कुटकी के औषधीय गुण ,फायदे और नुकसान | Kutki Benefits And Side Effects In Hindi

Last Updated on December 8, 2019 by admin

कुटकी क्या है ? : Kutki in Hindi

कुटकी का नाम आम जनता के लिए जाना पहचाना नहीं है पर आयुर्वेदिक चिकित्सा में कुटकी का उपयोग प्राचीनकाल से किया जा रहा है । अपने विशिष्ट गुणों और प्रभाव के कारण आयुर्वेद में कई प्रकरणों के अन्तर्गत कुटकी के उपयोग का वर्णन मिलता है ।

कुटकी भारत वर्ष में हिमालय में कश्मीर से सिक्किम तक पैदा होती है । इसका पौधा 6 से 10-12 इंच तक लम्बा होता है, पत्ते 2 से 4 इंच लम्बे, थोड़े चिकने और किनारे से झालर की तरह कटावदार होते हैं । इस के फूल नीले या सफ़ेद रंग के होते हैं । इस पौधे की जड़ को ही कुटकी के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसमें हलकी सी गन्ध होती है और इसका स्वाद बेहद कड़वा होता है।

कुटकी का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Kutki in Different Languages

Kutki in –

✦ संस्कृत (Sanskrit) – कट्वी
✦ हिन्दी (Hindi) – कुटकी
✦ मराठी (Marathi) – काली कुटकी
✦ गुजराती (Gujarati) – कड्डू
✦ बंगला (Bengali) – कट्की
✦ तेलगु (Telugu) – कटुकुरोणी
✦ तामिल (Tamil) – कटुकुरोगणी
✦ कन्नड़ (Kannada) – कटुक रोहिणी
✦ फ़ारसी (Farsi) – खरबके हिन्दी
✦ इंगलिश (English) – ब्लेक हेल्लेबोर (Black Hellebore)
✦ लैटिन (Latin) – पिक्रोरहाइज़ा कुरों (Picrorhiza Kurroa)

कुटकी के औषधीय गुण : Medicinal Properties of Kutki in Hindi

कुटकी रस में कड़वी, पाक में तीखी, रूखी, शीतल, हलकी, मलभेदक, अग्निदीपक, हृदय के लिए हितकारी और कफ पित्त, ज्वर, प्रमेह, श्वास, खांसी, रक्त विकार, जलन, चर्म रोग तथा कृमिनाशक है।

कुटकी का रासायनिक संघटन : Chemical Composition of Kutki in Hindi

  • कुटकी में पिक्रोहाइज़िन (Picrorhizin) नामक एक कड़वा रवेदार मधुमेय (Glycoside) 26.6% पाया जाता है जिसका उदांशन (Hydrolysis) होने पर पिक्रोहीज़ेटिन (Picrorhigetin) एवं एक प्रकार की मधु शर्करा (Dextrose) प्राप्त होती है ।
  • यह मधुमेय जल, मद्यसार, एसिटोन (Aceton) और एथिल एसिटेट (Ethylacetate) में घुलनशील एवं क्लोरोफार्म (Chloroform), बेन्ज़िन (Benzene) और ईथर (Ether) में अघुलनशील होता है ।
  • यह अत्यन्त जलग्राही (Hygroscopic) होता है ।
  • इसके अतिरिक्त इसमें मधु शर्करा, मोम एवं केथार्टिक एसिड (Cathartic acid) आदि पदार्थ पाये जाते हैं।

