Last Updated on September 11, 2020 by admin
तिल में है बड़े-बड़े गुण (Sesame Seeds in Hindi)
तिल का नाम चिर-परिचित है। आयुर्वेद के अनुसार तिल को एक खास धान्य माना गया है। तिल प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इसलिए मकर संक्रांति के दिन तिल-गुड़ के लड्डू बांटे जाते है एवं तिल का दान किया जाता है इसका प्रयोग लड्डू, गजक, रेवड़ी, तिल पापड़ आदि व्यंजनों एवं कुछ दवाओं में भी किया जाता है।
तिल के व्यंजन जहां स्वादिष्ट रूचिकर होते है वहीं ये निरोगता के प्रतीक भी है। यदि रोजाना तिल का प्रयोग किया जाए तो अधिक लाभदायक होता है। तिल को केवल तेल प्राप्त करने की चीज माना जाता है। लेकिन इसके दूसरे कई फायदे भी है। इसका प्रयोग हर समय अच्छा होता है। लेकिन जाड़े में तिल का सेवन ज्यादा किया जाता है। आयुर्वेद में भी तिल की उपयोगिता का वर्णन किया गया है।
“तिल’ पोषक तत्वों का खजाना है, इसमें पर्याप्त मात्रा में विटामिन बी पाया जाता है, इसके कारण यह भूख बढ़ाता है, भोजन को भली-भांति हजम करता है, नर्वस सिस्टम को बल प्रदान करता है, तिल से निकाला गया तेल भी अनेकानेक रोगों का उपचार करता है, आयुर्वेद के अनुसार तिल का तेल पचने में भारी एवं गरम होता है। बालों के सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए तो मानो तिल का तेल अमृत ही है, सिर पर तिल तेल की नियमित मालिश करने एवं तिल से बने हुए खाद्य पदार्थों (गजक-रेवड़ी)का नियमित सेवन करने से बालों का स्वस्थ विकास होता है तथा कुदरती कालापन आता है।
धार्मिक महत्व के अतिरिक्त तिल को औषधि के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद की दृष्टि में तिल एक अत्यंत ही बलवर्द्धक और गुणकारी औषधि है।
तिल के प्रकार (Types of Sesame in Hindi)
til kitne prakar ke hote hain –
तिल वर्षा ऋतु की फसल है। यह तीन प्रकार का होता है। काला तिल, सफेद तिल, लाल तिल ।
पौष्टिकता की दृष्टि से काले तिल सर्वोत्तम गुणों वाले होते है। सफेद तिल मध्यम और लाल तिल गुणरहित माने गए है।
जिन्हें बालों के झड़ने, सफेद होने तथा गंजेपन की शिकायत हो, उन्हें शीतकाल में नियमित रूप से तिल का सेवन करना चाहिए।
तिल का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Sesame (til) in Different Languages
Sesame (til) in –
- संस्कृत (Sanskrit) – तिल, होमधान्य, जटिल, पापघ्न, पितृपर्णय, स्नेह फल, वनोद्भव, तेल फल, पितृधान्य।
- हिन्दी (Hindi) – तिल, काला तिल, सफेद तिल
- बंगाली (Bangali) – तिलगाछ, भादुतिल, काला तिल, कटिल, रासि
- गुजराती (Gujarati) – तल
- मराठी (Marathi) – तिल्ली
- पंजाबी (Punjabi) – कंजा, तिल, तिल्ली
- फ़ारसी (Farsi) – कुंजेद
- अरबी (Arbi) – जिल्द, जिलन, सिमसिम,
- तेलगु (Telugu) – नुबुल्लु, नऊ
- तामिल (Tamil) – इलु, एलु
- लैटिन (Latin) – सीसेमम इंडिकम।
तिल के पोषक तत्व (Sesame Nutrition in Hindi)
til ke poshak tatva –
- तिल में लौह, कैल्शियम और फास्फोरस की काफी मात्रा काफी पाई जाती है।
- शरीर के लिए जितने कैल्शियम की आवश्यकता है, उतना कैल्शियम 75 से 100 ग्राम तिल में मिल सकता है।
- साथ ही उसमें लौह और फास्फोरस की मात्रा भी प्राप्त हो जाती है, तिल को गुड़ में मिलाकर लडडू बनाकर खाए जाएं तो अधिक लाभ होता है क्योंकि गुड़ में स्थित लौह और फास्फोरस अलग से मिल जाता है।
- लेसिथीन नामक पदार्थ जो मस्तिष्क के लिए जरूरी होता है, तिल में प्रचुर मात्रा में उपस्थित होता है।इसलिए दैनिक भोजन में तिल होना जरूरी है।
तिल के औषधीय गुण और उपयोग ( Uses of Sesame Seeds in Hindi)
