यकृत शोथ (हेपेटाइटिस) के कारण, बचाव और इलाज

Last Updated on September 6, 2021 by admin

दुनिया में 20 करोड़ से अधिक व्यक्ति केवल संक्रामक यकृत-शोथ के ‘बी’ प्रकार के विषाणु से ग्रस्त हैं। सर्वाधिक लोगों को मौत का ग्रास बनानेवाले दस रोगों में यकृत-शोथ का स्थान पाँचवें नम्बर पर है। भारत में सबसे अधिक लगभग 4 करोड़ 50 लाख केवल हेपेटाइटिस-बी विषाणुओं के वाहक मौजूद हैं। इनमें से अगले दस वर्षों में एक-चौथाई व्यक्तियों में हेपेटाइटिस (यकृत-शोथ) गम्भीर रूप धारण कर लेगा और इन रोगियों में से एक-तिहाई को यकृत का सीरोसिस हो जाएगा।

यह भी उल्लेखनीय है कि हेपेटाइटिस ‘बी’ और ‘सी’ विषाणु कैंसर भी उत्पन्न करता है। भारत में संक्रामक यकृत-शोथ के 4 करोड़ 80 लाख व्यक्ति ऐसे हैं जो सावधानियों के अभाव में अन्य लोगों को भी रोग फैला सकते हैं।

वास्तव में इस रोग के बारे में सरकार और लोगों को जितना जागरूक होना चाहिए उतने वे नहीं हैं जबकि प्रतिवर्ष लगभग 6 करोड़ मरीज यकृत-शोथ और उसके कारण होनेवाले यकृत कैंसर और सीरोसिस इत्यादि से दुनिया में मरते हैं।

उक्त विवरण से यह सहज ही समझ में आ जाता है कि यकृत-शोथ की समस्या साधारण समस्या नहीं है। अत: यकृत-शोथ एवं उसके बचाव के बारे में सभी को जानना नितान्त आवश्यक है। कई विशेषज्ञ तो संक्रामक यकृत-शोथ को एड्स से भी अधिक खतरनाक मानते हैं।

( और पढ़े – लिवर खराब होने के कारण,लक्षण और इलाज )

यकृत शोथ क्या है ? (What is Hepatitis Disease in Hindi)

संक्रामक यकृत-शोथ को विषाणुजनित शोथ (इन्फेक्टिव हेपेटाइटिस) भी कहते हैं। यह एक गम्भीर जानलेवा संक्रामक रोग है जिसमें प्रमुख रूप से यकृत प्रभावित होता है। रोग के कारण यकृत में सूजन के साथ आँखों एवं त्वचा में पीलापन एवं कई अन्य खराबियाँ आ जाती हैं।

यकृत शोथ रोग का कारण (Hepatitis Disease Causes in Hindi)

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, यह एक विषाणुजनित रोग है। अभी तक आधा दर्जन से अधिक प्रकार के विषाणु वैज्ञानिकों द्वारा खोजे गए हैं जो अलग-अलग तरह के यकृत-शोथ उत्पन्न करते हैं। ये विषाणु हैं –

  • यकृत-शोथ ‘ए’ विषाणु,
  • यकृत-शोथ ‘बी’ विषाणु,
  • यकृत-शोथ ‘सी’ विषाणु,
  • यकृत-शोथ ‘डी’ विषाणु (डेल्टा एजेंट)
  • इसके अलावा महामारी फैलानेवाले कुछ विषाणु नॉन ‘ए’ और नॉन ‘बी’ प्रकार के भी होते हैं।

कुछ अन्य प्रकार के विषाणु जैसे – साइटोमेगेलो वाइरस, एपस्टेनवार वाइरस, हरपीज सिम्पलेक्स वाइरस इत्यादि भी गम्भीर यकृत-शोथ उत्पन्न कर सकते हैं। लेकिन इस तरह के रोगियों की संख्या कम होती है।

प्रमुख संक्रामक यकृत शोथों के नाम :

