रसोई घर के मसालों, फल, सब्जियों के फायदे और घरेलू उपचार – Rasoi Ghar ke Masalon, Fal, Sabjiyon ke Fyade

Last Updated on September 18, 2020 by admin

शरीर को हमेशा स्वस्थ और रोगमुक्त रखने में पाचन संस्थान की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि पाचन संस्थान द्वारा ही ग्रहण किए गए आहार का पाचन होकर शरीर को लाभ मिलता है। यदि पाचन संस्थान विकारग्रस्त हो जाए तो इसके लक्षण पेट संबंधी विभिन्न प्रकार के विकारों के रुप में सामने आते हैं और संपूर्ण स्वास्थ्य पर भी इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। अतः अपने आहार-विहार पर पूरा ध्यान देते हुए पाचन संस्थान को हमेशा स्वस्थ रखने का प्रयास करना चाहिए। । पाचन संस्थान को स्वस्थ रखनेवाले और इससे संबंधित रोगों से मुक्ति दिलाने वाले कुछ प्रमुख पदार्थ, फल-सब्जियां, जड़ी-बूटियां आदि इस प्रकार है। ये सब वस्तुएं सामान्यतः हमारे रसोईघर में उपलब्ध होती ही है।

जायफल व जावित्री : फायदे और उपयोग

जायफल और जावित्री दोनों द्रव्य एक ही पेड़ से प्राप्त होते हैं। फल के भीतर बीज होता है, जिसे जायफल कहा जाता है, जबकि बीज के खोल को जावित्री कहा जाता है। औषधि के रुप में बड़े, चिकने तथा भारी वजन वाले जायफल के बीजों का प्रयोग करना चाहिए।
ग्राही, पौष्टिक तथा दीपन, पाचन और वातनाशक गुणों से युक्त होने के कारण जायफल का प्रयोग सभी स्थितियों में फायदेमंद है।

  • आमाशय के लिए उत्तेजक होने से इसका प्रयोग करने से आमाशय में पाचक रस की वृद्धि से भूख महसूस होती है।
  • आंतों में जाने पर जायफल वायु का अनुलोमन करता है।
  • जायफल पाचन कार्य को शीघ्र संतुलित कर भूख को बढ़ाता है।
  • पाचक, स्तंभक तथा वेदनाहर होने के कारण अतिसार, रक्तातिसार, पेचिश (डिसेंट्री), उद्वेग और वमन में इसका प्रयोग करने से पूरा लाभ मिलता है।
  • पाचन संस्थान विकृत होने पर जावित्री 10 ग्राम, दालचीनी 40 ग्राम और तेजपत्र 50 ग्राम मात्रा में अलग-अलग पीसकर मिलाकर 1-2 ग्राम मात्रा दिन में दो-तीन बार पानी के साथ सेवन करें।
  • बच्चों को हरे-पीले दस्त आने पर जायफल को पानी के साथ घिसकर नाभि पर लेप करने से लाभ मिलता है।
  • बच्चों के अजीर्ण-अपच से होने वाले दस्त में जायफल व सोंठ को पानी में घिसकर तीन-चार बार देने से ही राहत मिल जाती है।
  • पतले दस्त में छाछ के साथ जावित्री का सेवन करने से लाभ मिलता है ।

अजवाइन : फायदे और उपयोग

अजवाइन का औषधि और मसाले के रुप में इस्तेमाल होता है। पेट संबंधी रोगों और पाचन से संबंधित समस्याओं तथा वातज रोगों में अजवाइन का प्रयोग अतीव हितकारी है । अजवाइन के विशिष्ट पाचक गुण के कारण ही इसके बारे में कहा गया है-‘एका एमानी शतमन्न पाचिका’ अर्थात् एकमात्र अजवाइन ही ऐसा द्रव्य है, जो 100 अन्नों को पचा सकता है।

