Last Updated on September 15, 2024 by admin
परिचय :
कुचला के पेड़ अधिकतर पहाड़ी क्षेत्रों पाए जाते हैं। इसके पेड़ 40 से 60 फुट ऊंचे होते हैं। इसके तने कुछ टेढ़े व मोटे होते हैं। इसकी छाल चिकनी, पतली व मटमैली होती है। कुचला का फल नर्म, गोलाकार व नारंगी के रंग का होता है। फल के छिलके पतले होते हैं जिसे अलग करने पर अन्दर से सफेद व पीले रंग का दिखाई देता है। फल के अन्दर दोनों तरफ से चपटे 2 से 5 बीज होते हैं। बीज बहुत जहरीला होता है और इसी को कुचला कहते हैं। इसमें किसी भी तरह की खुशबू या बदबू नहीं होती है।
कुचला को शुद्ध करना :
पहली विधि : कुचले के बीजों को घी में हल्की आग पर तलकर बीजों के ऊपर के छिलके व अन्दर की जीभ निकाल दें। इसके बाद इस बीजों को स्वस्थ गाय के मूत्र में उबालकर लें। इस तरह कुचला शुद्ध हो जाता है और इसका उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है।
दूसरी विधि : कुचला को सात दिन तक गाय के मूत्र में भिगोकर रख दें। ध्यान रखे कि सुबह-शाम गाय का मूत्र बदलते रहें। जब कुचला नर्म हो जाए तो उसके छिलके हटा दें। इस तरह कुचला शुद्ध हो जाता है।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
संस्कृत | विषमुष्टि कारस्कार। |
हिन्दी | कुचला। |
अंग्रेजी | व्ह्मोमिट्नट्। |
मराठी | कुचला। |
गुजराती | झेरकोचलू। |
कनाड़ी | कागरकानामारा, कांजीबार, हेगुष्टी। |
तमिल | एट्टेमार काकोड़ी। |
तैलगू | मुसीठी, मुष्टीचेट्टु। |
मलयलम् | कन्नीराम। |
लैटिन | ट्रिचनोसनकस ह्मोमिका। |
कुचला के औषधीय गुण : Kuchla Ke Gun
- आयुर्वेदिक मत से कुचला कड़वा, कसैला और तीखा होता है।
- यह गरम, सुधावर्धक, पौष्टिक, कामोद्दीपक, आँतों को सिकोड़ने वाला और पायाँयिक ज्वरों को नष्ट करने वाला होता है ।
- यह वात नाशक, कफनाशक तथा रक्तरोग, कुष्ट, खुजली, बवासीर, रक्ताल्पता, पीलीया और मूत्र विकारों को दूर करने वाला होता है ।
- कुचले की क्रिया शरीर की तमाम इन्द्रियों पर होती है पर इसकी विशेष क्रिया ज्ञान तन्तुओं के समूह पर होती है ।
- मेदे पर इसकी क्रिया उतनी प्रभावशाली नहीं होती, लेकिन मेदे के नीचे जो जीवनीय केन्द्र रहता है उस पर इसकी क्रिया होती है । अगर यह कहा जाय तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मनुष्य की जीवनी शक्ति के केन्द्र स्थान पर इसकी प्रभावपूर्ण क्रिया होती है । जिसके परिणाम स्वरूप यह हृदय की रक्तवाहिनी नाड़ियों की उत्तेजना देता है, जिससे हृदय के संकोच और विकास की क्रिया ठीक होती है, रक्त वाहिनियों की स्थिति सुधारती है और रक्त का दबाव बढ़ता है, इसी के परिणाम स्वरूप स्वासोच्छ्वास के केन्द्र स्थान को भी उत्तेजना मिलती है और रोगी की श्वास लेने की शक्ति बढ़ती है ।
- जननेन्द्रिय के केन्द्र स्थान पर भी इसका उत्तेजनात्मक प्रभाव होता है और इससे यह पुरुषार्थ बढ़ाने वाली औषधियों में भी अग्रगण्य माना जाता है ।