प्रमुख यकृत शोथों के नाम निम्नलिखित है –

  1. यकृत-शोथ ‘ए’ या पीलिया (हेपेटाइटिस-ए)
  2. यकृत-शोथ-बी (हेपेटाइटिस-बी)
  3. यकृत-शोथ-सी (हेपेटाइटिस-सी)
  4. यकृत-शोथ-डी या डेल्टा हेपेटाइटिस
  5. यकृत-शोथ-नॉन ‘ए’, नॉन ‘बी’

अब हम यहाँ प्रमुख संक्रामक यकृत-शोथों की विस्तार से चर्चा करेंगे ।

1). यकृत-शोथ ‘ए’ या पीलिया (हेपेटाइटिस-ए / Hepatitis A in Hindi)

hepatitis a ke bare mein jankari

यह संक्रामक यकृत-शोथ का एक प्रमुख प्रकार है जो प्राय: हर कहीं महामारी के रूप में फैलता रहता है। इसका कारण होता है, यकृत-शोथ ‘ए’ प्रकार का वाइरस या विषाणु जो दूषित जल, भोजन, मल इत्यादि में होता है।

कुछ विकसित देशों में यह रोग कम हो गया है। लेकिन विकासशील देशों में पूरी आबादी को शुद्ध पेयजल उपलब्ध न होने के कारण और गन्दगी तथा मल निष्कासन की व्यवस्थाएँ सुरक्षित न होने के कारण हेपेटाइटिस ‘ए’ अभी भी जब-तब होता रहता है।

हेपेटाइटिस-ए के लक्षण (Hepatitis A ke Lakshan in Hindi)

यकृत-शोथ ‘ए’ के क्या लक्षण होते हैं?

  • शुरू में रोग के लक्षण अन्य बुखार जैसे ही होते हैं,
  • मरीज को थकान और कमजोरी लगती है।
  • बुखार भी रहता है।
  • सिरदर्द, हाथ-पैर में दर्द होता है।
  • भूख नहीं लगती एवं उल्टी की इच्छा अथवा उल्टियाँ होती हैं।
  • आँखों के सफेद भाग एवं त्वचा में पीलापन उतर आता है।
  • इसे पीलिया या जॉन्डिस भी कहते हैं।
  • पेशाब भी गहरे पीले रंग की आती है।
  • रोग की बढ़ी हुई अवस्था में रोगी की हथेलियाँ पीली दिखती हैं।

हेपेटाइटिस-ए कैसे फैलता है ? :

  • संक्रामक व्यक्ति, इस बीमारी के विषाणु, पीलिया (जॉन्डिस) होने के 3 सप्ताह बाद तक मल द्वारा उत्सर्जित करता रहता है। यदि उचित साफ-सफाई और मल निष्कासन की व्यवस्थाएँ ठीक न हों तो ये विषाणु हाथों, भोजन या पानी द्वारा अन्य व्यक्ति में पहुँच जाते हैं।
  • यह द्रष्टव्य है कि रोग के विषाणु रोगी के मल के अलावा शारीरिक द्रव्यों जैसे – मूत्र, लार, रक्त इत्यादि में भी होते हैं और इनसे भी रोग फैल सकता है।
  • यौन सम्पर्कों से भी रोग लग सकता है।
  • रोगी में बीमारी के लक्षण संक्रमित होने के पश्चात 30 से लेकर 45 दिनों के बीच मिलते हैं।

हेपेटाइटिस-ए (पीलिया) के कारण (Hepatitis A Causes in Hindi)

हेपेटाइटिस-ए क्यों होता है ?

किसी भी तरह के संक्रामक यकृत-शोथ में आँखें और त्वचा पीली होना चेतावनी देनेवाला प्रमुख लक्षण है। यह प्रदर्शित करता है कि रक्त द्रव (सीरम) में बिलीरुबिन की मात्रा सामान्य से बहुत अधिक हो गई है।
बिलीरुबिन एक तरह का रसायन है जो शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं के टूटने के पश्चात् यकृत में बनता है और यकृत से जुड़े हुए पित्ताशय में इकट्ठा होता है। पित्ताशय से नलियों द्वारा यह आँतों में आता है। इसके कारण ही मल का रंग पीलापन लिये हए होता है। – एक स्वस्थ व्यक्ति में बिलीरुबिन की मात्रा 1000 सी.सी. रक्त में 0.1 मि.ग्रा. से 1 मि.ग्रा. तक होती है। जब बिलीरुबिन का रक्त द्रव में स्तर 3.0 मि.ग्रा. के आसपास या इससे ऊपर हो जाता है तो आँखों के सफेद भाग में पीलापन और त्वचा का रंग पीलापन लिये हुए रहता है।