  • अजवाइन 4 ग्राम, कालाई नमक 4 ग्राम, तुलसी पत्र (सूखे) 2 ग्राम और हींग आधा ग्राम की मात्रा में दिन में तीन बार सेवन करने से पेट से संबंधित अधिकांश रोग नष्ट होते है, अजीर्ण, पेट दर्द, अफरा, गैस्ट्रिक आदि में आशातीत लाभ मिलता है।

नींबू : फायदे और उपयोग

नींबू अम्ल होते हुए भी क्षारीय है। इसका सेवन करने से पेट में किसी प्रकार का अजीर्ण नहीं होता। ज्यादातर पोहे तथा हरी धनिया व पुदीना की चटनी और सलाद में डालकर नींबू के रस का सेवन किया जाता है।

  • उदरस्थ कृमि, कब्ज, गैस्ट्रिक, पेट फूलना, उल्टी, भूख न लगना, डकारें आना, पेट दर्द आदि विकारों में भोजन के बाद एक कप गरम पानी में चुटकी भर डालकर और आधा नींबू निचोड़ कर 5 ग्राम छोटी हरड़ के चूर्ण के साथ नियमित रुप से सेवन करने से स्थायी लाभ मिलता है।

लहसुन : फायदे और उपयोग

आयुर्वेद में लहसुन को महौषधि कहा गया है। इसमें गंधक के यौगिक मौजूद होते हैं, जिससे शरीर की कुछ ग्राम पॉज़िटिव व कुछ ग्राम नेगेटिव जीवाणुओं से सुरक्षा होती है, जो दस्त, खाद्य विषाक्तता आदि रोग पैदा करते हैं।

  • लहसुन का सेवन करने से पेट में संचित वायु बाहर निकल जाती है, साथ ही यह कृमिघ्न (पेट में उत्पन्न होने वाले कृमियों को नष्ट करने वाला) भी है।
  • नमक मिलाकर लहसुन का सेवन करने से पेट दर्द शांत होता है।

धनिया : फायदे और उपयोग

धनिया का प्रयोग सभी घरों में होता है। धनिया की महक इसमें मौजूद गामा टारपीनिओल के कारण होती है, जो जीवाणुनाशक है। इसमें रेशा अत्यधिक मात्रा में पायाजाता है, जो शरीर के लिए बेहद उपयोगी होता है।

  • धनिया शरीर में ग्ल्यूटाथाइओन एस- ट्रांससरेल एंजाइम को बनाने में सहायता करती है, जो विषैले पदार्थों की विषाक्तता दूर करता हैं।
  • सूखी धनिया और सोंठ 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर 400 मि.ली. पानी में डालकर इतना पकाये कि 100 मि.ली. शेष रह जाए। अब इसे उतारकर ठंडा करके 10 ग्राम शहद मिलाकर सेवन करें कुछ दिनों तक इस पेय का सेवन करने से एसिडिटी से मुक्ति मिल जाती है।
  • सूखी धनिया और मिश्री 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर एक साथ एक कप पानी में उबालकर आधा कप शेष रहने पर छानकर दिन में दो बार सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ मिलता है।

हींग : फायदे और उपयोग

हींग पाचक, उष्ण, तीक्ष्ण और भूख को बढ़ाने वाली अनमोल घरेलू औषधि है। कब्ज, पेट में कृमि डकारें, हिचकी सहित पेट संबंधी कई रोगों मे इसका प्रयोग करने से पूरा लाभ मिलता है।

  • हींग, सौंफ, सफेद जीरा, पीपल, सोंठ, नागरमोथा और सेंधानमक 10-10 ग्राम की मात्रा लेकर अलग-अलग कूट-पीसकर बारीक चूर्ण तैयार करके मिलाकर शीशी में भरकर रख लें। सुबह, दोपहर और शाम में यह 1-1 चम्मच मिश्रित चूर्ण गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से दस्त बंधकर आने लगता है तथा इस प्रकार दस्त से राहत मिल जाती है।
  • यदि वायु संचित होने के कारण पेट फूल गया हो तो हींग को गरम पानी में घोलकर नाभि और इसके इर्द-गिर्द लेप करने से लाभ मिलता है।