- डाक्टर देसाई का कथन है कि कुचला अत्यन्त महत्व की उत्तम औषधि है । यह सब देशों की गवर्नमेट्स के द्वारा स्वीकृति कर ली गई है । स्नायु जाल समूह को इतनी प्रत्यक्ष उत्तेजना देने वाली दूसरी कोई औषधि इसके समान नहीं है इसका प्रभाव शरीर पर स्थाई रूप से पड़ता है ।
- यह एक भयंकर विष भी है, इसको अधिक मात्रा में लेने से यह बुरी तरह से मनुष्य के प्राण हरण कर लेता है । मगर कम मात्रा में यह अमृत तुल्य जीवन की रक्षा करता है ।
- पाचन नालिका पर कुचले का प्रभाव-
मनुष्य की पाचन नली पर कुचले की बहुत अच्छी क्रिया होती है । यह आमाशय की शक्ति को बढ़ाता है और पाचन क्रिया को सुधारता है । - कुचला सर्वोत्तम कटु पौष्टिक है । अबीर्य और अमाशय के प्राचीन रोगों पर इसका प्रयोग करने से अच्छा लाभ होता है, आमाशय की अपेक्षा भी पेट की अतों और नलों (बड़ी आँतों) पर इसकी क्रिया बहुत प्रभाव पूर्ण होती है ।
- यह अतड़ियों की शिथिलता को मिटाता है। छोटी मात्रा में यह कब्जियत को दूर करता है ।
- पित्त प्रकोप की वजह से होने वाले सिर दर्द में इसका असे देने से बड़ा लाभ होता है।
- पाचन नली के रोगों में इसके बीजों का चूर्ण ही दिया जाता है । अर्क देने से इतना लाभ नहीं होता ।
- आतों के ऊपर इसकी क्रिया मज्जा तन्तुओं के मारफत और स्वतन्त्र रूप से भी होती है। शाकाहारी लोगों के आमाशय के रोगों में और मांसाहारी लोगों के अतों के रोगों में कुचले का विशेष उपयोग होता है ।
मज्जा तन्तुओं पर कुचला का प्रभाव-
कुचले का प्रधान क्रिया स्थल मनुष्य के ज्ञान तन्तुओं का समूह है। कुचले को पेट में खाने से अथवा उसका इन्जेक्शन देने से उसका सीधा प्रभाव मज्जा तन्तुओं पर ही होता है । अतएव मज्जा तन्तु के रोग, जैसे लकवा, गठिया, मृगी, धनुर्वात, गतिभ्रंश ज्ञानभ्रंश इत्यादि रोगों पर कुचला अच्छा असर करता है ।
- जिन रोगों में स्वयं मज्जातन्तुओं का ही ह्रास हो जाता है उसमें यह औषधि अपना असर नहीं दिखला सकती मगर मज्जातन्तुओं पर आघात पहुँचने से शरीर में जो विकृतियाँ होती हैं उन्हें यह दूर करता है ।
- कम्प रोग और मज्जातन्तुओं की वेदना पर कुचला सखिया के साथ में दिया जाता है ।
- मज्जातन्तुओं की अशक्ति की वजह से होने वाले बहरेपन में भी कुचले से अच्छा लाभ होता है ।
- हस्त मैथुन की वजह से होने वाले वीर्य पतन और अति मैथुन की वजह से पैदा हुई नपुंसकता को दूर करने में कुचला अच्छा काम करता है।
- मनुष्य की अवस्था के उतार के समय कुचले को कालीमिरच के साथ देने से मनुष्य की काम शक्ति बहुत जागृत रहती है । कुचला एक अत्यन्त जोरदार और प्रत्यक्ष बाजीकरण (कामोद्दीपक) द्रव्य है । मूत्राशय की कमजोरी पर इसके सेवन से बड़ा लाभ होता है ।
कुचला के फायदे और उपयोग : Kuchla Ke Fayde
1. बिच्छू का विष: कुचले के बीज को पानी में घिसकर उसके अन्दर की सफेदी को डंक वाले स्थान पर लगा देना चाहिएं इससे बिच्छू का जहर उतर जाता है।
2. कुत्ते के काटने पर: कुचले के बीजों को घी में सेंककर प्रतिदिन थोड़ी-थोडी मात्रा बढ़ाकर सेवन करने या कुचले के बीज 120 मिलीग्राम की मात्रा में सेवन कराने से कुत्ते का जहर समाप्त हो जाता है।
