वन तुलसी (जंगली तुलसी) के औषधीय गुण और फायदे – Van Tulsi in Hindi

Last Updated on December 21, 2020 by admin

वन तुलसी क्या है ? (What is Van Tulsi in Hindi)

भगवान चरक ने वन तुलसी (जंगली तुलसी / बर्बरी तुलसी) का अर्जक के नाम से जगह-जगह वर्णन किया है। सुश्रुतोक्त सुरसादि गण में भी वन तुलसी का वर्णन प्राप्त होता है। इसका लैटिन नाम ओसिममकेनम (Ocimum Cannam) है।

वन तुलसी का विभिन्न भाषाओं में नाम (Name of Van Tulsi in Different Languages)

Van Tulsi (Jangli Tulsi) in –

  • संस्कृत (Sanskrit) – बर्बरी, खरपुष्पा।
  • हिन्दी (Hindi) – बबई तुलसी, वन तुलसी, जंगली तुलसी ।
  • गुजराती (Gujarati) – सबज।
  • मराठी (Marathi) – सबज।
  • अंग्रेजी (English) – स्वीट बेसिल ।
  • लैटिन (Latin) – ओसिमम बैसिलिकम।

वन तुलसी का पौधा कहां पाया या उगाया जाता है ? :

वन तुलसी (जंगली तुलसी) बंगाल, विहार आसाम मध्य प्रदेश से दक्षिण में सीलोन तक के मैदानों में एवं छोटी पहाड़ियों पर अधिक पाई जाती है। यह काली एवं श्वेत भेद से दो प्रकार की होती है ।

वन तुलसी का पौधा कैसा होता है ? :

यह बबई तुलसी का ही एक जंगली भेद है। इसलिए आचार्यों ने इसका बर्बरी तुलसी के अन्तर्गत ही वर्णन किया है । यह शुष्क वातावरण में उत्पन्न होने से भिन्न नाम रूपादि वाली हो गई है।

  • वन तुलसी का पौधा – वन तुलसी का क्षुप बहुशाखी, छोटा, सीधा 1.5 से 2 फुट ऊंचा, तेज गन्ध वाला होता है।
  • वन तुलसी के पत्ते – वन तुलसी के पत्र कटावदार किनारे वाले होते हैं।
  • वन तुलसी के फूल – वन तुलसी के पुष्प बहुत छोटे होते हैं। इस पर छोटे-छोटे खुरदरे रोम अधिक छाये रहते हैं। इसकी गन्ध बहुत तेज होती है। इसके पुष्प पत्र आदि सूखने पर शीघ्र ही चूर्ण हो जाते हैं। पुष्प-श्वेत रंग के चक्राकार गुच्छों में आस पास लगे हुए होते हैं, प्रत्येक गुच्छे में प्रायः 6 पुष्प होते हैं।
  • वन तुलसी के बीज – बीज कुछ गुलाबी आभायुक्त काले रंग के खस-खस के आकार वाले होते हैं।

वन तुलसी पौधे का उपयोगी भाग (Beneficial Part of Van Tulsi Plant in Hindi)

प्रयोज्य अंग – मूल, पत्र, बीज।

वन तुलसी (जंगली तुलसी) सेवन की मात्रा :

  • फाण्ट (सर्बत) – 50-100 मि.ली.,
  • बीज चूर्ण – 1 से 3 ग्राम,
  • पत्र क्वाथ – 50 मिली.
  • पत्र चूर्ण – 5 से 10 ग्राम।

वन तुलसी के औषधीय गुण (Van Tulsi ke Gun in Hindi)

  • रस – कटु, तिक्त।
  • वीर्य – उष्ण ।
  • गुण – लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण।
  • विपाक – कटु ।
  • दोषकर्म – कफवात शामक ( बीज वातपित्त शामक)।
  • रोगोपयोग – कास, श्वास, अग्निमांद्य, अरुचि आदि।
  • दोष शमन – कफवात शामक ।
  • प्रतिनिधि – इसके अभाव में कलोंजी प्रतिनिधि रूप में ली जाती है और इसके पत्र लौंग के प्रतिनिधि रूप में लिये जाते हैं।

रोगोपचार में वन तुलसी के फायदे (Benefits of Van Tulsi in Hindi)

1). दाद (दद्रु) में वन तुलसी का उपयोग फायदेमंद

वन तुलसी पत्र, चक्रमर्द्र, सेंधा नमक, और हरड़ को मट्ठे में पीसकर तीन दिन तक लेप करें।

( और पढ़े – दाद खाज खुजली का आयुर्वेदिक इलाज )