मूली : फायदे और उपयोग

मूली का सेवन पेट के लिए बहुत ही फायदेमंद है, अतः सलाद आदि के रुप में इसे अपने भोजन में अवश्य शामिल करना चाहिए।

  • यह कब्ज को जड़ से समाप्त करती है।
  • एक कप मूली के रस में एक चम्मच अदरक का रस और एक चम्मच नींबू का रस मिलाकर पीने से पेट की जलन, भोजन के प्रति अरुचि, अपच, कब्ज और पेट के अन्य रोग ठीक हो जाते हैं।
  • बवासीर में मूली व भुने हुए चने का सेवन करने से पूरा लाभ मिलता है।
  • मूली और इसके पत्तों का स्वरस एक कप की मात्रा में सुबह-शाम पीने से यकृत शोथ जल्दी ठीक होता है।
  • मूली और इसके पत्तों के साग का नियमित सेवन भी यकृत शोथ में फायदेमंद है।
  • सेवन हेतु कड़वी मूली उत्तम है।
  • ध्यान रहे एक बार में 250 मि.ली. से अधिक मूली का रस नहीं पीना चाहिए।

इसबगोल : फायदे और उपयोग

इसबगोल का सेवन उष्ण प्रकृति वालों के लिए बेहद फायदेमंद है। पित्तजनित समस्त विकारों को दूर करने के लिए इसे उत्तम औषधि माना जाता है। इसबगोल की भूसी हर जगह आसानी से मिल जाती है। इसबगोल के बीज पंसारी की दुकान से खरीदकर इनका प्रयोग किया जा सकता है। यदि केवल इसबगोल के बीजों का प्रयोग करना हो तो इन्हें पीसना नहीं चाहिए।

  • संग्रहणी के दाहजन्य दर्द में इसबगोल को दूध में पकाकर मिश्री मिलाकर दूध को ठंडा करके सेवन करने से आंतों की जलन कम होती है।
  • यह योग भूख बढ़ाता है और मल को बांधता है।
  • जीर्ण आंव रक्तातिसार रोग में दस्त की अनियमितता और कब्ज की शिकायत रहती है ऐसी दशा में इसबगोल के बीजों का प्रयोग करने से पूरा लाभ मिलता है।
  • इसबगोल के बीज आंतों में होने वाले घाव या पीड़ित हिस्से को अपने लुआब (पिच्छिलता) से ढक देते हैं, परिणामस्वरुप भोज्य पदार्थ घावों से लगकर किसी प्रकार की क्षति नहीं पहुंचा पाते हैं और घाव, सूजन आदि शीघ्र दूर हो जाते हैं।
  • इसबगोल के बीज शरीर के समस्त विषैले पदार्थ को आत्मसात करके मल के साथ बाहर निकाल देते हैं, जिससे रोग लक्षण में सुधार हो जाता है।
  • इसबगोल के बीज आंतों में रुककर फूल जाते हैं तथा मल आसानी से बाहर निकल आता है।
  • इसबगोल के बीजों का सेवन 5 से 10 ग्राम की मात्रा में 2 चम्मच शक्कर मिलाकर करना चाहिए। इससे 12 घंटे के अंदर आंतों में स्थित विषैले पदार्थ का निष्कासन हो जाता है।
  • इसबगोल के बीज के बदले इसकी भूसी भी प्रयोग में लाई जाती है। 5 से 10 ग्राम की मात्रा में एक कप पानी और थोड़ी-सी शक्कर मिलाकर इसबगोल की भूसी का सेवन करना चाहिए।
  • इसबगोल की भूसी का प्रयोग पाचन संस्थान को विकारमुक्त करने की दृष्टि से हितकारी है लेकिन 24 घंटे में लुआब पेट में समाप्त हो जाता है। दूसरी ओर बीज से होने वाले लुआब में कुछ भी बदलाव नहीं होता। इसलिए भूसी के बदले बीज का प्रयोग ही श्रेयस्कर है।
  • प्रोटोजोल और बेसीलरी नामक कीटाणु से उत्पन्न पेचिश में इसबगोल की भूसी का प्रयोग विशेष रुप से लाभप्रद है।