til ke gun aur upyog –
तिल चरपरे, कड़वे, मधुर स्वादिष्ट, कसैले, भारी, कफ-पित्तकारक, बलवर्धक, केश हितकारी, स्तनों में दूध उत्पन्न करने वाले, व्रणरोपक, चर्मरोगों में हितकारी, दंतशूलनाशक, मलरोधक, मूत्र की मात्रा घटानेवाला वातविनाशक और बुद्धिवर्धक होते हैं।
- तिल तेल के सेवन से टूटी हुई हड्डी जल्दी जुड़ जाती है, घाव भी शीघ्र भरते है।
- यह बुध्दि बढ़ाता है।
- श्वास नलिका में आने वाला रूखापन समाप्त करता है।
- पौरुष (यौन) शक्ति को बढ़ाता है।
- माताओं के स्तनों में दूध को बढ़ाता है।
- तिल के लड्डू सेवन करने से मानसिक और शारीरिक दुर्बलता दूर होती है।
- आग से जले हुए स्थान पर तिल को पीसकर लेप करने से राहत मिलती है।
- कब्ज से छुटकारे के लिए रोजाना 50 ग्राम तिल के चूर्ण को गुड़ के साथ खाने से जरूर फायदा मिलता है।
- तिल को पानी के साथ पीसकर घाव पर बांध देने से घाव शीघ्र भर जाता है।
- बल-बुद्धि के विकास के लिए काले तिल लेकर शहद-घी मिलाकर खाने से लाभ होगा।
- जायफल को जल में घिसकर तिल के तेल में गर्म करें। जब वह ठंडा हो जाए तब कमर दर्द से पीड़ित जगह पर लगाएं। बेहतर लाभ होगा।
- तिल के तेल की मालिश करने से त्वचा के रूखेपन से छुटकारा मिलता है और त्वचा स्निग्ध बनती है।
- तीन चार चम्मच तिल तथा इतनी ही मात्रा में मिश्री मिलाकर एक गिलास पानी में उबाले। आधा पानी रह जाने पर पी लें।
- मूत्राशय की पथरी में भी इसका क्षार लाभ पहुंचाता है।
- तिल का तेल सब प्रकार के व्रण और जख्मों पर लगाने के काम आता है।
तिल से लाभ (Benefits of Sesame Seeds in Hindi)
til ke laab kya labh hai –
1). बिस्तर गीला होना – बच्चों द्वारा बिस्तर में पेशाब करने की समस्या के निवारण के लिए सौ ग्राम काले तिल तथा पचास ग्राम अजवायन को दो सौ ग्राम गुड़ में मिलाकर रखें। सवेरे शाम चार से पाँच ग्राम की मात्रा में कुछ दिनों तक बच्चों को नियमित सेवन कराए।
2). बार बार पेशाब आना – आधा किलो तिल, 250 ग्राम अजवायन, खसखस 250 ग्राम की मात्रा में लेकर, कढ़ाई में धीमी आग पर हल्की भुनकर पावडर बना लें। इस पाउडर में इच्छा के अनुसार मिश्री (पिसी हुई) मिला दें। सवेरे-शाम बीस ग्राम तक की मात्रा में ठंडे पानी के साथ सेवन करें।
3). बूंद-बूंद पेशाब आना – बूंद-बूंद पेशाब आने की परेशानी हो या रात में बिस्तर पर पेशाब करने की आदत हो, तो तिल से तैयार गजक, रेवड़ी सेवन से फायदा मिलता है।
4). पथरी – तिल की कोपलों को छाया में सुखाकर उनकी राख करके 7 से 10 ग्राम तक रोज लेने से पथरी गलने लगती है।
5). मलेरिया – तिल की लुगदी घी के साथ लेने से लाभ होता है।
6). बालों की सफेदी – तिल की जड़ और तिल के पत्तों के काढ़े से बाल धोने से सफेद बाल धीरे-धीरे काले होने लगते है।
7). खांसी – तिल के बीजों का काढ़ा बनाकर उसमें मिश्री मिलाकर देने से कफ निकल कर राहत मिलती है। सूखी खांसी में इसके ताजा पत्तों का हिम बनाकर देने से गले में चिकनाई होकर खांसी में आराम हो जाता है।
8). बवासीर – तिल की खली मधुर, रूचिकारक, तीक्ष्ण, मलस्तंभक, रूसी और कफ वात तथा प्रमेह को नष्ट करने वाली है। बवासीर रोग में तिल पीसकर गर्म करके अर्श पर बांधते है और मक्खन के साथ खाने को देते है।यह रोग प्रायः कब्ज होने से होता है और दस्त साफ होने पर गुदा के ऊपर दबाव की कमी होने से इसका जोर कम हो जाता है। इस रोग में तिल्ली के तेल की बस्ति या एनिमा देने से गुदा के अंदर एक से डेढ़ बालिशत तक आते चिकनी होकर मल के गुच्छे निकल जाते हैं। जिससे बवासीर में हल्कापन मालूम होता है।