3. गला बैठना: 60 से 120 मिलीग्राम शोधित कुचले का चूर्ण सुबह-शाम सेवन करने से ज्यादा बोलने के कारण पैदा हुआ स्वरभंग (गला बैठने पर) ठीक होता है।
4. भूख न लगना या पाचनशक्ति कमजोर होना: कुचले के बीजों को शुद्ध करके चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 240 मिलीग्राम की मात्रा में शहद के साथ लेने से पाचनशक्ति बढ़ती है और भूख खुलकर लगता है।
5. जीभ का दर्द: कुचला के बीजों की मींगी का चूर्ण बनाकर शहद या मलाई में मिलाकर जीभ पर मलने से जीभ का दर्द दूर होता है।
6. प्रसववेदना: कुचला के बीज की मींगी को पानी में घिसकर नाभि पर लगाने से प्रसव के समय होने वाली पीड़ा नष्ट होती है।
7. नपुंसकता:
- हस्तमैथुन से पैदा होने वाली नपुंसकता में कुचला 6 से 24 मिलीग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम लेने से नपुंसकता दूर होती है।
- 100 मिलीग्राम कुचला के बीजों की मींगी का चूर्ण और एक चम्मच विदारी के चूर्ण मिलाकर सेवन करने से नुपंसकता समाप्त होती है।
- शुद्ध किया हुआ कुचला 60 से 240 मिलीग्राम की मात्रा में सुबह-शाम मिश्री मिले गर्म दूध के साथ सेवन करने से हस्तमैथुन के आई नपुंसकता दूर होती है।
8. गठिया (जोड़ों का दर्द): कुचला के बीजों की मींगी पानी में पीसकर दर्द वाले भागों पर लेप करने से गठिया का दर्द समाप्त होता है।
9. जीभ व त्वचा का सुन्नपन: त्वचा या जीभ सुन्न हो जाने पर शुद्ध किया हुआ कुचले का चूर्ण बनाकर 240 मिलीग्राम की मात्रा में प्रयोग करें। इससे जीभ व त्वचा की सुन्नता दूर होती है।
10. बवासीर (अर्श):
- अफीम व कुचला को बराबर मात्रा में लेकर पानी में घिसकर मस्सों पर लेप करने से बवासीर का रोग ठीक होता है।
- शुद्ध कुचले का चूर्ण 48 मिलीग्राम और शहद 6 ग्राम मिलाकर चाटने से खूनी बवासीर (रक्तार्श) समाप्त होती है।
11. घाव: घाव में कीड़े होने पर कुचला के पत्तों की पट्टी बांधने से कीड़े खत्म होते हैं।
12. मधुमेह: शुद्ध किया हुआ कुचला सेवन से मधुमेह रोग में लाभ मिलता है और शर्करा की मात्रा नियंत्रित रहता है। इसे मधुमेह के रोगी के अंगों का सुन्नपन भी दूर होता है।
13. गिल्टी (ट्यूमर): कुचले को घिसकर कालीमिर्च मिलाकर हल्का गर्म करके गिल्टी पर लगाने से लाभ मिलता है।
14. पेट के कीड़े: कुचले के बीजों पानी में घिसकर पेट पर लेप करने से पेट के कीड़े नश्ट होते हैं और नारू की बीमारी भी ठीक होती है।
15. शरीर का कांपना:
- अजवायन और सोंठ का चूर्ण आधा-आधा चम्मच तथा कुचले के बीजों की मींगी का चूर्ण 100 मिलीग्राम। इन सभी को मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से शरीर का कांपना दूर होता है।
- 60 से 240 मिलाग्राम शुद्ध कुचले का चूर्ण सुबह-शाम सेवन करने से शरीर का कांपना दूर होता है।
16. उपदंश: कुचले के पत्ते, सोंठ तथा सांभर का सींग को मिलाकर पीस लें और इसका लेप लगाने से उपदंश में होने वाला गठिया दूर हो जायेगा।
