साइनस (साइनोसाइटिस) के कारण, लक्षण, दवा और इलाज – Sinusitis Ke Lakshan, Karan, Dawa aur Ilaj in Hindi

Last Updated on September 1, 2020 by admin

मौसम में हो रहे बदलाव की वजह से साइनोसाइटिस की समस्या बढ़ रही है। वर्तमान में देश में 13 से 14 करोड़ रुग्ण इस बीमारी से ग्रसित हैं। साइनस संक्रमण के लिहाज से काफी संवेदनशील होते हैं। ऐसे में सांस लेते समय शरीर में रोगाणु और एलर्जी पैदा करने वाले कण भी हवा के साथ अंदर चले जाते हैं और तकलीफ देते हैं। यह बीमारी क्या है, क्यों होती है तथा इससे सुरक्षित रहने के लिए हम क्या कर सकते हैं… आइए जानें।

साइनस क्या है ? : What is Sinus in Hindi

नासिका पंचज्ञानेंद्रियों में से एक इंद्रिय है, जिसे आयुर्वेद में “नासाहि शिरसो द्वारम’ कहा है अर्थात् नासिका सिर का द्वार है। नासिका की रचना में नाक की जड़ के पास की हड्डियों के ढांचे में जो छिद्र होते हैं, वे साइनस कहलाते हैं। साइनस चेहरे व खोपड़ी (क्रेनिअम) की अस्थि में स्थित एक रिक्त स्थान है, जहां वायु रहती है। नाक की कैविटी व साइनस के बीच अनेक छोटे-छोटे छिद्र होते हैं।

साइनस के कार्य (Purposes of the Sinuses in Hindi)

साइनस 4 प्रकार के होते हैं, जिन्हें इथमोइडल (Ethmoidal), फ्रन्टल (Frontal), स्फेनाइडल (Sphenoidal) व मैक्सीलरी (Maxillary) साइनस कहते हैं। साइनस का मुख्य कार्य वाणी को अनुकंपन (Resonance) देना है।

साइनस हवा की थैली होती है, जो खोपड़ी और चेहरे की हड्डियों के बीच में स्थित होती है और छोटे ट्यून्स या चैनल्स के माध्यम से नाक की नलिकाओं से जुड़ी होती हैं। साइनस की थैली के माध्यम से शुद्ध हवा फेफड़ों के अंदर जाती है तथा दूषित हवा को नाक के अंदर जाने से रोकती है और उसे बलगम के रूप में बाहर निकालती है। साइनस में बलगम (म्यूकस) के कारण जब नासा मार्ग में बाधा आती है, तब साइनोसाइटिस (साइनस संक्रमण) की समस्या होती है। म्यूकस में यह अवरोध साइनस में सूजन या बलगम में इन्फेक्शन के कारण होता है।

1). फ्रन्टल साइनस – फ्रन्टल साइनस मस्तक में मध्य रेखा के दोनों ओर भौंहों के पीछे होती है। उसका द्वार नासा के ऊपर के भाग में नासा मध्य मार्ग में (Middle Meatus) के अग्र भाग में नासिका के अंदर खुलता है। इस साइनस के श्लेष्मकला में सूजन होने पर इसके द्वार बंद हो जाते हैं, जिससे आंख के पीछे माथे में तेज दर्द होता है। इस प्रकार के साइनोसाइटिस में सुबह नींद से उठने के बाद सिर दर्द होता है। इसे वैक्यूम हेडेक (VacuumHeadache) भी कहते हैं।

2). मैक्सीलरी साइनस – मैक्सीलरी साइनस का छिद्र भी नासा मध्य मार्ग में खुलता है। एक तरफ के साइनस में सूजन होने पर इसका द्वार बंद हो जाता है अर्थात् Antrum में इन्फेक्शन हो जाए तो उस ओर की आंख के नीचे गाल तथा दांत में दर्द होता है। इस प्रकार के साइनोसाइटिस में सिर दर्द एक जगह से दूसरी जगह हो सकता है या कपाल (Forehead) पर होता है। इस सिर दर्द का कोई निश्चित समय नहीं रहता। इसमें ऊपर के मोलर दांतों (Molar Teeth) में दर्द होने से दंत रोग होने की आशंका होती है। अतः मैक्सीलरी साइनोसाइटिस का निदान सावधानीपूर्वक होना चाहिए।

