Last Updated on November 25, 2019 by admin
अमृतारिष्ट क्या है ? : Amritarishta in Hindi
अमृतारिष्ट एक बहुत ही प्रभावशाली आयुर्वेदिक औषधि है जिसका उपयोग बुखार ,टाइफाइड ,श्वसन तंत्र, जोड़ों ,पाचन तंत्र ,दुर्बलता ,एनीमिया सहित कई अन्य व्याधियों के उपचार के लिए किया जाता है।
आयुर्वेद में, किसी भी योग का नाम, उसके प्रमुख घटक-द्रव्य के नाम पर रखने की परम्परा है। अमृतारिष्ट का प्रमुख घटक-द्रव्य है अमृता यानी गिलोय , इसलिए इस योग का नाम अमृतारिष्ट रखा गया है। आयुर्वेद ने गिलोय की बहुत प्रशंसा की है। अब अमृता से बनी अमृतारिष्ट के विषय में विवरण देना शुरू करते हैं।
अमृतारिष्ट के घटक द्रव्य : Amritarishta Ingredients in Hindi
✦ गिलोय – 1 किलो
✦ दशमूल – 1 किलो
✦ गुड़ – 3 किलो
✦ जीरा – 60 ग्राम
✦ पित्तपापड़ा – 20 ग्राम
✦ सतोना (सप्तपर्ण) की छाल – 10 ग्राम
✦ काली मिर्च –10 ग्राम
✦ सोंठ – 10 ग्राम
✦ पीपल – 10 ग्राम
✦ नागरमोथा – 10 ग्राम
✦ नागकेसर – 10 ग्राम
✦ अतीस – 10 ग्राम
✦ कुटकी – 10 ग्राम
✦ इन्द्र जौ – 10 ग्राम
अमृतारिष्ट बनाने की विधि :
गिलोय और दशमूल के द्रव्यों को मोटा मोटा (जौ कुट) कूट लें और आठ लिटर पानी में डाल कर इतनी देर उबालें कि पानी टूट कर दो लिटर बाकी रह जाए। इसे ठण्डा करके, मसलते हुए, मोटे कपड़े से छान लें और तीन किलो गुड़ मसल कर डाल दें। अन्य सभी 11 द्रव्य भी कूट पीस कर इसी में डाल दें, अब इस मिश्रण को चीनी मिट्टी के बर्तन में डाल कर ढक्कन लगा दें और कपड़ मिट्टी करके ढक्कन को एयरटाइट ढंग से बंद कर दें। इसे 30 दिन तक ऐसे ही रखा रहने दें, फिर 30 दिन बाद ढक्कन खोल कर इसे बॉटलों में भर लें। यही अमृतारिष्ट है।
उपलब्धता : Availability of Amritarishta
यह योग आसानी से, आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता की दूकान पर बना-बनाया बाजार में सब जगह मिलता है।
अमृतारिष्ट की सेवन विधि : Dosage of Amritarishta
वयस्क स्त्री-पुरुष 4-4 चम्मच और बच्चे 2-2 चम्मच मात्रा में, आधा कप पानी में डाल कर, भोजन के बाद दोनों वक्त पिएं।
अमृतारिष्ट के उपयोग : Amritarishta Uses in Hindi
☛ इस योग का उपयोग उदर की व्याधियों और सब प्रकार के ज्वरों की चिकित्सा में किया जाता है।
☛ अमृतारिष्ट अपच, मन्दाग्नि, यकृत (लिवर) की कमज़ोरी आदि उदर रोगों को दूर करता है ।
☛ यह जीर्णज्वर, शीतज्वर पित्त प्रधान ज्वर, विषम ज्वर, मियादी ज्वर तथा अन्य ज्वरों को दूर करने वाला उत्तम आयुर्वेदिक योग है।
☛ अमृतारिष्ट ज्वर और ज्वर के प्रभाव से उत्पन्न हुई शारीरिक निर्बलता को दूर करने वाला उत्तम योग है।
☛ किसी भी प्रकार के ज्वर की चिकित्सा में अमृतारिष्ट का सेवन बेखट के कराया जा सकता है।
☛ यह योग रुधिर के विकारों को बहुत अच्छी तरह से निकाल फेंकता है।
☛ तेज बुखार में भी इसका सेवन कराया जा सकता है।
☛ इसे बच्चे, जवान प्रौढ़, वृद्ध, स्त्री-पुरुष और गर्भवती स्त्री सब सेवन कर सकते हैं।
रोग उपचार में अमृतारिष्ट के फायदे : Amritarishta Benefits in Hindi
अपच और मन्दाग्नि में अमृतारिष्ट के प्रयोग से लाभ (Amritarishta Benefits in Dyspepsia Treatment in Hindi)