आम : फायदे और उपयोग

आम पाचन संस्थान के लिए एक बहुत ही लाभदायी फल है।

  • आम का रस और शहद मिलाकर सेवन करने से तिल्ली ठीक हो जाती है।
  • आम का रस और घी मिलाकर सेवन करना अरुचि में लाभप्रद है, इससे भूख बढ़ती है। लेकिन ध्यान रहे, पाचन शक्ति बेहतर होने पर ही घी अधिक मात्रा में मिलाना चाहिए अन्यथा हानि हो सकती है।
  • आम तुरंत पचकर शक्ति प्रदान करता है।
  • पके हुए आम का सेवन करने से पेट साफ होता है।
  • दूध के साथ आम का रस मिलाकर सेवन करने से कब्ज से मुक्ति मिल जाती है।
  • आम कब्जनाशक है, अतः जिन्हें कब्ज की शिकायत हो, उन्हें आम का सेवन अवश्य करना चाहिए।
  • यह रेशेदार फल आंतों में छिपे हुए मल को भी बाहर निकाल देता है।
  • शिशु जब 7-8 माह का हो जाए तो उसे प्रतिदिन 1-1 चम्मच आम का रस पिलाना चाहिए, इससे शिशु का पेट साफ रहता है और कब्ज की शिकायत नहीं होती है।
  • यदि बवासीर की शिकायत हो तो आम और दूध का सेवन लाभप्रद है।
  • आम की गुठली की मींगी निकालकर इसे दही के पानी में पीसकर नाभि पर लेप करने से दस्त आने की दशा में आशातीत लाभ मिलता है।

केला : फायदे और उपयोग

केला पौष्टिक होने के साथ-साथ पेट के लिए भी एक अतीव हितकारी फल है। आंतों से संबंधित विकारों में पथ्य के रुप में केला दिया जाता है क्योंकि इसका गूदा बहुत ही कोमल व चिकना होता है। मात्र यही एक ऐसा फल है, जिसका सेवन अल्सर के जीर्ण प्रकोप की दशा में भी इसके प्राकृतिक रुप में निःसंकोच किया जा सकता है। केला विभिन्न पाचक रसों की अति अम्लता को दूर करता है तथा पेट की अंदरुनी दीवारों पर परत चढ़ाकर अल्सर की खराश को कम करता है।

  • बड़ी आंत के घाव के कारण आयी सूजन में पके हुए केले का सेवन हितकर है क्योंकि यह चिकना, मुलायम और दस्तावर (पेट साफ करने वाला) होता है।
  • पका हुआ केला बड़ी आंत में जाकर आंत के कार्य को सामान्य बनाता है तथा आंतों को बेहतर ढंग से काम करने के लिए प्रचुर मात्रा में पानी को सोख लेता है।
  • कब्ज के निवारण हेतु केला का सेवन लाभप्रद है, क्योंकि इसमें पेक्टिन नामक रसायन प्रचुर मात्रा में मौजूद होता है।
  • पेक्टिन पानी को अवशोषित कर लेता है जिससे मल की मात्रा बढ़ जाती है।
  • केले को मसलकर इसमें थोड़ा-सा नमक मिलाकर सेवन करने से पेचिश में पूरा लाभ मिलता है। इस घरेलू उपाय को अपनाकर जीर्ण पेचिश से पीड़ित व्यक्ति भी इस रोग से मुक्ति पा सकते हैं।

