Last Updated on September 17, 2020 by admin
हमारे शरीर में त्वचा शरीर का सबसे बड़ा अंग होता है जो कि अपने नीचे पाई जाने वाली कोशिकाओं, ऊतकों आदि को वायु, जल, बैक्टेरिया आदि हानिकारक तत्वों से बचाती है किन्तु वर्तमान जीवनशैली में अनियमित दिनचर्या एवं आहार-विहार के दुष्प्रभाव से अनेकानेक त्वचा संबंधी रोग उत्पन्न हो अर्टिकरिया (Urticaria) नाम से त्वचा संबंधी व्याधि बहुत हो रही है। आधुनिक मत से यह एलर्जी संबंधित रोग है जो कि शरीर के लिये अहितकर द्रव्यों के सम्पर्क में आने से या भोजन में सेवन किये जानेवाले भोज्य पदार्थ से उत्पन्न होती है जिसके अंतर्गत मांस, अंडा, कुनैन के योग, कृमि आदिमुख्य है।
शीतपित्त रोग क्या है ? (What is Urticaria in Hindi)
sheetapitta kya hota hai –
अर्टिकेरिया में पूरे शरीर की त्वचा पर खुजली सहित लाल रंग के चकते निकल आते है, यह व्यक्ति की दिनचर्या को प्रभावित करता है। वास्तविक तौर पर शीतपित्त अहितकर या असात्म्य पदार्थों की तुरंत प्रतिक्रिया है जिसमें हिस्टामिन का स्राव त्वचा की मास्ट कोशिकाओ द्वारा होता है फलस्वरुप कोशिकाओं के फैलने से रक्त वाहिकाओं की पारगम्यता (Permeability) बढ़ जाती है और खुजली सहित चकते उभर आते है।
आयुर्वेद में शरीर के स्वास्थ्य पर विशेष बल दिया गया है। इसी कारण विरुद्धाहार, दिनचर्या, आचार रसायन आदि का वर्णन किया गया है। एलर्जी हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता के फलस्वरुप होने वाली प्रतिक्रिया है जो कि कुछ पदार्थ का शरीर से संपर्क होने पर तेजी से होती है। ऐसे पदार्थों को एलर्जन कहा जाता है। जब तक हमारे शरीर में व्याधिक्षमत्व या रोगप्रतिरोधकक्षमता मजबूत रहती है तब तक एलर्जी नहीं होती। रसायन द्रव्यों के प्रयोग द्वारा रोगप्रतिरोधकक्षमता का विकास किया जा सकता है।
इसी प्रकार आयुर्वेद में सभी रोगों का कारण अग्निमांद्य को माना गया है क्योंकि अग्निमांद्य होने पर सेवन किये हुये आहार से आम (Undigested food) का निर्माण होता है जोकि एलर्जी में सहायक कारण बनता है क्योंकि यह आम रस-रक्त के साथ मिलकर पूरे शरीर में भ्रमण करता हुआ त्वचा के नीचे संचित हो जाता है और वहां पर उभार पैदा कर चकता या ददोड़ा बना देता है जिसे शीतपित्त “Urticaria” कहते है।
शीतपित्त रोग के प्रकार (Types of Urticaria in Hindi)
sheetapitta ke prakar –
शीतपित्त Acute तथा Chronic भेद से दो प्रकार का होता है। यदि यह चकते एलर्जी से तुरंत या अचानक पूरे शरीर में हो तो यह Acute है और छ: सप्ताह से ज्यादा हो तब Chronic है।
शीतपित्त रोग के कारण (Causes of Urticaria in Hindi)
sheetapitta kyu hota hai –
आयुर्वेद में शीतपित्त नाम से त्वचा संबंधी रोग का वर्णन मिलता है जिसके निम्लीखित कारण हो सकते है –
- शीतल अर्थात ठंडी हवा के स्पर्श से ।
- शीत-उष्ण का एक साथ प्रभाव से ।
- असात्म्य–विरुद्ध आहार के एक साथ सेवन से ।
- कृमियो से ।
- कफ तथा वात के प्रकुपित होने से । कफ तथा वात, पित्त के साथ मिलकर त्वचा तथा अन्दर की रक्तादि धातुओं में फैलकर शीतपित्त रोग को उत्पन्न करते हैं।
शीतपित्त रोग के लक्षण (Symptoms of Urticaria in Hindi)
sheetapitta ke lakshan in hindi –
- इसमें त्वचा में ततैया के काटने के समान चकते निकल आते है तथा अत्याधिक खुजली होती है।
- कभी-कभी सुई चुभोने के समान पीड़ा भी होती है।
- कफ दोष की प्रबलता होने पर रक्तवर्ण के खुजली युक्त चकते होते है।
शीतपित्त रोग से बचने के उपाय (Sheetapitta se Bachne ke Upay in Hindi)
- आयुर्वेद में चिकित्सा का प्रथम सिद्धांत यह है कि जिस कारण से रोग उत्पन्न हुआ हो उसका परिवर्जन या दूर करना ही चिकित्सा है। अतः जिस भोज्य पदार्थ के सेवन से या द्रव्य के स्पर्श से एलर्जी हो उससे दूर रहना एवं उसका पता लगाना।
- शरीर को एकसाथ ठंड एवं गर्म से बचाव करना अर्थात तुरंत ठंडे स्थान से निकलकर गर्मी में न जाना ।
- कसरत या शारीरिक परिश्रम के तुरंत बाद नहीं नहाना चाहिए |
- ज्यादा गरम पदार्थो का सेवन न करना तथा जो पदार्थ विरुद्ध हो, उनका त्याग कर देना चाहिए।
- इसी प्रकार गेरु और सरसों का तेल लगाकर हवा से बचाव करना चाहिए।
