Last Updated on February 22, 2020 by admin
कृष्ण चतुर्मुख रस क्या है ? : What is Krishna Chaturmukh Ras in Hindi
कृष्ण चतुर्मुख रस पाउडर या टैबलेट के रूप में एक आयुर्वेदिक औषधि है। इस औषधि का उपयोग राजयक्ष्मा ,बालों का असमय सफेद होना, पीलिया, उन्माद, त्वचा रोग, संधिवात आदि रोगों के उपचार के लिए किया जाता है।
कृष्ण चतुर्मुख रस के घटक द्रव्य : Krishna Chaturmukh Ras Ingredients in Hindi
- शुद्ध पारद – 40 ग्राम
- शुद्ध गंधक – 40 ग्राम
- लोह भस्म शतपुटी – 40 ग्राम
- अभ्रक भस्म शतपुटी – 40 ग्राम
- स्वर्ण भस्म – 10 ग्राम।
प्रमुख घटकों के विशेष गुण :
- कज्जली : जन्तुध्न, योगवाही, रसायन।
- लोहभस्म : रक्तबर्धक, बल्य, बृष्य (वीर्य और बल बढ़ाने वाला), रसायन।
- अभ्रक भस्म : मज्जाधातु पोषक, बल्य, वातनाडी बल्य, रसायन ।
- स्वर्ण भस्म : रक्त बर्धक, ओजो बर्धक, बल्य, बृष्य, रसायन।
- घृत कुमारी : बल्य, बृहण, शोथहर (सूजन मिटाने वाला), वेदना स्थापक, मूत्रल, सारक।
कृष्ण चतुर्मुख रस बनाने की विधि :
सभी औषधियाँ खरल में डालकर कज्जलवत् होने तक मर्दन करें, तदनन्तर घृत कुमारी (एलोवेरा) स्वरस डालकर मर्दन करें, गोली बनने योग्य होने पर समस्त औषधि का एक गोला बनाकर एरण्ड पत्रों में अच्छी प्रकार, लपेट कर ऊपर धागा लपेट दें, ताकी पत्र खुल न जाएँ। उस गोले को तीन दिन धान्य राशी में दबा दें। चौथे दिन निकाल कर 100 मि.ग्रा. की वटिकाएँ बनवा कर सुरक्षित कर लें।
कृष्ण चतुर्मुख रस की खुराक : Dosage of Krishna Chaturmukh Ras
एक गोली प्रातः सायं भोजन से पूर्व।
अनुपान (दवा के साथ ली जानेवाली वस्तु):
दूध , त्रिफला और मधु , केवल-मधु,
कृष्ण चतुर्मुख रस के फायदे और उपयोग : Benefits & Uses of Krishna Chaturmukh Ras in Hindi
बालों के असमय सफेद होने को रोकने में कृष्ण चतुर्मुख रस का उपयोग फायदेमंद
यौवन काल में चेहरे पर झुर्रियां पड़ जाना और बालों का श्वेत हो जाना इस बात का संकेत होता है शरीर में वृद्धावस्था का आगमन हो रहा है शरीर के जीर्ण होने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई है ऐसे लोग शरीर को कृश करने वाले कारणों-
अति उपवास, नित्य यात्रा, नित्य मैथुन, अतिश्रम, अपौष्टिक भोजन को त्याग कर, कृष्ण चतुर्मुख रस एक गोली { त्रिफला चूर्ण 5 ग्राम, शहद और घी की विषम मात्रा में मिला कर के } चाट लें और अनुपान में दुध का सेवन करें तो एक मास में परिणाम परिलक्षित होने लगते हैं। यह औषधि रसायन वत् कार्य करती है। अतः एक वर्ष तक, सेवन करने से वली (झुर्री) – पलित (बालों का असमय सफेद होना) दोनों में पूर्ण लाभ होता है।
( और पढ़े – चेहरे की झुर्रियां दूर करने के उपाय )
राजयक्ष्मा (टी.बी) रोग में कृष्ण चतुर्मुख रस के प्रयोग से लाभ