जैसा कि बतलाया गया है कि बिलीरुबिन यकृत में बनता है। यकृत-शोथ और कई अन्य यकृत को नुकसान पहुँचाने वाली स्थितियों में यकृत की कोशिकाओं में सूजन आ जाती है, कई कोशिकाएँ मर भी जाती हैं जिससे रुकावट के कारण पूरा बिलीरुबिन पित्ताशय में नहीं जा पाता। यह बिलीरुबिन रक्त में जाकर बिलीरुबिन का स्तर बढ़ा देता है। बिलीरुबिन में चूँकि पीले रंग के पिगमेंट होते हैं इसलिए इसके अधिक बढ़ जाने से आँखों और त्वचा का रंग पीला दिखता है। कुछ मात्रा में यह बिलीरुबिन, यूरोबिलिनोजन के रूप में पेशाब से भी निकलता है।

हेपेटाइटिस-ए के अन्य कारण भी हैं जैसे –

  • पित्त नलिका में पथरी फँसने से जब पित्त आँतों में नहीं जाने पाता तो पीलिया हो जाता है।
  • अधिक मात्रा में अलकोहल लेने से भी यकृत में सूजन आ जाती है, जिससे पीलिया हो सकता है।
  • इसके अलावा गर्भावस्था, लिवर के सीरोसिस तथा यकृत कैंसर में भी पीलिया हो सकता है।
  • बहुत सी दवाएँ जैसे – क्षय रोग में दी जानेवाली दवा – रिफामसिन, आइ.एन.एच. तथा दर्द में ली जानेवाली फेनाइलब्यूटाजोन और इंडोमेथासिन भी पीलिया उत्पन्न कर सकती है।
  • मनोरोगों में दी जानेवाली क्लोरप्रोमाजीन तथा एमिट्रिप्टालीन जैसी दवाइयाँ भी रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा बढ़ा सकती है।

हेपेटाइटिस-ए रोग का निदान (Diagnosis of Hepatitis A in Hindi)

हेपेटाइटिस ए का परीक्षण कैसे किया जाता है?

  1. रोग की सही पहचान प्रयोगशाला में ही सम्भव है। इसके लिए रक्त द्रव में बिलीरुबिन की मात्रा की जाँच करवाते हैं।
  2. इसके अलावा पेशाब में बाइल पिगमेंट्स और बाइल साल्ट्स की जाँच भी की जाती है।
  3. रक्त में एंटी-एच.ए.वी. (हेपेटाइटिस ‘ए’ वाइरस) का माप करते हैं।
  4. इसके अलावा रक्त की एंटीबाडी जाँच से भी इस संक्रमण का पता चल जाता है।

हेपेटाइटिस-ए का इलाज (Hepatitis A Treatment in Hindi)

हेपेटाइटिस ए का उपचार कैसे किया जाता हैं ?

  • रोग की कोई विशेष दवा नहीं है। चिकित्सक रोगी को पूर्ण आराम की सलाह देते हैं। इसके लिए रोगी को बिस्तर पर लेटना चाहिए। केवल मल-मूत्र विसर्जन के लिए उठना चाहिए।
  • किसी तरह की मेहनत का कार्य न करें।
  • रोगी हल्का खाना ले सकते हैं।
  • फलों का रस ग्लुकोज मिलाकर लेना चाहिए।
  • गन्ने का रस भी लिया जाना चाहिए।
  • योग्य चिकित्सक, इस रोग में अनावश्यक दवाइयाँ नहीं देते।
  • नई धारणा के अनुसार कार्टिकोस्टेरायइस दवाएँ भी नहीं लेना चाहिए।
  • बीमारी के दौरान तम्बाकू इत्यादि नहीं लेना चाहिए।
  • इसके अलावा महिला रोगियों को गर्भ निरोधक गोलियों का भी इस्तेमाल वर्जित है।
  • इस रोग में आराम सबसे बड़ी दवा है।

हेपेटाइटिस-ए से बचाव और नियंत्रण (Prevention of Hepatitis A in Hindi)

हेपेटाइटिस ए की रोकथाम कैसे करें?

