Last Updated on July 22, 2019 by admin
मिर्गी (अपस्मार) क्या है ? Epilepsy in Hindi
सबसे पहले तो यह जान लें कि मिरगी रोग | होता क्या है ? मिरगी अर्थात् अपस्मार को मेडिकल भाषा में एपिलेप्सी (Epilepsy) कहते हैं। मस्तिष्क के रूग्ण होने पर शारीरिक आक्षेप (Convulsions) या विकृत चेष्टाएं, बेहोश हो कर गिर पड़ना, आंखों की पुतलियां ऊपर खिंचना, दांत जकड़ना, मुंह से झाग निकलना, ,बदन कांपना और अकड़ना आदि लक्षण होने को अपस्मार या मिरगी रोग कहते हैं।
यह इस रोग की सामान्य परिभाषा है। वैसे यह रोग कई प्रकार का होता है जिसके भिन्न भिन्न लक्षण होते हैं। मिर्गी(एपिलेप्सी) अचानक और बगैर किसी पूर्वाभास के आने वाले दौरों की श्रृंखला है जो कभी भी, कहीं भी किसी भी अवस्था में आ सकते हैं। दौरा पड़ने पर रोगी की संवेदनाएं प्रभावित होती हैं। रोगी अति संवेदनशील अथवा संवेदनहीन हो बेहोश हो सकता है। यदि दोरों की तीव्रता अधिक हो व रोगी की जीवनी शक्ति क्षीण हो चुकी हो तो रोगी कोमा में भी जा सकता है। इस रोग के प्रकारों पर चर्चा करने से पहले इसको उत्पन्न करने वाले कारणों पर चर्चा कर लें ।
मिर्गी रोग के कारण : Causes of Epilepsy in Hindi
यह हमारे तन्त्रिका तन्त्र से सम्बन्धित रोग है। हमारे मस्तिष्क की मूल ईकाई है न्यूरोन्स। मस्तिष्क जिन दो मुख्य घटकों से बना है वे हैं- पाया मैटर व ड्यूरा मैटर। उन्हीं घटक द्रव्यों से मस्तिष्क के विभिन्न ज्ञान केन्द्रों व उसकी सलवटों का निर्माण होता है। जब इन सलवटों में संक्रमण हो जाता है या घटक द्रव्यों का संगठन बिगड़ जाता है तो उस अवस्था में मस्तिष्क के सेरेब्रल न्यूरोन्स द्वारा असामान्य स्राव होने लगता है, यह स्राव ही दौरे का मूल कारण है। इस स्राव के कई कारण हो सकते हैं
• बेक्टीरियल, वायरल, पेरासिटिक इन्फेक्शन होना।
•मस्तिष्क में सिस्ट या ट्यूमर का होना।
• मस्तिष्क पर बाहरी चोट लगना व खून का भीतर जमाव होना।
• मस्तिष्क की रक्तवाहिनियों का संकरा होना जिससे मस्तिष्क की रक्तापूर्ति में बाधा पड़ती है।
• जन्म के समय शिशु के मस्तिष्क पर चोट लगना।
• जन्म के तुरन्त बाद शिशु के श्वसन तन्त्र का सक्रिय न हो पाना जिससे मस्तिष्क के न्यरोन्स में आक्सीजन की कमी हो जाती है।
• मेनिनजाइटिस, कर्ण प्रदाह जैसे रोग होना ।
• एपिलेप्सी के दौरे जन्मजात हो सकते हैं। अथवा उम्र बढ़ने के पश्चात शुरू हो सकते हैं।
जन्मजात एपिलेप्सी के कारण हो सकते हैं कोई पैदाइशी विकृति, जन्म के समय मस्तिष्क में चोट या संक्रमण होना आदि।
• उपार्जित एपिलेप्सी (Acquired Epilepsy) के कई कारण हो सकते हैं
