Shami Ped ke Fayde | शमी (खेजड़ी) पेड़ के फायदे ,गुण ,उपयोग और नुकसान

Last Updated on May 25, 2020 by admin

शमी वृक्ष क्या है ? : What is Sponge Tree (Shami) in Hindi

“मीराबाई के बाद राजस्थानी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण प्रीतक मुझे दिखाई देता है- शमी (खेजड़े) का पेड़। इस पेड़ का महत्व केवल इस बात में नहीं है कि इस पेड़ की जड़ तना, छड़ें, पत्तियां सभी तो उपयोगी हैं। इसका महत्व केवल इस तथ्य में भी नहीं है कि राजस्थानी किसान की अर्थव्यवस्था का यह एक अविभाज्य अंग है। इस पेड़ का महत्व इस तथ्य में है कि धुर खुश्क अंचलों में भी यह लहलहाता रहता है, भीषण अकाल की चपेट को भी यह पेड़ हरा-भरा रहकर सह जाता है।” ये विचार व्यक्त किये हैं प्रसिद्ध साहित्यकार हेतु भारद्वाज ने।

वस्तुतः शमी (खेजड़ा) मरुधरा का एक मात्र एवं आधारभूत व्यवहारोपयोगी वृक्ष है। मनुष्यों के साथ यहां के पशुओं-ऊँट, भेड़, बकरियों के लिये भी यह खाद्योपयोगी है। इसकी पत्तियों को ये पशु खूब चाव से खाते हैं। महाकवि हर्ष के “नैषधीय चरित” में भी यह उल्लेख मिलता है कि खेजड़े (शमी) के पत्र ऊँट को अति प्रिय होते हैं (सर्ग 9-43) ।

सर्वोपयोगी होने से ही इसकी पूजा की जाती है। इसकी पूजा की परम्परा अथर्ववेद, अष्टाध्यायी के रचनाकाल से लेकर अद्यावधि । चली आ रही है। इसमें लक्ष्मी का निकास माना गया है। अत: विवाह आदि मांगलिक कार्यों में इसके पत्तों का प्रयोग मंगलकारी द्रव्यों की भांति होता है। कवि कुलगुरू कालिदास के रघुवंश महाकाव्य में यह वर्णन मिलता है। कि जब अज और इन्दुमती के विवाह के समय घी, शमीपल्लव और लाजा की गन्ध से पूर्ण म अग्नि से निकलकर इन्दुमती के कपोल तक पहुंचा तो ऐसा प्रतीत हुआ मानों इन्दुमती ने नील कमल का कर्णफूल पहन लिया हो। (सर्ग 7-26) ।

इस वृक्ष का वल्लभ संप्रदाय में अधिक महत्व है। श्री बल्लभाचार्य और विट्ठलनाथ जी ने व्रजभूमि में
धार्मिक प्रवचन इसी वृक्ष के नीचे बैठकर दिये थे। अज्ञातवास के समय पांडवों ने अपने शास्त्रास्त्रों को इसी वृक्ष के भीतर छिपाया था। भगवान् राम ने भी अपनी विजययात्रा में शमी का पूजन किया था। क्षात्रतेज किंवा शस्त्र तेज के प्रतीक रूप में इसकी पूजा होती है। विजयादशमी के दिन मुख्यतया राजस्थान में इसकी पूजा का यही रहस्य है।

जयपुर के पूर्व राजघराने में शमीपूजन का विशेष उत्सव मनाया जाता है। क्षात्रतेज से इसका सम्बन्ध जोड़ने में यह हेतु रहा है कि इसे ‘अग्निगर्भा’ कहा गया है। वैदिक साहित्य में यह सूचना मिलती है कि यज्ञाग्नि प्रज्वलित करने के लिये दो लकड़ियों के निचली लकड़ी का निर्माण इसकी लकड़ी से होता था। कालिदास ने गर्भस्थ रघु के साथ रानी सुदक्षिणा की उपमा ‘अग्निगर्भाशमी से की है।

“राजस्थाने मरुस्थलां प्रायश उपजायते” ऐसा कहकर आचार्य श्री प्रियव्रत शर्मा ने इस अग्रिम पद्य में इसकी प्रशस्ति एवं निरुक्ति इस प्रकार गाई है –
विहरन्ति मरुदेशे सैकते तीव्रवाते
वितरति फलपत्रान् प्राणिनां जीवनाय।
कलयति विशिखाग्निं स्वान्तरे सौमनस्या
शमयति मनुजानां मत्ततां साशमी स्यात्।।
-प्रियनिघन्टु

शमी (खेजड़ी) का पेड़ कहां पाया या उगाया जाता है ? : Where is Shami Tree Found or Grown?

