जैतून तेल के फायदे और नुकसान : Olive oil ke Fayde aur Nuksan in Hindi

Last Updated on April 11, 2024 by admin

जैतून क्या है ? : What is Olive (jaitun) in Hindi

जैतून एक पेड़ है तथा इन वृक्षों की आयु सौ वर्षों से अधिक होती है । यह पारिजात कुल (ओलिआसे) की वनौषधि है। इस वृक्ष का लैटिन नाम ओलिया एउरोपेआ (Olea Europaea Linn) है जिसे अरबी में जैत और फारसी में जैतून कहा जाता है।
जैतून के फलों से प्राप्त तेल को आलिव आयल (Olive Oil) अंग्रेजी में,तथा लैटिन में ओलिउम् ओलीवी (Oleum Olivae) कहते हैं।

जैतून का पेड़ कैसा होता है ? :

जैतून के बागी वृक्ष (बगीचे में लगाए जाने वाला) सदा हरे-भरे मध्यम आकार के तथा जंगली वृक्ष बड़े होते हैं।

जैतून के पत्ते (पत्र) – अमरूद के पत्र के समान, किन्तु कुछ गोलाकार होते हैं।
जैतून के फल – कलमी बेर के समान अण्डाकार होते हैं। ये कच्ची अवस्था में हरे रंग के होते हैं। पकने पर ये फल नीलाभ लाल रंग के हो जाते हैं तथा इनका मध्यस्तर (Mesocarp) तेल से भर जाता है। कच्चे फलों का शाक एवं अचार बनाकर सेवन किया जाता है। इटली में जैतून का अचार बनाकर निर्यात करते हैं। यूनान में पके जैतून के फलों को सुखा कर खाया जाता है। सूर्य की किरणों में पूर्ण पके फल पोषण की दृष्टि से उत्तम होते हैं। जैतून वृक्ष सात साल का हो जाने के बाद फल देने लगता है परन्तु पूर्णरूप से यह 30 साल के बाद ही फल दे पाता है।

जैतून के वृक्षों से (विशेषत: जंगली वृक्षों से) एक प्रकार का गोंद भी निकलता है, जो पीताभ कृष्ण या लाल रंग का होता है। इसका स्वाद मधुर होता है। इस गोंद को कुछ देर हाथ में रखकर मसलने से यह पिघलकर शहद जैसा हो जाता है।

जैतून कहां पाया या उगाया जाता है ? : Where is Olive (jaitun) Found or Grown?

सारे विश्व में जैतून उत्पादन तथा इसके तेल (olive oil) की गुणवत्ता की दृष्टि से इटली का स्थान प्रथम है। जैतून उत्तरी पश्चिमी एशिया में पाया जानेवाला वृक्ष है। अब इसे अफ्रीका, केलिफोर्निया, दक्षिण अमेरिका, फ्रांस, इटली, स्पेन तथा आस्ट्रेलिया आदि में वृहद् स्तर पर उगाया जाता है। यूनान के अनेक आख्यानों में जैतून का वर्णन मिलता है। यूनान में ओलम्पिक खेल से लेकर अनेक धार्मिक अनुष्ठानों में जैतून को पवित्रता का प्रतीक माना जाता रहा है। मुख्यतः इसके तेल के लिये इसके वृक्ष लगाये हुये मिल जाते हैं। इसके बागी और जंगली दोनों प्रकार के वृक्ष पाये जाते हैं। जंगली जाति के वृक्ष अफगानिस्तान, बलूचीस्तान आदि में होते हैं।

ईसामसीह से सत्रह सौ वर्ष पूर्व पुरातन मिश्र में जैतून के वृक्ष ‘वाक’ नाम से ज्ञात थे। प्राचीन यूनान एवं रोमवासियों को भी यह भलीभांति ज्ञात था, किन्तु प्राचीन भारतीयों ने इसका उल्लेख नहीं किया।

जैतून का रासायनिक विश्लेषण : Olive (jaitun) Chemical Constituents

  • जैतून में ओलीईन (olive oil) एक प्रवाही तेल जो ओलीइक एसिड और ग्लीसरीन का यौगिक है तथा 93 प्रतिशत होता है।
  • लीनोजीन जो कि ग्लीसराइड और लाईनोलिक एसिड का एक यौगिक है, सात प्रतिशत होता है।
  • इसके अतिरिक्त पाल्मेटीन एक गाढ़ा तेल जो कि पाल्मेटिक एसिड और ग्लीसरीन का यौगिक होता है आदि उपादान पाये जाते हैं।

