दिव्य औषधि जल धनिया के फायदे और नुकसान – Jal Dhaniya in Hindi

Last Updated on January 11, 2021 by admin

जल धनिया क्या है ? (What is Jal Dhaniya in Hindi)

जल धनिया वत्सनाभ कुल (रेननकुलेसी) की वनौषधि है जो पानी के किनारे उत्पन्न होने से एवं इसके पत्र धनिया के समान होने से जल धनिया के नाम से प्रसिद्ध है।

जल धनिया का विभिन्न भाषाओं में नाम (Name of Jal Dhaniya Plant in Different Languages)

Jal Dhaniya in –

  • संस्कृत (Sanskrit) – काण्डीर, काण्डकटुक, तोयवल्ली, सुकाण्डक, नासासंवेदन
  • हिन्दी (Hindi) – जल धनिया, देवकांडर
  • बिहारी (Bihari) – पलिका
  • बंगाली (Bangali) – जल पीपल
  • राजस्थानी (Rajasthani) – अगियू
  • पंजाबी (Punjabi) – काविकाज
  • मराठी (Marathi) – कुलगी
  • अरबी (Arbi) – कबीकजज
  • फ़ारसी (Farsi) – मूषक
  • अंग्रेजी (English) – वाटर सेलरी
  • लैटिन (Latin) – रेननकुलस स्कलीरेटस

जल धनिया का पौधा कहां पाया या उगाया जाता है ? :

जल धनिया सामान्यतः नदियों के किनारे पाया जाता है। पर्वतीय घाटियों में कश्मीर से आसाम तक यह पाया जाता है। इसके अतिरिक्त माऊन्ट आबू (राज०), कपूरथला (पंजाब) आदि स्थानों पर भी यह पाया जाता है।

जल धनिया का पौधा कैसा होता है ? :

  • जल धनिया का पौधा – यह एक कोमल सरल चिकना वर्षायु क्षुप है जिसकी ऊँचाई 1 फुट से 3 फुट तक होती हे।
  • जल धनिया के पत्ते – पत्र प्रायः तीनों भागों में विभक्त तथा पुनः अनेक खण्डों में विभक्त, धनिया के पत्ते के समान होते हैं।
  • जल धनिया का फूल – जल धनिया के पुष्प-छोटे हल्के पीले रंग के प्रायः प्रशाखाओं पर लगे रहते हैं।
  • जल धनिया के फल – जल धनिया के फल अनेक, लम्बे, गोलाकार रोमश आधार पर पिप्पली के समान होते हैं।

इसके पत्र एवं शाखाओं से राई जैसी तीक्ष्ण गन्ध आती है। हेमन्त से बसन्त तक पुष्प एवं फल लगते हैं।

जल धनिया पौधे का उपयोगी भाग (Beneficial Part of Jal Dhaniya Plant in Hindi)

प्रयोज्य अंग – पंचांग

जल धनिया के औषधीय गुण (Jal Dhaniya ke Gun in Hindi)

  • रस – कटु, तिक्त
  • गुण – रूक्ष, तीक्ष्ण
  • वीर्य – उष्ण
  • विपाक – कटु
  • दोषकर्म – कफवात शामक
  • प्रतिनिधि – थूहर का दूध

सेवन की मात्रा :

चूर्ण – 1 से 3 ग्राम।
स्वरस – 10 से 20 मिलि0

रासायनिक संघटन :

बीजों को छोड़कर सारे पौधे में एक कटु पीत वर्ण उड़नशील तैल के रूप में प्रोटीएनिमोनिन पाया जाता है जो स्फोट जनक होता है। सुखाने से या उबालने से यह नष्ट हो जाता है। इसके अतिरिक्त ताजा पौधे में रक्तवाहिनी संकोचक सिरेटानिन पदार्थ पाया जाता है।

जल धनिया के औषधीय उपयोग (Medicinal Uses of Jal Dhaniya in Hindi)