3). इथमॉइडल साइनस – इथमॉइडल साइनस अग्रिम, मध्य तथा पश्चिम तीन समूहों में नासा गुहा के ऊपरी भाग तथा नेत्र गुहा (Orbit) के बीच में होती है। इनमें से अग्रिम तथा मध्य साइनस Middle Meatus में खुलती है तथा पश्चिमी साइनस Superior Meatus के अगले भाग में नाक में खुलती है। इनमें सूजन होने पर फ्रन्टल साइनोसाइटिस के समान नेत्रों के पीछे व बीच के प्रदेश में दर्द होता है।

4). स्फेनोइडल साइनस – स्फेनोइडल साइनस नासिका के ऊपरी भाग में Superior Turbinate के पीछे खुलती है। इसमें सूजन होने पर सिर के अगले या पिछले भाग में दर्द होता है या कान के पास सिर की गहराई में दर्द होता है। स्फेनोइडल या इथमॉइडल प्रकार के साइनोसाइटिस में सिर दर्द खड़े प्रकार का सामने की ओर पीछे की ओर अथवा कान के पास जा सकता है।

साइनोसाइटिस अर्थात् साइनस के किसी एक छिद्र या अधिक छिद्रों में सूजन उत्पन्न होना। यह सूजन कालांतर में अधिक कष्ट देती है। साइनोसाइटिस आक्रमण में सबसे पहले मैक्सीलरी साइनस प्रभावित होता है। तत्पश्चात इथमॉइडल (बच्चों में विशेष), फ्रन्टल व अंत में स्फेनाइडल। किसी एक साइनस के ग्रस्त होने की अपेक्षा अनेक साइनस में सूजन होने का रोग (Pan Sinusitis) अधिक पाया जाता है।

साइनस रोग के कारण (Sinusitis Causes in Hindi)

sinus kyu hota hai –

साइनस रोग के मुख्य कारण निम्नलिखित हो सकते है ।

  • सामान्यतः जुकाम, एलर्जी, नेज़ल पोलिप्स (साइनस की लाइनिंग में सूजन), नाक की हड्डी के टेढ़े होने के कारण नाक ब्लोक होने से साइनोसाइटिस हो सकता है। ऐसे में साइनस के ऊतक अधिक कफ बनाते हैं और सूज जाते हैं।
  • यह बीमारी मौसम बदलते समय ज्यादा होती है।
  • साइनस होने का एक कारण डीहाइड्रेशन भी है क्योंकि पर्याप्त पानी नहीं पीने से साइनस और फेफड़ों की नलिकाएं शुष्क हो जाती हैं, जिससे सांस स्थायी रूप से नष्ट हो सकती है और समय पर इलाज न कराने पर मस्तिष्क, खोपड़ी की हड्डियों या आंखों की नलिकाओं में संक्रमण पैदा हो सकता है, जिससे दृष्टि संबंधी समस्या भी हो सकती है।
  • नाक की हड्डी जब टेढी होती है, तो वह साइनस के रास्ते को संकरा कर देती हैं। इससे भी साइनस में खराबी होने की संभावना होती है।
  • तीन साइनोसाइटिस में कारणीभूत घटक तीन श्वसन संस्थान के विकार, सामान्य सर्दी, सर्दी का ठीक तरह से इलाज न करने पर, धूल-धुआं इत्यादि के एलर्जी के कारण सामान्य जीवाणुगत संक्रमण, वायरल संक्रमण, इन्फ्लुएन्जा, आघात इत्यादि हैं।

साइनस रोग के लक्षण (Sinusitis Symptoms in Hindi)

sinus ke lakshan kya hote hai –

  • नाक से पानी आना,
  • बार-बार नाक बंद हो जाना,
  • रुग्ण का छीकों से परेशान होना,
  • सिर भारी रहना,
  • बेचैनी,
  • सिर दर्द,
  • सारे शरीर में दर्द,
  • खांसी,
  • आचाज बैठना
  • इत्यादि लक्षणों से साइनोसाइटिस की पहचान होती है।

यह अत्यंत सुलभता से पाया जाने वाला रोग है। छोटे बच्चे से लेकर युवाओं तक में होने वाला, वर्षा व शरद ऋतु में अधिकांशतः पाया जाने वाला रोग है। जिनकी प्रकृति कफज होती है, उन्हें यह बार-बार होता है।

साइनस रोग के प्रकार (Types of Sinusitis in Hindi)

sinus rog kitne prakar ke hote hain –

यह रोग 4 प्रकार का होता है ।

1) तीव्र (Acute) – यह अचानक शुरू होकर 2-4 सप्ताह तक रहता है।
2) Subacute – यह 4-12 सप्ताह तक चलता है।
3) जीर्ण (Chronic) – इसके लक्षण 12 सप्ताह या इससे अधिक समय तक रहते हैं।
4) बार-बार होनेवाला (Recurrent) – यह वर्ष में कई बार होता है।