पपीता : फायदे और उपयोग

  • पपीता पाचन क्रिया को दुरुस्त रखता है।
  • पके हुए पपीते का सेवन करने से कब्ज की शिकायत नहीं होती, अतः प्रतिदिन इसका सेवन करना चाहिए। यदि दूध के साथ पपीते का सेवन किया जाए तो और भी लाभप्रद होगा।
  • पेट संबंधी रोग-तिल्ली, यकृत आदि में खाली पेट ताजे पके हुए पपीते का सेवन हितकर है। इससे पेट साफ होकर पाचन संस्थान ठीक हो जाता है।
  • कच्चे पपीते का सेवन करने से पेट संबंधी विकार उत्पन्न नहीं होते हैं।
  • कच्चे पपीते के भुर्ते का सेवन करने से कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है। भुर्ता बनाने के लिए कच्चे पपीते को छीलकर दाल में डालकर पकाने के बाद निकालकर मसलकर इसमें नींबू का रस, हरी मिर्च, धनिया पत्ता, लहसुन और स्वादानुसार नमक मिला लें।
  • यदि बार-बार पतले दस्त आते हों, तो कच्चा हरा पपीता काटकर पानी में उबालकर सेवन करने से 2-3 दिनों में ही राहत मिल जाती है।

पालक : फायदे और उपयोग

पाचन तंत्र के लिए पालक एक बहुत ही लाभप्रद भोज्य पदार्थ है।

  • पालक की पत्तियों को बिना पानी डाले कुचलकर रस निकालकर 100 मि.ली. की मात्रा में सेवन करने से पेट साफ हो जाता है।
  • आंतों से संबंधित रोगों में पालक की सब्जी का सेवन करने से पूरा लाभ मिलता है।
  • भूख कम लगना, अजीर्ण, अतिसार, संग्रहणी, वमन, जीभ और अन्नप्रणाली शोथ आदि विकारों में पालक का प्रयोग अतीव हितकारी है।
  • पालक के रस में प्याज और पुदीना का रस मिलाकर सेवन करने से उल्टी बंद हो जाती है।

बथुआ : फायदे और उपयोग

बथुआ का साग पेट संबंधी विकारों में, खासतौर पर आमाशय और यकृत के लिए बहुत ही लाभप्रद है।

  • बथुआ क्षारयुक्त, कृमिनाशक, त्रिदोषनाशक, दीपक, पाचक और मल-मूत्र शोधक है।
  • इसका यथोचित प्रयोग करने से तिल्ली रोग, बवासीर, पथरी आदि में पूरा लाभ मिलता है।
  • बथुआ का रस सेवन करने से पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं।

मेथी : फायदे और उपयोग

मेथी अरुचि दूर करने और भूख बढ़ाने में विशेष रुप से प्रभावी है।

  • घी के साथ भुने हुए मेथी के पत्तों का सेवन करने से अतिसार (पतले दस्त आना) में लाभ मिलता है।
  • भोजन में मेथी का सेवन करने या फिर भोजन करने से पहले एक चम्मच मेथीदाना पानी या जूस के साथ लेने से एसिडिटी की शिकायत नहीं होती है।
  • एक-एक चम्मच मेथीदाना एक कप पानी में उबालकर आधा कप शेष रहने पर छानकर दिन में दो बार सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ मिलता है।

शहद : फायदे और उपयोग

शहद पौष्टिक होने के साथ-साथ पेट के लिए भी हितकर है। यह पेट में जाकर आंतों की बिगड़ी हुयी क्रिया को सुधारने का काम प्रारंभ कर देता है। शहद आंतों में जड़ जमाए विजातीय द्रव्यों को बाहर निकाल देता है, इसलिए पुराने कब्ज तथा अन्य पेट संबंधी विकारों के लिए यह एक उत्तम औषधि है।