जैतून का तेल निकालने की विधि :

तेल निकालने के लिये फलों का संग्रह वसन्त के प्रारम्भ में करते हैं। अच्छे परिपक्व फलों को मशीन में चक्की द्वारा इस प्रकार पीसा जाता है कि गूदा तो पिस जाय, किन्तु गठली टूटने न पावे। इन पिसे हुये फलों को पुन: गोल-गोल थैलों में कस कर भर लिया जाता है तथा थैलों पर थैले एक के ऊपर एक रखकर मशीन द्वारा दबाया जाता है, जिससे गाढ़ा तेल निकल आता है। नालियों द्वारा इस तेल को हौज में संग्रहीत कर, उसमें पानी मिलाते हैं। स्वच्छ एवं शुद्ध तेल पृथक् होकर पानी पर तैरने लगता है। फिर तेलीय भाग को पृथक् कर लेते हैं। इसे वर्जिन आयल (Virgin Oil) कहते हैं। औषधि कार्यार्थ यही तेल उपयुक्त होता है।

उक्त प्रकार से गाढ़ा तेल निकालने के बाद जो चोया या फुजना रह जाता है, उससे प्रपीडन द्वारा दूसरे दर्जे का तेल अलग निकाला जाता है। यह तेल अन्य कार्यों के लिये उपयोग में लाया जाता है।

इस प्रकार शीत प्रपीडन द्वारा यूरोप देशीय जैतून के पके फलों से प्राप्त किया हुआ स्थिर तेल उत्तम स्वच्छ, सुनहला, हरिताभ पीत हल्की गन्धयुक्त होता है।

यूरोपीय जैतून के पके फलों से 40 प्रतिशत तक तेल निकलता है, जबकि अन्य कैलिफोर्निया, अमेरिका आदि के जैतून के फलों से मात्र 20-25 प्रतिशत तक ही तेल निकलता है।

इसके शुद्ध तेल में बिनोले का तेल, तिल तेल, मंगफली के तेल आदि का मिश्रण कर देते हैं, किन्तु इसकी विशिष्ट गन्ध एवं इसके विशिष्ट स्वाद से इसे पहचाना जा सकता है। वस्तुतः औषधि कार्य हेतु शुद्ध सही, विश्वसनीय तेल ही उपयोग में लाना चाहिए।

विकृत तेल के प्रयोग से खुजली आदि विकार हो जाते हैं, उनके निवारण के लिये शहद एवं शर्बत बनफ्शा को उपयोग में लाना चाहिये। कच्चे फलों से या सड़े फलों से निकाला गया तेल रूक्ष होने से उक्त विकारों को उत्पन्न कर देता है।

सेवन की मात्रा :

तेल – जैतून के शुद्ध तेल की साधारण सेवन मात्रा 6 से 12 ग्राम है किन्तु कई जीर्ण एवं दारूण रोगों में इसकी मात्रा 50 ग्राम तक भी दी जा सकती है।

