Last Updated on September 29, 2019 by admin
सोया का सामान्य परिचय : Introduction of Dill
सोया का पौधा धनिये के पौधे से मिलता-जुलता है। इसके पत्ते बहुत महीन होते हैं। फूल पीले रंग के होते हैं । इसके बीज धनिये के बीजों से मिलते जुलते होते हैं । इस वनस्पति की खेती सारे भारतवर्ष में होती है। इसके पौधे की तरकारी बनाई जाती है।
इसके १०० तोले बीजों में तीन-चार तोले सुगन्धित तेल निकलता है ।
विभिन्न भाषाओं में सोया के नाम :
✦ संस्कृत – शतपुष्पा, अहिच्छत्रा, शताक्षी, सुपुष्पिका, कारवी इत्यादि ।
✦ हिन्दी – सोया, सुवा, सेंघी सुवा ।
✦ गुजराती – सुवा ।
✦ मराठी – बालंतशेष ।
✦ बंगला – शुल्फा, शोवा, सोवा ।
✦ बम्बई – वालन्तशेप, सुवा ।
✦ फारसी – शोल ।
✦ तेलगू – सोम्या, शतकुपि ।
✦ तामील – शतकुप्पि ।
✦ उर्दू – सोया ।
✦ इंग्लिश – Dill ( डिल )।
✦ लेटिन – Peucedanum Graveolens ( प्यूसीडेनस ग्रेवीओलेन्स )।
आयुर्वेदिक मतानुसार सोया के औषधीय गुण :
☛ आयुर्वेदिक मत से सोया के बीज चरपरे, गरम, कड़वे और अग्निवर्द्धक होते हैं।
☛ सोया ज्वरनाशक, शान्ति दायक, कृमिनाशक, पाचक और वात नाशक होता है ।
☛ यह कफ, व्रण, उदरशूल, नेत्ररोग और योनिशूल को दूर करनेवाले तथा पित्तवर्द्धक होते हैं।
☛ डा० देशाई के मत से सोया दीपन, वायुनाशक और गर्भाशय को उत्तेजना देने वाली होती है। प्रसूतिकाल में इसके बीजों का उपयोग करना शास्त्रसम्मत है।
☛ बच्चों के उदर शूल और पेट के फूलने में इसका अर्क चूने के नितरे हये पानी में मिलाकर दिया जाता है ।
☛ इसके ताजे पत्तों को पीसकर गठानों को पकाने के लिये उन पर लेप करते हैं।
☛ इसका फल चटनी और ओषधि के बतौर काम में लिया जाता है ।
☛ इसका निर्यास (गोंद) स्त्रियों को प्रसूति के पश्चात् अग्निवर्द्धक वस्तु के बतौर दिया जाता है।
☛ इसके पत्तों पर तेल चूपड़ कर उत्तेजक पुलटिस(फोड़े आदि पर लगाया जानेवाला लेप) की तरह अथवा फोड़ों को पकाने के लिये उस पर बांधते हैं ।
☛ केस और महस्कर के मतानुसार इसका अर्क 60 बूंद की मात्रा में चपटे कृमियों ( Hook worm) को नष्ट कर देता है।
सोया बीज के औषधीय गुण : Benefits of Dill Seeds
⚫ भावप्रकाश के मतानुसार सोया के बीज हलके, तीक्ष्ण, पित्तकारक; जठराग्नि को प्रदीप्त करने वाले, चरपरे, गरम तथा ज्वर, वात, कफ, व्रण, शूल और नेत्र रोगों को दूर करने वाले होते हैं।
⚫ राजनिघण्टु के मतानुसार सोया के बीज चरपरे, कड़वे, तीक्ष्ण, गरम, अग्निदीपक, हलके, पित्तकारक, वातनाशक और विशेष करके योनिशूल को नष्ट करनेवाले होते हैं।
⚫ इसके बीज शान्तिदायक और अग्निवर्द्धक होते हैं, बच्चों की बीमारियों में, जैसे पाचन शक्ति की कमजोरी; उदरशूल, कब्जियत इत्यादि रोगों में यह एक वेजोड़ और आश्चर्यजनक वस्तु है। इन कामों के लिये यह अर्क ( Dill water ) के रूप में दी जाती है । इंग्लैंड में प्रत्येक माता और नर्स इन रोगों में इसकी उपयोगिता से परिचित है।
यूनानी मतानुसार सोया के औषधीय गुण :
यूनानी मत से इसके बीज गरम, कड़वे, शान्तिदायक, अतिसार को दूर करने वाले, अग्निवर्द्धक, मूत्रल, मृदुविरेचक, ऋतुस्रावनियामक, घाव को अच्छा करनेवाले, आंतों के दर्द को दूर करने वाले, सर्दी से होनेवाली वेदना को दूर करनेवाले तथा हिचकी और कर्णशूल में लाभदायक होते हैं । ये यकृत, तिल्ली, मसाना, छाती तथा उपदंश, पुरातन प्रमेह और बवासीर में लाभदायक होते हैं ।
सोया के फायदे और उपयोग : Dill Benefits in Hindi
1- फोड़े के उपचार में सोया के फायदे –
इसके पत्तों को तेल में चुपड़ कर गर्म करके फोड़े-फुन्सियों पर बांधने से वे जल्दी पक जाते हैं।
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2- उदर शूल(पेट दर्द ) में सोया के लाभ –
इसके बीजों का क्वाथ बनाकर पिलाने से उदरशल मिटता है।
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3- मन्दाग्नि के इलाज में सोया के फायदे –
सोंठ के साथ सोया के बीजों के चूर्ण की फक्की देने से अजीर्ण और मन्दाग्नि मिटती है।
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3- दूध की कमी में सोया का उपयोग –
सोया के बीजों को मिश्री के साथ मिलाकर खिलाने से अथवा सोया के बीजों का पाक बनाकर खिलाने से स्त्रियों के स्तनों में दूध बढ़ता है । बालक होने के पश्चात् इसके बीजों को फांट बनाकर पिलाने से प्रसूता के हृदय को बल मिलता है । प्रसूता स्त्रियों के लिये यह एक बहुमूल्य वस्तु है।
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4- मूत्र की रुकावट में सोया के फायदे –
सोया के बीजों के चूर्ण में मिश्री मिलाकर उसको दूध की लस्सी के साथ देने से मूत्र की रुकावट मिटती है।
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5- गठान के इलाज में सोया का उपयोग –
इसके बीजों को अरण्डी के साथ पीस कर गर्म करके लेप करने से गठान बिखर जाती है । पुराने घाव सोया के बीजों की राख भुरभुराने से पुराने धाव मिट जाते हैं ।
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सोया के नुकसान : Side Effects of Dill
सोया पित्तवर्द्धक होता हैं। अधिक मात्रा मे इसका सेवन शरीर मे पित्त की वृधि कर शरीर में जलन, गर्मी लगना ,ज्यादा पसीना आना जैसे लक्षण प्रगट कर सकता है |