काली जीरी के औषधीय गुण और फायदे – Kali Jeeri in Hindi

काली जीरी क्या है ? (What is Kali Jeeri in Hindi)

काली जीरी भृंगराज कुल की औषधि है । आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसे कण्डूध्न (खुजली नाशक) द्रव्यों के अंतर्गत लिया गया है ।

काली जीरी का विभिन्न भाषाओं में नाम (Name of Kali Jeeri in Different Languages)

Kali Jeeri in –

  • संस्कृत (Sanskrit) – अरण्य जीरक, वन जीरक, सोमराजी।
  • हिन्दी (Hindi) – काली जीरी, जंगली जीरा।
  • गुजराती (Gujarati) – काली जीरी, कड़वी जीरी।
  • मराठी (Marathi) – कडूजिरें।
  • राजस्थानी (Rajasthani) – काली जीरी।
  • बंगाली (Bangali) – सोमराज।
  • तामिल (Tamil) – आदावी जिलागारा।
  • तेलगु (Telugu) – कटू शिरामाम्।
  • अरबी (Arbi) – कमूनबरौं।
  • फ़ारसी (Farsi) – जीर ए बरी ।
  • अंग्रेजी (English) – पर्पल फ्लीबेन (Pruple Flebane)
  • लैटिन (Latin) – सेण्ट्राथीरम एन्थेलमिण्टिकम् ।

काली जीरी का पौधा कहां पाया या उगाया जाता है ? :

काली जीरी भारत में विशेषतः हिमालय स्थित ग्रामों में 5500 फीट की ऊंचाई तक उत्पन्न होता है। यह ऊसर एवं उजाड़ भूमि पर स्वयमेव उग आता है।

काली जीरी का पौधा कैसा होता है ? :

  • काली जीरी का पौधा – इसका पौधा वर्षायु (वर्षजीवी) क्षुप एक फुट से 5 फुट तक ऊंचा होता है। शाखायें इधर उधर फैली हुई और उन पर दानेदार किरमिची रंग के बहुत से धब्बे होते हैं।
  • काली जीरी के पत्ते – काली जीरी के पत्र लगभग 5-10 अंगुल लम्बे मध्य में से लगभग 1-3 अंगुल चौड़े आगे से नौकदार होते हैं। पत्तों के चारों ओर किनारे आरे के समान कटा होते हैं। पत्र ऊपर से रोयेंदार होते हैं।
  • काली जीरी के फूल – काली जीरी के क्षुप नीचे से चौड़े और बड़े होते हैं। और ऊपर की और क्रमशः छोटे होते जाते हैं। शाखा के ऊपर से फूल की डोंडी निकलती है। डोंडी सूरजमुखी के फूल के समान होती है। पुष्प गुच्छों में आते हैं पंखुड़ियां नीलाम गुलाबी रंग की होती है। इसके फूल की गोलाई कंघी (अतिबला) के समान होती है। फूल के पक जाने पर एक डोंडी से 25-30 दाने निकलते हैं। इसके बीजों के डोंडी में पतले सूक्ष्म वालों का सा गुच्छा होता है।
  • काली जीरी के बीज – इसके बीज कच्चेपन में पीले पकने पर हरे एवं पूर्ण पक सूखने पर भूरे हो जाते हैं। ये 1/5 इंच लम्बे रोमशः भूरे काले रंग के होते हैं जिनके पृष्ठ भाग पर लम्बाई में दस उभरी रेखायें होती हैं। इनमें तीक्ष्ण गंध आती है। एक क्षुप से प्रायः 60 ग्राम अरण्य जीरक के बीज प्राप्त होते हैं। वर्षाकाल में इस पर पुष्प एवं बसन्त में फल लगते हैं।

काली जीरी पौधे का उपयोगी भाग (Beneficial Part of Kali Jeeri Plant in Hindi)

प्रयोज्य अंग – बीज, पत्र।

काली जीरी सेवन की मात्रा :