रोग में बीमारी का स्रोत स्वयं मनुष्य होता है। कई मनुष्यों में रोग के लक्षण स्पष्ट नहीं होते फिर भी वे रोग फैलाते रहते हैं। इसलिए स्रोत पर नियन्त्रण रखना कठिन कार्य है। फिर भी इस रोग की जानकारी होने पर इसकी सूचना तुरन्त पास के स्वास्थ्य केन्द्र में देनी चाहिए। मरीज की गन्दगी और मल को 0.5 प्रतिशत हाइपोक्लोराइट के घोल से विषाणुरहित बनाकर उसका निष्कासन करना ठीक रहता है।

रोग के प्रसार को कम करने के लिए निम्नलिखित सावधानियाँ भी रखें –

  1. भोजन के पूर्व एवं शौचक्रिया के पश्चात् हाथों को साबुन से अच्छी तरह धोना चाहिए। (नाखून
    काटकर रखें।)
  2. यदि आप ऐसे स्थान पर रह रहे हों जहाँ यह रोग फैल रहा है तो पानी उबालकर अथवा क्लोरीन
    की गोलियाँ डालकर पीएँ। दूध भी उबालें तथा भोजन तैयार करने में साफ-सफाई का ध्यान रखा जाना चाहिए।
  3. घर के गन्दे पानी के निकलने की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। इसके अलावा सेप्टिक टैंक
    वाले शौचालय संक्रमण कम करने की दृष्टि से अधिक ठीक रहते हैं। अत: जिन घरों में ये नहीं हैं उन्हें बनवाना चाहिए।
  4. अस्पतालों में सिरिंज, सुइयाँ एवं अन्य उपकरण ठीक तरह उबाले जाने चाहिए।

बचाव के लिए टीके एवं अन्य दवाइयाँ :

a) टीका – यकृत-शोथ ‘ए’ से बचने का टीका अभी तैयार नहीं हुआ है लेकिन वैज्ञानिकों को आशा है कि शीघ्र ही टीका बना लिया जाएगा।
b) ह्यूमेन इम्यूनोग्लोब्यूसिंस – ये एक तरह के एंटीबाडीज (प्रतिपिंड)होते हैं और शरीर की रोगाणुओं के विषैले प्रभाव से रक्षा करते हैं। इनको यदि इंजेक्शन दवारा दिया जाए तो ये व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ा देते हैं। इनका उपयोग निम्न स्थितियों में करते हैं –

  1. यदि व्यक्ति ऐसे क्षेत्र में यात्रा करने जा रहा हो जहाँ यह रोग फैला हो तो उसे इम्युनोग्लोब्युलिंस लगवाने की सलाह दी जाती है।
  2. रोगी के घर के सदस्य और सम्पर्क में आए अन्य व्यक्तियों को भी ये इंजेक्शन चिकित्सक की सलाह से लेना चाहिए।
  3. ऐसी संस्थाओं में जिनके सदस्यों में रोग फैल रहा हो, ये इम्यूनोग्लोब्यूलिंस संस्था के सभी सदस्यों को लगवाना चाहिए।

2). यकृत-शोथ-बी (हेपेटाइटिस-बी / Hepatitis B in Hindi)