अपच और मन्दाग्नि दूर कर पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए अमृतारिष्ट का सेवन बहुत हितकारी होता है, क्योंकि इसके सेवन से आमाशय में पाचक रसों का स्राव उचित मात्रा में होने लगता है, जिससे पाचन क्रिया ठीक काम करने लगती है अर्थात अपच की स्थिति खत्म हो जाती है। भूख खुल कर लगने लगती है। यकृत को बल मिलता है, रंजकपित्त का स्राव अच्छी मात्रा में होने लगता है जिससे रक्त में रक्तकणों की वृद्धि होती है और हिमोग्लोबिन की कमी दूर होती है, रक्ताल्पता (एनीमिया) की स्थिति खत्म होती है यानी हिमोग्लोबिन सामान्य स्थिति तक बढ़ जाता है, इससे मुखमण्डल की निस्तेजता दूर होती है और चेहरा चमकने लगता है।
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शरीर को पुष्ट और बलवान बनता है अमृतारिष्ट का प्रयोग (Benefit of Amritarishta to Boost Strength in Hindi)
पाचक अंगों में आमाशय के अलावा यकृत (लिवर) को अमृतारिष्ट के सेवन से बल मिलता है, पित्त स्राव भलीभांति होने लगता है, लिवर अपना काम ठीक से करने लगता है, जिससे यकृत जन्य व्याधियां भी ठीक होती हैं। इसके सेवन से जब पाचन शक्ति प्रबल हो जाती है तो खाया पिया अंग लगने लगता है और शरीर में रक्त, मांस, बल आदि की वृद्धि होने लगती है जिससे शरीर सुडौल, पुष्ट और बलवान बनता है।
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बुखार में लाभकारी है अमृतारिष्ट का सेवन (Amritarishta Uses in Fever in Hindi)
ज्वरों का नाश करने में सहायक यह औषधि सब प्रकार के ज्वरों के लिए महान औषधि है कुछ दिन तक ज्वर न रह कर पुनः – पुनः उलट कर आने वाला ज्वर भी इस योग के सेवन से ठीक हो जाता है।
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खून की कमी दूर करने में अमृतारिष्ट का उपयोग फायदेमंद (Amritarishta Benefits in Anemia in Hindi)
जीर्ण ज्वर लम्बे समय तक बना रहता है जिससे प्लीहा (Spleen) वृद्धि हो जाती है, पाचक अग्नि मन्द हो जाती है जिससे शरीर में रस रक्त आदि धातुओं का न तो ठीक से निर्माण होता है और न उचित वृद्धि-विकास ही होता है इसलिए शरीर में रक्त की कमी होने लगती है और पाण्डु रोग (एनीमिया) हो जाता है। यकृत-प्लीहा की वृद्धि हो जाने पर पित्त स्राव अनियमित हो जाता है अतएव पेट में दर्द होना, आवाज़ होना, भारी पन होना आदि लक्षणों के अलावा अपच की स्थिति बन जाती है और पतले दस्त होने लगते हैं। ये सभी उपद्रव ज्वर के प्रभाव से ही होते हैं। ऐसी स्थिति में अमृतारिष्ट का सेवन करना अति लाभकारी होता है। यह पाचक पित्त को उत्तेजित और नियमित कर पाचन क्रिया को सुधारता और भूख बढ़ाता है। रंजक पित्त की गति सुधार कर रक्त कणों की वृद्धि करता है जिससे हिमोग्लोबिन काउण्ट सामान्य स्थिति पर आ जाता है और रक्ताल्पता (एनीमिया) की स्थिति समाप्त हो जाती है।
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तिल्ली (प्लीहा) वृद्धि में अमृतारिष्ट के सेवन से लाभ (Amritarishta Benefits in Pliha Enlargement in Hindi)
अधिक दिनों तक जाडा लग कर आने वाले ज्वर को भी अमृतारिष्ट का सेवन कर भगाया जा सकता है । इस अवस्था में भी यकृत और प्लीहा की वृद्धि हो जाती है और ऊपर बताये गये उपद्रव पैदा हो जाते हैं। इन उपद्रवों का नाश करने के लिए अमृतारिष्ट अमृत के समान काम करता है। इसके साथ आधा चम्मच महासुदर्शन चूर्ण फांक कर लेने से सब प्रकार के ज्वर शीघ्र दूर होते हैं। संक्रामक प्रभाव से होने वाला ज्वर भी ठीक हो जाता है।
