मधुमेह (डायबिटीज) रोग और पैरों की समस्या – Diabetic Foot Problems in Hindi

Last Updated on April 19, 2021 by admin

मधुमेह में पैरों पर होने वाले दुष्परिणाम सबसे अधिक कष्टकारी होते हैं। इस रोग के कारण पैरों की रक्तनलिकाएं व स्नायु विकृत हो जाने से पैरों की संवेदना कम होती है, जिससे वे सुन्न हो जाते हैं। पैरों के जख्मों में दर्द नहीं होता, खून का संचार कम होता है और कीटाणुओं का प्रादुर्भाव होने से पैरों का कुछ हिस्सा मृत हो जाता है, जिस कारण उसे काटना पड़ता है। पहले से ही सावधानी बरतने से पैरों को बचाया जा सकता है।

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मधुमेह का पैरों पर दुष्प्रभाव :

मधुमेह का दुष्प्रभाव रोगी की त्वचा, स्नायु-तंत्रिका व रक्तवाहिनियों पर भी पड़ता है। इस रोग के कारण पैरों में उत्पन्न होने वाले विकारों को निम्न 4 भागों में बांटा जा सकता है।

1). न्यूरोपैथिक विकार (Neuropathic Disorder) –

रक्तशर्करा के अनियंत्रित होने पर रुग्ण के पैरों की संवेदी (सेन्सरी), प्रतिवर्त (मोटर) व स्वैच्छिक (ऑटोनामिक) नर्व में विकृति आती है। संवेदी स्नायुतंत्रिका (सेन्सरी नर्व) का प्रमुख कार्य शरीर के दूर वाले अंगों की संवेदनाएं जैसे- पैरों में स्पर्श, तापमान, जलन व वेदना इत्यादि को मस्तिष्क तक पहुंचाना है। अनियंत्रित रक्त शर्करा के कारण रोगी को पैर में लगी चोट, आग से चलने पर होने वाली जलन व किसी वस्तु की चुभन भी महसूस नहीं होती। रोगी को इससे कोई परेशानी नहीं होने से वह अपने पैरों के प्रति लापरवाह होता है व योग्य उपचार नहीं करता। मधुमेही में सेन्सरी नर्व में सूजन की समस्या अधिक प्रमाण में पाई जाती है।

प्रतिवर्त स्नायुतंत्रिका (मोटर नर्व) का प्रमुख कार्य है पैरों की मांसपेशियों को क्रियाशील बनाए रखना। अनियंत्रित ब्लड शुगर की वजह से रुग्ण की मोटर नर्व भी प्रभावित हो जाती है, जिससे मांसपेशियों के कार्य पर प्रभाव पड़ता है। इसके कारण पैरों की मांसपेशियों में संकुचन, उंगली व अंगूठों में टेढ़ापन आने के साथ ही हड्डियां असामान्य आकार की हो जाती हैं।

स्वैच्छिक स्नायुतंत्रिका (आटोनामिक नर्व) का कार्य पैरों से अशुद्ध रक्त को एकत्रित कर शिराओं द्वारा हृदय तक पहुंचाना है। इसके अलावा रक्त प्रवाह व पसीने की गति को नियंत्रित करना तथा पैरों के तापक्रम को नियमित करना है।

ऑटोनामिक नर्व के प्रभावित होने पर पैरों का तापमान सामान्य की अपेक्षा अधिक रहता है, त्वचा शुष्क व एड़ी, तलवे, उंगली, अंगूठे में उत्पन्न हुए कैलस घाव में परिवर्तित हो जाते हैं। इन्हे ‘न्यूरोपैथिक अल्सर’ कहा जाता है।

2). इस्चीमिक विकार (Ischaemic Disorder) –

इसका अर्थ होता है रक्त संचार का बराबर न होना। यह मुख्यतः ब्लड शुगर के बढ़ने से होता है। पैरों की तरफ रक्त संचार पर्याप्त नहीं हो पाता, जिसके फलस्वरूप त्वचा स्पर्श में ठंडी, सूखी, कटी-फटी रहती है। पैरों की रक्तवाहिनियां कठोर हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में रुग्ण को थोड़ा-सा ही चलने-फिरने पर मांसपेशियों में तीव्र पीड़ा होती है। कुछ समय आराम करने पर दर्द में राहत मिलती है। मधुमेही में रक्त संचार के इस विकार के कारण छोटा-सा घाव भी आसपास के अंगों तक फैल जाता है, जिसे ‘इस्चीमिक गैंग्रीन’ (IschaemicGangrene) कहा जाता है।