जैसा कि पूर्व में बतलाया जा चुका है कि यह एक गम्भीर बीमारी है जो ‘हेपेटाइटिस-बी’ नामक विषाणु के संक्रमण से होती है। वैसे इस रोग से समस्त विश्व त्रस्त है, लेकिन यह विकासशील और गरीब देशों में अधिक पाया जाता है। यह भी देखा गया है कि रोग उच्च जीवन स्तर वाले व्यक्तियों में कम और निचले तबके के लोगों में अधिक होता है। इसलिए यह आस्ट्रेलिया, अमेरिका और यूरोप में कम एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया, चीन इत्यादि देशों में ज्यादा पाया जाता है।

हेपेटाइटिस-बी कैसे फैलता है ? :

मनुष्य ही इस रोग के विषाणुओं का स्रोत होता है। बहुत से व्यक्तियों में हेपेटाइटिस-बी के कोई लक्षण नहीं होते लेकिन वे विषाणुओं के वाहक (कैरियर) बने रहते हैं। ऐसे व्यक्ति भी रोग फैलाने में सक्षम होते हैं। इसके अलावा प्रत्यक्ष लक्षण वाले रोगियों से भी बीमारी लग सकती है। वैसे यह रोग पानी या भोजन से नहीं फैलता है बल्कि इसके लिए विषाणुओं का रक्त से सम्पर्क होना जरूरी होता है। दूषित रक्त और उससे बने रक्त उत्पाद बीमारी फैलाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इस रोग का वाइरस वातावरण में कई दिनों तक जिन्दा रह सकता है, लेकिन उबालने से विषाणु नष्ट हो जाते हैं।

रोग 20 से लेकर 40 वर्ष तक के व्यक्तियों को अपना शिकार अधिक बनाता है। माँ के पेट में पल रहे शिशु और छोटे बच्चों में भी यह रोग होता है। यौन सम्पर्कों से भी रोग हो सकता है। कुछ अधिक खतरे वाले समूह भी होते हैं जिनमें इस रोग के मामले में ज्यादा मिलते हैं।

उदाहरणार्थ – शल्य चिकित्सकों में यकृत-शोथ-बी के मामले बहुत होते हैं। इनको इस रोग का खतरा सामान्य लोगों की अपेक्षा 50 गुना अधिक होता है। इसी तरह बार-बार रक्त ग्रहण करनेवाले रोगी, प्रयोगशालाओं के कर्मचारी, नर्स समलिंगी आदतों वाले लोग, वेश्याएँ, इंजेक्शनों दवारा नशीली दवाइयाँ लेनेवाले व्यक्ति भी अधिक खतरे वाले समूहों में आते हैं।

रोग फैलने के विभिन्न माध्यम :

जैसा कि बतलाया गया है, यह रोग लगभग उन्हीं माध्यमों से फैलता है, जिन माध्यमों से एड्स फैल सकता है। इसके अलावा हेपेटाइटिस-सी भी इन्हीं माध्यमों से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है।

रोग फैलने के तरीके निम्न हैं –

(अ) रक्तवाहिकाओं द्वारा – वास्तव में यह बीमारी रक्तजनित (ब्लड-बन) ही होती है। यदि इस रोग का विषाणुयुक्त रक्त अन्य मरीजों को रक्तदान द्वारा दे दिया जाए तो उसे भी रोग हो सकता है। इसके अलावा डायलिसिस, दूषित सिरिंज, सुइयाँ अथवा दुर्घटनावश सुई चुभने या कटने (शल्य चिकित्सकों के साथ ऐसी घटनाएं हो सकती हैं) से भी संक्रमण हो सकता है।

गुदना गोदने, कर्णछेदन, नाई के उस्तरे या दूषित ब्लेड से भी संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में जा सकता है। रोगी व्यक्ति के टूथ-ब्रश से भी संक्रमण की सम्भावना हो सकती है। गर्भावस्था के दौरान यह रोग माँ से शिशु में भी जा सकता है।

(ब) यौन संपर्क द्वारा – वेश्याओं और समलिंगी यौन आदतों वाले व्यक्ति इस रोग के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। इनमें यौनांगों पर बने घावों द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में विषाणु पहुँच जाते हैं। इस तरह जिनके कई यौन सहभागी होते हैं ऐसे व्यक्तियों को रोग का अधिक खतरा होता है।

