अंत: स्रावी ग्रंथियां उनके प्रकार महत्व और कार्य | Antah Sravi Granthi in Hindi

Last Updated on December 20, 2019 by admin

अंत: स्रावी ग्रंथियां क्या होती है ? : Endocrine Glands in Hindi

जैसे वृक्ष का आधार उसकी जड़ें एवं मकान का आधार उसकी नींव होती है, ठीक उसी प्रकार जीवन के सफल संचालन में हमारी अन्तःस्रावी ग्रंथियों का योगदान है। जड़ एवं नींव बाह्य रूप से न दिखने के बावजूद वृक्ष के विकास एवं मकान की सुरक्षा हेतु आवश्यक हैं, ठीक उसी प्रकार प्रत्यक्ष रूप से न दिखने के बावजूद हमारे शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक गतिविधियों के संचालन में ग्रंथियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

हम क्या हैं और क्यों हैं ? हमारे स्वभाव, प्रवृत्तियों, क्रियाओं एवं प्रतिक्रियाओं का संचालन और नियन्त्रण कौन कर रहा है? हमारे शरीर का, नियन्त्रित और समयबद्ध विकास ही क्यों और कैसे होता है? निश्चित अवधि के पश्चात् अंगों के विकास एवं वृद्धि में क्यों स्थिरता आ जाती है? कुछ व्यक्ति क्रोधी, क्रूर, हिंसक, अशान्त, चिड़चिड़े, हताश,भयभीत, असंवेदनशील, निराशावादी होते हैं तो बहुत से व्यक्ति स्वभाव में शान्त, प्रसन्न, हंसमुख, आशावादी, संवेदनशील करुणाशील, निडर, निर्भय, आत्म-विश्वासी क्यों होते हैं ?

एक ही अध्यापक से शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों में कोई मन्दबुद्धि वाला तो कोई प्रखर पण्डित, विद्वान, ज्ञानी कैसे बन जाता है ? एक ही परिस्थिति में कार्य करने वाले सभी व्यक्तियों में नेतृत्व की क्षमता एक सी क्यों नहीं होती है ? कोई साधारण खुराक खाने के बावजूद मोटा एवं तगड़ा होता है तो बहुत से व्यक्ति खाने-पीने में पूर्ण विवेक रखने तथा अच्छी खुराक लेने के बावजद अपेक्षाकत दबले-पतले ही क्यों रह जाते हैं ? कभी-कभी कुछ व्यक्ति बहुत बोने तो चन्द व्यक्ति अत्यधिक लम्बे क्यों हो जाते हैं ?

ऐसे सैकड़ों प्रश्नों का समाधान ग्रंथियों की कार्य प्रणाली एवं नियन्त्रण की क्षमता को जानने से हो जाता है। ग्रंथियों के बराबर कार्य न करने से 75 प्रतिशत से 90 प्रतिशत रोगों के पनपने की सम्भावना रहती है अथवा यूं कहिये कि रोगों का प्रमुख कारण ही यह है। ग्रंथियों को सुव्यवस्थित व सन्तुलित किये बिना लाख प्रयास करने के बावजूद हम पूर्णतया रोग मुक्त नहीं हो सकते अतः जो चिकित्सा पद्धतियां ग्रंथियों को सरल ढंग से ठीक करने की क्षमता रखती हैं, वे ही व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ रख सकती हैं, फिर वे चाहे ध्यान, स्वाध्याय अथवा एक्यूप्रेशर या अन्य विधि ही क्यों न हों ? जो चिकित्सा पद्धति इस तथ्य की उपेक्षा करती है वह अधिकांश रोगों के कारणों को दूर करने में सक्षम नहीं है अतः ऐसी चिकित्सापद्धति को पूर्ण चिकित्सा कैसे माना जा सकता है ?

ग्रंथियों को प्रभावित करने वाले तथ्य प्रत्येक विचार, चिन्तन, मनन, क्रिया, प्रतिक्रिया हमारी ग्रंथियों को प्रभावित करती है। ग्रंथियां हमारे स्वास्थ्य की निर्माता हैं। इनमें सक्रियता, सन्तुलन, सहयोग और समन्वय की स्थिति स्वास्थ्य की सूचक है तथा इसके विपरीत निष्क्रियता, असन्तुलन, असहयोग की स्थिति बीमारी का द्योतक है। तनाव, चिन्ता, भय, निराशा, आवेग, क्रोध, अहम्, माया, लोभ आदि पाश्विक वृत्तियों से ग्रंथियां खराब हो जाती हैं इसीलिए हमारे ऋषि मनीषियों ने तनावमुक्त, आनन्दमय, सचिन्तन युक्त जीवन जीने, शुभ कार्यों में प्रवृत्ति करने, राग एवं द्वेष को कम करने तथा संयमित विवेकपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा दी। क्षण मात्र का भी प्रमाद न करने का निर्देश दिया। हमारे अधिकांश रीति-रिवाज़ों, परम्पराओं, त्योहारों एवं अनुष्ठानों के पीछे भी प्रतिकूल परिस्थितियों में उत्पन्न दुःख को भुला कर, आनन्दमय जीवन जीने का उद्देश्य रहा है, जिससे हमारी ग्रंथियां खराब न हों, परन्तु आज हम आधुनिकता के नाम पर उनके महत्त्व को भुला कर उन्हें छोड़ते जा रहे हैं, फलतः हमारी ग्रंथियां प्रायः स्वस्थ नहीं रह पा रही हैं।