गोंद – 3 से 5 ग्राम है।

जैतून तेल के औषधीय गुण और उपयोग : Jaitun oil ke Gun in Hindi

  • बाह्य प्रयोग से यह त्वचा पर स्नेहन, मृदुकर शोथ विलयन और संशमन कर्म करता है।
  • जैतून का तेल शरीर पर मर्दन करने से अंग-प्रत्यंगों को शक्ति प्रदान करता है।
  • निर्बल व्यक्तियों विशेषकर निर्बल एवं कृश शिशुओं में जैतून तेल की शरीर पर मालिश करने से वे पुष्ट बनते हैं।
  • व्रण शोधन रोपण हेतु इसे मरहमों में मिलाकर लगातेहैं।
  • सौन्दर्य वर्धनार्थ इसे विविध रूप से उपयोग में लाया जाता है।
  • जीर्ण मलावरोध में इसे बस्ति (एनीमा) के रूप में प्रयोग करने से जैतून का तेल आंतों में कठोरता के साथ चिपके मल को ढीलाकर बाहर निकालता है।
  • अर्श, कृमि, आन्त्रक्षत एवं उदरशूल में भी इस तेल की वस्ति उपयोगी है। अन्तः प्रयोग से यह शरीर को पुष्ट बनाता है।
  • गद-विदार, चिरकालीन विबन्ध, आंतों की रूक्षता आदि में इसकी अधिक मात्रा प्रयुक्त की जाती है।
  • वृक्काश्मरी तथा पित्ताशय की अश्मरी को निकालने के लिये जैतून का तेल विशेषतया उपयोग में लाते हैं।
  • संखिया जैसे विष के निवारण में यह लाभप्रद है।
  • शोथ, वेदना एवं दाह युक्त रोगों में इसका बाह्यभ्यन्तर प्रयोग हितकारी सिद्ध हुआ है।
  • जैतून का तेल 95 प्रतिशत तक पचकर आंतों में शीघ्र अवशोषित हो जाता है।
  • मानव रक्त विभिन्न तत्वों द्वारा संगठित है। इन तत्वों की न्यूनाधिक मात्रा कई रोगों को जन्म देती है। ऐसा ही एक रक्त में पाया जाने वाला तत्व है कोलेस्टरोल, जो शरीर के लिये लाभदायक होते हुये भी न्यूनाधिक अवस्था में प्राणघातक भी हो सकता है।एक 70 किलोग्राम भार वाले स्वस्थ मनुष्य के रक्त में कोलेस्टरोल की मात्रा 4-6 ग्राम होती है। रक्त की इसकी स्वाभाविक मात्रा 100 मि.ली. स्वस्थ रक्त में 150 से 250 मि.ग्राम होती है। अत: यह मात्रा 150 मि.ग्रा. से कम नहीं होनी चाहिये तथा 300 मि. ग्रा. से अधिक नहीं होनी चाहिए। कोलेस्टरोल शरीर में स्वयं स्वतन्त्र रूप से बनता है। इतना अवश्य है कि प्रतिदिन के भोजन में यदि असंतृप्त वसाम्ल (Unsaturated Fatty Acids) लिये जायें तो कोलेस्टरोल की मात्रा अवश्य कम हो जाती है, जो अधिक स्थायी है। फिर यदि उसके साथ में कोलेस्टरोल युक्त भोजन किया भी जाये तो भी कोलेस्टरोल की मात्रा रक्त में नहीं बढ़ती है। असंतृप्त वसाम्ल जैतून के तेल, सूरजमुखी के तेल आदि में रहता है। अतएव चिकित्सक हृदय के लिये उपयोगी तेलों में जैतून के तेल को प्राथमिकता देते हैं।

जैतून तेल के फायदे : Jaitun ke Tel ke Fayde in Hindi

1. आग से जलने पर जैतून तेल के प्रयोग से लाभ : जैतून के तेल से आधा भाग चूने का पानी मिलाकर घोटकर लगाने से जलन मिटती है तथा घाव ठीक होते हैं।

2. त्वचा का रूखापन मिटाए जैतून तेल का उपयोग : रूखी त्वचा में स्निग्धता तथा चमक लाने के लिये जैतन के तेल में कच्चा दूध मिलाकर लगायें। जैतून तेल (olive oil) और शहद मिलाकर मालिश करना भी लाभदायक है फिर पानी में कुछ जैतून तेल डालकर स्नान करने से त्वचा का रूखापन दूर होकर उसमें निखार आता है।

3. नाखूनों विकृती में जैतून तेल के इस्तेमाल से फायदा : यदि नाखून कमजोर, फटे हुये या विकृत हैं तो एक कटोरी में जैतून के तेल को कुछ गरम कर उसमें आधा घन्टे नाखूनों को डुबाये रखें।

4. होठों का फटना दूर करे जैतून का तेल : होठों में कोई तेल ग्रन्थि नहीं होती अत: इन्हें विशेष स्निग्धता की आवश्यकता होती है। सर्दियों में ये प्राय: रूक्ष होकर फट जाते हैं अत: हाथों पर जैतून का तेल लगावें साथ में अपनी नाभि में भी इस तेल को लगायें।

5. स्तनों को सुडौल बनाने में लाभकारी है जैतून तेल का प्रयोग : स्तन के अग्रभाग के आसपास धीरे धीरे जैतून के तेल (olive oil) से मालिश करने पर स्तनों पर उभार आता है वे अधिक आकर्षक तथा सुडौल बनते हैं। जिन स्त्रियों के स्तनों की सुडौलता खत्म होकर उनमें ढीलापन आ गया हो उन्हें जैतून के तेल में अनार के छिलके और गंभारी की छाल का बारीक चूर्ण मिलाकर स्तनों पर गाढ़ा उबटन करना चाहिये। यह लेप लगभग एक घन्टे तक रहना चाहिये इसके बाद स्नान कर लें। एक-दो माह तक यह प्रयोग निरन्तर जारी रखना चाहिए।