(स) अन्य माध्यम – खून चूसनेवाले जन्तुओं (जैसे–मच्छरों, खटमलों) से रोग फैलने की सम्भावना व्यक्त की गई लेकिन इसके प्रमाण नहीं मिले हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार इस रोग का संक्रमण फैलाने के लिए 0.0004 मि.ली. रक्त की मात्रा ही पर्याप्त होती है जबकि एड्स विषाणु का संक्रमण फैलाने के लिए 0.1 मि.ली. रक्त आवश्यक होता है। यह भी माना जा रहा है कि यकृत-शोथ-बी विषाणु एड्स से सौ गुना अधिक संक्रामक होता है।

हेपेटाइटिस-बी के लक्षण (Hepatitis B ke Lakshan in Hindi)

यकृत-शोथ ‘बी’ के क्या लक्षण होते हैं?

  • संक्रमण के 45 से 180 दिन के बीच रोग के लक्षण उभरते हैं।
  • हेपेटाइटिस-बी के लक्षण अन्य यकृत-शोथों जैसे ही होते हैं (यकृत-शोथ-ए के साथ लक्षणों का वर्णन किया गया है, लेकिन इसमें बीमारी पुरानी (क्रॉनिक हेपेटाइटिस) होने पर गम्भीर स्थिति बन जाती है और कुछ मरीजों में यह यकृत कैंसर का रूप धारण कर लेती है। विशेषकर पुरुषों में इस तरह का कैंसर अधिक होता है।

हेपेटाइटिस-बी से बचाव और नियंत्रण :

विषाणुजन्य बीमारी होने के कारण इस रोग का कोई विशेष इलाज नहीं है और रोग कई गम्भीर जटिलताएँ भी उत्पन्न करता है, अतएव रोग से बचे रहना अधिक अच्छा है। सौभाग्य से इस रोग के टीके उपलब्ध हैं। और इन्हें देश के टीकाकरण कार्यक्रम में भी शामिल कर लिया गया है।

(अ) यकृत-शोथ ‘बी’ का टीका (एच. वी. वी. वैक्सीन) – इस तरह के यकृत-शोथ से रक्षार्थ वर्तमान में दो तरह के टीके उपलब्ध हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इन दोनों प्रकार के टीकों को सन्तोषजनक और सुरक्षित पाया है। इनमें एक मानव रक्त के प्लाज्मा से तैयार किया जाता है जबकि दूसरा पैतृक अभियांत्रिकी की सहायता से यीस्ट कोशिकाओं के डी.एन.ए. से बनाया जाता है। इस टीके का फायदा यह है कि इससे मानव प्लाज्मा में पाए जानेवाले अन्य तरह के विषाणुओं से संक्रमण का खतरा नहीं होता। इसके अलावा यह कुछ सस्ता भी है।

किन व्यक्तियों को टीके लगवाने चाहिए ?

  1. वे व्यक्ति जिनको धोखे से या दुर्घटनावश संक्रमित व्यक्ति की रक्तयुक्त सुई चुभ गई हो या ऐसे व्यक्ति का रक्त चढ़ा दिया गया हो।
  2. विषाणु के वाहक व्यक्ति से यौन सम्बन्ध रखने वालों को भी ये टीके लगवाना चाहिए।
  3. शल्य चिकित्सक एवं पैथोलॉजी की प्रयोगशालाओं में कार्य करनेवाले व्यक्तियों को विशेष रूप से टीके लगवा लेने चाहिए।
  4. संक्रमित माँ से पैदा हुए शिशु को भी टीका लगवाना चाहिए।

इस वैक्सीन का ऐसे व्यक्ति पर कोई प्रभाव नहीं होता जो पहले से ही विषाणुओं (एच.बी.एस.ए.जी.) से संक्रमित हो चुके हैं।

अन्य सावधानियाँ और उपाय :