शमी (खेजड़े) के ये वृक्ष पंजाब, सिंध, गुजरात में भी पाये जाते हैं किन्तु राजस्थान इनका मुख्य उत्पत्तिस्थान है। यह शुष्क प्रदेशों में होने वाला वृक्ष है।

संसार भर के वैज्ञानिक, प्रकृति और प्रकृति प्रेमी सदा इस बात पर जोर देते आ रहे हैं कि पृथ्वी की पर्यावरणीय दशा और इस पर निवास करने वाले समस्त प्राणियों के स्वास्थ्यवर्धक जीवन के लिये पृथ्वी का एक तिहाई भू-भाग हरियाली से आच्छादित होना चाहिये। इसके लिये अरण्यसंस्कृति, प्रकृतिपूजा, वृक्षप्रेम को महत्व देना अनिवार्य है। राजस्थान में प्रारम्भ से ही इन्हें महत्व दिया गया है। यहाँ के निवासियों ने यह समझा है कि पेड़ों का विनाश मानवजाति का विनाश है।

सर्वविदित है कि उत्तराखण्ड के टेहरी गढवाल के ग्रामवासियों ने अपनी वनसम्पदा की सुरक्षा के लिये ‘चिपको आन्दोलन’ छेड़ा था। इस आन्दोलन की प्रथम प्रणेता राजस्थान की एक वीरांगनी अमृता देवी थीं। जिसने आज से 275 वर्ष पूर्व संवत् 1788 में जोधपुर रियासत के खेजड़ली ग्राम में जोधपुर शासकों द्वारा वृक्ष काटने की आज्ञा का विरोध किया था। वह एक शमी (खेजड़े) के वृक्ष से चिपक गई और तब तक चिपकी रहीं जब तक वह बलिदान नहीं हो गई। इस घटना में वृक्षों की रक्षा हेतु 363 नर-नारी शहीद हुये। शहीद होना यहाँ के नर-नारियों के लिए नई बात नहीं है। यहाँ मृत्यु को सदैव उत्सव मानकर स्वीकार किया है-‘सिर साठे रूख रहे तो भी सस्तो जान’। तब ही तो कई कवियों की भांति कवि किशोर कल्पनाकान्त ने भी इस भूमि की गुणगाथा इन शब्दों में गाई है-

आ है वीरभोम विख्यात, आतो बलिदानां री बात,
उजला धरम करम री ख्यात् रचणा रंगरूड़ी अभिमान री जी राज।।

भूमि के रक्षक कहे जाने वाले देवता भोमिया जी का थान (स्थान) तो होता ही यहाँ शमी (खेजड़े) की छाया में है। इसको यहाँ बहुत सम्मान दिया जाता है। ग्रामीण क्षेत्र में किसी व्यक्ति की मृत्यु पर गंगा में अस्थिविसर्जन से लौटने पर इसकी पूजा की जाती है। अस्थियाँ गंगा में ले जाने वाले व्यक्ति लौटने तक नियमित रूप से पथवारी (खेजड़ी) पूजन कार्यक्रम चलता है। यहाँ के लोक गीतों में भी इसका उल्लेख है। यहाँ के लोगों ने छप्पनियां (सं. 1956) अकाल में इसकी छाल की रोटियाँ बनाकर खाई और अपनी जान बचाई थी। आजकल इन वृक्षों को विदेशी कीट कई स्थानों पर खोखला कर रहे हैं। अंधाधुंध दोहन के चलते घटा भू-जल स्तर, वर्षा की कमी तथा मृदा गुण धर्मों एवं कृषिकार्यों में मशीन के प्रयोग इन वृक्षों को सुखाने में अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं।

शमी (खेजड़ी) वृक्ष का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Shami Tree in Different Languages