17. हाथ-पैरों की ऐंठन: हाथ-पैर की ऐंठन दूर करने के लिए असली कुचला को भूनकर पीस लें और यह 130 मिलीग्राम की मात्रा में सुबह-शाम हलुआ के साथ सेवन करें। इससे हाथ-पैरों की ऐंठन दूर होती है।
18. नाड़ी का दर्द: 60 से 240 मिलीग्राम शुद्ध कुचले का चूर्ण बनाकर या 20 से 40 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से नाड़ी का दर्द कम होता है।
19. नाड़ी की जलन: 60 से 240 मिलीग्राम शुद्ध कुचला का चूर्ण बनाकर प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से नाड़ी की जलन दूर होती है।
20. वात व्याधियाँ और मन्दाग्नि: खजाइनुल अदविया के लेखक लिखते हैं कि कुचले को भूनकर पीसलें । फिर 1 कुचले का आठवाँ हिस्सा प्रतिदिन खाना शुरू करें, यह 45 रोज तक खावें । उसके बाद 1 कुचले का पाचवाँ हिस्सा प्रतिदिन के हिसाब से 45 दिन तक खावें । उसके बाद चौथा हिस्सा ४५ दिन तक, फिर तीसरा हिस्सा 45 दिन तक, फिर आधा हिस्सा 45 दिन तक और फिर पूरा कुचला 45 दिन तक खावें । इस प्रकार इसका सेवन करने से सब तरह की बात व्याधियाँ और मन्दाग्नि मिटती है ।
21. संग्रहणी: कुचले को तीन दिन तक पानी में तर रखकर, छीलकर, उसका चोया खींचकर 1 रत्ती की मात्रा में पान के साथ खिलाने से दस्त और संग्रहणी मिटती है ।
22. अतिसार (दस्त): मुरब्बे पर कुचले के अर्क की बूंदे डालकर खाने से बहुत सख्त दस्त बन्द होते हैं ।
23. सर्प विष: कुचले की जड़ को खिलाने से सर्प विष में लाभ होता है । कुचले को काली मिरच के साथ पीस कर खिलाने से भी सौंप का जहर उतरता है ।
24. हैजा : कुचले के दरख्त की १ गोली और सीधी लकड़ी लेकर उसके दोनों किनारों पर बरतन बाँधकर उसके बीच में आँच देना चाहिये । इस आँच के देने से उन दोनों किनारों से बरतनों में एक प्रकार का रस टपकेगा, उस रस की कुछ बूंद खाने से हैजा मिटता है ।
25. गठिया: पुरानी गठिया को मिटाने के लिये कुचले को उसके अर्क के साथ देना चाहिये और कुचला, सोंठ और साम्हर सींग को मिला कर उसका लेप करना चाहिये ।
26. जखम के कीड़े: जिन जख्मों में कीड़े पड़ गये हों उनपर इसके पत्तों का लेप करने से सब कीड़े मर जाते हैं ।
27. लकवा: 15 कुचलों को 500 ग्राम पानी में भिगोकर हर तीसरे दिन पानी बदल दें । ऐसे 15 दिन तक पानी में भिगोकर उन का छिलका दूर करके सुखा लें और उनको जला डाले । उनकी जितनी राख हो उतने ही वजन की काली मिरच उस राख में मिलाकर काली मिरच के बराबर गोलियाँ बनालें । इन गोलियों को उचित मात्रा में खिलाने से लकवा, फालिज, गठिया इत्यादि रोग दूर होते हैं ।
28. खनी बवासीर: कुचले की धूनी देने से खूनी बवासीर का खून और दर्द बन्द हो जाता है ।
कुचला के दुष्प्रभाव : Kuchla Ke Nuksan
कुचला अधिक सेवन करने से घबराहट, शारीरिक अंगो में ऐंठन, पीड़ा, जकड़ना, नाड़ी की गति का बढ़ जाना, श्वास लेने में तकलीफ, उल्टी, दस्त, टिटनेस आदि लक्षण पैदा सकता है। अत: इसका सेवन सावधानी से करें।
दोषों को दूर करने वाला : गाय के दूध में घी व मिश्री मिलालकर सेवन करने से कुचला में मौजूद दोष दूर होते हैं।
अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।