बचाव के लिए उक्त उपायों के अलावा इन बातों का ध्यान भी रखें –

  1. रक्त लेते समय रक्तदाता की जाँच विषाणु के एंटीजन (HBSAG) के लिए अवश्य करवाएँ (इसे आस्ट्रेलिया एंटीजन भी कहते हैं)। यदि जाँच के परिणाम धनात्मक हों तो ऐसा रक्त कदापिन लें।
  2. व्यावसायिक रक्तदाताओं से रक्त न लेकर सगे-सम्बन्धी का रक्तदान में लें।
  3. विषाणु से संक्रमित वाहक व्यक्ति अपने रेजर, टूथब्रश इत्यादि अलग रखें।
  4. बाहर यौन सम्पर्कों के मामलों में सावधानियाँ बरतें, कंडोम का इस्तेमाल करें। समलिंगी आदतों वाले लोग ये आदतें छोड़ ही दें। वेश्याओं को भी उचित सावधानियाँ रखने की जरूरत हैं।
  5. इंजेक्शनों द्वारा नशा लेनेवाले व्यक्ति डिस्पोजेबल सिरिंज का प्रयोग करें या यह नशा छोड़ दें तो बेहतर है।
  6. दाढ़ी स्वयं घर पर बनाएँ अथवा सैलूनों में नए ब्लेड और उचित एंटीसेप्टिक घोल का इस्तेमाल करवाएँ।
  7. आस्ट्रेलिया एंटीजनयुक्त गर्भवती माताएँ होनेवाले बच्चे को रोग का टीका अवश्य लगवाएँ।

हेपेटाइटिस-बी का निदान (Diagnosis of Hepatitis B in Hindi)

हेपेटाइटिस बी का परीक्षण कैसे किया जाता है?

लक्षणों के अलावा आस्ट्रेलिया एंटीजन नामक जाँच से 10-15 मिनट में ही रोग या संक्रमण का पता चल जाता है। लेकिन रोग की पूरी स्थिति जानने के लिए उपयुक्त वर्णित (हेपेटाइटिस ‘ए’ के साथ) सभी जाँचें करवाई जाती हैं।

हेपेटाइटिस-बी का इलाज (Hepatitis B Treatment in Hindi)

हेपेटाइटिस बी का उपचार कैसे किया जाता हैं ?

हेपेटाइटिस ‘ए’ की तरह इस बीमारी का भी विशेष इलाज नहीं है। इस रोग में भी वही सावधानियाँ अपनाते हैं और दवाएँ देते हैं जो हेपेटाइटिस ‘ए’ के साथ उल्लिखित है।

हेपेटाइटिस-बी की जटिलताएँ (Hepatitis B Risks & Complications in Hindi)

हेपेटाइटिस बी की क्या जटिलताएं होती हैं?

  • कई रोगी पूरी तरह ठीक नहीं हो पाते। ये क्रोनिक हेपेटाइटिस के शिकार हो जाते हैं इसके बाद सावधानियाँ न रखी जाएँ तो यकृत की स्वस्थ कोशिकाएँ भी रोगग्रस्त होकर मर जाती हैं जिससे यकृत अपना कार्य नहीं कर पाता।
  • इनके अलावा कुछ मरीज एक बहुत ही गम्भीर स्थिति में पहँच जाते हैं जिसे फल्मिनेटिंग हेपेटिक फेल्योर कहते हैं। इसमें यकृत की बहुत सी कोशिकाएँ (40 प्रतिशत से अधिक) मर जाती हैं। और उसमें व्यपजनन भी हो जाता है।
  • इस स्थिति में रोगी को मतिभ्रम, उन्माद, अर्ध बेहोशी इत्यादि जैसी तकलीफें होती हैं। रोगी का रक्तचाप गिर जाता है।
  • गुर्दे भी काम करना बन्द कर देते हैं।

3). यकृत-शोथ-सी (हेपेटाइटिस-सी / Hepatitis C in Hindi)

hepatitis c ke bare mein jankar

यकृत-शोथ उत्पन्न करनेवाले ‘सी’ प्रकार के विषाणु का पता सन् 1989 में चला है। यह विषाणु भी उन्हीं माध्यमों से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में पहुँचते हैं जिनसे ‘बी’ विषाणु पहुँचता है (जैसे-रक्त एवं रक्त उत्पाद द्वारा इंजेक्शनों के माध्यम से इत्यादि) यह भी अत्यन्त खतरनाक किस्म का रोग है।

हेपेटाइटिस-सी के लक्षण (Hepatitis C ke Lakshan in Hindi)

हेपेटाइटिस सी के क्या लक्षण होते हैं?