जैसे- शराब या अन्य नशीले पदार्थों को छोड़ने पर होने वाले उपद्रव स्वरूप मिरगी के दौरे पड़ना, अधिक मात्रा में एन्टी एपिलेप्टिक दवाओं के सेवन के दुष्प्रभाव स्वरूप, मस्तिष्क में मवाद पड़ जाना, लम्बी समयावधि तक अवसादरोधी दवाओं का प्रयोग करने से, किसी दुर्घटना में मस्तिष्क पर चोट लगने से, मस्तिष्क के संक्रमण के कारण, साइनुसाइटिस या कान बहने के दुष्प्रभाव स्वरूप या जीवनी शक्ति कमज़ोर पड़ जाने आदि कारणों से मिरगी के दौरे पड़ सकते हैं।
मिर्गी रोग के प्रकार : Types of Epilepsy in Hindi
मिरगी के दौरे कई प्रकार के होते हैं जो मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्र को आलिप्त कर भिन्न भिन्न लक्षण उत्पन्न करते हैं। इसके प्रकार हैं-
(1) पार्शियल सीजर्स
(2) फ्रन्टल सीजर्स
(3) पेराइटल सीजर्स
(4) आक्सीपिटल सीजर्स
(5) जनरल सीजर्स
(6) ऑटो मेटिज़म
एपिलेप्सी के दौरे को सीजर्स कहा जाता है जिसकी दो अवस्थाएं होती हैं।
(1) टोनिक फेज़ (Tonic Phase) (2) क्लोनिक फेज़ (Clonic Phase)
टोनिक फेज़ –
इस अवस्था में छाती और पेट को पृथक करने वाली प्राचीर पेशी (Diaphragm) में अत्यन्त तीक्ष्ण आक्षेप यानी कन्वलज़न आता है जिसे रोगी बर्दास्त नहीं कर पाता व उसकी चीख निकल जाती है। रोगी जमीन पर गिर कर दर्द से तड़पने लगता है। इसके बाद दोनों पैरों में बायटें आने लगते हैं।सारा शरीर पीछे की ओर खिंचने लगता है। श्वसन प्रणाली धीमी हो जाने से शरीर में
ऑक्सीजन की आपूर्ति ठीक ढंग से नहीं हो पाती है जिससे शरीर की सभी क्रियाएं धीमी हो जाती हैं।
क्लोनिक फेज़-
इस अवस्था में रोगी लम्बी लम्बी गहरी सांस लेने लगता है जिससे खड़खड़ाहट भरी आवाजें आती हैं। रोगी के मुंह से झाग निकलने लगता है व उसके दांत पूरी तरह भिंच जाते है। कभी कभी दांतों के बीच में जुबान आकर कट जाती है। रोगी के पूरे शरीर में झटके आने लगते है व उसकी मुठिठयां भिंच जाती हैं आंखों की पुतलियां फैल जाती हैं और कभी कभी अनैच्छिक रूप से मल मूत्र का त्याग हो जाता है। रोगी जब होश में आता है तो उसका शरीर बुरी तरह निचुड़ा हुआ महसूस होता है। तेज़ सिरदर्द, दृष्टिदोष, अंग अंग पीड़ा आदि महसूस होते हैं और रोगी न तो किसी बात करने की स्थिति में होता है और न ही किसी तरह का काम करने में सक्षम रह जाता है। उसे गहरी नींद लेने की इच्छा होती है तथा जागने में उसे कठिनाई होती है। इस प्रकार के दौरों की तीव्रता और पुनरावृत्ति धीरे-धीरे कम होती जाती है।
इस अवस्था का एक और प्रकार होता है। जिसे मायोक्लोनिक सीजर्स कहते हैं। यह अवस्था कुछ सेकण्ड्स की होती है। इसमें अचानक हाथों, गर्दन व रीढ़ की हड्डी में सिकुड़न पैदा हो बायटे आने लगते हैं। शरीर में कुछ सेकण्ड्स के लिए झटके आते हैं लेकिन रोगी बेहोश नहीं होता है झटके के दौरान सभी जैविक क्रियाएं धीमी हो जाती हैं और झटका समाप्त होने के बाद पुनः शीघ्रता से अति उत्तेजित हो जाती हैं। यह कई शारीरिक सिन्ड्रोम का परिणाम हो सकती है।