Shami Tree in –

  • संस्कृत (Sanskrit) – शमी (शामक), तुंगा, शंकुफला
  • हिन्दी (Hindi) – खेजड़ा, खेजड़ी, छोंकर
  • गुजराती (Gujarati) – समड़ी
  • मराठी (Marathi) – शमी
  • बंगाली (Bangali) – शमी
  • पंजाबी (Punjabi) – जंड
  • तामिल (Tamil) – पेरुबै
  • तेलगु (Telugu) – जम्मि चेटु
  • कन्नड़ (kannada) – पेरुम्बइ
  • मलयालम (Malayalam) – परंपु
  • अंग्रेजी (English) – दि स्पाज ट्री (The Sponge Tree)
  • लैटिन (Latin) – प्रोसोपिस स्पेसिगेरा (Prosopis spicigera Linn) (पर्याय-P.cineraria Druve)

शमी (खेजड़ी का पौधा (पेड़) कैसा होता है ? :

  • शमी का पेड़ – इसका मध्यम प्रमाण का 15 से 30 फुट ऊँचा कंटकित वृक्ष होता है। इसके तने की छाल धूसर वर्ण की, रूखी, बाहर से श्वेताभ तथा भीतर से पीताभ धूसर होती है। शाखा में पतली, धूसर और झुकी हुई होती है।
  • शमी के पत्ते – पत्र बबूल के पत्तों जैसे किंतु छोटे होते हैं। ये संयक्त एक-एक सींक पर बारह जोड़े होते हैं।
  • शमी के फूल – पुष्प-पीताभ श्वेत होते हैं जो मंजरियों में होते हैं।
  • शमी की फली – फली 4 से 8 इंच लम्बा, आधा इंच मोटी, सीधी, चिकनी, लम्बगोल, बीच बीच में संकुचित होती है जिसमें 10 से 15 भूरे रंग के आयताकार चपटे बीज होते हैं। इन पर शीतकाल में पुष्प एवं वर्षाकाल में फल लगते हैं।
  • कुल – शिम्बीकुल ( लेग्युमिनोसी)

शमी (खेजड़ी) वृक्ष का उपयोगी भाग : Beneficial Part of Shami Tree in Hindi

छाल, फल, पत्र, पुष्प

सेवन की मात्रा :

  • क्वाथ – 50 से 100 मि.लि.
  • फल चूर्ण – 3 से 6 ग्राम

शमी वृक्ष का रासायनिक विश्लेषण : Shami Tree Chemical Constituents

  • शमी की पत्तियों में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाशियम और कैल्शियम होता है।
  • पुष्पों से एक पेटुलिट्रिन नामक फ्लेवोन ग्साइकोसाइड निकाला गया है ।
  • शाखाओं से एक पीताभ गोंद निकलता है जिसके जल में मिलाने पर एक गहरे रंग का स्वादरहित लुआब बनता है ।

शमी वृक्ष के प्रकार :

शमी (खेजड़ी) की एक छोटी जाति होती है जिसे ‘शमीर’ कहा गया है-“शमीर साल्पिका स्मृता”। यह पंजाब और गुजरात में पाई जाती है। इसका लैटिन नाम ‘प्रासोपिस स्टैफानैना’ है। अमरकोषकार ने भी कहा है-
अल्पा शमी शमीर: स्यात्“।