- गरम जल से परिषेक (स्नान) करना चाहिये तथा मधु के साथ त्रिफला के चूर्ण का सेवन करना चाहिये।
- ज्यादा तली हुई, तेल, मिर्च, गर्म मसाले एवं खट्टे रसों का सेवन कम से कम करना चाहिये ।
- साथ ही एंटीबायोटिक का प्रयोग भी जहां तक हो सके, कम प्रयोग करना चाहिये।
- ठंडी चीजे जैसे आइस्क्रीम आदि खाने के तुरंत बाद गर्म पदार्थ जैसे चाय-कॉफी आदि का सेवन नहीं करना चाहिये।
- विरुद्धाहार दूध के साथ नमक, दही के साथ मछली या दूध के साथ मदिरा आदि का सेवन नहीं करना चाहिये।
शीतपित्त रोग का आयुर्वेदिक उपचार (Ayurvedic Treatment of Urticaria in Hindi )
sheetpitta ka ayurvedic upchar –
आयुर्वेद में शीतपित्त की चिकित्सा हेतु पंचकर्म को कारगर बतलाया गया है क्योंकि पंचकर्म के द्वारा दोषों को निकाल देने से उनके पुनः उभरने की संभावना नही रहती है जबकि लंघन-पाचन आदि द्वारा शमन करने पर वे पुनः समय पाकर पुनः प्रकुपित हो जाते है। यह शरीर शुद्धि की विधि होती है जैसे गंदे कपड़े के रंगने से रंग नही चढ़ता परंतु स्वच्छ वस्त्र पर रंग शीघ्र चढ़ता है।
शीतपित्त में परवल के पत्ते, नीम तथा वासा के क्वाथ से वमन कराया जाता है तथा विरेचन (Purgation) के लिये त्रिफला, गुग्गुल तथा पिप्पली का प्रयोग आचार्यो द्वारा बतलाया गया है। महातिक्त घृत का पान कराकर रक्तमोक्षण भी किया जा सकता है।
लेपन हेतु सरसों, हल्दी, चकवड़ तथा तिल इनके कल्क के साथ सरसों का तेल मिलाकर उबटन करना भी लाभप्रद है।
1). आंवला – त्रिकटु को चीनी के साथ सेवन करने या आंवले के रस को गुड़ के साथ सेवन करने से शीतपित्त में लाभ होता है।
2). नीम – नीम के पत्तों व आंवलों को एकसाथ पीसकर घृत मिलाकर लेप करने से शीतपित्त रोग दूर होता है।
3). त्रिफला – त्रिफला चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करने से शीतपित्त नष्ट हो जाता है।
4). अदरक – अदरक का रस में पुराने गुड़ मिलाकर सेवन करने से शीतपित्त में लाभ होता है, साथ ही मंदाग्नि के उपचार में भी यह प्रयोग लाभप्रद है।
5). हल्दी – हल्दी व दूब एक साथ पीसकर शीतपित्त में लेप करने से रोग में आराम हो जाता है।
6). अजवायन – अजवायन के साथ गुड़ मिलाकर खाने तथा संतुलित आहार के सेवन करने से सारे शरीर में फैले शीतपित्त में आराम हो जाता है।
7). सेंधा नमक – घी में सेंधा नमक मिलाकर मालिश करने से शीतपित्त या पित्ति में आराम हो जाता है।
8). कालीमिर्च – पीपर, सोंठ और कालीमिर्च के साथ बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर खाने से शीतपित्त में आराम हो जाता है।
शीतपित्त रोग की आयुर्वेदिक दवा (Urticaria Ayurvedic Medicine in Hindi)
sheetapitta ki ayurvedic dawa –
आयुर्वेदिक चिकित्सा के अंतर्गत निम्न औषधियों का प्रयोग चिकित्सक परामर्शानुसार प्रयोग करने पर लाभदायक है।
- औषधियों में हरिद्राखंड का प्रयोग शीतपित्त में लाभप्रद है, उष्ण जल के साथ एक से दो चम्मच इसका प्रयोग करना चाहिये,
- शीतपित्त में कामदुधा रस, स्वर्णमाक्षिकभस्म, आरोग्यवर्धनी वटी, कैशोर गुग्गुल, मंजिष्ठादि क्वाथ, अमृतादि कषाय आदि फायदेमंद है।
- नवकार्षिक गुग्गुल (त्रिफला तीन भाग, गुग्गुल एक भाग, पिप्पली 1 भाग) का सेवन शीतपित्त दूर करता है ।
शीतपित्त रोग में क्या खाएं क्या न खाएं :
आयुर्वेद में पथ्य अर्थात जो हितकर है तथा अपथ्य या जो अहितकर है इसका विशेष महत्व है। इसी कारण कहा गया है कि व्यक्ति यदि पथ्य का सेवन करता है तो उसे औषधि की आवश्यकता नहीं है और यदि अपथ्य का सेवन करता है फिर भी उसे औषधि द्वारा कोई भी फायदा न पहुंचने के कारण औषधि की आवश्यकता नहीं है।
पथ्य (खाना चाहिए) –
हल्का एवं शीघ्र पचने वाले आहार जैसे पुराना अनाज, मूंग, करेला, पोई का शाक, त्रिफला, मधु, सरसों का तेल, लंघन (उपवास), सहजन, अनार आदि का सेवन शीतपित्त में पथ्य है।
अपथ्य (नहीं खाना चाहिए – परहेज) –
देर से पचने वाले गरिष्ठ भोज्य पदार्थ जैसे रबड़ी, मलाई, ईख के विकार, नया मधु, दिन का सोना, ठंडी हवा का सेवन, ठंडे पानी से नहाना, धूप का सेवन, खट्टे पदार्थों का सेवन आदि इसमे अपथ्य है।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)