3). न्यूरो इस्चीमिक विकार (Neuro Ischaemic Disorder) –

रक्त में बढ़ी हुई शुगर से रोगी में उपरोक्त दोनों प्रकार के विकार पाए जाते हैं। इसमें रुग्ण को पैरों में घावों का दर्द महसूस नहीं होता व घाव भी शीघ्र नहीं भरता। इससे रोगी के पैरों की त्वचा कटी-फटी हुई, पीले वर्ण की व स्पर्श में ठंडी महसूस होती है।

4). इन्फेक्टेड विकार (Infected Disorder) –

यह समस्या मधुमेह के ऐसे रुग्णों में होती है, जो शरीर के अंगों विशेषतः पैरों की स्वच्छता पर ध्यान नहीं देते। जो रोगी नंगे पैर चलते हैं, टाइट जूते-चप्पल पहनते हैं व पैरों में चोट आदि चलने पर उसका तुरंत उपचार नहीं कराते, उनका घाव बढ़कर, संक्रमित होकर उग्र रूप धारण कर लेता है। कभी-कभी ऐसे रुग्ण में पैरों का इन्फेक्शन रक्त संचार के द्वारा पूरे शरीर में फैलकर सेप्टीसेमिया (Septicaemia) का रूप लेता है। ऐसे रुग्णों की सेप्टीसेमिया शॉक के कारण मृत्यु तक हो सकती है।

अतः आवश्यकता है रक्त शर्करा को नियंत्रित व पैरों की उचित देखभाल करने की। मधुमेह रोगियों को अपने पैरों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। पैरों की उचित सुरक्षा तथा सही जूते-चप्पल पहनने से मधुमेह मरीज अपने आपको गंभीर हानि से बचा सकते हैं।

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गैंग्रीन होने के प्रमुख कारण :

बार-बार फोड़े-फुसियां निकलना, बार-बार पैर में गोखरू बनना, पैर के नाखूनों में संक्रमण होना, जख्मों का देरी से भरने लगना इत्यादि मधुमेह रोग के लक्षण हो सकते हैं, परंतु जब लम्बे समय तक ब्लड शुगर बढ़ा रहता है तो उसके कारण शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति चरमराने लगती है। रक्तवाहिनियां अन्दर से संकरी होती चली जाती हैं और स्नायुतंतुओं पर विपरीत प्रभाव पड़ने से उनकी संवेदनशीलता घटने लगती है। यदि इस अवस्था में पैरों की उचित देखभाल न की गई, तो पैरों में बने हलके जख्म भी शीघ्र भरने की बजाय और फैलते चले जाते हैं या वह भाग निर्जीव बनकर गैंग्रीन का रूप धारण कर लेता है। इसलिए मधुमेह रोगियों के पंजों या अंगुलियों में गैंग्रीन के घाव सामान्य लोगों की तुलना में 50 से 60 गुना अधिक देखे जाते हैं।

मधुमेह के रोगियों में गैंग्रीन के न भरने वाले घाव तब बनते हैं, जब पैरों से संबंधित रक्तवाहिनियों, स्नायुतंत्रिकाओं, मांसपेशियों, अस्थियों और त्वचा में मधुमेह के कारण विकार उत्पन्न हो जाते हैं और वहां आनॉक्सी प्रकार बैक्टीरॉइड्स (Anaebes Bacteroides) एवं स्ट्रेप्टोकोकाइ (Streptococci) जीवाणुओं का संक्रमण भी हो जाता है।

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पैरों के व्यायाम :

मधुमेह से पीड़ित रुग्णों को पैरों में रक्त संचार की असुविधा ज्यादा होती है। नियमित व्यायाम करने तथा धूम्रपान को छोड़ने से गंभीर नुकसान से बचा जा सकता है।

1). टहलना : रोजाना 1 घंटे तक तेज गति से टहलिए। प्रतिदिन यह दूरी बढ़ाते रहें।

2). सीढ़ियों पर व्यायाम : नंगे पैर सिर्फ पंजों के बल सीढ़ियों पर फुर्ती से चढ़ें।