कृष्ण चतुर्मुख रस चार रसायनों का मिश्रण है। अपने रसायन गुण से यह सप्त धातुओं की वृद्धि में सहायक होता है। राजयक्ष्मा या क्षय रोग धातु क्षीणता का ही परिणाम होते हैं, यह धातुक्षय चाहे अनुलोम हो या प्रतिलोम कृष्ण-चतुर्मुख रस, पिप्पली सिद्ध दूध के साथ सेवन करने से जठराग्नि, और धात्वाग्नि वर्धन होता है। फल स्वरूप ओज वृद्धि होकर, रोग प्रतिरोध क्षमता की वृद्धि भी होती है।
सहायक औषधियों में स्वर्ण वसन्त मालती रस, श्री जय मङ्गल रस, हेमगर्भ पोटली रस, च्यवन प्राश अवलेह, सितोपलादि लेह, में से किसी एक या दो का प्रयोग भी करवाना चाहिए। औषधि, प्रयोगावधि तीन मास से एक वर्ष तक रोगी-रोग की अवस्थानुसार।
( और पढ़े – टी.बी (क्षय रोग) के कारण और इलाज )
पीलिया ठीक करे कृष्ण चतुर्मुख रस का प्रयोग
पाण्डु रोग में कृष्ण चतुर्मुख रस एक महत्त्वपूर्ण औषधि है। इसके सेवन से जाठराग्नि प्रदीप्त होती है रक्त धातु में वृद्धि होती है, तथा रोगी के बल और उत्साह में भी वृद्धि होती है।
सहायक औषधियों में विन्धवासी योग, नवायस चूर्ण, पुनर्नवादि मण्डूर की योजना करने से रोगी को शीघ्र लाभ मिलता है। सेवनावधि एक मण्डल।
वातरक्त (गाउट) में कृष्ण चतुर्मुख रस के इस्तेमाल से लाभ
वातरक्त में कृष्ण चतुर्मुख रस के सेवन से वांछित लाभ मिलता है, एक गोली प्रातः सायं भोजन से पूर्व मधु से चटा कर दूध के अनुपान से देने से तीन दिन में वेदना एवं शोथ (सूजन) में लाभ होता है। पूर्ण लाभ के लिए चालीस दिनों तक अवश्य प्रयोग करवाएँ।
सहायक औषधियों में, वृहद्वात चिन्तामणि रस, रस राज रस, कैशोर गुग्गुलु, पंचतिक्त घृत गुग्गुलु, शिलागंधक वटी में से किसी एक या दो औषधियों का प्रयोग करवाएँ।
( और पढ़े – वात रोग का इलाज )
उन्माद रोग में कृष्ण चतुर्मुख रस का उपयोग लाभदायक
वात नाड़ी बल्य मस्तिष्क शामक गुणों के कारण इस महौषधि का उपयोग उन्माद और अपस्मार में सफलता पूर्वक होता है । उन्माद में मांस्यादि क्वाथ के साथ सेवन करवाने से प्रथम दिन में प्रगाढ़ निद्रा आ जाती है। पूर्ण लाभ के लिए एक मण्डल तक प्रयोग करवाऐं ।
सहायक औषधियों में उन्माद गज केशरी, चतुर्भुज रस, सारस्वतारिष्ट. सारस्वत चूर्ण इत्यादि का प्रयोग करवाएँ।
कृष्ण चतुर्मुख रस के इस्तेमाल से त्वचा रोग में लाभ
त्वग रोगों (त्वचा रोग) का मूल कारण मन्दाग्नि, आमोत्पत्ती और आम से स्रोतोवरोध होता है। त्वचा की सूक्ष्म रक्त वाहिनियों में अवरोध के कारण, भ्राजक पित्त त्वक तक नहीं पहुँच पाता अतः भ्राजक पित्त के अभाव में त्वचा निस्तेज, मलीन एवं पिडिका (फोड़े फुंसी) युक्त हो जाती है । कृष्ण चतुर्मुख रस जाठराग्नि को दीप्त करके पुरातन आम का पाचन करता है, नवीन की उत्पत्ती को वाधित करता है। अतः स्रोतोरोध दूर होकर त्वचा का प्रसादन होता है। त्वग रोग नष्ट होते हैं।
सहायक औषधियों में आरोग्य वर्धिनी वटी, व्योपाद्य वटी, पंचनिम्ब चूर्ण, निम्बामलकी (स्वानुभूत) का सेवन भी करवाऐं, चिकित्सावधि एक मण्डल।
सन्धिवात में कृष्ण चतुर्मुख रस से फायदा