  • जल धनिया अधिकतर बाह्यप्रयोगार्थ ही उपयोग में आता हे विषाक्त एवं अतितीक्ष्ण होने से इसके अन्तः प्रयोग पूर्ण सावधानी की आवश्यकता है। इसके हरे पत्तों को यदि घी में भून लिया जाय तो इसकी तीक्ष्णता कम हो जाती है।
  • यह अन्तः प्रयोग में लाये जाने पर दीपन, पाचन, भेदन, कृमिघ्न (कृमि नष्ट करनेवाला), शोथघ्न (सूजन मिटाने वाला), रक्तशोधक, आर्तव (मासिक स्राव) जनन है।
  • बाह्य प्रयोग में जल धनिया स्फोट जनन (छाले उत्पन्न करने वाला), रक्तोत्क्लेशक (खाल पर लाली पैदा करने वाली) एवं जन्तुघ्न कहा गया है। लेटिन नाम में स्किलेरेटस का अर्थ ही दाहक होता हे।
  • मेंढक का लैटिन नाम रैना है, रैना का निवास स्थान अर्थात् कीचड़ में होने वाला क्षुप इसीलिए लैटिन नाम में रैननकुलस लगाया जाता है।
  • ग्रन्थिक सन्निपात (प्लेग) की यह प्रशस्त औषधि है। प्लेग में इसका बाह्य एवं आभ्यन्तर प्रयोग होता है।
  • मूषक से फैलने वाली बीमारी में जल धनिया उपयोग में आने के कारण इसे फारसी में मूषक भी कहते हैं। जहाँ प्लेग फैल रहा हो वहां व्यक्ति यदि 4-5 पत्र इसके रोज खाये तो प्लेग से आक्रान्त होने का भय नहीं रहता हैं कहा गया है । प्लेग में अनेक कल्पनाओं द्वारा जल धिनया के स्वरसादि का प्रयोग करना चाहिए। प्रतिदिन 10 ग्राम से 60 ग्राम तक इसका प्रयोग कर सकते हैं। इसका शाक्, आचार, चटनी के रूप में भी प्रयोग कर सकते हैं। प्लेग आरम्भ होते ही जल धनियां का स्वरस 10-20 मिलि0 तक की मात्रा में प्रत्येक आधे धण्टे या एक घन्टे के अन्तर से दें। पांच छः घण्टों में लाभ प्रतीत होने लगता है, पेशाब पखाना, खुलकर आता है और ज्वर भी कम होने लगता है।
  • यूनानी चिकित्सक जल धनिया को तीसरे दर्जे के गरम और खुश्क मानते हैं।
  • पाश्चात्य प्रणाली के चिकित्सक इसे मद्य में मिलाकर जो टिंचर तैयार करते हैं।
  • जल धनिया गर्भाशय के विकारों में तथा दुग्ध वृद्धि हेतु उपयोग में लाया जाता है।

रोगोपचार में जल धनिया के फायदे (Benefits of Jal Dhaniya in Hindi)

जल धनिया का उपयोग चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही करें क्योंकि अनुचित मात्रा में इसके उपयोग या सेवन से त्वचा पर छाले पड़ना, उल्टी-दस्त का होना, गला का सूखना जैसे शरीर में विषाक्त लक्षण प्रकट होने लगते हैं।
चिकित्सक परामर्शानुसार सावधानी पूर्वक निम्नांकित रोगों में जल धनिया को उपयोग में लावें –

1). प्लेग ठीक करे जल धनिया का प्रयोग

  • ग्रन्थि पर जल धनिया पीसकर लेप करें। प्रति दो-तीन घन्टों के बाद लेप को हटाकर पुनः लेप करें। लगभग पांच छः घन्टों के बाद ग्रन्थि पर छाला पड़ जायेगा और इसका विष बाहर निकल जायेगा किन्तु यह ध्यान रहे कि छाले का पानी अन्य स्थान पर न लगने पाये अन्यथा यह दूषित जल दूसरे स्थान पर भी छाला उत्पन्न कर देगा। फिर इस छाले की व्रणवत् चिकित्सा करें, गण्डमाला में भी यही उपचार करते हैं।
  • प्लेग के कारण ज्वर दाहादि की शान्ति के लिए यूनानी चिकित्सक रोगी की कलाई पर जल धनिया के चार-पांच पत्तों को पीसकर लेप कर देते हैं। इस लेप से कपड़ा बाँधकर ऊपर से सेक करते हैं। 2-3 बार सेवन करने से ज्वर उतर जाता है और कलाई पर उत्पन्न छाले की व्रणवत् चिकित्सा की जाती है।
  • जल धनिया के दो तीन पत्तों को पानी में पीसकर या यों ही चबाकर सेवन करें।