3). पैरों की मांसपेशियों के लिए : अपनी हथेलियों की सहायता से दीवार पर झुकें। पैरों को दीवार से थोड़ा दूर रखें। परंतु ध्यान रहे कि पैरों के तलवे पूरी तरह जमीन से लगे रहें। अपने हाथों को 10 बार इस तरह मोड़ें कि आपकी पीठ व पैर बिल्कुल सीधे रहें। यह व्यायाम पैरों में खिंचाव (क्रैम्प्स) को रोकता है।

4). कुर्सी व्यायाम : कुर्सी पर बैठकर अपने हाथ आगे की ओर मोड़ लें। फिर 10 बार उठे व बैठें।

5). पैर के पंजों का व्यायाम : कुर्सी को पकड़कर खड़े हों। फिर कुर्सी पकड़े-पकड़े पैरों के पंजों पर अपने | आपको उठाएं और नीचे लाएं।

6). घुटनों को मोड़ना : कुर्सी पकड़कर अपनी पीठ बिल्कुल सीधी रखते हुए घुटनों को बिल्कुल सीधा रखते हुए 10 बार मोड़ें।

7). एड़ी उठाना : अपने पंजों के बल पर खड़े होकर एड़ी को नीचे लाएं। यह प्रक्रिया करीब 20 बार दोहराएं।

8). पैरों का व्यायाम : किसी कुर्सी या टेबल के सहारे थोड़ी ऊंचाई के प्लेटफार्म पर अपने एक पैर पर खड़े होकर पैर को 10 बार इधर से उधर हिलाएं। पैरों की स्थिति बदलकर यही प्रक्रिया फिर से दोहराएं।

9). पैरों को हिलाएं : फर्श पर हाथों को पीछे टिकाकर बैठें तथा पैरों को ऊपर है उठाकर हिलाएं। ऐसा 10 से 15 बार 25 करें।

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सावधानियां :

  • मधुमेह से ग्रस्त रुग्ण ध्यान रखें कि पैरों में जख्म न होने पाए। पैरों में हर समय सूती जुराब (सॉक्स) और ढीले कैनवास के बूट पहनें । नॉयलोन के जुराब न पहनें।
  • पैरों को रोज साबुन एवं ताजे पानी से धोना चाहिए। अंगुलियों के बीच की सफाई कर ठीक तरह से सुखाना चाहिए। अंगुलियों के बीच में जंतुनाशक पाउडर डालें।
  • जख्म हो जाए तो उसे साफ कपड़े से धोएं। आयोडिन का इस्तेमाल न करें। अपने पैर की ड्रेसिंग कर लें एवं पैरों को आराम दें।
  • कभी-कभी पैरों की छोटी हड्डियों के जोड़ों में संवेदना खत्म हो जाती है। पैरों में सूजन आ जाती है, किंतु दर्द नहीं होता। इस कारण वहां ध्यान दिया नहीं जाता, लेकिन अंदर से हड्डियां खराब होती जाती हैं। ऐसे वक्त चलते समय हड्डियों पर शरीर का बोझ न पड़े, इसलिए स्पेशल बूट (हड्डियों को सही सहारा मिल पाए ऐसे बूट) बनवाकर ठीक होने तक इस्तेमाल करें।
  • ऊंची एड़ी के सैंडल या बूट आपके पैरों के दुश्मन हैं, अतः यह नहीं पहनें।
  • चलते समय शरीर का बोझ सभी जगह समानता से आए, इसलिए एम.सी.आर. प्रकार के रबर लगाए हुए सैंडल्स का इस्तेमाल करें। गलत बोझ कहां और कितने प्रमाण में होता है, इसका अचूक निदान करने के लिए नई कम्प्यूटराइज्ड मशीन उपलब्ध है, जिससे ऐसी व्याधि का उपचार करने में सहायता मिलती है। साल में एक बार इस तरह की जांच अवश्य करवाएं।
  • सर्दियों में पैरों में फटी बिवाइयों से कीटाणुओं का आक्रमण होता है। अतः पैरों की उचित देखभाल कर बिवाइयां होने से बचाएं।
  • पैरों में महानारायण तेल या सरसों का तेल लगाकर हलके से मालिश करनी चाहिए । मालिश के पश्चात पैरों की सिंकाई भी करें।
  • डायबिटिक न्यूरोपैथी में पैरों के स्नेहन, स्वेदन (मालिश-सिंकाई) से लाभ होता है। पैरों को कभी भी बहुत गर्म या बहुत ठंडे पानी से नहीं धोना चाहिए।
  • नाखूनों को भी ताजे पानी से साफ करते रहना चाहिए, उन्हें किनारों से न काटें । नेलकटर से चमड़ी को बचाते हुए सावधानीपूर्वक काटें।