  • आंतों की तरह ही आमाशय और पक्वाशय पर भी शहद का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • जब कभी लगातार भारी भोजन लेना पड़ जाता है तो आमाशय और पक्वाशय पर बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसी दशा में शहद का सेवन करने से आमाशय और पक्वाशय की क्रिया सामान्य हो जाती है तथा जठराग्नि भी तीव्र हो जाती है, जिससे भूख बढ़ जाती है।
  • कई व्यक्तियों का यकृत कमजोर पड़ जाता है, यह उतना गतिशील नहीं रह पाता, जितना रहना चाहिए, फलतः दूध, दही, घी का समुचित पाचन नहीं हो पाता। ऐसी दशा में शहद का सेवन करने से धीरे-धीरे यकृत में मजबूती आने लगती है तथा यह गतिशील हो जाता है, जिससे पाचन क्रिया भी दुरुस्त हो जाती है।

नोट – भोजन के तुरंत बाद शहद का सेवन न करें, भोजन के 2-3 घंटे बाद ही शहद का सेवन हितकर होगा।

सौंफ : फायदे और उपयोग

पाचन तंत्र संबंधी विकारों में सौंफ का प्रयोग हितकर है।

  • भोजन करने के बाद सौंफ का सेवन करने से मुख की दुर्गंध, अपच और उल्टी में लाभ मिलता है।
  • सौंफ 50 ग्राम, त्रिफला 50 ग्राम, बादाम गिरी 50 ग्राम, सोंठ 10 ग्राम और मिश्री 30 ग्राम की मात्रा में लेकर कूट-पीसकर बारीक मिश्रण तैयार करके रख लें। रात में सोने से पहले 6-6 ग्राम की मात्रा में गरम दूध के साथ इस योग का सेवन करने से न तो खुश्की होती है, न ही कमजोरी आती है, बल्कि कब्ज दूर होने के साथ-साथ शारीरिक शक्ति में भी बढ़ोतरी होती है।

गेहूं का चोकर : फायदे और उपयोग

गेहूं का चोकर आरोग्य की दृष्टि से हितकर है।

  • चोकरयुक्त गेहूं के आटे की रोटी का सेवन करने से कब्ज की शिकायत दूर होती है।
  • गेहूं के चोकर में पाया जाने वाला रेशा पाचन संस्थान नहीं चिपकता, बल्कि यह पचे हए अन्य भोज्य पदार्थों को भी आगे की ओर ले जाने में सहायक है।

अनार : फायदे और उपयोग

पाचन विकार और कृमि नष्ट करने के लिए अनार का प्रयोग अतीव हितकारी है।

  • मधुर और कषाय होने से मीठा अनार पित्तशामक होता है, इसलिए अम्लपित्त (हाइपर एसिडिटी) के रोगियों को इसका सेवन कराने से पूरा लाभ मिलता है।
  • एक कप अनार की छाल के काढ़े में आधा चम्मच सोंठ का चूर्ण डालकर सुबह- शाम सेवन करने से खूनी दस्त और खूनी बवासीर से निजात मिल जाती है।
  • अनार के मीठे दानों पर कालीमिर्च और सेंधानमक बुरककर चूसने से पेट दर्द शांत हो जाता है।

इलायची : फायदे और उपयोग

इलायची में रेशे पाए जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। विभिन्न प्रकार के पाचन संबंधी विकारों में इलायची का प्रयोग करने से आशातीत लाभ मिलता है।

  • छोटी इलायची के दाने 2 ग्राम, खसखस 6 ग्राम और मिश्री 10 ग्राम की मात्रा में लेकर चूर्ण तैयार कर लें। दिन में तीन बार 1-1 चम्मच की मात्रा में इस चूर्ण का सेवन करने से आंवयुक्त मरोड़ के साथ होने वाले दस्त में पूरी राहत मिलती है। ध्यान रहे, चूर्ण का सेवन करने के आधा घंटा बाद तक पानी न पिएं तथा खिचड़ी, चावल, दही, छाछ (जीरा और हरी धनिया मिलाकर) आदि सुपाच्य भोज्य पदार्थों का सेवन करें।

