैं।
ज्वार के प्रकार :
ज्चार प्रधानतः दो प्रकार की होती है-(1) सफेद ज्वार तथा (2) लाल ज्वार।
- श्वेत ज्वार – त्रिदोष (वात-पित्त-कफ), गुल्म, व्रण, अर्श व अरुचि नाशक पथ्यकर, वृष्य व बलवर्द्धक होती है ।
- लाल ज्वार – में मधुर, शीतल, भारी, पृष्टिकर, त्रिदोषनाशक व बलवर्द्धक गुण पाये जाते हैं । ज्वार का सेवन भूख से कम मात्रा में ही करना चाहिए, क्योंकि यह भारी होने के कारण दुष्पाच्य होती है और अफरा करती है ।
ज्वार का विभिन्न भाषाओं में नाम :
- अंग्रेजी – Great millet, milet,
- गुजराती – जुआर,
- पंजाबी – जवार, चरी,
- मराठी – जोबारी, जोघला,
- संस्कृत – यावनाल,
- हिंदी- ज्वार, जुआर, जोन्हाइ चरी, जवारी; व्यापारिक नाम जुआर, ज्वार,
ज्वार के औषधीय गुणधर्म (Jowar ke Gun in Hindi)
- निघंटुकारों की दृष्टि में ज्वार लघु, कषाय, मधुर, रूक्ष, शीतवीर्य, किंचित् वीर्यवर्धक, क्लेदकारक, ग्राही, आनाहकारक, चिरपाकी, मूत्रल, रुचिवर्धक, कफ-पित्त तथा रक्तविकार आदि में हितकर है।
- सफेद ज्वार पथ्यकर, वृष्य, बलप्रद, त्रिदोष, अर्थ, व्रण, गुल्म तथा अरुचिनाशक है।
- लाल ज्वार कफकारक, पिच्छिल, गुरु, शीतल, मधुर, पुष्टिकर तथा त्रिदोषनाशक है।
- भाव मिश्र की सम्मति में लाल ज्वार वीर्य के लिए अहितकर एवं ग्लानिकारक है, परंतु बवासीर तथा घावों में लाभदायक है।
- ज्वार में मिनरल, प्रोटीन, रेशे, पोटैशियम, फॉस्फोरस, कैल्सियम, लौह तथा विटामिन बी कॉम्प्लेक्स के साथ-साथ पोटाश, श्वेतसार, ग्लूकोसाइड, अल्युमिनाइड्स तथा जलीय अंश पर्याप्त मात्रा में हैं।
- कुछ आयुवेर्दिक चिकित्सक सफेद ज्वार को मीठी, बलकारी, बवासीरनाशक, वायुगोला, जख्म आदि में हितकर मानते हैं।
- ज्वार के प्रति 100 प्राम खाद्य भाग में ऊर्जा 1418 कैलोरी, कार्बोहाइड्रेट्स 74.63, खाद्य रेशे 6.3, वसा 3.30 तथा प्रोटीन 11.30 ग्राम तक होती है।
ज्वार के सामान्य उपयोग (Jowar ke Upyog in Hindi)
- आहार के अनाजों में ज्वार हालाँकि साधारण अन्न है। इसके कोमल भुट्टों को भूनकर खाया जाता है, ये अत्यंत पौष्टिक तथा स्वादिष्ट होते हैं।
- ज्वार के सरकंडे मीठे होते हैं।
- ज्वार में पोषक तत्त्व और चर्बी की मात्रा बाजरे के बराबर ही है।
- ज्वार की रोटी, नमकीन या मीठा दलिया तथा इसके दाने छाछ में पकाकर महेरी बनाई जाती है।
- ज्वार की खील बनती हैं। बसंत ऋतु में यह दोपहर बाद का लोकप्रिय नाश्ता है, यह खील कफ का शमन करती है।
- कांजी बनाने में भी ज्वार का उपयोग होता है। यह कांजी कफ और वायु को दूर करती है।
- देहात तथा आदिवासी क्षेत्रों में ज्वार की रोटी तथा ज्वार के दानों को उबालकर खाया जाता है।
- ज्वार के हरे तथा सूखे डंठल पशुओं का उत्तम चारा हैं, इसकी कुट्टी बनाकर पशुओं को खिलाते हैं।
- होली के दिनों, यानी बसंत ऋतु में कफ प्रकोप अधिक होता है, अत: कफ शमन के लिए इसकी खील तथा चने खाए जाते हैं।
ज्वार के फायदे व औषधीय उपयोग : jowar ke fayde in hindi
आयुर्वेदिक चिकित्सकों तथा निघंटुकारों ने ज्वार के अनेक चिकित्सीय उपयोग बताए हैं। यह प्रोटीन का अच्छा स्रोत है। इसके सेवन से वजन तथा मोटापा घटाने में मदद मिलती है। हृदय रोग एवं बवासीर में यह बड़ी कारगर है। चावल और गेहूँ की तुलना में ज्वार में कैल्सियम, आयरन, प्रोटीन तथा रेशे प्रचुर मात्रा में होते हैं। इस हिसाब से ज्वार इन दोनों अनाजों से श्रेष्ठ है। गुणों के कारण इसे ‘गोल्डन ग्रेन’ कहा जाता है।