शमी वृक्ष के औषधीय गुण : Shami Ped ke Gun in Hindi

  • रस – कषाय, मधुर
  • गुण – लघु,रुक्ष
  • वीर्य – शीत (फल- उष्ण)
  • दोषकर्म– कफपित्त शामक गुरुष्णं मधुरंरूक्ष केशघ्नं च शमीफलम्।- च.सू. 27
  • यह रोचक, ग्राही (फली उष्ण होने से रेचक है), शामक, मेध्य, कृमिघ्न, रक्तपित्तशामक,कफन्न तथा त्वग्दोषहर (चर्म रोग मिटाने वाला) है।
  • बाह्य प्रयोग से छाल विषघ्न है और फल केशनाशन है।
  • शमी वृक्ष की छाल, कृमि, आमवात, अतिसार, श्वास, अर्श, मस्तिष्कविकृति, मन्याकम्प आदि में लाभप्रद है।
  • शमी के पत्र विबन्ध (कब्ज) करते हैं।
  • इसके अतिरिक्त शमी प्रमेह में भी लाभप्रद है।
  • शमी के पुष्प गर्भवती के लिये हितकारा है।
  • जो द्रव्य दोषों को बिना बाहर निकाले कुपित दोषों को शान्त कर दोषों की विषमता को दूर कर दे, वह द्रव्य शामक कहलाता है। खेजड़ा ( शमी) ऐसा ही शामक द्रव्य है।
  • शमी की कच्ची फली मुलायम होती है। इन कच्ची फलियों का शाक बनाकर खाया जाता है। यह शाक अग्निदीपन एवं रुचिकर होता है। यह शाक (साग) राजस्थान और पंजाब में बड़े चाव से खाया जाता है। मौसम के बाद में सब्जी बनाने के लिये इनका संग्रह कर सुखोटी बना ली जाती है। और फिर सालभर काम में लाते हैं। प्रवासी राजस्थानी इन सुखोटियों को अपने मूल निवास स्थानों से मंगवाकर रखते हैं और समय समय इनकी सब्जी बनाकर खाते हैं। राजस्थान में जोधपुर नागौर आदि नगरों में ये सुखौटी खूब बेची जाती हैं। जोधपुर के ओसिया नामक प्रसिद्ध तीर्थस्थल में इसका अच्छा व्यापार है।
  • पके फलों को विशेषकर बच्चे एवं गड़रिये खाते हैं। इन पके एवं सूखे फलों को यहाँ खोखा कहते हैं। इनके लिये कहा जाता है-“खोखा म्हानै लागे चोखा” अर्थात् खोखा हमें अच्छा लगता है। कच्ची फलियों को यहाँ सांगर या सांगरी कहते हैं। सांगरी कटैली होती है किन्तु पकी फली (खोखा) कसैली एवं मीठी होती है। फली के अन्दर भुरभुरा सा सत्तू भरा रहने के कारण ही इसका संस्कृत में एक पर्याय “सत्तुफला” भी है। “शमी सक्ततुफला शिवा” इनकी तासीर गर्म होती है।
  • शमी की पकी फलियाँ कफदोष को दूर करती हैं किन्तु पित्त और वायु को बढ़ाती है।
  • बढ़ा हुआ कफ, वायु और मेद शरीर के स्रोतों को दुष्ट कर व्यक्ति को स्थूल बना देते हैं। इसमें कफ और मेद को कम करने वाले द्रव्य उपयोगी होते हैं। शमी की ये फलियाँ (खोखा) कफ को कम करते हैं। उष्ण एवं रूक्ष होने से ये मेद को भी कम करते हैं। सूखी फलियों का चूर्ण बनाकर या इन्हें यों ही खाया जा सकता है। चूर्ण को 5-7 ग्राम से अधिक नहीं खाना चाहिये अन्यथा इसकी अधिक मात्रा वायु की वृद्धि करती है जिससे हानि होती है।
  • इतना ही नहीं शमी की गणना यज्ञ वृक्षों में होती है।
  • शमी की लकड़ी से अनेक पात्र बनाये जाते हैं।
  • अथर्ववेदीय परम्परा में शमी के अनेक औषधीय उपयोग दृष्टिगोचर होते हैं। शमी और पीपल के कोयले को पीसकर मधु में मिलाकर पुंसवन के लिये स्त्री को पिल्लाने का विधान है तथा इसका मणिबन्ध भी करते हैं।
  • सर्पविष में भी इसे मधु मिलाकर पिलाते हैं।
  • भूतरक्षों ग्रहों के लिये मेषश्रृंगी के फलकोश से शमीचूर्ण भात में मिलाकर खिलाने का विधान है।
  • शमी पत्र से मूल नक्षत्र में स्नान करने से पुत्र होता है इस प्रकार का उल्लेख अथर्व परिशिष्ट में प्राप्त होता है।
  • देवताओं और ग्रहों की कृपाअनुग्रह से ही जीवन सुखमय बनता है-इस हेतु यज्ञ का बहुत महत्व है। इनमें शनिग्रह को जिस समिधा (काष्ठ) की आहुति दी जाती है, वह खेजड़े ( शमी) की होती है।
    अर्कः पलाशः खदिरोऽपामार्गोऽथ पिप्पलः।
    औदुम्बरः श्मी दूर्बा कुशाश्च समिधः क्रमात्।।
    -याज्ञ. स्मृति. 302
  • पूजा पद्धति में भी इसके पत्र श्री शंकर भगवान् पर चढ़ाने का विधान मिलता है।
    अमङ्गलानां शमनी शमनीं दुष्कृतस्य च।
    दुःस्वप्ननाशिनी धन्यां प्रपद्येऽहं शमी शुभाम्।।

