बहुउपयोगी खैर (खदिर) वृक्ष के फायदे – Khair (Khadir) ke Fayde in Hindi

Last Updated on April 18, 2021 by admin

खैर या खदिर क्या है ? (What is khair in Hindi)

प्राकृतिक वर्गीकरण के अनुसार खैर (खदिर) वृक्ष शिम्बीकुल (लेगयुमिनोसी Leguminosae) एवं बब्बूल उपकुल (माइनोसायड़ी Minosoideae) की औषधि है। भावप्रकाश निघन्टु में वटादि वर्ग के अन्तर्गत इसका वर्णन है। आचार्य प्रियव्रत शर्मा ने द्रव्यगुण विज्ञान में कुष्ठघ्न द्रव्यों में इसका सर्वप्रथम वर्णन किया है। जो द्रव्य त्वचा के रोगों एवं कुष्ठ रोग को शान्त करे वह कुष्ठघ्न (Antileprotices) कहलाता है।

महर्षि सुश्रुत ने खदिर (श्वेत खदिर को भी) को सालसारादि गण में कहा है। इस गण को कुष्ठ, श्वित्र (सफेद दाग), कफादि हर कहा है।

प्रत्येक ऋतु में खाए जाने वाले पान पर सर्वप्रथम जिस द्रव्य का लेप किया जाता है – वह खदिर सार (कत्था) होता है। जिसका निर्माण खैर (खदिर) वृक्ष से किया जाता है। इसका प्रयोग हम बहुत समय से करते आ रहे हैं।

खदिर सार (कत्था) अन्य को अपने में आत्मसात कर अपने अनुकूल बना लेने में कुशल है। इस श्रेष्ठ गुण के कारण ही खदिर सार के उद्भव वृक्ष खदिर को गायत्री (श्रेष्ठ गुणों वाला) कहा जाता है।

शरीर में प्रकुपित वात, पित्त, कफ एवं दूषित त्वचा, रक्त, मांस, लसीका को अपनी आरोग्य प्रदायिनी कार्मुकता से प्रभावित कर उनके प्रकोप एवं दूषण को शान्त करने के कारण ही खदिर कुष्ठघ्नता के अलङ्करण को प्राप्त कर सका है।

खैर (खदिर) का विभिन्न भाषाओं में नाम (Name of Khair in Different Languages)

khair (Khadir) in –

  • संस्कृत (Sanskrit) – खदिर (रोगों को नष्ट करने तथा शरीर में स्थिरता लाने वाला), रक्तसार (सार भाग जिसका रक्तवर्ण हो), गायत्री (श्रेष्ठ गुणों वाला), दन्तधावनः (दांतों को स्वच्छ करने वाला), कण्टकी (कण्टकयुक्त), बालपत्र (छोटे पत्तों वाला), बहुशल्यः (बहुत कांटों वाला), यज्ञियः (जिसकी लकड़ी यज्ञ में उपयोगी हो)।
  • हिन्दी (Hindi) – खैर।
  • गुजराती (Gujarati) – खेर, खेरीओ।
  • मराठी (Marathi) – खैर, खदेरी।
  • बंगाली (Bangali) – खयेर।
  • राजस्थानी (Rajasthani) – खैर।
  • अंग्रेजी (English) – केसियाफ्लावर।

खैर (खदिर) वृक्ष का उपयोगी भाग (Beneficial Part of Khadir Tree in Hindi)

  • प्रयोज्य अंग – छाल (त्वक), खदिरसार (कत्था)।
  • वीर्य कालावधि – छाल – 1 वर्ष, खदिरसार – बहु वर्ष।

खैर (खदिर) के औषधीय गुण (Khadir ke Gun in Hindi)

  • रस – तिक्त, कषाय।
  • गुण – लघु, रूक्ष।
  • वीर्य – शीत।
  • विपाक – कटु।
  • प्रभाव – कुष्ठघ्न।
  • गुणप्रकाशकसंज्ञा – कुष्ठघ्न, कुष्ठारि, कुष्ठकंटक, मेध्य एवं गायत्री (श्रेष्ठ गुणों वाला)।
  • दोषकर्म – यह तिक्त कषाय होने से कफ और पित्त का शमन करता है। शीतवीर्य से भी पित्त शामक है।

सेवन की मात्रा :

  • चूर्ण – 1 से 3 ग्राम।
  • क्वाथ – 50- से 100 मि.लि.।
  • खदिरसार (कत्था) – ½ से 1 ग्राम।

खैर (खदिर) के औषधीय उपयोग (Medicinal Uses of Khadir in Hindi)