तीव्र (Acute) – यह सामान्यतः सर्दी जैसे लक्षणों से प्रारंभ होता है जैसे नाक का बहना, नाक बंद रहना, गंध ज्ञान न होना, खांसी व चेहरे में पीड़ा, सिर दर्द, बुखार, थकान, दुर्गंधयुक्त श्वास, झुकने, मुड़ने, तनाव व हलचल देने से बढ़ता है। इस अवस्था में तेज सिरदर्द होता है और उस साइनस पर दबाने से दर्द बढ़ता है।

जीर्ण (Chronic) – जीर्ण साइनोसाइटिस उस स्थिति में होता है, जब बार-बार तीव्र अवस्था आकर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी लाती है। दंत रोग व नासा पटल तिर्यक होने से भी जीर्ण साइनोसाइटिस होता है।

इस व्याधि से ग्रस्त व्यक्ति के साइनस में तीन पीड़ा होती है- कपाल भाग, नासा मूल व गाल की हड्डियों में पीड़ा, तीव्रतम अवस्था में दर्द बढ़ता जाता है, नीचे झुकने या किसी प्रकार का जोर लगाने से यह बढ़ता है। धीरे-धीरे यह दर्द आधे चेहरे को भी आक्रांत कर लेता है, सिर दर्द पूरे सिर में भी हो सकता है।

साइनस की वजह से दर्द दोनों आंखों के बीच, पीछे और माथे पर होता है। यह दर्द साइनस के जो छिद्र नाक में खुलते हैं, उनके बंद हो जाने की वजह से होता है। अत: इसे वैक्यूम हेडेक भी कहते हैं। बार-बार छीके आना, किसी-किसी को तो दिन में 50-100 छींक आना, कभी-कभी सांस लेने में तकलीफ नासिका से साव पहले द्रवस्वरूप, तत्पश्चात गाढा होता है। रोगी ज्वर से ग्रस्त व पीड़ित रहता है। गंधज्ञान का अभाव, थकावट की अनुभूति कभी-कभी नासा से गंधयुक्त स्राव होना, नाक बंद लगना, भारी महसूस होना, सिर भारी होना इत्यादि लक्षण होते हैं।

तीव्र अवस्था में यदि चिकित्सा न की तो थोड़े समय में ही रोग काफी बढ़ जाता है तथा रोगी को अत्यंत कष्ट रहता है। साइनस में पुय निर्मिति (मवाद) हो जाती है। ऐसी स्थिति में दूरबीन से ऑपरेशन द्वारा साइनस का मवाद निकालना पड़ता है।
साइनोसाइटिस होने पर टान्सिलाइटिस (टान्सिल में सूजन), फेरेंजाइटिस (गले में सूजन) या लेरेनजाइटिस (स्वरयंत्र में सूजन) उपद्रव-स्वरूप हो जाती है। पुराने जुकाम तथा नजले से कम उम्र में ही बाल सफेद हो जाते हैं।

साइनस रोग का परीक्षण (Diagnosis of Sinusitis in Hindi)

sinus ki janch kaise ki jaati hai –

  1. साइनोसाइटिस के रुग्ण को डॉक्टर वैद्यकीय परीक्षण में चेहरे पर अलग-अलग साइनस के जगह पर दबाकर स्पर्श असहत्व (Tenderness) देखता है। दांत के आसपास वाला साइनस का भी इसी तरह परीक्षण करता है।
  2. सीटी स्कैन या एक्सरे, कफ की स्थिति और जरूरत पड़ने पर नाक की एंडोस्कोपी जांच की जाती है।
  3. एक्सरे व ट्रांसइलूमिनेशन के द्वारा साइनोसाइटिस रोग का निदान हो जाता है।

साइनस रोग में सावधानियाँ ( Precautions in Sinusitis Disease in Hindi)