महिलाओं के प्रसूति ज्वर में अमृतारिष्ट का उपयोग फायदेमंद (Amritarishta Uses to Cure Puerperal Feve in Hindi)
अमृतारिष्ट स्त्री-पुरुषों के उदर विकार और सब प्रकार के ज्वरों की अक्सीर दवा तो है ही पर विशेष कर सिर्फ़ स्त्रियों को ही होने वाले प्रसूति ज्वर, जिसे सूतिका ज्वर या सूतक रोग भी कहते हैं, को भी दूर करने की उत्तम दवा है। प्रसूता स्त्री द्वारा प्रसवकाल के दौरान की गई बदपरहेज़ी और आहार-विहार की लापरवाही के कारण यह व्याधि होती है इसलिए इसे प्रसूति ज्वर या सूतिका ज्वर कहते हैं। रक्त में व्याप्त सूतिका-विष को नष्ट करने के लिए इसके साथ प्रतापलंकेश्वर रस, आधा ग्राम मात्रा में, शहद व अदरक के रस में मिला कर प्रसूता को देना चाहिए। सूतिका ज्वर में दशमूलारिष्ट भी देते हैं लेकिन पित्त प्रधान ज्वर में- जिसमें हाथ पैरों में जलन होती हो, पेट में जलन होती हो, प्यास ज्यादा लगती हो, चक्कर आते हों, शीतलता और शीतल पदार्थ अच्छे लगते हों और ज्वर की गर्मी से शरीर तपता हो तो ऐसी स्थिति में अमृतारिष्ट का ही सेवन कराना चाहिए क्योंकि यह ज्वर नाशक होने के साथ ही पौष्टिक और पित्त शामक भी होता है इसलिए प्रसूति ज्वर से ग्रस्त व पीड़ित महिलाओं के लिए भी अमृतारिष्ट का सेवन हितकारी होता है।
बहुमूत्र रोग में अमृतारिष्ट से फायदा (Amritarishta Benefits to Cure Urine Problem in Hindi
इन व्याधियों के अलावा अमृतारिष्ट प्रमेह और बहुमूत्र रोग को भी उखाड़ फेंकता है। इस योग का प्रमुख घटक द्रव्य गिलोय है जिसे अमृत के समान गुणकारी होने से संस्कृत में अमृता भी कहा है इसीलिए इस योग का नाम अमृतारिष्ट रखा गया है। गिलोय के सब उत्तम गुण अमृतारिष्ट में होते हैं। मूत्राशय की कमज़ोरी के कारण बार-बार पेशाब होने की शिकायत भी इसके सेवन से दूर हो जाती है। सुज़ाक या उपदंश के रोगी को भी अमृतारिष्ट का सेवन करने से आराम होता है।
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पेट के रोगों में लाभकारी है अमृतारिष्ट का सेवन (Amritarishta Uses in Stomach Disease in Hindi)
जिनको ज्वर न हो सिर्फ़ उदर विकार हों. पित्त कुपित रहता हो यानी एसिडिटी बनी रहती हो, भूख कम लगती हो, पाचन क्रिया ठीक से न होती हो, शरीर दुबला पतला हो, गैस बनती हो तो वे भी अमृतारिष्ट का सेवन 2 से 3 माह तक करें, अवश्य ही सब शिकायतें दूर हो जाएंगी।
इतना विवरण पढ़ कर आप यह तो समझ ही गये होंगे कि अमृतारिष्ट ‘यथा नाम तथा गुण’ अमृत के समान गुणकारी और लाभकारी है। आजकल ये सभी व्याधियां आम तौर पर, ज्यादातर स्त्री पुरुषों को होती देखी ही जाती हैं इसीलिए हमने इन सभी व्याधियों को नष्ट करने वाले इस उत्तम आयुर्वेद योग अमृतारिष्ट का विशद परिचय आपकी जानकारी के लिए प्रस्तुत किया है।
अमृतारिष्ट के नुकसान : Amritarishta Side Effects in Hindi
1- अमृतारिष्ट लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
2- अमृतारिष्ट को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।