आयुर्वेदिक मतानुसार खैर (खदिर) के गुण और उपयोग –

  1. खैर (खदिर) का काण्ड (तना) वल्कल रूक्षकषाय और संग्राही होने से रक्तस्राव को रोकता है।
  2. यह विषनाशक, कृमिघ्न (कृमिनाशक) एवं कफ दोषों को नष्ट करता है। पत्तों में भी यही गुण है।
  3. खैर (खदिर) के पुष्प दीपन है।
  4. खैर (खदिर) की गोंद (निर्यास) मधुर एवं पिच्छिल होने से शुक्रवर्धक एवं बल्य है।
  5. खैर (खदिर) के फूलों से बनाया गया ‘इत्र’ सोमनस्य जनन तथा कामशक्तिवर्धक है।
  6. बाह्य प्रयोग में खैर (खदिर) शूलहर, शोथहर, कण्डूहर (खुजली नाशक), कृमिघ्न , विषनाशक है। एवं व्रणों के लिये हितकर है।
  7. मुख रोगों में खैर से निर्मित “इरिमेदादि तैल” लाभप्रद है।
  8. सुश्रुतसंहिता में एवं भेल संहिता में कुष्ठविनाशन हेतु खदिरकल्प का वर्णन मिलता है। इसी प्रकार खदिरघृत (चरक), महाखदिरघृत (भै. र.), मध्वासव (चरक), कनकविन्द्वरिष्ट (चरक), खदिरारिष्ट (शा. सं.) प्रयोगों में खदिर या खदिरसार (कत्था) की प्रधानता प्रगट होती है।
  9. प्रत्येक नक्षत्र का वृक्ष निर्धारित किया गया है। अपने नक्षत्र के वृक्ष की पालना करने से स्वास्थ्य ठीक रहता है। इनमें मृगशिरा नक्षत्र वाले पुरुषों के लिए खदिर को कहा है। उन्हें इसकी पालना करनी चाहिए। जिससे स्वास्थ्य का संरक्षण होता है।
  10. ग्रहों की पूजा के निमित्त भी अनेक वनौषधियों का वर्णन मिलता है। सूर्यादि नवग्रहों की शांति के लिए इन वनौषधियों की गोली, छाल (त्वक्) और समिधाओं के प्रयोग का वर्णन है। इनमें मंगल ग्रह की शान्ति के लिए खदिर (खैर) निर्दिष्ट है।
  11. यज्ञ की बिघ्न वाधाओ को खैर (खदिर) से दूर भगाया जाता था। यज्ञस्तम्भ खदिर की लकड़ी का होता था। खदिर की लकड़ी से बने पात्र में सोमरस डालकर देवता पान करते थे। ये सब बातें शतपथ ब्राह्मण में वर्णित है।
  12. खैर (खदिर) की लकड़ी बहुत कठोर होती है। प्राचीन काल से इसकी लकड़ी का उपयोग मजबूती के लिए किया जाता रहा है। वेद में वर्णित है कि रथ की धुरि के लिए खदिर वृक्ष उपयुक्त है क्योंकि यह खूब मजबूत होती हे।
  13. मजबूती के लिए जिस प्रकार खदिर काष्ठ की महत्ता है उसी प्रकार लाल रङ्ग के निर्माण में खदिर सार (कत्थे) की महत्ता है। प्राचीन काल में पान के अतिरिक्त अधरों को लाल बनाने के लिये इसका स्वतन्त्र भी उपयोग किया जाता था।

रोगोपचार में खैर (खदिर) के फायदे (Benefits of Khadir in Hindi)

1). व्रण –

  • खैर (खदिर) की छाल या कत्था के क्वाथ से व्रण को धोने से उसका शोधन होता है।
  • खदिरसार (कत्था) को मोम में मिलाकर व्रण पर लेप करने से व्रण ठीक होता है।

( और पढ़े – फोड़े फुंसी बालतोड़ के 40 घरेलू उपचार )

2). नाडी व्रण –

  • कत्था (खदिरासार), मोम और नीलाथोथा को मिलाकर लेप करने से नाड़ीव्रण ठीक होता है। इसके उपयोग से उपदंशज व्रण में भी लाभ होता है।
  • खदिरासार और एलआ को बराबर ले पीस कर लगाने से भी नाडीव्रण ठीक होता है।

3). नाक की सूजन – खदिरक्षार (कत्था) और हरड़ चूर्ण को जल में पीसकर लेप करने से नासिका की सूजन एवं पाक ठीक होता है।