  • खाद्य पदार्थों, परफ्यूम, स्प्रे, एयर फ्रेशनर्स और तेज सुगंध वाले अन्य पदार्थों सहित एलर्जिक चीजों से बचाव से इस बीमारी को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
  • सुबह 15 मिनट टहलने, गहरी सांस लेने का अभ्यास करने से साइनस की बीमारी में आराम मिलता है।
  • ठंडे या बर्फ वाले पानी को पीने से बचना चाहिए क्योंकि यह शरीर को शॉक देता है। यूरिन से ज्यादातर पानी निकल जाता है, जिससे शरीर में बहुत कम पानी अवशोषित होता है।
  • लगातार साइनस संक्रमण हो रहा हो और कभी एलर्जी की जांच नहीं कराई है, तो डॉक्टर से परामर्श लेकर एलर्जी विशेषज्ञ से जांच करवानी चाहिए।
  • गीले बालों के साथ सीचे पंखे के नीचे या एयर कंडीशनर के सामने बैठने से बचना चाहिए।
  • कफ को पतला करने के लिए गरम तरल पदार्थों जैसे सूप, काढ़ा, चाय का सेवन करने से साइनोसाइटिस में आराम मिलता है।
  • गर्म पानी से शॉवर व भाप लेने से भी साइनोसाइटिस की समस्या में राहत मिलती है।

साइनस रोग का उपचार (Sinusitis Treatment in Hindi)

sinus ka upchar kaise kiya jata hai –

आधुनिक चिकित्साशास्त्र के अनुसार एंटीबायोटिक्स, एंटीएलर्जिक्स, पेनकिलर्स, नोजल ड्रॉप्स और स्प्रे के माध्यम से साइनोसाइटिस का उपचार किया जाता है और जरूरत पड़ने पर प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए स्टेरॉयड्स दिए जाते हैं।

साइनस रोग का आयुर्वेदिक इलाज (Sinusitis Ayurvedic Treatment in Hindi)

sinus ka ayurvedic ilaj kya hai –

  1. आयुर्वेदिक चिकित्सा क्रम में परहेज को अत्यंत महत्व है।
  2. साइनोसाइटिस के रुग्ण को शीत पदार्थ, खटाई में आचार इत्यादि अम्ल पदार्थो, शीत-विहार आदि से बचना चाहिए।
  3. साइनोसाइटिस में सामान्यतः त्रिफला गुग्गुल, संजीवनी वटी, सूक्ष्म त्रिफला, त्रिभुवनकीर्ति प्रत्येक 1-1 बटी गरम पानी के साथ लें।
  4. नाक बंद होकर श्वास लेने में तकलीफ सिर दर्द, सिर में भारीपन, नाक की हड्डी टेढ़ी होना जैसी अवस्था में लक्ष्मी नारायण रस, ज्वरांकुश व लवंगादि वटी प्रत्येक गोली दिन में 2 बार चबाकर खाएं।
  5. श्वास लेने में कोई कष्ट तो नहीं हो रहा है। मार्ग की विकृति ठीक हो रही है या नहीं, इसका निरीक्षण करें।
  6. अन्य औषधियों में नारदीय लक्ष्मीविलास रस, नागगुटी, सितोपलादि चूर्ण, समीर पन्नग रस, कांचनार गुग्गल, द्राक्षारिष्ट, चित्रक हरीतकी अवलेह, च्यवनप्राश इत्यादि चिकित्सक के परामर्शानुसार लेनी चाहिए।
  7. नस्यकर्म – साइनोसाइटिस के उपचार में नस्य कर्म का विशिष्ट महत्व है इसके परिणाम आश्चर्यजनक पाये गये हैं। नस्य कर्म में विशिष्ट प्रक्रिया द्वारा नासामुल में औषधि द्रव्य की कुछ बूंदें छोड़ते हैं। यह क्रिया 8 से 21 दिन तक चिकित्सक के परामर्शानुसार करते हैं। नास्य कर्म के लिए हॉस्पिटल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं होती है। नस्य कर्म साइनोसाइटिस के अलावा माइग्रेन, सिरदर्द, मिर्गी, मानसिक रोग, बालों का गिरना या सफेद होना इत्यादि कान, नाक, गले के विकारों में प्रभावकारी पाया गया है।

साइनस रोग का घरेलू उपचार (Sinusitis Home Remedies in Hindi)