कुटकी के उपयोग : Kutki Uses in Hindi

☛ कुटकी का उपयोग घरेलू इलाज और आयुर्वेदिक चिकित्सा में प्राचीनकाल से होता आ रहा है ।
☛ चरक संहिता में लेखनीय, भेदनीय और स्तन्य शोधन दशेमानियों में और कल्प स्थान में विरेचन के प्रयोगों के साथ कुटकी का उल्लेख मिलता है ।
☛ कुटकी का प्रयोग अनेक रोगों को दूर करने वाले नुस्खों में होता है । सुश्रुत संहिता में मुस्तादि गण, पिप्पल्यादि गण के घटक द्रव्यों में कुटकी का उल्लेख मिलता है ।
☛ इन प्राचीन ग्रन्थों के अलावा बाद के आचार्यों ने भी कुटकी के भरपूर प्रयोग का उल्लेख किया है जिसका कारण कुटकी में ज्वरनाशक, जठराग्नि प्रदीपक, पाचक और सारक गुणों का होना है ।
☛ कुटकी सिर्फ बड़ी उम्र वालों के लिए ही नहीं बल्कि बच्चों के लिए भी अत्यन्त उपयोगी उत्तम औषधि है।
☛ पाचन क्रिया खराब होने से शरीर दुबला व कमज़ोर होने लगता है तब कुटकी की गोलियां सेवन करने से रस रक्तादि की प्रक्रिया सबल होती है और शरीर का दुबलापन दूर होने लगता है ।
☛ बच्चे को दूध पिलाने वाली मां का स्तन्य दूषित होने पर जो स्तन्यशोधक कषाय दिया जाता है उसमें कुटकी ही प्रमुख घटक द्रव्य है ।
☛ कुटकी में ऐसे गुण हैं जो इसे कई रोगों के लिए उत्तम औषधि बनाते हैं । ऊपर बताये गये गुणों के अलावा कुटकी में कुछ और भी गुण हैं जैसे यह शीतवीर्य, रूक्ष, लघुभेदन, दीपक, हृदय को हितकारी, कफ और पित्तशामक तथा अरुचि, शीतपित्त, प्रमेह, श्वास-कास, रक्तविकार, जलन और कृमि का नाश करने वाली है।
☛ तिक्त रस युक्त, रूक्ष, शीतवीर्य और लघु गुण के कारण कुटकी वात को बढ़ाती है ।
☛ यह शीतवीर्य और भेदन गुण के कारण पित्त का स्राव कर के पित्त कम करती है
☛ यह तिक्त रस व कटु विपाक तथा रूक्ष गुण के कारण कफ प्रकोप को कम करती है ।
☛ शीतवीर्य गुण के कारण रक्त कुटकी में मौजूद उष्णता, आम विष और कफ का नाश करके रक्त को शुद्ध, दोषरहित और प्राकृतिक अवस्था प्रदान करती है।
☛ डॉ. देसाई के मतानुसार कुटकी पौष्टिक, दीपक और ज्यादा मात्रा में लेने पर विरेचक है इसलिए आमाशय में होने वाली वातजन्य वेदना, अपचन, हिक्का और आंतों की निर्बलता के कारण होने वाला क़ब्ज़ आदि व्याधियां दूर करने वाली है।
☛ कुटकी विषाक्त नहीं है, इसमें दीपक और पाचक गुण होने से कुटकी आमाशय में पाचक रस की वृद्धि करती है इससे पाचन क्रिया में सुधार होता है ।
☛ इसमें आनुलोमिक गुण होता है यानी शरीर में नीचे की तरफ़ ले जाने की प्रकृति होती है जो मल निष्कासन में सहायक होती है।
☛ इसकी जड़ को उबाल कर पीने से हृदय को बल मिलता है और दिल की धड़कन पर नियन्त्रण रहता है।

मात्रा और सेवन विधि :

कुटकी का चूर्ण 2-2 रत्ती मात्रा में दिन में तीन – चार बार सादे पानी के साथ लें।
(1 रत्ती = 0.1215 ग्राम)

रोग उपचार में कुटकी के फायदे : Kutki Benefits in Hindi

कुटकी के उपयोग के बारे में इतना विवरण देने के बाद अब घरेलू इलाज । में उपयोगी कुछ विधियां प्रस्तुत हैं।

पित्त शान्त करने में कुटकी के प्रयोग से लाभ

आमाशय में जब पित्त बढ़ता है तो जी मचलाता है, मुंह कड़वा हो जाता है, उलटी जैसा लगता है और उलटी हो भी जाती है । इस पित्त को शान्त करके मुंह का कड़वापन दूर करने के लिए कुटकी का उपयोग उत्तम है । कुटकी का चूर्ण और गुड़ समान मात्रा में मिला कर, 1-1 रत्ती की गोलियां बना कर, 2-2 गोली दिन में तीन बार पानी के साथ कुछ दिन तक लेने से पित्त शान्त हो जाता है, पाचन क्रिया सुधरती है, मुंह का स्वाद ठीक हो जाता है।

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विषम ज्वर में कुटकी का उपयोग फायदेमंद