4). उपदंश – उपदंशाक्रान्त शिश्न (लिंग) पर खदिरसार (कत्था) को घृत में मिलाकर लेप करें।

5). गुदभ्रंश – खदिरसार (कत्था), मोम और घृत को मिलाकर लगाने से गुदभ्रंश में लाभ होता है। यह मलहर बवासीर पर भी लगाया जा सकता है। ( और पढ़े – गुदाभ्रंश के सरल घरेलू उपचार )

6). चेचक या मसूरिका (Small Pox) –

  • इस रोग में खैर (खदिर) की छाल के क्वाथ से गुद प्रक्षालन करें।
  • खदिर की लकड़ी और लसौड़ा के क्वाथ से भी गुदा प्रक्षालन करना उपयुक्त है।
  • खदिर की छाल, सिरस की छाल, गूलर की छाल और नीमपत्र को जल में पीसकर लेप करने से भी लाभ होता है।

7). अरुषिका (माथे पर अनेक मुँहवाले फोड़े) – खैर (खदिर) की छाल, नीम की छाल, और जामुन की छाल, को गोमूत्र में पीसकर लेप करें।

8). उरुस्तम्भ (जाँघ अचल, सुन्न और ज्ञानहीन हो जाती है) – खदिरसार (कत्था), शिग्रु, गोक्षुर, तुलसी और अग्निमंथ को गोमूत्र में पीसकर लेप करें।

9). विसर्प – खदिरसार (कत्था), सप्तपर्ण, मुस्तक, आरग्वध और देवदारु आदि का लेप करने से कफजन्य विसर्प शान्त होता है।

10). कुष्ठ –

  • खैर (खदिर) की लकड़ी के क्वाथ से स्नान कर इसका लेप करें।
  • खदिरत्वक(कत्था), देवदारु, गन्धाविरोजा, धाय के फूल, नीम की छाल, कनेर की छाल और विडंग को गोरोचन के साथ पीसकर सरसों के तेल में मिलाकर लेप करें।

( और पढ़े – कुष्ठ (कोढ) रोग मिटाने के आयुर्वेदिक नुस्खे )

11). योनिरोेग –

  • खैर (खदिर) क्वाथ से योनि प्रक्षालन करें।
  • खदिरसार (कत्था) को पानी में घोलकर योनिवस्ति दें। यह श्वेत या रक्तप्रदर में भी उपयुक्त है।
  • खदिरसार(कत्था), विडंग, हरड, रसाञ्जन को जल में पीसकर लेप करने से योनि की खुजली दूर होती है।

( और पढ़े – योनि रोग के कारण लक्षण और उनकी चिकित्सा )

12). कान का बहना – खदिरसार(कत्था) को पानी में घोलकर पिचकारी दें तथा साफ कर पुनः खदिरसार चूर्ण कर्ण में डाल दें।

13). नेत्र रोग – खदिरसार (कत्था) को पानी में घोलकर आंखों में डालने से नेत्रगत सूजन एवं व्रण आदि मिटते हैं।

14). मुह के छाले –

  • खदिरसार(कत्था) 6 ग्राम, कबावचीनी 10 दाने, कर्पूर 250 मि.ग्रा. के चूर्ण को पानी में घोलकर छाले पर लगावें।
  • खदिरसार(कत्था) 2 भाग ओर कर्पूर 1 भाग लेकर मधु या ग्लेसरिन में मिलाकर लगायें।
  • खदिरसार(कत्था), सुहागा, इलायची दाना, वंशलोचन और मिश्री समभाग लेकर चूर्ण बनाकर मुख के छालों पर बुरके।
  • खदिरसार(कत्था), बबूल का गोंद, चिकनी सुपारी के चूर्ण में थोड़ा-सा इलायची का तेल डालकर गोलियां बनाकर चूसें।

( और पढ़े – मुह के छाले दूर करने के 101 देशी नुस्खे )

15). श्वित (सफेद कोढ़) –

  • खैर (खदिर) की छाल, कालाजीरा, हरड चूर्ण को खदिरारिष्ट के साथ सेवन करें।
  • खदिरसार(कत्था) और आंवले के क्वाथ में वाकुची चूर्ण बनाकर सेवन करें।
  • खदिरसार(कत्था) और आंवले के चूर्ण को मधु के साथ सेवन करें।

( और पढ़े – सफेद दाग का आयुर्वेदिक इलाज )