  • बीमारी का उदभव काल औसतन 50 दिन होता है अर्थात् संक्रमण के लगभग 50 दिन के भीतर रोग के लक्षण उभरकर आते हैं। इस तरह के यकृत-शोथ के 80 प्रतिशत मरीजों में कोई विशेष लक्षण नहीं मिलते। वे बगैर बीमारी के विषाणुओं के वाहक बने रहते हैं।
  • इनमें यकृत-शोथ का प्रमुख लक्षण पीलिया भी नहीं मिलता।
  • शेष संक्रमितों में ऊपर बतलाए गए लक्षण जैसे – उल्टी की इच्छा, भूख न लगना, पेट के ऊपरी दाएँ हिस्से में दर्द, गहरे रंग की पेशाब आदि मिलते हैं।
  • रक्त में बिलीरुबिन एवं अन्य एंजाइम (जैसे-S.G.O.T., S.G.P.T.) का स्तर बढ़ जाता है।

हेपेटाइटिस सी का निदान (Diagnosis of Hepatitis C in Hindi)

  1. विशेष तरह की जाँच पी.सी.आर. से रक्त में विषाणु का पता लग जाता है।
  2. विषाणु के विरुद्ध रक्त में एंटीबाडीज भी मिलती है।
  3. यकृत के छोटे से टुकड़े की जाँच सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा की जाती है। जिसे बायोप्सी कहते हैं।

हेपेटाइटिस सी का इलाज (Hepatitis C Treatment in Hindi)

हेपेटाइटिस सी का उपचार कैसे किया जाता हैं ?

अल्फा इंटरफेरान इस रोग का सही इलाज है। इससे लगभग 50 प्रतिशत रोगियों को फायदा होता है। लेकिन यह इलाज अत्यन्त महँगा है।

हेपेटाइटिस सी से बचाव एवं रोकथाम (Prevention of Hepatitis C in Hindi)

हेपेटाइटिस ए की रोकथाम कैसे करें?

चूंकि यकृत-शोथ-सी भी उन्हीं माध्यमों से फैलता है, जिन माध्यमों से यकृत-शोथ ‘बी’ फैलता है, इसलिए इससे बचाव के लिए वही सावधानियाँ रखते हैं जो यकृत-शोथ ‘बी’ के लिए रखी जाती हैं।

आजकल सभी शहरों के रक्त कोषों में रक्त देने के पूर्व आस्ट्रेलिया एंटीजन के साथ हेपेटाइटिस-सी वाइरस की भी जाँच की जाने लगी है। य

4). यकृत-शोथ-डी या डेल्टा हेपेटाइटिस (Delta Hepatitis in Hindi)

यह भी नए तरह का यकृत-शोथ है, जो हमेशा यकृतशोथ-बी के साथ ही मिलता है। इस रोग के फैलने के माध्यम और बचाव एवं नियंत्रण के तरीके और टीके वही हैं जो यकृत-शोथ-‘बी’ के लिए होते हैं। यह रोग अभी तक भारत में बड़े पैमाने पर कहीं नहीं पाया गया है।

5). यकृत-शोथ-नॉन ‘ए’, नॉन ‘बी’ (Hepatitis Non A Non B in Hindi)

जैसा कि नाम से विदित है इस रोग का विषाणु ‘ए’ और ‘बी’ विषाणु से सम्बन्धित नहीं होता। अभी इस यकृत-शोथ के पहचानने की कोई विधि विकसित नहीं हो सकी है । इसलिए जब अन्य तरह के यकृत-शोथ की जाँचों के परिणाम ऋणात्मक मिलते हैं तो समझा जाता है कि रोगी को नॉन-‘ए’, नॉन ‘बी’ तरह का यकृत-शोथ है। यह रोग सभी देशों में पाया जाता है।

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