Last Updated on July 18, 2019 by admin
“आपके बच्चे एक बार ही बचपन से गुजरते हैं और इसमें आप पहली बार चूक जाते हैं, तो दूसरा मौका नहीं मिलता।”
-पॉल एजिंगर
माता-पिता बच्चों को पर्याप्त समय दें, क्योंकि बचपन कभी लौटकर नहीं आता। जब हम बच्चे थे, तब हमारा हमारे स्वास्थ्य पर नियंत्रण नहीं था। बच्चों के लम्बे स्वास्थ्य की नींव माता-पिता के पालन-पोषण पर निर्भर करती है। यदि माता-पिता ठीक से लालन-पालन करते हैं, तो बड़ा होकर बच्चा एक स्वस्थ और हृष्ट-पुष्ट इंसान बनता है। यदि अभिभावकों ने पालन-पोषण में कुछ कमी अथवा गलतियाँ कीं तो इसका हर्जाना बच्चों को जीवनभर भुगतना पड़ता है इसलिए अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चे की स्वास्थ्य की मजबूत नींव रखें।
❉ गर्भावस्था में भरपूर पोषक आहार लें, किसी प्रकार की कोई डाइटिंग नहीं और न ही कोई हानिकारक खाद्य अथवा पेय का सेवन करें और व्यसन का तो प्रश्न ही नहीं उठता।
❉ नवजात शिशुओं की कुछ सामान्य समस्याएँ होती हैं, जिन्हें हम रोग समझ लेते हैं, जबकि ये समस्याएँ स्वत: कुछ दिनों में या महीनों में ठीक हो जाती हैं। इनमें प्रमुख हैं :
- सर पर नर्म फोन्टेनल या डायमण्ड का होना।
- मुड़ी हुए टाँगें होना।
- जन्म के दो या तीन दिन में पीलिया होना।
- नाभि का हर्निया।
- बर्थमार्क्स।
- नवजात के स्तनों में सूजन या दूध का आना।
❉ शिशु के जन्म लेते ही उसे माता या पिता अपनी छाती या सीने से लगा लें (हृदय के नज़दीक)। ऐसा करना शिशु को एक मानसिक संबल देता है तथा जो उससे दुनिया में सबसे पहले मिलता है उससे उसका जीवन भर एक अद्भुत रिश्ता बन जाता है।
❉ शिशु को छ: माह तक केवल माँ का दूध ही पिलाएँ, माँ के दूध का इस धरती पर कोई विकल्प नहीं है और प्रसव के बाद गहरा गाढ़ा दूध जिसे कॉलेस्ट्रम (Colostrum) कहते हैं, अवश्य पिलाएँ।
❉ स्तनपान के समय माता अनावश्यक दवाओं का सेवन न करे, तथा इस समय भी माता भरपूर पोषक आहार ले। यदि किसी कारणवश शिशु को ऊपर का दूध पिलाना ही पड़े, तो वह दूध तथा दूध पिलाने
के लिए उपयोग किए जाने वाले बर्तन साफ तथा संक्रमण मुक्त हों।
❉ पशुओं के दूध में कई पोषक तत्वों की कमी होती है, विशेषत: विटामिन ‘सी’ की। विटामिन ‘सी’ की कमी के कारण पशुओं का दूध पीने वाले बच्चे एनीमिया और रोग-प्रतिरोधक क्षमता की कमी की समस्या से जूझते रहते हैं।
❉ यदि चार से छ: माह के बीच माँ महसूस करे कि शिशु दूध पीने के बाद भी भूखा रह रहा है, अर्थात् स्तनपान शिशु के लिए पर्याप्त नहीं है, तो फिर ऊपर का दूध या कोई तरल आहार देना आरंभ करें।
❉ छ: माह की आयु में शिशु को चावल, दाल का सूप, खिचड़ी आदि देना प्रारंभ करें।
❉ जब शिशु के दाँत निकलने लगें, तो उसे कुछ ठोस या अर्द्धठोस आहार देना प्रारंभ करें।
❉ शिशु को चीनी की मीठी वस्तुओं का अधिक सेवन न कराएँ, इससे उसके दाँत, हड्डियाँ एवं मस्तिष्क पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा।