9). नवीन सुजाक – इसके ताजे पत्तों को 12 घंटे तक ठंडे पानी में भिगोकर उस पानी को पिलाने अथवा तिल के क्षार को दूध या शहद के साथ देने से मूत्र साफ होता है। गर्मी के दिनों में दूसरे व्रणरोपक या व्रणशोधक द्रव्यों की अपेक्षा यह तेल आर्थिक हितकारी होता है।
10). स्त्रीरोग – गर्भाशय के ऊपर तिल की क्रिया बहुत प्रभावशाली होती है। इसको देने से गर्भाशय का संकोचन होता है और उसमें चिकनाई पैदा होने से पीड़ा कम हो जाती है। रक्तगुल्म में इसके बीजों का काढ़ा पीपला मूल के साथ देते है। स्त्रियों के अनार्तव में इसके बीजों का काढ़ा वच, पीपरामूल और गुड़ के साथ दिया जाता है और तिल के पत्तों का काढ़ा बनाकर उस काढ़े में रोगिणी को बैठाया जाता है। माना जाता है कि अधिक मात्रा में इसके बीजों को लिया जाए तो ये गर्भपात कर देते है। शारंगधर के मतानुसार – इसके बीजों को पानी के साथ लेने से गर्भपात होता है।
11). खूनी दस्त – खूनी दस्त की भी कारगर औषधि तिल है। पिसे हुए तिल 20 ग्रा. और शक्कर 30 ग्रा. बकरी के दूध में मिलाकर सुबह-शाम सेवन किया जाए तो खूनी दस्त में काफी आराम मिलता है। थोड़े से सफेद तिल को पीसकर शक्कर के साथ शहद में मिलाकर चाटने से बच्चों को होने वाले खूनी दस्त में तुंरत छुटकारा मिल जाता है। इसके अतिरिक्त तिल को पीसकर मक्खन में मिलाकर खाने से खूनी बवासीर ठीक होता है।
12). जलन का शमन – किसी का कोई अंग आग से जल गया है और वहां पर असहनीय पीड़ा और जलन हो रही है तो जले हुए भाग पर तिल, कपूर और घी का लेप लगाना चाहिए। इससे पीड़ा और जलन दोनों ही ठीक हो जाती हैं। शरीर के किसी भी भाग पर होने वाले दाह-जलन में तिलों को दूध के साथ पीसकर हल्का लेप करने से तुंरत राहत मिलती है। जलन धीरे-धीरे चली जाती है।
13). दंत विकार – रोजाना सबेरे तिल को मुख में रखकर धीरे-धीरे महीन चबाकर दबाने से दंत मजबूत और चमकदार रहेंगे। अगर दंत हिलते है पायरिया और दर्द है तो ऐसे में तिल का तेल बड़ा ही काम करता है। तिल का तेल 10-15 मिनट तक मुंह में रखकर कुल्ला करने से दांतों के दर्द में आराम मिलता है। दांत दर्द में यदि हींग या काले जीरे के साथ तिल के तेल को गर्म कर उसका कुल्ला किया जाये तो बहुत जल्दी ठीक हो जाता है।
14). नपुंसकता नाशक – तिल का उपयोग करना बलवर्द्धक हैं इसलिए यह नपुंसकता को दूर करने में सहायक सिद्ध होता है।15 ग्रा. तिल और 10 ग्रा. गोखरू दूध में उबालकर पीने से धातु स्त्राव बंद होता हैं, नपुसंकता तथा कमजोरी दूर होती है। इसे प्रतिदिन सुबह एक माह तक सेवन करने से निश्चित रूप से ही नपुंसकता दूर होकर पुरूषत्व की प्राप्ति होती है।
15). शीघ्रपतन – शारीरिक कमजोरी महसूस होने पर 50-50 ग्राम काला तिल और दाल चीनी मिलाकर चूर्ण बना लें तथा एक-एक चम्मच सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करें। यदि शीघ्रपतन की शिकायत हो, तो 10 ग्राम तिल तथा 5 ग्राम गोखरू को दूध में उबालकर पीने से लाभ होता है।
16). कष्टार्तव – मासिक धर्म के समय अधिक पीड़ा होती हो या मासिक धर्म ठीक से नहीं आता हो तो तिल को 20 तोला पानी में पकायें । चौथाई भाग पानी रह जाए तो उसे उतारकर ठंडा कर लें। इस काढ़े में गुड़ मिलाकर प्रतिदिन प्रातःकाल पीने से मासिक स्राव खुलकर आता हैं ।
17). उच्चरक्तचाप – तिल का सेवन रक्तचाप के रोगियों के लिए। विशेष लाभदायक है। इसमें पर्याप्त मात्रा में लोहतत्व होता है, जो रक्त निर्माण में सहायक होता है। तिल के उपभोग से रक्त की शुध्दि भी होती है। किशोरियों और महिलाओं के लिए तिल विशेषतौर पर लाभदायक है। इसमें कैल्शियम और फास्फोरस होने की वजह से भविष्य में रजोनिवृत्ति के बाद होने वाले रोग आस्टियोपोरोसिस से बचा जा सकता है।