2). नपुंसकता में जल धनिया का उपयोग फायदेमंद

हस्त मैथुन जन्य नपुंसकता में शिश्न पर दूषित जल जमा हो जाता है उसे निकालने के लिए जल धनिया को पीसकर इसका शिश्न पर लेप किया जाता है। जिससे वहां पर फुसियां उत्पन्न हो जाती हैं। फुसियों के द्वारा दूषित जल निकल जाता है। इसके पश्चात उन फुसियों को ठीक करने के लिए शिश्न पर मक्खन लगाया जाता है।

नोट – ऊपर बताया गया उपाय आपकी जानकारी के लिए है। प्रयोग करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह जरुर ले और उपचार का तरीका विस्तार में जाने।

( और पढ़े – नपुंसकता के कारण, प्रकार, लक्षण, दवा व उपचार )

3). श्वेत कुष्ट (श्वित्र) में लाभकारी है जल धनिया का लेप

जल धनिया के पत्तों का लेप किया जाता है और वहाँ छाला पड़कर रोग ठीक हो जाता है। इसी प्रकार यह रसग्रन्थियों के शोथ, नाखूनों की सफेदी, चिप्परोग सुप्तिवात, आमवात, चर्मरोग, कोष्टुक शीर्षक आदि में भी लेप के रूप में उपयोगी है।

( और पढ़े – श्वेत कुष्ठ (सफेद दाग) का आयुर्वेदिक इलाज )

4). दाँतों का दर्द मिटाए जल धनिया का उपयोग

जल धनिया पत्र कल्क (चटनी) को दांत के नीचे दबाने से लाभ होता है।

5). कृच्छ्रार्तव में जल धनिया के प्रयोग से लाभ

जल धनिया पत्र कल्क में शहद मिलाकर गर्भाशय के मुख पर लगाने से रूका हुआ आर्तव (पीरियड्स) चालू होता है।

6). इन्द्रलुप्त (गंजापन) में जल धनिया का उपयोग फायदेमंद

जल धनिया पत्र क्वाथ के सिर को धोना हितावह है।

( और पढ़े – गंजापन का इलाज, नये बाल उगाने के 47 घरेलु नुस्खे )

7). छाजन (त्वचा रोग) में फायदेमंद जल धनिया का औषधीय गुण

जल धनिया के मूल को तुलसीपत्र के साथ पीसकर लेप करने से लाभ होता है। छाजन से त्वचा में खुजलीदार, सूखे, लाल धब्बे पड़ते हैं।

8). स्नायुक (नहरूआ या बाला) रोग ठीक करे जल धनिया का प्रयोग

जड़ को पानी में पीस गरम कर लेप करना चाहिए।
नहरूआ या नारू एक प्रकार का कीड़ा अथवा कृमि है जो रोगी में शरीर में किसी माध्यम से प्रवेश कर जाता है वह चाहे दूषित जल से या भोजन से अथवा जख्मों पर गन्दी मिटटी आदि लगने से शरीर में पहुँच जाता है फिर यह कृमि बढ़ कर चमड़ी पर आकर उपरोक्त कष्ट देता है और यह धागे के समान काफी लम्बा हो जाता है जो त्वचा में फंसा रहता है इसीलिए इसको उपरोक्त सावधानी से निकालना चाहिए। टूट कर अन्दर रह जाने से ये पुनः जीवित हो जाता है अर्थात यह अपना भ्रूण या अण्डा छोड़ देता है।

9). दूषित व्रण में जल धनिया के इस्तेमाल से लाभ

दूषित व्रणों के शोधन हेतु इसका उपनाह (पुल्टिस) बांधते हैं। व्रण का शोधन हो जाने के पश्चात् रोपण हेतु इसे जत्यादि तैल या किसी मरहम में मिलाकर लगाया जाता है।