आइए अब मिरगी के अलग-अलग प्रकारों के लक्षणों की चर्चा करते हैं।
मिर्गी रोग के लक्षण : Epilepsy Symptoms in Hindi
1. पार्शियल सीजर्स- इसमें रोगी बेहोश नहीं होता मगर दिमाग की सक्रियता कम हो जाती है। रोगी सुन्न हो जाता है तथा दौरे के दौरान ज्ञानेन्द्रियां महसूस तो करती है परन्तु प्रतिक्रिया देने में पूर्णतः असमर्थ होती हैं।
2. टेम्पोरल सीजर्स – इसमें दौरों की शुरुआत असंगत गन्ध व स्वाद से होती है। रोगी को अजीब सी बदबू आने लगती है, स्वाद कड़वा अथवा विचित्र हो जाता है। मुंह में लार का स्राव बढ़ जाता है या गला तेज़ी से सूखता है। रोगी को पेट के ऊपरी बीचों बीच के भाग (Epigastrium) में अचानक ठण्डक महसूस होती है जो बाद में अकड़न में परिवर्तित हो जाती है। रोगी का स्वचलित तन्त्रिका तन्त्र सक्रिय होने से ये लक्षण उत्पन्न होते हैं- रक्तचाप बढ़ना, आंखे व चेहरा लाल होना, पहले ठण्ड फिर भीषण गर्मी लगना, रोंगटे खड़े होना, मन मस्तिष्क में भय, क्लेश, उत्तेजना व आतंक की अनुभूति होना जिससे रोगी काल्पनिक दृश्य (Hallucinations) देखने लगता है। रोगी आंक्रांत हो जाता है मगर बेहोश नहीं होता।
3. फ्रंटल सीजर्स – इसमें ललाट भारी हो जाता है तथा खिंचाव महसूस होता है। आंखें लाल होकर जलने लगती हैं। एक तरफ़ दाएं या बाएं ओर के हाथ व पैर में कम्पन चालू हो जाता है। रोगी विचित्र भाव-भंगिमाएं बनाता है जैसे हाथ-पैर मरोड़ना, नाक-भौ सिकोड़ना, सिर पीटना व सिर को दीवार में, तकिये में रगड़ना, दाएं बाएं झटकना आदि। सभी ज्ञानतन्तु अति सक्रिय हो जाते हैं, रोगी आंक्रांत हो जाता है। परन्तु बेहोश नहीं होता।
4. पैराइटल सीजर्स- इसमें सिर का पैराइटल (मांग के दोनों ओर का) भाग अति कोमल हो जाता है। पैराइटल भाग में हमेशा वजन व जलन महसूस होते रहते हैं। रोग का प्रभाव बढ़ने पर रोगी को उबाकियां, उल्टियां व चक्कर आने लगते हैं।
5. ऑक्सीपीटल सीजर्स – इसके दौरे की शुरूआत दृष्टिदोष से होती है। रोगी की आंखें तेज़ गर्म, लाल व दर्दभरी हो जाती हैं। रोगी को चिनगारियां व गहरे रंग दिखाई देते हैं जिससे वह अंधापन महसूस करता है। कई चीजें, संख्या व स्वरूप में घट-बढ़ जाती हैं। विजुअल हेल्युसिनेशन इसका मुख्य लक्षण है।
6. ऑटोमेटिज्म – यदि लम्बे समय तक पार्शियल सीजर्स आते रहें हों तो शरीर में प्रतिक्रिया स्वरूप कई परिवर्तन हो जाते हैं। जैसे- होंठ या कपड़ा चबाते रहना, आंखे झपकाना, हाथ-पैर हिलाते रहना, अजीबअजीब भाव-भंगिमाएं बनाना, विचित्रविचित्र आवाजें निकालना, खाली मूंह निगलते रहना, लगातार चक्कर लगाते रहना व बड़बड़ाना आदि।
मिर्गी का घरेलू इलाज : Epilepsy Home Remedies in Hindi
1-ब्राह्मी से मिर्गी का इलाज :