2). छाती के दाहिने और बाएँ भागों में दर्द में वन तुलसी के इस्तेमाल से लाभ

वन तुलसी पत्र स्वरस में अदरक स्वरस और पुष्करमूल चूर्ण मिला उष्ण कर लेप करें।

3). दन्तकृमि में लाभकारी है वन तुलसी का प्रयोग

वन तुलसी पत्र स्वरस को कान में डालने से दांतों के कृमि नष्ट होते हैं।

( और पढ़े – दाँत दर्द के 51 चमत्कारी घरेलू उपचार )

4). किक्किस (पेट पर सफेद धारियां) में फायदेमंद वन तुलसी के औषधीय गुण

गर्भिणी स्त्री की छाती तथा पेट की खुजली पर वन तुलसी के बीजों को पीसकर लेप करने या मर्दन करने से लाभ होता है।

5). बुखार (ज्वर) दूर करे वन तुलसी का उपयोग

वन तुलसी के पत्तों को पीसकर हाथ-पैरों पर लेप करने से ज्वर का वेग कम होता है।

6). सरदर्द (शिरःशूल) मिटाती है वन तुलसी

जलते कोयलों पर वन तुलसी के सूखे फूल एवं काली मिर्च के चूर्ण को डालकर धूम को सूंघने से शूल मिटता है।

7). आमवात का दर्द और सूजन दूर करे वन तुलसी का प्रयोग

वन तुलसी के पत्र क्वाथ से पीड़ित स्थान का सेक करना लाभप्रद होता है।

( और पढ़े – आमवात का आयुर्वेदिक उपचार )

8). नेत्ररोग में लाभकारी वन तुलसी

नेत्र रोगों में वन तुलसी का पत्रस्वरस डालना लाभप्रद है। नेत्राभिष्यन्द (आँख का एक रोग ) में इसके पत्रस्वरस में मधु मिलाकर अञ्जन करना चाहिए।

9). वृश्चिक (बिच्छु) दंश में वन तुलसी का उपयोग लाभदायक

वन तुलसी पत्र का कल्क बनाकर दंश स्थान पर लेप करना चाहिए।

10). कान दर्द (कर्णशूल) मिटाए वन तुलसी का उपयोग

कान में वन तुलसी पत्रस्वरस डालने से कर्णशूल मिटता है । कर्णबाधिर्य (बहरेपन) में भी यह प्रयोग उपयोगी है।

( और पढ़े – कान दर्द के 77 देशी नुस्खे )

11). घाव (व्रण) में जंगली तुलसी के प्रयोग से लाभ

वन तुलसी के बीजों को पीसकर घावों पर बाँधने से घाव शीघ्र भर जाते हैं।

12). मिर्गी (अपस्मार) ठीक करे जंगली तुलसी का प्रयोग

वन तुलसी के पत्र स्वरस में सैन्धव मिलाकर नाक में टपकाने से अपस्मार का वेग दूर होता हैं।
इस रोग में कंठान्तर्गत कफ को निकालने के लिए इसकी जड़ का क्वाथ पिलाया जाता है।

13). मुख से दुर्गन्ध में फायदेमंद वन तुलसी

वन तुलसी, जायफल, जावित्री, केसर, और गुड़ का मिश्रण कर गोली बनाकर मुख में धारण करने से मुख की दुर्गन्ध मिटती है।

( और पढ़े – मुंह की बदबू दूर करने के 15 घरेलू उपाय )

14). दस्त (अतिसार) में वन तुलसी से लाभ

दस्त में वन तुलसी पंचाग का स्वरस लाभप्रद है।
वन तुलसी के पत्तों के फाण्ट (सर्बत) ,जायफल का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से भी अतिसार नष्ट होता है।

15). आमातिसार में लाभकारी है वन तुलसी का सेवन

वन तुलसी के पत्तों का फाण्ट (सर्बत) में, घृत में भुनी हुई हींग का चूर्ण और मिश्री मिलाकर सेवन करने से आमातिसार में लाभ होता है।

16). ग्रहणी (IBS) रोग में जंगली तुलसी के इस्तेमाल से लाभ

वन तुलसी के पत्तों के चूर्ण में समभाग मिश्री मिलाकर सेवन करने से ग्रहणी विकार का शमन होता हैं

17). पेचिश (प्रवाहिका) मिटाए जंगली तुलसी का उपयोग

पेचिश में वन तुलसी का पंचाग स्वरस उपयोगी है। बीजों को पानी में भिगोकर मिश्री या शक्कर मिलाकर सेवन करने से रक्त प्रवाहिका मिटती है।

18). उल्टी (छर्दि) दूर करने में मदद करता है वन तुलसी का सेवन

वन तुलसी पत्र क्वाथ पीने से छर्दि (उल्टी) का संहार होता है।

19). मूत्रकृच्छ (मूत्र रुक रुककर होना) रोग मिटाए वन तुलसी का उपयोग

वन तुलसी के बीजों को भिगोकर उसके लुआब में मिश्री मिलाकर पीने से पेशाब खुलकर आने लगता है।