बचाव के उपाय :

मधुमेह के दुष्परिणामों से बचने के लिए ब्लड शुगर हमेशा नियंत्रण में रखें क्योंकि अनियंत्रित ब्लड शुगर और रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा में वृद्धि, रक्तवाहिनियों के आंतरिक स्तर में कोलेस्ट्रॉल व कुछ अन्य पदार्थों की परत दर परत जमने की प्रक्रिया को तीव्र कर देते हैं, जिससे धमनियों का व्यास घटने लगता है व रक्त प्रवाह कम हो जाता है। इसके अलावा शराब, तम्बाकू व धूम्रपान की आदत से धमनियों में रक्त का थक्का बनने की प्रक्रिया तीव्र होती है, जिससे अंत में रक्त का संचार पूर्णतः अवरुद्ध हो जाता है। अतः मधुमेह के रोगी शुगर कंट्रोल करने के साथ-साथ पैरों का निम्न तरीके से बचाव करें।

  1. घर के बाहर अथवा अंदर कभी भी नंगे पैर न चलें।
  2. तंबाकू का सेवन एवं धूम्रपान बिल्कुल न करें। तंबाकू से रक्तवाहिनियां सिकुड़ जाती हैं।
  3. मोजे के ऊपर का हिस्सा बहुत कसा नहीं होना चाहिए। इससे रक्त का प्रवाह रुक जाता है। गर्म पानी की बोतल या हीटिंग पैड से पैरों की सिंकाई न करें।
  4. सॉक्स को रोज साफ करके प्रयोग करें।
  5. बहुत छोटी-सी खरोंच एवं चोट लगने पर भी डाक्टर से राय लें।
  6. योगासन के अंतर्गत उल्लेखित पैरों का सूक्ष्म व्यायाम व पाद संचालन नियमित रूप से करें।

हर मधुमेह रोगी को अपने पैरों की देखभाल अधिक करनी चाहिए। जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा कि मधुमेह रोग में रक्तवाहिनियों में रुकावट पैदा हो जाती है, जिससे टांगों और पैरों में रक्त प्रवाह कम होता है और त्वचा में रक्त प्रवाह की कमी से कई इन्फेक्शन या संक्रामक रोग हो जाते हैं।

पीड़ा, गर्मी एवं ठंडी की अनुभूति कराने वाली नाड़ियां भी काम नहीं करतीं एवं कोई चोट लग जाए या छाला पड़ जाए तो महसूस नहीं होता। जब मधुमेह का रोगी, जूतों का इस्तेमाल करता रहता है और उसे चोट का आभास नहीं होता, तो कई बार गैन्ग्रीन या सड़न पैदा हो जाती है। उस स्थिति में पैर को काटना पड़ता है। धूम्रपान करने वाले मधुमेहियों में रक्त का प्रवाह कम हो जाने से ऐसी बीमारियों की संभावना अधिक होती है।

ऐसा नहीं है कि पैरों की समस्या मात्र मधुमेह के रोगियों को ही होती है, यह समस्या सामान्य रोगियों में भी अनेक कारणों से उत्पन्न हो सकती है। जैसे –

  • वयस्क व्यक्तियों में रक्त प्रवाह कम हो जाता है। विशेष रूप से पैर के नीचे के भाग की रक्तवाहिनियां पतली एवं संकुचित हो जाती हैं।
  • मधुमेह रोगियों में पैर की रक्तवाहिनियां उनकी उम्र के हिसाब से और भी अधिक पतली हो जाती हैं।
  • मधुमेह में स्नायु रोगों के कारण संवेदना कम हो जाती है।

इन सभी कारणों एवं मधुमेह का उचित उपचार न करवाने से संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है और इन समस्याओं के लिए अनुकूल वातावरण तैयार हो जाता है। अतः मधुमेह की चिकित्सा नियमपूर्वक करना अत्यंत आवश्यक है।

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