शमी पेड़ के फायदे और उपयोग : Benefits of Shami Tree in Hindi

अतिसार में फायदेमंद शमी का प्रयोग

शमी (खेजड़े) के अन्दर की छाल और पत्तों के साथ काली मिर्च को पीसकर एक-एक ग्राम की गोलियाँ बना लें। एक-दो गोली जल के साथ देने से दस्त बन्द होते हैं। इसकी छाल चूर्ण के साथ चावलों को पकाकर उन्हें खाने से तीव्र अतिसार भी मिट जाता है।

वैद्य स्व. श्री चन्द्रशेखर जी व्यास चूरु (राज.) ने “सुधानिधि”के एक पुराने अंक में अपना अनुभव लिखा था कि” एक रोगी जो नित्य अफीम का सेवन करता था और नित्य कब्ज दूर करने के लिये पंचसकार चूर्ण का भी सेवन करता था, उसे अतिसार हो गया और किसी भी औषधि से उसका अतिसार ठीक नहीं हुआ। तब मैंने शमी की अन्तर छाल मंगवाकर लगभग 25 ग्राम छाल को कृट कर सफेद कपड़े में बांधकर पोटली बनवाई और चावल (50-60 ग्राम) पानी डालकर पकाने को कहा और उसी में यह पोटली डलवा दी। चावल पकने पर रोगी को खिलाये इससे रोगी के दस्त बन्द हो गये। मैंने अनेकों बार जब अतिसार, संग्रहणी में सभी दवायें निष्फल हो गई तब इस शमी का अद्भुत प्रभाव देखा है।

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कृमिरोग में लाभकारी है शमी का सेवन

शमी की छाल का क्वाथ कृमियों को नष्ट करने में उपयोगी है।

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बवासीर (अर्श) ठीक करे शमी

शमी की छाल और त्रिफला का क्वाथ अर्श में लाभप्रद है।

मस्तिष्क की कमजोरी मिटाए शमी का उपयोग

शमी की छाल को मेधावर्धक कहा गया है अत: ब्राह्मीचूर्ण को इसकी छाल के क्वाथ के अनुपान के साथ सेवन करने से मस्तिष्क की दुर्बलता दूर होती है।

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भ्रम में शमी के इस्तेमाल से फायदा

शमी की छाल और दालचीनी के क्वाथ में मिश्री मिलाकर पीने से भ्रम मिटता है।

शमी के इस्तेमाल से खाँसी में लाभ

शमी को कफघ्न कहा गया है अत: – खाँसी (कास), श्वास के रोगी को इसके तने की छाल के क्वाथ पिलाने से लाभ होता है।

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साँप का जहर दूर करने में शमी फायदेमंद

शमी की छाल को विषघ्न कहा गया है। सर्पविष पर ताजा अन्तर छाल का रस पिलाना उपयुक्त है। इससे वमन होता है और विषप्रभाव कम हो जाता है। इस आभ्यन्तरीय प्रयोग के साथ यह बाह्य प्रयोग भी उपयोगी हैं- शमी (खेजड़े) की छाल, नीम छाल और बरगद की छाल को पीसकर सर्पदंश स्थान पर लेप किया जाता है। आत्ययिक स्थिति में अन्य आवश्यक उपाय अनिवार्य है।

वृश्चिकदंश की पीड़ा मिटाता है शमी

बिच्छू काटने के स्थान पर शमी की छाल को पीसकर लेप करने से दर्द और जलन मिटती है।

गर्भपात से रक्षा करने में लाभकारी शमी

जिन गर्भवती स्त्रियों को गर्भपात होने का भय हो तो शमी के पुष्पों को शक्कर के साथ पीसकर शर्बत बनाकर पिलाना चाहिये। इस शर्बत के सेवन करने से गर्भ को किसी प्रकार की हानि नहीं होती है।

अग्निदग्ध में शमी के इस्तेमाल से फायदा

आग से जलने पर जलन को मिटाने के लिये शमी के पत्तों को पीसकर दही में मिलाकर लगाना चाहिये। अन्य रोगों में भी जहाँ त्वचा पर अत्यधिक दाह होता हो इस लेप से ठंडक हो जाती है।