6. कील-मुंहासों में जैतून के तेल का उपयोग लाभदायक : जैतून के तेल को थोड़ा गरम कर उसमें आधा भाग नीबू रस मिलाकर धीरे धीरे मुंह पर लगाना चाहिये। कुछ समय पश्चात मुंह को धोना चाहिए।

7. एड़ियों के फटने में जैतून तेल के इस्तेमाल से फायदा : कई स्त्री पुरुषों की एड़ियों में दरार पड़ जाती हैं। यह सर्दियों में विशेष फटती हैं। उस समय जैतून के तेल में गुड़ या बड़ का दूध मिलाकर लगाने से लाभ होता है।

8. त्वचा की झुर्रियां मिटाने में जैतून तेल के इस्तेमाल से लाभ : जैतून के तेल में नीबू का रस और गुलाबजल मिलाकर मालिश करनी चाहिए।

9. वात रोग में जैतून का तेल फायदेमंद : आमवात, गृध्रसी (सायटिका) आदि रोगों की अंग वेदना में कवोष्ण जैतून तेल की मालिश कर सेक करना चाहिये।

10. बालों की जड़ों को मजबूत बनाने में जैतून का तेल लाभदायक :

  • बालों की जड़ों को मजबूत करने के लिए इस तेल की बालों की जड़ों में मालिश करने के पश्चात् गुनगुने जल में कपड़े को भिगोकर फिर उसे निचोड़कर बालों पर आधा घन्टे तक बांधे रखना चाहिये।
  • बालों को घने और चमकयुक्त बनाने के लिये जैतून के तेल में एरण्ड तेल मिलाकर मालिश करने के पश्चात् आंवले, सिकाकाई अरीठा के औटाये पानी से बालों को धोना चाहिए। आवश्यकतानुसार इस मिश्रण में थोड़ा बादाम तेल या नारियल का तेल भी मिलाया जा सकता है। ( और पढ़े – सफेद बालों से छुटकारा पाने के 14 अचूक उपाय )

11. शक्ति बढ़ाने में लाभकारी जैतून का तेल : इस तेल को दूध में मिलाकर या मौसम्मी, पपीता के रस में मिलाकर सेवन करने से दुर्बलता दूर होकर शरीर पुष्ट बनता है। इस कार्य के लिये रुचि के अनुसार रस की स्वल्प मात्रा ही देनी चाहिये।
क्षय रोगियों को मछली के तेल के स्थान पर इसे ही देना चाहिये। इस तेल को सेवन करने में किसी को असुविधा हो तो इसे बबूल के गोंद चूर्ण में मिश्रित कर या कैपसूल में रखकर लेना चाहिए। ( और पढ़े – चुस्ती फुर्ती और ताकत बढ़ाने के लिए घरेलू नुस्खे )

12. जैतून तेल के इस्तेमाल से आमाशय के घाव में लाभ : आमाशय व्रण के रोगियों में इसके प्रयोग से शक्ति मिलती है। इस तेल में शतावरी चूर्ण या शतावरी घृत मिलाकर सेवन करना अधिक लाभकारी है। इस तेल का प्रयोग महास्रोत में स्नेहन के लिये करना चाहिये। इससे जीर्ण मलावरोध के रोगियों को पूर्ण लाभ मिलता है। किसी विष के प्रयोग से यदि पेट में जलन एवं वेदना अधिक होती हो तो भी इसका प्रयोग हितावह है।

13. पित्ताशय की पथरी मिटाए जैतून का तेल :

(a) इस पथरी (अश्मरी) के मुख्य घटक कोलेस्टेरीन के विलयन तथा तज्जन्य शूल के निवारणार्थ इस तेल का प्रयोग बहुत उपयुक्त समझा गया है।
वैद्य श्री गिरधारी लाल मिश्र तेजपुर ने इस पर अपना अनुभव सुधानिधि अप्रेल 1997 के अंक में इस प्रकार लिखा है-