10 ग्राम शहद के साथ 10 ग्राम ब्राह्मी के पत्तों को मिलाकर दिन में दो बार खाने से मिर्गी के दौरे दूर होते हैं।
2-मुलेठी से मिर्गी का इलाज :
मुलेठी के एक चम्मच बारीक चूर्ण को घी में मिलाकर दिन में 3 बार चटाने से लाभ मिलता है। ( और पढ़े – मुलेठी के फायदे व चमत्कारिक औषधीय प्रयोग)
3-सहजने से मिर्गी का इलाज :
सहजने की छाल और सरसों को पीसकर गाय मूत्र में मिलाकर शरीर पर लेप करने से मिर्गी की बिमारी ठीक होती है।
4-सौंठ से मिर्गी का इलाज :
कालानमक ,सौंठ, पीपल, मिर्च और भुनी हुई हींग को बारीक पीसकर ग्वारपाठे के रस के साथ पीने से मिर्गी का रोग दूर होता है। ( और पढ़े –गुणकारी अदरक के 111 फायदे व दिव्य औषधीय प्रयोग )
5-शतावर से मिर्गी का इलाज :
शतावर की जड़ के 2 चम्मच रस को एक कप गुनगुने दूध के साथ सुबह-शाम पीने से कुछ महीने में मिर्गी के दौरे में आराम मिल जाता है। ( और पढ़े –शतावरी के फायदे )
6-बिजौरे नींबू से मिर्गी का इलाज :
बिजौरे नींबू का रस और निर्गुण्डी का रस मिलाकर 3 दिन तक नाक में डालने से मृर्गी की बीमारी में आराम मिलता है। ( और पढ़े – नींबू के फायदे और औषधीय प्रयोग)
7-लहसुन से मिर्गी का इलाज :
लहसुन को पीसकर तिल के तेल में मिलाकर खाने या लहसुन और उडद के बडे़ बनाकर तिल के तेल में तलकर खाने से मिर्गी (अपस्मार) रोग दूर होता है।
8-बच से मिर्गी का इलाज :
बच का चूर्ण आधे से एक ग्राम शहद के साथ सुबह-शाम चटाने से उन्माद और अपस्मार में बहुत लाभ मिलता है। भोजन में केवल दूध और चावल का उपयोग करना चाहिए ।
9-कलौंजी से मिर्गी का इलाज :
एक कप गर्म पानी में 2 चम्मच शहद, आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से मिर्गी का रोग ठीक होता है। ( और पढ़े –कलौंजी के 55 हैरान करदेने वाले फायदे )
10-पलास से मिर्गी का इलाज :
पलास की जड़ों को पीसकर इसका रस निकाल लें और यह रस 4 से 5 बूंद नाक में डालने से मिर्गी के दौरे बन्द हो जाते हैं।
11-कालीमिर्च से मिर्गी का इलाज :
कालीमिर्च, सोंठ और पीपल बराबर मात्रा में लेकर सेंहुड़ के दूध में 20 दिन तक भिगोकर रख दें। इस पानी को रोगी को सुंघाने से मिर्गी रोग के कारण होने वाली बेहोशी दूर होती है। ( और पढ़े – कालीमिर्च के 51 जबरदस्त फायदे)
12-तुलसी से मिर्गी का इलाज :
तुलसी के पत्तों के रस में कपूर मिलाकर रोगी को सुंघाने से बेहोशी दूर होती है ।
13-अनार से मिर्गी का इलाज :
अनार के पत्ते को गुलाब के फूलों के साथ मिलाकर काढ़ा बनाकर 14-28 मिलीलीटर की मात्रा में दिन में 2 बार मिर्गी के रोगी को देने से मिर्गी का रोग ठीक होता है।
नोट :- किसी भी औषधि या जानकारी को व्यावहारिक रूप में आजमाने से पहले अपने चिकित्सक या सम्बंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ से राय अवश्य ले यह नितांत जरूरी है ।