10). विषैले जानवर के काटने पर लाभकारी है जल धनिया का प्रयोग

जल धनिया का क्वाथ या रस पिलाने से वमन होकर विष निकल जाता है। इसे नीबू के रस में घोटकर सलाई से अंजन करना भी विषप्रभाव मेटने के लिए हितकारी हैं।

11). अग्निमांद्य (भूख ण लगना) मिटाए जल धनिया का उपयोग

जल धनिया के पत्तों को घी में भूनकर सेवन करें।

( और पढ़े – भूख बढ़ाने के 55 घरेलू नुस्खे )

12). बवासीर (अर्श) में जल धनिया के इस्तेमाल से फायदा

जल धनिया की जड़ को काली मिर्च के साथ पानी में पीसकर छानकर पिलाना चाहिए।

( और पढ़े – बवासीर के 52 सबसे असरकारक घरेलु उपचार )

जल धनिया से निर्मित आयुर्वेदिक दवा (कल्प) :

टिंचर –

जल धनिया स्वरस एक भाग तथा मद्यसार या रेक्टिफाइड सिप्रट 10 भाग दोनों को मिश्रित कर मजबूत ढक्कन वाली शीशी में तीन दिनों तक रख दें। फिर फिल्टर पेपर से छानकर सुरक्षित रखें। इसकी 5 से 15 बूदों तक 25-30 मिलि0 जल में मिलाकर एक-दो घन्टे से देते रहने से प्लेग का ज्वर उतर जाता है । स्त्री के गर्भाशय के विकार दूर होते हैं। दुग्ध की वृद्धि होती है। यह पाचनशक्ति को भी बढ़ाता है।

तैल –

जल धनिया स्वरस और तिल तैल समान भाग लेकर मंद अग्नि पर पकावें। तैल मात्र शेष रहने पर छानकर रख लें। यह तैल पक्षाघात आदि वात रोगों में मालिश के काम लेना चाहिए। – वनौषधि विशे०

आचार –

इसकी कोमल शाखाओं को काटकर पानी में उबालें। नरम हो जाने पर नीचे उतारकर नमक मिलाकर मिट्टी के पात्र में भरकर धूप में रख दें। दो चार दिनों में खटाई आ जाने पर सेवन करें। इससे कफ तथा वायु के विकारों का शमन होता हैं।

जल धनिया के दुष्प्रभाव (Jal Dhaniya ke Nuksan in Hindi)

  • जल धनिया को स्वय से लेना खतरनाक साबित हो सकता है।
  • जल धनिया लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
  • जल धनिया का असावधानीपूर्वक किया गया प्रयोग त्वचा पर छाले उत्पन्न कर सकता है।
  • जल धनिया के अधीक मात्रा में सेवन से विषाक्त लक्षण प्रकट होने लगते हैं।
  • इसके अधिक मात्रा में सेवन से गला सूखता है, जीभ सूज जाती है, दस्त-उल्टी होने लगते हैं, पेशाब बार-बार होने लगता है। मुख, गला, आमाशय और आंतों में अत्यधिक जलन होती है। कभी-कभी रक्तयुक्त वमन भी होता है। ऐसी स्थिति में यह उपचार करें-

दोषों को दूर करने के लिए :

  • इसके दोषों को दूर करने के लिए ताजा मक्खन या गाय का घी या तिल तैल पिलावें तथा इन्हीं की मालिस भी करें। बादाम का तैल नाक में टपकावें और गुलाब के तैल की या नारीदुग्ध की सिर पर मालिस करें।
  • पथ्य में घृत युक्त गरम दूध, घृत युक्त युद्रयूष या घृतयुक्त माँड़ (चावल का पानी) पिलावें।
  • औषधि के रूप में दाह को शान्त करने के लिए इसबगोल के लुआब को दाडिमावलेह या अनार स्वरस के साथ देना चाहिए।
  • इसके अतिरिक्त बादाम तेल भी पिलाना चाहिए।
  • निर्विषी के चूर्ण को गोघृत या तिल तैल में मिलाकर सेवन कराना भी हितकारी है।

(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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