16). कुष्ठ –

  • दीर्घकाल तक खैर (खदिर) की लकड़ी के क्वाथ का पान करें।
  • खदिर के प्रधान मूल को काटकर उसके नीचे घड़ा रखकर मूल के ऊपर अग्नि जलावें। इससे मूल से रस टपक कर घड़े में एकत्र होगा। इसमें समभाग आंवले का रस, मधु ओर घृत मिलाकर सेवन करने से कुष्ठरोग शान्त होता है। यह प्रयोग रसायन भी है।

17). खूनी बवासीर – खदिरसार(कत्था) के चूर्ण के साथ समभाग अरीठे की छाल की भस्म एकत्र कर 125 मि.ग्रा. लेकर मक्खन के साथ सेवन करने से विशेषतः खूनी बवासीर मिटता है। यह प्रयोग सात दिनों तक सेवन करें वर्ष में दो बार अवश्य सवेन कर लेना चाहिए।

18). प्रमेह –

  • खदिर वृक्ष के 40 ग्राम अंकुर और 10 ग्राम सफेद जीरा गाय के दूध में पीसकर मिश्री मिलाकर प्रातः सायं पीने से प्रमेह, मूत्रकृच्छ्र आदि नष्ट होता हैं।
  • खैर (खदिर) क्वाथ में मधु मिलाकर सेवन करने से प्रमेह मिटता है।

19). भगन्दर –

  • खदिरसार(कत्था) व त्रिफला क्वाथ में भैंस का घृत एवं विडङ्ग चूर्ण डालकर सेवन करें।
  • खदिरसार में विजयसार (असना वृक्ष) की छाल के क्वाथ को 3,7 और 21 बार भावना देकर उसमें शुद्ध गुग्गुल मिलाकर मधु के साथ सेवन करने से भगन्दर मिटता है। इससे कुष्ठ तथा प्रमेह में भी लाभ होता है।

( और पढ़े – क्षारसूत्र चिकित्सा से भगन्दर का आयुर्वेदिक इलाज )

20). अतिसार –

  • खदिरसार(कत्था) और बिल्वगिरि चूर्ण को शीतल जल से सेवन करें।
  • खदिरसार(कत्था) को मधु के साथ भी सेवन किया जा सकता है। यह आमातिसार में उपयोगी है।
  • खदिरसार, जायफल, दालचीनी की गोली बनाकर सेवन करें।

21). खांसी –

  • खदिरसार(कत्था), काली मिर्च समान भाग लेकर सूक्ष्म चूर्ण बनाकर बबूल छाल के कवाथ में पीसकर गोलियां बनाकर चूसते रहने से खांसी मिटती है।
  • खदिरसार(कत्था) को मीठे दही के पानी के साथ भी सेवन किया जा सकता है।
  • खदिर (खैर) की छाल, बहेड़ा चूर्ण को मधु से दें।

( और पढ़े – खांसी दूर करने के 191 देसी नुस्खे )

22). रक्तपित्त –

  • खदिर (खैर) पुष्प को मधु के साथ सेवन करें।
  • खदिर पुष्प, फूलप्रियंगु, कचनार तथा सेंमल के पुष्पों का चूर्ण 2-4 ग्राम लेकर मधु के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करें।

23). संखिया का विष (Arsenic) – 15-20 ग्राम खदिरसार पानी में पीसकर गोदुग्ध के साथ पुनः-पुनः पिलाने से संखिया का विष प्रभाव दूर होता है।

24). श्वास – खदिरसार(कत्था), हरड, सिता को मधु के साथ सेवन करें।

25). गला बैठ जाना (स्वरभेद) – खदिरसार(कत्था) चूर्ण को तिल तैल में मिलाकर मुख में धारण करें।

26). छोटी माता (मसूरिका) – खदिर (खैर) छाल क्वाथ को शीतल कर पुनः पुनः पिलाने से छोटी माता से उत्पन्न तृष्णा में लाभ होता है।

27). जीर्णज्वर – खदिर (खैर) की छाल और चिरायता के क्वाथ को सेवन करने से जीर्ण ज्वर शान्त होता है। यह ज्वर के कारण उत्पन्न प्लीहावृद्धि को भी दूर करता है।

28). प्लीहोदर (प्लीहा के बढ़ने का रोग) – खदिरसार(कत्था) और देवदारू चूर्ण को गोमूत्र के साथ सेवन करें। इससे पाण्डु एवं उदरशूल भी समाप्त होता है।

29). सुजाक (पूयमेह) – खदिरसार(कत्था) और जीरक चूर्ण को दूध के साथ सेवन करें।

30). पूयमेहजन्य आमवात – खदिर (खैर) छाल, कुटज छाल, नीम छाल, वच मूल, निशोथ और त्रिफला प्रत्येक 20-20 ग्राम लेकर यवकुट कर 250 मि.लि. उबलते हुए पानी में डालकर फाण्ट बनाकर 20-25 मि. लि. की मात्रा में दिन में 2-3 बार सेवन करें।