कृष्ण चतुमुर्ख रस का सन्धिवात के रोगियों में सफल प्रयोग होता है। एक गोली प्रातः सायं भोजन से पूर्व असमान भाग मधु से चटाकर, दशमूल क्वाथ का अनुपान दें। इसके सेवन से तीन दिन में ही वेदना शमन होने लगती है।
सहायक औषधियों में सर्वाङ्ग सुन्दर रस, पुष्पधन्वा रस, स्वयंभू गुग्गलु, त्र्योदशाङ्ग गुग्गुलु में से किसी एक औषधि का प्रयोग भी करवाऐं।
अस्थि एवं मजागत वात में लाभकारी है कृष्ण चतुर्मुख रस का प्रयोग
जीर्ण वात व्याधियों में वात अस्थिओं और मज्जा में प्रवेश कर जाता है, अस्थिगत वात में अस्थि वृद्धि, अध्यदन्त अस्थि एवं सन्धियों में पीड़ा-शोथ, नखों एवं केशों में भंगुरता इत्यादि लक्षण होते हैं । मज्जांगुत वात में अस्थियों में भेदन वत् वेदना, शोथ, अस्थियों में व्रणों का निर्माण (Osteomylitis) मज्जा द्वारा रक्त कणों के निर्माण की मन्दता अथवा अयोग्यता, इन दोनों रोगों में कृष्ण चतुर्मुख रस अत्यन्त प्रभाव शाली औषधि है । अस्थिगत वात में रास्ना सप्तक क्वाथ और मज्जागत वात में मधु के साथ सेवन करवाने से लाभ होता है।
अस्थिगत वात में सहायक औषधियों में त्र्योदशाङ्ग गुग्गुलु, अमृता गुग्गुलु, अश्वगंधा चूर्ण, पुष्पधन्वा रस में से किसी एक या दो औषधियों का प्रयोग और मज्जागत वात में त्रैलोकय चिन्तामणी रस, सर्वेश्वर रस, रसाभ्र गुग्गुलु, पंचतिक्त घृत गुग्गुलु में किसी एक या दो औषधियों का प्रयोग करवाना चाहिए।
श्वेत प्रदर में कृष्ण चतुर्मुख रस फायदेमंद
श्वेत प्रदर में जब रुग्णा अति क्षीण हो गई हो, स्राव पिच्छल (चिकना), उष्ण अथवा दुर्गन्ध मय हो, कटि ग्रह (कमरदर्द) , पाण्डु, अरुचि इत्यादि लक्षण हो । तो कृष्ण चतुर्मुख रस का प्रयोग करवाना चाहिए। एक गोली प्रातः सायं आँवले के मुरब्बे के साथ देने से एक सप्ताह में ही लाभ दृष्टिगोचर होने लगता है।
सहायक औषधियों में, कामदुधा रस न्यग्रोधादि चूर्ण, पुष्यानुग चूर्ण, चन्द्रांशुरस, अशोकारिष्ट में से किसी एक या दो की व्यवस्था से शीघ्र लाभ होता है। पूर्ण लाभ के लिए एक मण्डल तक औषधि सेवन करवाना चाहिए।
( और पढ़े – श्वेत प्रदर रोग को जड़ से मिटाने के उपाय )
कृष्ण चतुर्मुख रस के दुष्प्रभाव और सावधानी : Krishna Chaturmukh Ras Side Effects in Hindi
- कृष्ण चतुर्मुख रस लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
- कृष्ण चतुर्मुख रस को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
- कृष्ण चतुर्मुख रस के सभी घटक खनिज धातु है, सम्यक् रूप में शोधित मारित धातु अमृत तुल्य होते हैं। फिर भी इस महौषधि के सेवन काल में रसौषधियों और खनिज धातुओं की भस्मों के सेवन काल में लिए जाने वाले पूर्वोपाय अवश्य लेने चाहिएं।
कृष्ण चतुर्मुख रस का मूल्य : Krishna Chaturmukh Ras Price
CHATURMUKH KRISHNA RAS – Rs 420
कहां से खरीदें :
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