( और पढ़े – पेशाब रुक जाने के 24 रामबाण घरेलु उपचार )

20). मूत्राघात (मूत्र का रुक जाना) ठीक करे वन तुलसी का प्रयोग

वन तुलसी के बीजों को रात्रि के समय ठण्डे पानी में भिगोकर प्रातः उसमें गाय का ताजा दूध 250 मि.ली. तथा मिश्री 20 ग्राम मिलाकर पीने से मूत्र एवं वीर्य सम्बन्धी रोग नष्ट होते हैं । कोष्ठ की उष्णता एवं मूत्रदाह की यह श्रेष्ठ औषधि है।

21). शीत ज्वर में वन तुलसी का उपयोग लाभदायक

वन तुलसी के पत्रस्वरस में सोंठ और मरिच का चूर्ण मिला सेवन करने से शीतज्वर में लाभ होता है ।
वन तुलसी के पत्र और काली मिर्च को जल में पीस मधु मिलाकर पिलाने से विषमज्वर का भय नहीं रहता है। इससे कास, श्वास में भी लाभ होता है।

22). अग्निमांद्य (भूख न लगना) में फायदेमंद वन तुलसी

वन तुलसी के पत्र 4 ग्राम और 5-7 काली मिर्च को पानी में पीस पिलाने से भूख लगने लगती है।

( और पढ़े – भूख बढ़ाने के 55 घरेलू नुस्खे )

23). पूयमेह (गोनोरिया) में फायदेमंद वन तुलसी के औषधीय गुण

वन तुलसी पत्रस्वरस (ताजा) पिलाना चाहिए।

वन तुलसी (जंगली तुलसी) के अन्य लाभदायक अनुभूत प्रयोग :

1). एपेन्डीलाईटिस (आन्त्रपुच्छशोथ) पर सफल प्रयोग – वन तुलसी को पीसकर कल्क बनाकर लोहे की करछुली में गरम कर (भूनकर नहीं) उस पर थोड़ा नमक छिड़क दें और दर्द के स्थान पर उस कल्क की टिकिया रखकर 48 घण्टे में 3 बार बदलकर बांधे। इस बीच रोगी को आराम करना चाहिए। यह परीक्षित नुस्खा है। जिन्होंने इसको अपनाया है, पूर्ण लाभ उठाया है मैंने कई रोगियों पर इसका प्रयोग करके शत-प्रतिशत सफलता पाई है। – श्री विष्णुकुमार जिन्दल

2). कृमिजन्य शिरोरोगहर प्रयोग – जंगली तुलसी (वन तुलसी) के पत्ते और देशी तमाखू के पत्ते (दोनों छाया शुष्क) 12-12 ग्राम, पंवार के बीज 6 ग्राम और पोटासपरमेगनास (जो दवा कुओं में छोड़ी जाती है) 375 मि. ग्राम, इन सबका महीन चूर्ण कर रोगी को नस्य देवें, और उसे द्रोणपुष्पी (गूमा) के क्वाथ का बफारा (भाप) कपड़ा उढ़ाकर देवें । समस्त कृमि झड़ जाते हैं। रोगी स्वस्थ्य हो जाता है। – पं. श्रीकृष्ण प्रसाद त्रिवेदी

3). श्वेतकुष्ठ विनाशक योग – वन तुलसी 50 ग्राम, पंवार बीज 5 ग्राम, कालीजीरी 5 ग्राम, रसमाणिक्य 5 ग्राम, त्रिफला 10 ग्राम, रक्तचन्दन 15 ग्राम, आरोग्वर्धिनी वटी 5 ग्राम, खदिर अन्तर्जाल 40 ग्राम, तुलसी स्वरस (भावनार्थ)। क्रम 1 से 8 तक की महौषधियों को सूक्ष्म चूर्णित कर तुलसी स्वरस की ग्यारह भावनायें दें। अचूक महौषधि तैयार है।
मात्रा – 125 मि.ग्राम से 250 मि.ग्राम प्रतिदिन दो बार।
अनुपान – मधु।
उपयोग – श्वेतकुष्ठ में उपयोगी योग है।
नोट – इसके सेवन काल में खदिरारिष्ट भोजनोपरान्त 10 ग्राम समभाग जल में सेवन करने पर शीघ्रातिशीघ्र लाभ होता है। – वैद्य श्री जबरी व्यास