31). पसली चलना – खदिर (खैर) छाल 3 ग्राम तक गोदुग्ध में पीस-छानकर उसमें 100 मि.ग्रा. गोरोचन मिलाकर प्रातः कुल तीन दिन तक सेवन करने से बालकों का पसली चलना रोग मिटता है।

32). कृमिरोग – खदिर (खैर) छाल, इन्द्रजौ, नीम की छाल बच, त्रिकटु, त्रिफला और निशोथ को गोमूत्र में पीसकर पकाकर सात दिन तक पीने से कृमि नष्ट होते हैं।

33). उपदंश – खदिर (खैर) छाल एवं विजयसार की छाल के क्वाथ में त्रिफला चूर्ण मिलाकर सेवन करें।

34). पित्तविकार – खदिर वृक्ष की कोमल कोपल 12 ग्राम और सोंठ चूर्ण 3 ग्राम एकत्र पीसकर धारोष्ण गोदुग्ध के साथ प्रातः सेवन करने से सभी पित्तविकारों में लाभ होता है। इसका सेवन प्रात: केवल एक समय तीन दिन तक निरन्तर करें।

35). गर्भपुष्टि हेतु – गर्भावस्था में गर्भ पुष्टि के लिए खदिरसार(कत्था) और बोल को मिलाकर सेवन करें। अनुपान गोदुग्ध । इसके गर्भ की पुष्टि के अतिरिक्त स्तनों में भी दुग्ध की वृद्धि होती है।

खदिर (खैर) से निर्मित आयुर्वेदिक दवा (कल्प) :

खदिरादि क्वाथ –

खदिरसार(कत्था), गुर्च, अडूसा, पटोलपत्र, त्रिफला, नीम की छाल इन सब औषधियों को बराबर लेकर काढ़ा बनाकर पीवें तो यह काढ़ा कुष्ठ रोग को नाश करने वाला होता है। इसके अतिरिक्त यह खसरा, मसूरिका (बड़ी माता), विस्फोट (खराब फोड़ा), विसर्प एवं कण्डू (खुजली) आदि को भी दूर करता है। इसे ही खदिराष्टक क्वाथ कहा जाता -च. द.

खदिरादि हिम –

पपड़िया कत्था, हंसराज, मुनक्का, शीतलचीनी, वंशलोचन, छोटी इलायची प्रत्येक 1-1
ग्राम और मिश्री 12 ग्राम लेकर जौकुट कर झीने, वस्त्र में लपेटकर पोटली बनाकर मिट्ठी के पात्र में 250 ग्राम पानी रखकर उसमें रख दें। पोटली 12 घण्टे तक पड़ी रहे। उसमें से एक-एक चम्मच पानी लेकर कभी-कभी पिलाते रहें। यह एक मात्रा 1 दिन के लिए है। इसी तरह दूसरे दिन पोटली प्रयोग करें। इससे मुह के छाले (मुखपाक) दूर होता है। वमन, तृष्णा भी शान्त होती है। -चिकित्सादर्श

खदिरादि चूर्ण –

सफेद कत्था (Catechu Pallidum) 4 भाग, हीरादोखी गोंद (Kina) 2 भाग, तुमेरिया का मूल (Drameriaroot) अभाव में मोरसरी की छाल 2 भाग तथा दालचीनी और जायफल 1-1 भाग लें। इन सबको मिला खरल कर लें। डाक्टरी में इस चूर्ण के पल्वित केटेच्यु कमेजिटस (Pulvis CatechuCompositus) कहते हैं।

मात्रा – 250 मि.ग्रा. से 1 ग्राम तक दिन में 3 बार जल के साथ दें।

उपयोग – यह चूर्ण प्रबल ग्राही है। हीरादोख गोंद की अपेक्षा कत्थे में ग्राही गुण अधिकतर हैं। अन्यस्थ श्लैष्मिक कला की शिथिलता और क्षीणता युक्त अतिसार में यह चूर्ण लाभदायक होता है। किन्तु आतों में प्रदाह हो तथा यकृत् की क्रिया वैषम्य हो तो इस चूर्ण का प्रयोग नहीं किया जाता।
-र.त.सा.

खैर (खदिर) के दुष्प्रभाव ( Khadir ke Nuksan in Hindi)

खदिर के उपयोग से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।

(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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