sinus ka gharelu upay bataiye –

  1. साइनोसाइटिस के रुग्ण हल्दी, पिप्पली, काली मिर्च, सोंठ, अजवायन, तुलसी के पत्तो यष्टिमधु, कोष्ठ, कुलींजन सम मात्रा में लेकर रात को भिगोकर दूसरे दिन सुबह इसका काढ़ा या इससे सिद्ध चाय नित्य पियें।
  2. तुलसी के पत्ते सुबह-शाम चबाकर खाएं।
  3. कपाल, नाक पर वेखंड व सुंठी उबालकर गर्म कर गाढ़ा लेप लगाए ।
  4. आनुवंशिक तकलीफ होने पर 2-3 नग पिप्पली 1 कप दूध व पानी में उबालकर लें।
  5. नाक के भीतर शुद्ध घी अच्छे तरीके से लगाएं।
  6. नमक व हल्दी पानी में उबालकर उस पानी से कुल्ले करें।
  7. दो कप पानी में लहसुन की छिली हुई दो कलियां, हल्दी, सोंठ, अजवाइन प्रत्येक आधा चम्मच काली मिर्च के पांच दाने पीसकर धीमी आंच पर औटाएं। जब चौथाई कप बच जाएं तब छानकर कुनकुना पिएं।
  8. तेजपत्ता लेकर तवे पर सेंककर बारीक चूर्ण बना लें। इसमें सोंठ, काली मिर्च तथा पीपल का बराबर चूर्ण मिलाकर एक चम्मच की मात्रा में गर्म पानी से नित्य प्रयोग कराएं।
  9. अणु तैल (2-2 बूंद) या वचा तैल (6-6 बूंद) को कुछ गर्म करके नाक में डालें। इससे नाक से बहुत सारा श्लेष्मा निकलता है।
  10. काली मिर्च 4 नग, गेहूं का चोकर 1 चम्मच, अदरक 5 ग्राम, तुलसी पत्ती 4 नग को कूट-पीसकर थोड़े से पानी में औटाएं। इसमें 5 नग बताशे भी डाल दें। जब पानी आधा उड़ जाए तो छानकर रात को सोते समय पिलाएं। ऐसा लगभग 3 से 5 दिन करने से सर्दी-जुकाम निकल जाता है।
  11. यदि नाक बंद हो तो गर्म पानी में विक्स भाप सूंघे। पीने के लिए गर्म पानी, गर्म चाय, कॉफी का प्रयोग करें। ठंडी चीजें तथा चिकनाईयुक्त पदार्थ बंद रखें।
  12. अदरक और तुलसी डालकर बनाई हुई चाय को छानने के बाद थोड़ी-सी मात्रा में नमक डालकर पीने से भी सर्दी का जुकाम मिट जाता है।
  13. जुकाम का रोगी गर्म चाय, कॉफी, सर्दियों में गरम रबड़ी, दूध में छुहारे औटाकर सोते समय सेवन करें। अजवायन तथा छोटी पीपल का प्रयोग भी परहेज के साथ 5-7 दिन करना श्रेष्ठ रहता है। नाक से पानी पीने की आदत तथा नेतिक्रिया भी जुकाम से मुक्ति दिलाती है।

साइनस रोग से बचाव के उपाय ( Prevention of Sinusitis in Hindi)

sinus se bachne ke upay –

साइनस का संक्रमण पूर्ण रूप से नहीं रोका जा सकता है, लेकिन कुछ सावधानियां संक्रमण से बचने में मदद कर सकती हैं।

  • सर्दी और बारिश के मौसम में फ्लू से बचाब करना चाहिए। इससे साइनस का संक्रमण भी रोक सकते हैं।
  • एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन कम से कम करना चाहिए क्योंकि एंटिबायोटिक तब मदद करते हैं. जब बैक्टीरिया का संक्रमण हो, लेकिन वायरल संक्रमण में एंटीबायोटिक असर नहीं करती। ऐसे में जरूरत से ज्यादा एंटीबायोटिक लेने पर शरीर में दवाइयों के प्रति ही प्रतिरोधात्मक क्षमता बढ़ने लगेगी।
  • यदि एलर्जी है तो सुबह 5 बजे से 10 बजे के बीच कमरे की खिड़कियां नहीं खोलनी चाहिए क्योंकि उस समय वातावरण में परागकणों की संख्या सबसे ज्यादा होती है।
  • डॉक्टर से बिना पूछ मेडिकल स्टोर से दवा लेकर अपने आप इलाज करने से साइनोसाइटिस बिगड़ सकता है या यह ज्यादा गंभीर हो सकता है। इसलिए जरूरत होने पर सबसे पहले डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।
  • डिहाइड्रेशन के शिकार ऐसे लोग, जो गर्म इलाकों में रहते हैं. वे पहले गर्म पानी पीते हैं क्योंकि वे जानते है कि एक व्यक्ति को जल्दी रिहाईट्रेड करने का यह आसान तरीका है।

इस तरह उपरोक्त चिकित्साक्रम से साइनोसाइटिस के करणों को सर्दी वा अन्य लक्षणों से छुटकारा मिलता है।

(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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