1). दंत-पीड़ा :
दाँतों या दाढ़ में दर्द होता है, मसूढ़े फूल जाते है या दाँतों में टीस उठती है तो ज्वार के दानों को जलाकर रखा बना लें। इसमें सेंधा नमक, इलायची दाना तथा कालीमिर्च डालकर खूब बारीक पीस लें। इस राख को सुबह-शाम मंजन की तरह दाँतों की मालिश करें। इससे दाँतों की अच्छी देखभाल होती है। अगर दाँत हिल रहे हों तो वे भी मजबूत हो जाते हैं। ज्वार में पोटाश का अंश होता है, अतः दंत-विकारों में फायदेमंद है। ( और पढ़े –दाँत दर्द की छुट्टी कर देंगे यह 51 घरेलू उपचार )
2). कब्जियत :
पेट भली प्रकार से साफ नहीं होता है, कब्ज रहती है तो ज्वार की रोटी खाना शुरू करें या ज्वार की खील भुने चने के साथ चबाएँ तो पेट साफ होगा, मल खुलकर आएगा, कब्ज नहीं रहेगी, गैस नहीं बनेगी। ( और पढ़े – कब्ज दूर करने के 18 रामबाण देसी घरेलु उपचार)
3). आमातिसार :
ऐंठन के साथ दस्त लगे हैं, आम भी आ रही हो तो ज्वार की ताजा रोटी के छोटे-छोटे टुकड़े करके या मींड़कर दही या मट्ठा में भिगोकर कुछ देर रख छोड़े। इसमें थोड़ा सेंधा नमक डालकर रोगी को खाने को दें। एक-दो दिन में ही आमातिसार से छुटकारा हो जाएगा।
4). फोड़ा-फुसी :
शरीर पर कहीं भी फोड़ा-फुसी निकल आते हैं; ऐसा फोड़ा जो न पकता हो और न फूटता हो, जलन व पीड़ा असह्य हो रही हो तो ज्वार के आटे की पुल्टिस बनाएँ, उसमें धतूरे का रस मिलाकर फोड़े पर बाँध दें। फोड़ा रात भर में पककर फूट जाएगा और जलन व पीड़ा से मुक्ति मिलेगी। ( और पढ़े –फोड़े फुंसी बालतोड़ के 40 घरेलू उपचार )
5). कील-मुँहासे :
ज्वार के कच्चे दाने बारीक पीसकर उसमें कत्था तथा चूना मिलाकर केवल कील-मुंहासों पर लगाएँ, रात को लगाकर प्रात: गुनगुने पानी में नीबू की बूंदें डालकर धो डालें; कील-मुंहासों के दाग-धब्बे भी मिट जाएँगे, पर दो सप्ताह तक इस नुस्खे को उपयोग में लाएँ। | कफ-खाँसी : बसंत ऋतु में अकसर कफ का संचय तथा प्रकोप अधिक होता है; कफ के शमन के लिए ज्वार की कांजी का सेवन करें या ज्वार की खील खाने से भी कफ का शमन हो जाता है। कांजी कफ के साथ-साथ वायु विकार को भी दूर करती है तथा अर्थ के रोगियों के लिए भी लाभदायक है। ( और पढ़े –कील मुहासों के 19 रामबाण घरेलु उपचार )
6). वजन-मोटापा :
चूँकि ज्वार में पर्याप्त मात्रा में खाने योग्य रेशे (फाइबर) होते हैं; जो मोटापा नहीं बढ़ने देते हैं। अतः ज्वार की रोटी या कुछ मात्रा में ज्वार के दाने नित्य खाया करें। इससे न तो शरीर में अनावश्यक वजन बढ़ेगा और न ही मोटापा चढ़ने की आशंका रहेगी। ( और पढ़े –मोटापा कम करने के अचूक उपाय )
7). पेट में जलन :
बदहजमी या अन्य किसी कारण से पेट में जलन होती हो तो ज्वार की खील बताशे या मिश्री के साथ खूब चबा-चबाकर खाएँ, इससे पेट की जलन शांत हो जाएगी।
8). ऋतुस्राव की गड़बड़ी :
मासिक धर्म कष्ट के साथ आता हो या अनियमित हो गया हो तो ज्वार के भुट्टे को जलाकर बनी राख को छान लें। इसमें से लगभग एक चम्मच की मात्रा में राख पानी के साथ प्रातः मासिक धर्म प्रारंभ होने से एक सप्ताह पहले शुरू कर दें और मासिक धर्म शुरू हो जाए तो इसका सेवन बंद कर दें। इससे मासिक धर्म संबंधी सभी गड़बडियाँ ठीक हो जाती हैं।
9). तृषा शांति :
बार-बार प्यास लगती हो, पानी पीने पर भी न बुझती हो, मुँह सूख जाता हो तो ज्वार की गरमागरम रोटी को मींड़कर ठंडी छाछ या दही में भिगोकर कुछ देर रख दें। इसमें खाँड़ या मिश्री डालकर खाएँ, तो प्यास तुरंत बुझेगी या ज्वार की खील को दही में गलाकर भी सेवन कर सकते हैं।