बीज चूर्ण – 1 से 3 ग्राम उदरकृमि विनाशार्थ 6 ग्राम तक ।
पत्र – स्वरस 6 मि.ली. ।

काली जीरी के औषधीय गुण (Kali Jeeri ke Gun in Hindi)

  • रस – कटु, तिक्त।
  • गुण – लघु, तीक्ष्ण।
  • वीर्य – उष्ण, पत्र-शीतं।
  • विपाक – कटु।
  • दोषकर्म – कफ-वातशामक।

रासायनिक संघटन :

  • काली जीरी में प्रधानतः स्थिर तेल 18 प्रतिशत तक पाया जाता है।
  • इसमें लगभग 0.02 प्रतिशत एक उत्पत तेल और एक तिक्त सत्व पाया जाता है। काली जीरी का तिक्त सत्व पीतवर्ण होता है। यह उनका वीर्यवान भाग है। यह सौ भाग बीजों में एक भाग से ऊपर पाया जाता है।

काली जीरी का औषधीय उपयोग (Uses of Kali Jeeri in Hindi)

  • बाह्य प्रयोग के द्वारा काली जीरी शोथ शामक, दोषपाचक, वेदनाहर, कृमिनाशक, कुष्ठघ्न (कुष्ठ रोग हरने वाला), कण्डूघ्न (खाज-खुजली में लाभप्रद) है।
  • काली जीरी का लेप से कफवातजन्य शोथ (सूजन) मिटता है।
  • आघातजन्य शोथ एवं पीड़ा भी काली जीरी के लेप से नष्ट होती है।
  • श्वित्र (सफेद दाग), दद्रु (एग्ज़िमा), पामा (चर्म रोग), कण्डू (खुजली), पिडिका (मुहांसे) आदि में भी काली जीरी के लेप से आराम होता है।
  • बाह्य कृमियों को नष्ट करने में भी काली जीरी श्रेष्ठ है।
  • काली जीरी के आभ्यन्तर प्रयोग से तन्त्र कृमि व गण्डूकृमि नष्ट होते हैं।
  • काली जीरी दीपन होने से अग्निमांद्य में लाभप्रद है।
  • अधिक मात्रा में काली जीरी वामक है।
  • काली जीरी रक्तशोधक होने से रक्तविकारों में हितकारी है।
  • कुष्ठ विनाशन हेतु काली जीरी लाभप्रद है।
  • काली जीरी तेज कृमि नाशक है। इसको देने के पूर्व एवं पश्चात् मल का परीक्षण करने से यह सिद्ध हुआ है कि यह कृमियों पर विशेष प्रभावी है। कई बच्चों पर इसका अनुभव किया गया । इससे कृमिजन्य उपद्रव दांतों का पीसना, रात्रि में अनैच्छिक मूत्रनाव आदि शान्त होते पाये गये है।
  • इसके अतिरिक्त काली जीरी आन्त्रशूल, अजीर्ण, विसर्प, श्वित्र और अन्य चर्मरोगों को भी नष्ट करने वाली है।

रोगोपचार में काली जीरी के फायदे (Benefits of Kali Jeeri in Hindi)

1). घेंघा (गण्डमाला) रोग में काली जीरी का उपयोग फायदेमंद

काली जीरी, धतूरे के बीज और अफीम को पीसकर लेप करने से शोथ (सूजन) शूल (दर्द) का निवारण होता है।

2). कर्णमूल शोथ कम करने में काली जीरी करता है मदद

काली जीरी को गोमूत्र में पीसकर उष्ण कर लेप करें।

3). जुयें मिटाए काली जीरी का उपयोग

काली जीरी को जम्बीरी नींबू या चूने का पानी में पीसकर लेप करने से शिर की यूका-लिक्षा (जुयें, लीखें) मर जाती है।

4). सफेद दाग (श्वित्र) ठीक करे काली जीरी का प्रयोग

  • काली जीरी 4 भाग, हरताल 1 भाग लेकर इन्हें गोमूत्र के साथ पीसकर लेप करें।
  • संशोधन के पश्चात काली जीरी और काले तिलों का 3-3 ग्राम चूर्ण खदिर-आमलकी कषाय से प्रातः सायं दो बार सेवन करें। भोजन में फीका दूध एवं चावल देना चाहिये। यह प्रयोग एक वर्ष तक करना चाहिये।