अदरक व सोंठ : फायदे और उपयोग

अदरक को ही सुखाकर सोंठ तैयार की जाती है। सोंठ उत्तेजक, पाचक और शक्तिदायक है ।

  • सोंठ का सेवन करने से पाचन क्रिया प्रबल होती है।
  • सोंठ कब्ज, पेट दर्द, बवासीर आदि रोगों का शमन करती है और इसका सेवन करने से पेट में गैस का संचय नहीं होता है।
  • अदरक भोजन के प्रति रुचि उत्पन्न करता है।
  • 6 ग्राम खूब महीन कुतरकर नमक मिलाकर प्रतिदिन भोजन करने से आधा घंटा पहले एक बार सेवन करने से खुलकर भूख लगने लगती है तथा गैस की परेशानी से निजात मिलती है।

बेल : फायदे और उपयोग

पाचन तंत्र संबंधी विकारों के लिए बेल एक रामबाण औषधि है। औषधीय उपयोग के लिए अधपका ताजा बेल का फल प्रयोग में लाना चाहिए।

  • बेल का कच्चा और अधपका फल पाचक और क्षुधावर्धक है। इसका प्रयोग अतिसार और आमातिसार में होता है।
  • पका हुआ बेल का फल पौष्टिक होता है।
  • बेल का कच्चा फल आंतों के बढ़े हुए स्राव को न्यून करता है।
  • पका हुआ बेल का फल आंतों को हल्का उत्तेजित करता है तथा मृदु विरेचक होता है। अतः कब्ज के रोगियों को इसका उपयोग अवश्य करना चाहिए।
  • पेचिश या आंवयुक्त दस्त में अधपके बेल के फल के गूदे को पानी में उबालकर छानकर इसमें शहद मिलाकर रोगी को सेवन कराने से लाभ मिलता है।

तुलसी : फायदे और उपयोग

तुलसी पाचन संबंधी विकारों के लिए एक उत्तम औषधि है।

  • अतिसार में तुलसी के फांट के साथ जायफल का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता है। तुलसी पत्र का चूर्ण 2 ग्राम, भुना हुआ जीरा 2 ग्राम और कालानमक 2 ग्राम की मात्रा में 125 ग्राम दही में मिलाकर सेवन करना पेचिश, मरोड़ और आंव में लाभप्रद है।
  • दोपहर के भोजन के बाद 4-5 तुलसी पत्र चबाने से मंदाग्नि, अरुचि, वमन व कृमि रोग में लाभ मिलता है।
  • 12 नग तुलसी पत्र लेकर 1 ग्राम वायविडंग के साथ गोलियां तैयार करके 7 दिनों तक सुबह-शाम सेवन करने से पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं।

चंदन : फायदे और उपयोग

  • गर्मी के मौसम में उल्टी होने पर चंदन घिसकर आंवले के रस या आंवले के मुरब्बे के साथ सेवन करने से शीघ्र लाभ मिलता है।
  • पतले दस्त आने पर चंदन को घिसकर मिश्री या खस-खस के दानों के साथ पीसकर शहद मिलाकर सेवन करें या पानी में घोलकर पिएं, पूरा लाभ मिलेगा।
  • अडूसे का पत्ता और सफेद चंदन बराबर मात्रा में एक साथ पीसकर 5 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सेवन करने से बवासीर से निजात मिल जाती है।

जीरा : फायदे और उपयोग

पाचन संबंधी कई प्रकार के विकारों में जीरा का प्रयोग लाभप्रद है।

  • जीरा और कालीमिर्च को कूट-पीसकर चूर्ण तैयार करके रख लें। इस चूर्ण में सेंधानमक मिलाकर प्रतिदिन तीन-चार बार मढे के साथ सेवन करने से कुछ दिनों में ही बवासीर रोग से मुक्ति मिल जाती है।

(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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