10). लकवा (पक्षाघात) :
कुछ वैद्य-हकीमों का मानना है कि ज्वार के दानों को उबालकर किसी प्रकार उनका रस निकालें, फिर उसमें समान मात्रा में अरंडी का तेल (कैस्टर ऑयल) मिलाकर गरम करके सुहाता-सुहाता पीडित अंग या स्थान पर लेप कर उसे रुई से ढककर सिंकाई करें। रोग की स्थिति के अनुसार कुछ दिनों या सप्ताह के बाद रोगी को आराम दिखने लगेगा। ( और पढ़े –लकवा के 37 सबसे असरकारक आयुर्वेदिक घरेलु उपचार )
11). आधासीसी :
आधासीसी का दर्द सूरज के चढ़ने के साथ बढ़ता जाता है; माथे के जिस ओर के हिस्से में दर्द हो, उसी ओर के नासाछिद्र में ज्वार के हरे पत्तों का रस तथा सरसों का तेल मिलाकर दो-तीन बूंद टपकाना चाहिए। इससे दर्द में तुरंत आराम मिलता है।
12). गुर्दे एवं मूत्र :
गुर्दे एवं मूत्र विकार में-ज्वार का क्वाथ बनाकर दें।
13). दन्त रोग :
ज्वार के दानों की राख बनाकर मंजन करने से दाँतों का हिलना, उनमें दर्द होना तथा मसूढ़ों की सूजन भी समाप्त हो जाती है ।
14). अन्तर्दाह :
ज्वार के बारीक पिसे आटे की रबड़ी रात में बनाकर प्रातः उनमें भुना हुआ श्वेत जीरा डालकर मढे (छाछ) के साथ पिलाना चाहिए ।
15). खुजली :
ज्वार के हरे पत्तों को पीसकर उसमें बकरी की मेंगनी की अधजली राख व अरंडी का तेल सममात्रा में मिलाकर लगाने से खुजली समाप्त हो जाती है ।
16). प्रश्वेद :
ज्वार के सूखे हुए दानों को भाड़ में भुनवाकर लाही का क्वाथ बनाकर पिलाने से शरीर से पसीने आने लगते हैं जिसके कारण अनेक विकार दूर हो जाते हैं ।
17). आमातिसार :
ज्वार के आटे की गरम-गरम रोटी बनाकर दही में बारीक करके भिगोकर रख दें, कुछ समयोपरान्त रोगी को खिलायें । आमातिसार जाता रहेगा।
18). कैन्सर, भगन्दर, भयंकर व्रण व घाव :
ज्वार के ताजा, हरे कच्चे भुट्टे का दूधिया रस लगाने तथा उसकी बत्ती बनाकर घावों में भर देने से उक्त भयंकर महाव्याधियों से छुटकारा पाया जा सकता है।
जो फोड़ा पकता या फूटता न हो उस पर ज्वार के दानों को पका कर तथा धतूरे का रस मिलाकर पुल्टिस बनाकर लगा देना चाहिए ।
चाकू या अन्य किसी हथियार के घावों में ज्वार के साँठे या काण्ड जो श्वेत अस्तर सा होता है, उसे भर देते हैं ।
19). धतूरे का विष :
ज्वार-काण्ड के रस में दूध व शक्कर सम मात्रानुसार पिलाते रहने से धतूरे का विष शान्त हो जाता है ।
20). आधासीसी :
मस्तिष्क के जिस आधे भाग में दर्द हो उसी ओर के नासारन्ध्र में ज्वार के पौधे के हरे पत्तों के रस में थोड़ा-सा देशी घी मिलाकर टपकाना चाहिए ।
21). लकवा, पक्षाघात, सन्धिवात :
उबले हुए ज्वार के दानों को पीसकर कपड़छन कर रस निकाल लें । तत्पश्चात् उसमें सममात्रा में अरंडी का तेल मिला, गरम करें व्याधि स्थान पर लेपकर ऊपर से पुरानी रुई बाँधकर सेंक करनी चाहिए। ऐसा रोग की स्थिति के अनुसार कई दिनों तक करने से लाभ होता है ।
22). मुँहासे एवं कील :
ज्वार के कच्चे दाने पीसकर उसमें थोड़ा कत्था व चूना मिलाकर लगाने से जवानी में चेहरे पर निकलने वाली कीलें व मुँहासे ठीक हो जाते हैं ।
ज्वार खाने के नुकसान व सावधानी (Jowar Khane ke Nuksan in Hindi)
ज्वार बेशक पेट साफ करती है, रक्त बढ़ाती है, पर वजन घटाती है, परंतु जिनकी पाचन-शक्ति कमजोर है, वे तथा वात प्रकृति के लोग इसका सेवन कम ही करें तो अच्छा ।