( और पढ़े – सफेद दाग 40 अनुभूत घरेलू उपचार )

5). खुजली (कण्डू) में लाभकारी है काली जीरी का लेप

  • काली जीरी के बीजों को पीसकर लेप करें।
  • काली जीरी के बीजों को नीम के साथ क्वाथ बना मालिश करें।

6). लकवा (पक्षाघात) में काली जीरी के इस्तेमाल से लाभ

पैरों के पक्षाघात में काली जीरी का लेप हितकारी है।

7). सर दर्द (शिरःशूल) में काली जीरी का उपयोग फायदेमंद

काली जीरी तथा कलौंजी को जल में पीसकर मस्तक पर लेप करें।

8). विसर्प रोग में लाभकारी है काली जीरी का प्रयोग

काली जीरी को आग पर जलाकर इसे तेल में मिलाकर लेप करें।

9). सन्धिवात में लाभकारी काली जीरी

  • काली जीरी के पत्तों को पीसकर लेप करें।
  • काली जीरी 3 ग्राम मालकांगनी के बीज का चूर्ण 3 ग्राम को उष्ण जल से सेवन करना चाहिये।

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10). सूजन (शोथ) मिटाता है काली जीरी

हर प्रकार के शोथ को नष्ट करने के लिये काली जीरी तथा निर्विषी का लेप करना चाहिये।

11). कुष्ठ रोग में फायदेमंद काली जीरी के औषधीय गुण

काली जीरी और काले तिलों को समभाग लेकर उष्ण जल से सेवन करें।

12). रक्तविकार में काली जीरी का उपयोग लाभदायक

काली जीरी चूर्ण को खदिर (खैर) कषाय (रस ) या नीम फाण्ट (सर्बत) से सेवन करना हितावह है।

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13). मूत्रकृच्छ में काली जीरी से फायदा

काली जीरी का फाण्ट (सर्बत) या जल में पीसकर बनाया गया पेय पिलावें।

14). पीलिया में लाभकारी है काली जीरी का सेवन

काली जीरी के चूर्ण को वासी पानी से देना चाहिये।

15). रक्तपित्त में काली जीरी के इस्तेमाल से लाभ

काली जीरी के पत्तों का स्वरस रक्तपित्त को मिटाता है।

16). बवासीर (अर्श) में काली जीरी के प्रयोग से लाभ

  • 3 ग्राम काली जीरी में आधे को भूनकर आधे को कच्चा पीसकर प्रातः खावें और दोनों समय साठी चावल का भात व दही सेवन करें। इस प्रकार कुछ दिन तक सेवन करने से खूनी और बादी बवासीर नष्ट होते हैं।
  • काली जीरी चूर्ण 2 ग्राम और शुद्ध सुहागा 500 मि.ग्रा. दूध के साथ सेवन करना हितकारी है।

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17). कृमिरोग में काली जीरी का उपयोग लाभदायक

  • काली जीरी के एवं विडंग के चूर्ण को दें।
  • काली जीरी के चूर्ण को मधु के साथ देकर विरेचन दें।

18). स्तन्य न्यूनता में काली जीरी के इस्तेमाल से फायदा

काली जीरी के चूर्ण को दुग्ध के साथ देने से प्रसूता के स्तनों से दूध उतरने लगता है।

19). अजीर्ण दूर करता है काली जीरी का सेवन

काली जीरी को घी में भूनकर गुनगुने जल से देने से अजीर्ण (कफज), आध्मान (पेट फूलना), उदरशूल (पेट दर्द) आदि पाचन-संस्थान के रोग मिटते हैं।

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20). खांसी (कास) मिटाती है काली जीरी

काली जीरी, दालचीनी, इलायची, तेजपत्र को मधु के साथ सेवन करने से कफजन्य कास शान्त होता है।