18). हड्डी रोग – हड्डियों से जुड़ी तमाम बीमारियों में तिल का सेवन हितकारी है। बुजुर्गों के लिए तिल का सेवन किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है। यदि जोड़ों के दर्द सताए, तो तिल के तेल में थोड़ी-सी हींग और लौंग मिलाकर गर्म करके उसकी मालिश करना चाहिए। इसके तेल से मालिश करने पर कमर व जोड़ों के दर्द से राहत मिलती है। यह पक्षाघात में भी लाभदायक रहता है। यदि गठिया का दर्द सताए, तो 150 ग्राम काले तिल में 10 ग्राम सौंठ, 25 ग्राम अखरोट की गिरी तथा 100 ग्राम गुड़ मिला लें तथा रोजाना सुबह-शाम 20-20 ग्राम सेवन करे।
19). मोच – तिल और महुओं को पीसकर मोच पर बांधने से हड्डी में आई मोच मिट जाती है।
20). मुँह के छाले – मुँह के छाले होने पर तिल के तेल में थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर लगाने से राहत मिलेगा। बढ़ती उम्र के बच्चों के लिए तिल का सेवन बहुत गुणकारी है क्योंकि इसमें एमिनो एसिड और प्रोटीन होती है। इससे उनकी माँसपेशियाँ पुष्ट होता है।
21). हायपरकोलेस्ट्राल – इसका सेवन शरीर से कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम करता है। अतः दिल की सेहत के लिए भी यह लाभदायक है। इसका सेवन उच्च रक्तचाप में भी लाभदायक है क्योंकि इसमें सिस्सामिन तथा सिसोमोनिन नामक तत्व है,जो रक्तचाप पर नियंत्रण रखते है। इसमें मैग्नेशियम होता है जो रक्तचाप को कम करके, दिल के दौरे पड़ने से रक्षा करता है।
22). कब्ज – तिल रेशा प्रधान होता है। इसके रेशे आँतों में फंसे मल को भी सरलता से बाहर निकाल देते है। इसी प्रकार, कब्ज से निजात पाने के लिए काले तिल में गुड़ मिलाकर सुबह-शाम 25-25 ग्राम सेवन करे। खूनी बवासीर एक कष्टप्रद रोग है। तिल इसकी पीड़ा कम करने में सहायक है। चार चम्मच तिल को आधा कप पानी में आधा घण्टा भिगाएं। मिश्री मिलाकर सेवन करने से राहत मिलती है।
23). माइग्रेन – तिल की खली को जलाकर लगाएँ, आधा घण्टा बाद चेहरा धो लें, इसे दो सप्ताह तक लगाएँ । त्वचा पर पड़ी झुर्रियों को दूर करने के लिए तिल के तेल से मालिश करें, इससे त्वचा में कसाव और निखार आता है। नियमितरूप से तिल का सेवन करने से माइग्रेन दूर होता है।
24). मोटापा – जो लोग मोटापे से निजात पाना चाहते है, वे तिल के तेल को गुनगुना करके नियमितरूप से अपने शरीर की मालिश करे। इसका तेल विटामिन-ए और ई से भरपूर होता है। यह आँखों के लिए भी लाभदायक है तथा नेत्र ज्योति बढ़ाता है। सूखी खाँसी होने पर 10 ग्राम तिल और सम मात्रा में मिश्री लेकर 200 ग्राम पानी में इतना उबालें कि वह आधा रह जाए। दिन में दो बार इस पानी को पीएँ।
25). केश सौंदर्यवर्धन – काला तिल, आवँला और शृंगराज को सममात्रा में लेकर उसका चूर्ण बना लें तथा एक चम्मच सुबह -शाम पानी से लें। इससे बालों की सफेदी रूक जाती है तथा बाल काले हो जाते है।
26). एक्जिमा – 250 ग्राम तिल के तेल में कनेर की जड़ की छाल 50 ग्राम मिलाकर गर्म करके, उसे छानकर शीशी में भर लें तथा दिन में दो बार प्रभावित भाग पर लगाएँ।
इस प्रकार तिल का धार्मिक रूप से तो महत्व है ही औषधीय दृष्टि से भी यह गुणों की खान है। आयुर्वेद में तो दवा के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। तिल एंटीऑक्सीडेंट्स तत्वों से भरपूर है। इसके सेवन से हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है तथा हम बीमार नहीं पड़ते।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)
Bahoot Achi jaankari hai aapki nice