प्रमेह रोग में शमी से फायदा

शमी के बारह ग्राम कोमल पत्तों में तीन ग्राम जीरा मिलाकर पीसकर 250 मि.लि. कच्चे दूध में मिला छानकर मिश्री मिलाकर प्रात: नित्य पीने से प्रमेह रोग शान्त होता है। गर्भवती के रजःस्राव पर भी यह प्रयोग लाभप्रद है।
शमी के कोमल पत्ते 10 ग्राम, गुड़हल की जड़ 5 ग्राम और मिश्री 20 ग्राम पीसकर छानकर पिलाने से भी प्रमेह रोगी को लाभ मिलता है। यह प्रयोग 15-20 दिनों तक जारी रखना चाहिये। जिन प्रमेह रोगियों को मूत्र के साथ वीर्यस्राव (शुक्रमेह) होने की शिकायत हो उन्हें इसके कोमल पत्तों के स्वरस में जीरा चूर्ण, गाय का घी और शक्कर मिलाकर दिया जाना चाहिये।

रक्तपित्त मिटाए शमी का उपयोग

शमी के कोमल पत्तों को गाय के कच्चे दूध में पीसकर छानकर मिश्री मिलाकर पीने से रक्तस्राव होना रुकता है। यह रक्तार्श एवं रक्तप्रदर में भी लाभप्रद है। इसके लिये कोमल पत्तों के स्थान पर पुष्पों को भी उपयोग में लाया जा सकता है अथवा पुष्प एवं कोमल पत्र दोनों को ही उपयोग में लाना चाहिये।

मूत्रकृच्छ्र रोग में लाभकारी है शमी का सेवन

शमी के पत्रों को पीसकर कल्क बनाकर कुछ गरम कर नाभिस्थान पर बांधने से मूत्रप्रवृत्ति हो जाती है। साथ में ही रोगी को पत्ररस में जीरा चूर्ण और मिश्री मिलाकर भी पिलाना चाहिये।

अरुचि में शमी के सेवन से लाभ

शमी की कच्ची फलियाँ, जिनमें बीज नहीं पड़े हों, लाकर उनका साग बनाकर खाने से भोजन में रुचि जागृत होती है। इस साग में दही की खटाई देकर बनाने से यह अधिक रुचिकर बनता है।

अग्निमांद्य (भूख न लगना) में शमी से फायदा

मारवाड़ (राजस्थान) में शमी की कच्ची फलियों तथा कच्चे कैरों (करीर) की सुखोटियों का उत्सव-त्यौहारों पर सूखा साग बनाते हैं, जो बड़ा स्वादिष्ट होने से रुचिकर होने के साथ ही भूख को बढ़ाता है। इस साग के सेवन से जठराग्नि प्रदीप्त होती है। कैर स्वयं एक रुचिकर, अग्निवर्धक फल है। दोनों के मिश्रण से साग अधिक लाभदायक बन जाता है। कैर के फल कफवातशामक हैं। दोनों का मिश्रित साग कफ के रोगों में पथ्य है। कैर वातशामक होने से वायु की वृद्धि भी ज्यादा नहीं होती है।

मोटापा (मेदोवृद्धि) में शमी का उपयोग फायदेमंद

शरीर की स्थूलता कई रोगों को जन्म देती है। अत: इसे कम करने के लिये अन्य उपायों के साथ शमी के पके फल भी मात्रापूर्वक खाने चाहिए।

हृदयरोग ठीक करे शमी का प्रयोग

शमी की कच्ची सूखी फली एवं सूखे कैर, काचरा, कुमट्या और गूदा इन पाँचों की सब्जी को पचकूटा की सब्जी कहा जाता है। कई होटलों में इस पचकटा की सब्जी को ‘मारवाड़ी स्पेशल’ नाम से परोसा जाता है। यह हृदयरोग जीर्णज्वर, सन्धिवात, कास, श्वास, कृमि आदि रोगों में पथ्य है।

शमी (खेजड़ी) के दुष्प्रभाव : Shami ke Nuksan in Hindi

  • शमी (खेजड़ी) लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें
  • अत्यधिक मात्रा में शमी की पकी फलियों का सेवन पित्त और वायु को बढ़ाता है।

(उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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