❉ मिठाई, चॉकलेट, आइसक्रीम, टॉफी, कोल्ड ड्रिंक एवं अन्य जंक फूड से बच्चों को दूर रखें।
❉ शिशु के खिलौने ऐसे न हों कि उनसे कोई चोट अथवा आघात लगने का डर हो। खिलौने हमेशा ऐसे हों जिन्हें धोया जा सके या साफ रखा जा सके।
❉ खिलौने हमेशा रचनात्मक (Creative) ज्ञान बढ़ाने वाले हों क्योंकि खिलौने बच्चे की मानसिकता को निर्धारित करते हैं। बच्चे हमेशा नकल करते हैं, इसलिए आप हमेशा उनके सामने एक आदर्श मिसाल पेश करें क्योंकि जार्श बिलिंग्स ने कहा था बच्चे को उस दिशा में जाने का प्रशिक्षण दें जिधर उसे जाना चाहिए और यदा-कदा वहाँ खुद भी जाएँ।”
❉ अभिभावक घर में सकारात्मक माहौल बनाए रखें क्योंकि माहौल का बच्चों के स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
❉ बच्चों के साथ रिश्तों की मजबूत बुनियाद बनाएँ। यहाँ जॉर्श मेक्डॉवल का कथन विचारणीय है “अगर हम बच्चों को कुछ सिखाते हैं, लेकिन हमारे बीच संबंध की बुनियाद नहीं होती तो बच्चे विद्रोह कर देंगे, दूसरी तरफ यदि हम संबंधों की बुनियाद मज़बूत बना लेते हैं तो वही बच्चे हमारे लिए जान दे देंगे।”
❉ बच्चों को बात-बात पर दवाएँ न खिलाएँ, इससे उसे दवाइयों के दुष्परिणाम तो होंगे ही, साथ ही उसकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी नष्ट होती जाएगी।
❉ बच्चों का नाश्ता स्कूल के समय के कारण अक्सर छूट जाता है, ऐसे में अभिभावकों का दायित्व है कि वह उनके नाश्ते का पूरा-पूरा ध्यान रखें और उन्हें भूखा न रखें।
❉ बच्चे को तेल की मालिश करें, हो सके तो रोजाना या सप्ताह में कम से कम एक बार अवश्य और विशेषत: रीढ़ के हिस्से की।
कई माँएं अपने बच्चों को मेरे पास लेकर आती हैं तथा बाजारों में मिलने वाले फूड सप्लीमेंट्स या एनर्जी ड्रिंक्स के बारे में पूछती हैं। मेरा उनसे सवाल होता है कि आप यह सप्लीमेंट्स या डिंक क्यों देना चाहती हैं? जिसके उत्तर में वह शिशु के शरीर एवं मस्तिष्क के उत्तम विकास की दुहाई देती हैं। वास्तव में यह छवि उन सप्लीमेंट्स के विज्ञापनों द्वारा बनाई जाती है। मेरा उत्तर होता है कि जिस व्यक्ति से आप अभी सलाह ले रही हैं यानि मैं और मुझे आप ज्ञानी भी समझ रही हैं और मेरे माता-पिता ने मुझे कभी भी इन सप्लीमेंट्स व ड्रिंक्स का सेवन नहीं कराया और मुझे विश्वास है कि आइंस्टीन के माता-पिता ने भी उन्हें ऐसे किसी सप्लीमेंट्स का सेवन करवाकर वैज्ञानिक नहीं बनाया होगा। तो आपको भी चाहिए कि आप विज्ञापनों के छद्म आभाओं से स्वयं को व शिशु को दूर ही रखें क्योंकि विज्ञापन की रंगीन दुनिया में ऐसा दिखाया जाता है कि उनके उत्पाद का सेवन करके ही आपका शिशु परम् ज्ञानी और परम् शक्तिशाली बन पाएगा, लेकिन वास्तविकता में आज के बच्चे मानव इतिहास के सबसे कमजोर बच्चे हैं।
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