21). वातश्लेष्मिक ज्वर दूर करे काली जीरी

काली जीरी चूर्ण को नीम की छाल के फाण्ट के साथ सेवन करना हितावह है।

22). सूतिका ज्चर में काली जीरी का उपयोग फायदेमंद

काली जीरी चूर्ण को दशमूल क्वाथ से दें।

23). जीर्णज्वर में काली जीरी का उपयोग लाभदायक

  • 3 ग्राम काली जीरी को किसी पात्र में आग पर भूनें, जब बीज फूटने लगें तब उसमें 150 मि.ली. पानी डालकर पकने से चौथाई रहने पर उतार छानकर मधु मिलाकर पिलावें।
  • इसका यवकुट चूर्ण 6 ग्राम, नीमपत्र 1 मुटठी दोनों को किसी पात्र में भिगोकर प्रातः मलं छानकर पिलावें।

काली जीरी से निर्मित आयुर्वेदिक दवा (कल्प) :

चूर्ण –

  • काली जीरी, डीकामाली, कुटकी, चिरायता, दुधवच और विड नमक समभाग लेकर चूर्ण कर रख लें। प्रातः सायं 1-3 ग्राम तक सुखोष्ण जल से लेते रहने से जीर्ण ज्वर नष्ट होता है। – धन्व० वनौ. विशे.
  • काली जीरी के एक भाग बीजों को भून लें और एक भाग बिना भुना लेकर दोनों को एकत्र मिला महीन चूर्ण करें। फिर उसमें एक भाग सोंठ, आधा भाग कालानमक तथा चौथाई भाग शंखभस्म मिला खूब खरल करें ।
    1 से 3 ग्राम प्रातः-सायं भोजन के पश्चात सुखोष्ण जल से लेने पर अपान की शुद्धि होती हैं। ऐंठनयुक्त पतले दस्त बन्द होकर भूख लगने लगती है। किन्तु प्रवाहिका (दस्त) में कोष्ठशुद्धि के पश्चात ही इसका सेवन गुणकारी होता है। – आयु. विश्वकोष

हिम कषाय –

काली जीरी 12 ग्राम, कालीमिर्च 600 मि.ग्रा. इन दोनों को रात के समय जल से भिगो दें। प्रातः पीस-छानकर पिला दें। इस प्रकार एक सप्ताह तक कराते रहने से वात-कफ जन्य चर्मरोग नष्ट होते हैं। पुराने चर्मरोगों में प्रथम रोगी को संशोधन कराना आवश्यक है। – आयु. द्रव्यगुण विज्ञानम्

मरहम –

काली जीरी 60 ग्राम, सत्यानाशी के बीज 60 ग्राम, अजवाइन अधजली 30 ग्राम, पीलीकौड़ी जली हुई 30 ग्राम, तिल्ली का तैल 500 ग्राम । तेल को कांसे के वर्तन में डालकर शीतल जल से खूब मथे। जिससे तेल गाढ़ा व सफेद हो जाय। तैल में बार-बार पानी डालें और मलकर पानी को अलग करना चाहिये। इस प्रकार सौ बार धोये तैल में उक्त दवाओं का कपड़छन चूर्ण मिलाकर तीन-चार दिन धूप में रखें। दिन में एक बार हिलाते रहें जिससे शेष रहा पानी निकल जाय । यह मलहम सब प्रकार के व्रण, फोड़े, विसर्प, खुजली आदि में उपयोगी है।

काली जीरी के दुष्प्रभाव (Kali Jeeri ke Nuksan in Hindi)

  • काली जीरी तीक्ष्ण उष्ण होने से अधिक मात्रा या निरन्तर सेवन करना हानिकारक है। इससे पित्तविकार उत्पन्न हो जाते हैं।
  • अतिमात्रा में काली जीरी का सेवन आमाशय व दांतो को हानि पहुंचाती है।
  • काली जीरी को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।

दोषों को दूर करने के लिए : इसके दोषों को दूर करने के लिए कतीरा गोंद (इसका हिम बनाकर सेवन करें), गुलरोगन, गोदुग्ध, आमलकी का सेवन हितकर है।

(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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