रोज़ाना या एक दिन छोड़ कर आने वाले ज्वर और क़ब्ज़ (मलावरोध) को दूर करने के लिए, कुटकी का काढ़ा लाभप्रद रहता है । दो कप पानी में 10 ग्राम कुटकी चूर्ण और आधा चम्मच पीपल (पीपर) चूर्ण डाल कर उबालें । जब पानी आधा कप बचे तब उतार कर छान लें । ठण्डा करके इसे आधा सुबह और आधा शाम को पिएं । ठण्ड लग कर बुखार आता हो तो आधा चम्मच कुटकी चूर्ण आधा कप उबलते हुए गर्म पानी में डाल 20 मिनिट तक उबालें, फिर उतार कर छान लें । एक चम्मच शक्कर डाल कर रोगी को पिला दें । इस तरह सुबह शाम 3-4 दिन तक पिलाने से उदर विकार दूर होता है और ज्वर आना बन्द हो जाता है । यह उपाय विषम ज्वर नष्ट करने वाला है।

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पित्त ज्वर में कुटकी के इस्तेमाल से फायदा

पित्त प्रकोप के साथ नवीन ज्वर होने पर बार-बार उलटी होती है । इसके अलावा शरीर में जलन, प्यास, घबराहट, बहुत पसीना आना आदि लक्षण प्रकट होते हैं । कुटकी का काढ़ा बना कर एक चम्मच शक्कर मिला कर पीने से पित्त प्रकोप शान्त होता है, पित्ताशय नलिका और पित्ताशय की विकृति तथा पित्त मार्ग का अवरोध आदि शिकायतें दूर होती हैं और ज्वर तथा कामला रोग दूर होते हैं।

हिचकी में फायदेमंद कुटकी का औषधीय गुण

कुटकी का चार रत्ती चूर्ण शहद में मिला कर चाटने से उदर वायु का शमन होता है और हिचकी चलना बन्द हो जाता है।

श्वास कष्ट दूर करे कुटकी का उपयोग

अपच के कारण आमाशय में रस-रक्त दूषित होते हैं, वात प्रकोप होता है जिसका दबाव फेफड़ों पर पड़ने से श्वास कष्ट होता है। कुटकी सेवन से यह कष्ट दूर होता है।

सूजन दूर करने में कुटकी का उपयोग लाभदायक

शरीर में जल संचित होने से शरीर पर सूजन आ जाती है। रात को सोते समय कुटकी का चूर्ण आधा चम्मच मात्रा में पानी के साथलें । सुबह 2-3 दस्त लगने के बाद दूध चावल खाएं । रात को भी खिचड़ी या दूध चावल ही खाएं । इस तरह 5-6 दिन तक यह प्रयोग करने से शरीर में संचित जल और दूषित रस मूत्र मार्ग और मल मार्ग से निकल जाता है और सूजन दूर हो जाती है । सूजन दूर करने का यह उत्तम उपाय है ।

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पेट दर्द में लाभकारी है कुटकी का प्रयोग

कुटकी कन्द के चूर्ण की 1 ग्राम मात्रा पानी के साथ लेने से पेट का दर्द दूर होता है।

चर्म रोग मिटाता है कुटकी

कुटकी की जड़ के चूर्ण की 1 से 3 ग्राम मात्रा पानी के साथ दिन में 2 बार लेने से सभी प्रकार के त्वचा रोग का दूर होते हैं।

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बुखार में कुटकी के इस्तेमाल से लाभ

बुखार से पीड़ित रोगी को कुटकी का चूर्ण 3-4 ग्राम शहद के साथ देने से बुखार ठीक होता है। इससे सेवन से शीत ज्वर भी ठीक होता है।

कब्ज में कुटकी का उपयोग फायदेमंद

सुबह-शाम कुटकी चूर्ण की 3 से 4 ग्राम तक की मात्रा लेने से पेट साफ होता है।

कुटकी से निर्मित अन्य आयुर्वेदिक योग (दवा) :

कुटकी का प्रयोग कई योगों में होता है जिनमें पुनर्नवाष्टक क्वाथ, महासुदर्शन चूर्ण, महासुदर्शन क्वाथ, आरोग्यवर्द्धिनी, ज्वरान्तक वटी, हर्बोलिव सीरप व टेबलेट, मायोजेम टेबलेट और गर्भवती महिलाओं के लिए अमृत समान गुणकारी सिद्ध होने वाले योग सोम कल्याण घृत के नाम उल्लेखनीय हैं।

कुटकी के नुकसान : Side Effect of Kutki in Hindi

1- गलकण्ड के रोगी के लिए कुटकी का अधिक मात्रा में उपयोग करना हानिकारक होता है।

2- कुटकी लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें

(दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)

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