रोगी सुबह का नाश्ता तथा दोपहर का भोजन करे। दोपहर के भोजन के बाद उसे कुछ खाने को न दें। केवल पानी इच्छानुसार पिया जा सकता है परन्तु पानी के अतिरिक्त कुछ भी न पिलावें। रात में लगभग सात बजे जैतून का तेल चार चम्मच पीवें और पन्द्रह मिनट बाद एक चम्मच नीबू का रस पीवें। फिर 15 मिनट बाद पुनः जैतून का तेल चार चम्मच और इसके 15 मिनट बाद पुनः नीबू का रस एक चम्मच पीवें। इस प्रकार 100 मि. ली. तेल पी लें। कोई कोई रोगी 50 मि.लि. ही तेल पी पाते हैं या इससे कम पीने पर ही उल्टी करने लगते हैं। किसी को इसके स्वाद से तो किसी को इसकी गन्ध से उल्टी होने लगती हैं। नीबू का रस उल्टी को रोकने के लिये ही प्रमुख रूप से दिया जाता है। इस प्रकार तीन से सात दिनों के अन्दर पित्ताशय की अश्मरी की छोटी-बड़ी साइज के अनुसार 300 से 500 मि.ली. तक पिलाते हैं। सुबह मल के साथ जैतून का तेल मल में घुलकर निकलेगा और उसके साथ पथरी के हरे रंग के टुकड़े भी निकल जायेंगे।

(b) विशुद्ध जैतून तेल 2 चम्मच, नीबू का रस एक चम्मच, जल 8 चम्मच मिलाकर रात में सोते समय एक दिन छोड़कर देते रहें। साथ में अन्य अश्मरीहर योग दें। – श्री मोहरसिंह आर्य (स्वास्थ्य 10-95) ( और पढ़े – पित्त की पथरी के लिए 28 असरकारी घरेलू उपचार )

जैतून के फल के फायदे और उपयोग :

जैतून के फलों का मुरब्बा मृदु रेचक है। इसे गरम पानी के साथ खिलाने से दस्त खूब लगते हैं। फलों का अचार भूख बढ़ाता है किन्तु कुछ विबन्ध कारी भी है। सिरके के साथ इसे सेवन करने से यह शीघ्र पच जाता है।

जैतून के फल का अचार बनाने की विधि –

बागी जैतून के कच्चे फलों को चूना और राख मिश्रित पानी में डुबोकर कुछ समय तक रखते हैं, जिसे उनकी कड़वाहट बहुत कुछ दूर हो जाती है। फिर उन्हें बर्नियों में नमक एवं सुगन्धित द्रव्य मिश्रित जल के साथ भर देते हैं। 3 से 4 दिनों में अचार तैयार हो जाता है।

जैतून के पत्तों के औषधीय उपयोग और फायदे :

  • जैतून के पत्र रस कान में डालने से कर्णशूल (कान दर्द), कर्णपूय (कान से पस बहना) एवं कर्णशोथ (कान की सूजन) दूर होता है।
  • कान में फुन्सी हो या बहरापन हो तो पत्र स्वरस में बराबर शहद मिलाकर कुछ गरम कर कान में डालना चाहिये।
  • बच्चों की आंखों के टेढेपन को मिटाने हेतु पत्र रस का नस्य देते हैं।
  • शीतपित्त, खुजली, दाद, गरमी के कारण हुये दूषित व्रणों पर जंगली जैतून के पत्तों का प्रलेप करना हितकर है।
  • व्रण रोपण (घाव भरने) हेतु पत्र चूर्ण को शहद में मिलाकर लगाना चाहिए।
  • अधिक पसीना आने पर जंगली जैतून को सुखाकर पीसकर शरीर पर मलना चाहिये।

जैतून की गोंद के फायदे :

जैतून की गोंद उष्ण एवं रूक्ष होता है। यह जुकाम, सर्दी, नजला व खांसी को दूर कर आवाज को सुधारता है। इसकी सेवनीय मात्रा 3-5 ग्राम है।

  • गर्भाशय शोथ निवारणार्थ इसे योनिमार्ग में रखते हैं।
  • दाद पर इसे मलहम में मिलाकर लगाना चाहिये।
  • इसे कीड़ा खाये दांत में भर देने से बहुत लाभ होता है।

जैतून तेल के दुष्प्रभाव : Jaitun oil ke Nuksan in Hindi

  1. जैतून तेल की अधिक मात्रा सेवन करने पर जी मिचलाना , वमन ,सरदर्द जैसी प्रतिक्रिया हो सकती है ।
  2. जैतून की तासीर गर्म होती है इसलिए गर्म प्रकृति वालों को इसका सेवन सोचसमझ कर उचित मात्रा में ही करना चाहिये ।

विशेष :

जैतून के किसी भी उपयोगी अंग के अतियोग से यदि अनिद्रा, शिर :शूल, दुर्बलता या कोई अन्य शिकायत हो तो बादाम, अखरोट, शहद, शर्बत नीलोफर या खमीरा बनफ्शा का सेवन विशेष लाभदायक है।

(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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