4). प्रदरनाशक चूर्ण – वन तुलसी के बीज, श्वेत राल, पठानी लोध 24-24 ग्राम, चिकनी सुपारी, मोचरस, खूनखराबा, कमरकस, धाय के फूल 60-60 ग्राम। सभी को कूट-छानकर शीशी में रख लेवें।
प्रयोग – 3-3 ग्राम सुबह-शाम दवा फांककर ऊपर से चावल का धोवन (पानी) पीवें।
गुण – हर प्रकार का प्रदर श्वेत या लाल, पीला या काला इसके पीने से ठीक होता है। रक्तप्रदर में लाल चन्दन व मिश्री पीसकर दवा लेनी चाहिए। – वैद्य श्री लक्ष्मीचन्द जमौरिया

वन तुलसी से निर्मित आयुर्वेदिक दवा (कल्प) :

क्वाथ –

वनतुलसी पत्र, करंज बीजों की गिरी, नीम की छाल, अपामार्ग के बीज, गिलोय और इन्द्र जौ का मिश्रित यवकुट चूर्ण का क्वाथ सिद्ध कर थोड़ा-थोड़ा बार-बार पिलाते रहने से हैजा (विषूचिका) में लाभ होता है। – च.द.

वटी –

  • वनतुलसी पत्रस्वरस 12 ग्राम, सोंठ चूर्ण 12 ग्राम लेकर दोनों को घोटकर उसमें पुराना गुड़ 24 ग्राम अच्छी तरह मर्दन कर छोटे बेर के समान गोलियां बना दिन रात में 3 बार सेवन करने से अजीर्ण, अग्निमांद्य तथा अन्य उदर विकारों का शमन होता है।
  • वनतुलसी के पंचाग के रस या पत्ररस में शिलाजीत, लौहभस्म और स्वर्ण भस्म (समभाग) मर्दन कर 120 मि.ग्रा. की गोलियां बनाकर छाया में सुखाकर रख लें। इसके प्रयोग से आन्तरिक ज्वर में विशेष लाभ होता है। 1/2 से 1 गोली पीसकर शहद मिला चटाई जाती है। इसमें 30 मि.ग्रा. मुक्ता भस्म मिला देने से निरन्तर रहने वाला ज्वर उतर जाता है। यह मसूरिका (चेचक) , विस्फोटक (जहरीला फोड़ा), लोहित ज्वर एवं सब प्रकार के व्रणों (घाव) में भी लाभप्रद है। इसे इन्दुकुलावटी कहते हैं।- भै. र.

चूर्ण –

  • वनतुलसी बीज एक भाग, ईसबगोल 4 भाग दोनों में समभाग सौंफ का चूर्ण मिला इन तीनों के बराबर शक्कर मिलाकर चूर्ण बनालें, 8-10 ग्राम तक यह चूर्ण दुग्धानुपान से शक्ति के अनुसार सेवन करने से आन्त्रिक उष्णता समाप्त होती है।
  • वनतुलसी पत्र 40 ग्राम, सेंधा नमक, सोंठ, कालीमिर्च व सफेद जीरा 10-10 ग्राम, काला नमक एवं धनियां 20 ग्राम लेकर महीन चूर्ण कर इसमें 120 ग्राम खाड़ मिलाकर रख लें, यह क्षय रोग में लाभप्रद है। इस चूर्ण में अम्लवेतस या आम्रातक तथा अनारदाना. 40-40 ग्राम मिला देने पर यह स्वादिष्ट बन जाता है। इसे 4 ग्राम तक की मात्रा में खाद्य वस्तुओं के साथ सेवन कराने से भोजन में रुचि उत्पन्न होती है। इससे जठराग्नि भी प्रदीप्ति होती है। इसके अतिरिक्त कास, श्वासकष्ट, पार्श्वशूल आदि लक्षणों का शमन कर यह चूर्ण रोगी के बल को बढ़ाता है। यह सैन्धवादि चूर्ण के नाम से जाना जाता है। – चरकसंहिता

फाण्ट (चाय) –

वन तुलसी, गोरखपान, लालचन्दन, बबूल छाल, तेजपात, बड़ी इलायची, सोंफ, मुलहठी, गुलवनफ्सा, लौंग, दालचीनी, कालीमिर्च, सोंठ और वासापत्र का समभाग यवकुट चूर्ण कर लें, 5 ग्राम को उबलते पानी में डालें, और दूध शर्करा मिलाकर छानकर पीने से नजला जुकाम, शिरःशूल, ज्वर आदि रोगों में लाभ होता है। इसे अनुपान के रूप में भी लिया जा सकता है। यह देश रक्षक औषधालय कनखल-हरिद्वार का पेटेण्ट प्रयोग है जो हिमालय हर्बल चाय के नाम से मिलता है।

वन तुलसी के दुष्प्रभाव (Van Tulsi ke Nuksan in Hindi)

वन तुलसी का अधिक मात्रा में सेवन दृष्टि दौर्बल्य का कारक है।

दोषों को दूर करने के लिए : इसके दोषों को दूर करने के लिए सिरका, खीरा या कुलफा का सेवन किया जाता है।

(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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