ग्रंथियां मस्तिष्क की कार्य प्रणाली, चिन्तन, संकल्प, संवेदनाओं आदि शारीरिक एवं मानसिक क्रियाओं तथा प्रतिक्रियाओं के संचालन में सहयोग करती हैं, हमें अपने सुख-दुःख, भला-बुरा, सहीग़लत का विवेक जगाने की क्षमता प्रदान करती हैं और हमारे जीवन की गतिविधियों, ऊर्जा, स्थिरता, व्यक्तित्व, हलन-चलन, विकास, व्यवस्था का नियन्त्रण करती हैं। दवाइयों के अत्यधिक सेवन से प्राय ग्रंथियां निष्क्रिय हो जाती हैं, जिससे शरीर की अंवरोधक क्षमता / प्रतिकारात्मक शक्ति घटने लगती है।

antah sravi granthi ke prakar kaary aur mahatv

शरीर में अंतः स्रावी ग्रंथियों के कार्य : How Does Endocrine Glands Work in the Body in Hindi

जिस प्रकार मधु मक्खी फलों का रस संचय कर उसमें अपना स्लाइवा(लार ) मिला कर मधु बनाती है उसी प्रकार ग्रंथियां शरीर में से आवश्यक तत्त्व ग्रहण कर उसमें अपना रस मिला कर रासायनिक कारखानों की भांति शक्तिशाली हारमोन्स का निर्माण करती हैं। प्रत्येक ग्रंथि आवश्यकतानुसार एक या उससे अधिक हारमोन्स बनाती है जिनकी तरंगें नाड़ी संस्थान के माध्यम से आकाशवाणी की भांति प्रसारित हो कर शरीर के प्रत्येक भाग में शीघ्र पहुंचने की क्षमता रखती हैं। ये हारमोन्स, हमारे शरीर में प्रतिक्षण निष्क्रिय होने वाले मृतप्रायः कोशिकाओं को पुनर्जीवित कर क्रियाशील बनाने का कार्य करते हैं जिससे सभी शारीरिक क्रियायें व्यवस्थित रूप से चलती रहें।

सभी ग्रंथियां केन्द्रीय मन्त्री मण्डल की भांति सामूहिक ज़िम्मेदारी से कार्य करती हैं। किसी एक ग्रंथि के खराब अथका निष्क्रिय होने का प्रभाव अन्य ग्रंथियों के कार्यों पर भी पड़ता है। एक्यूप्रेशर पद्धति द्वारा इन ग्रंथियों के हथेली एवम् पगथली में स्थित संवेदनशील बिन्दुओं पर उचित दबाव दे कर इनकी कार्य प्रणाली को व्यवस्थित/नियन्त्रित कर हमारी जीवन पद्धति में सभी प्रकार का परिवर्तन लाया जा सकता है, मानवीय गुणों का विकास किया जा सकता है, बुरी आदतों एवम् पाशविक वृत्तियों से छुटकारा पाया जा सकता है।

अंतः स्रावी ग्रंथियों के प्रकार और उनके कार्य : Types of Endocrine Glands and Their Function in Hindi

हमारे शरीर में 8 प्रमुख अन्तःश्रावी ग्रंथियां हैं। 1. पीयूष 2. पिनियल 3. थायराइड 4. पेराथायराइड 5. थायमस 6. एड्रीनल 7. पेंक्रियाज 8. प्रजनन ।

पीयूष ग्रंथि (Pituitary Gland in Hindi) :

पीयूष ग्रंथि कहाँ होती है ? (piyush granthi kha hoti hai)

पीयूष ग्रंथि सबसे प्रमुख ग्रंथि है। सिर में मस्तिष्क के नीचे स्थित इस ग्रंथि का आकार मटर के दाने से भी छोटा होता है।

पीयूष ग्रंथि को मास्टर ग्रंथि क्यों कहते हैं ? (piyush granthi ko master granthi kyun kehte hain)

पीयूष ग्रंथि सभी ग्रंथियों की नेता (मास्टर ग्लैण्ड) अथवा संचालक है। पीयूष ग्रंथि को मास्टर ग्रंथि इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसका स्राव अन्य ग्रंथियों को उत्तेजित करता है ताकि वे अपना-अपना निर्धारित कार्य बराबर कर सकें ।

पीयूष ग्रंथि का काम ? (piyush granthi ka kya karya hai)

  • यह ग्रंथि शरीर के आन्तरिक हलन-चलन, स्फूर्ति, ह्रदय की धड़कन, संवेदनशील नाड़ियों, शरीर के तापक्रम एवम् शक्कर की मात्रा को नियन्त्रित करती है। शरीर के विकास में इसका महत्वपूर्ण योगदान है।
  • यदि बाल्यावस्था में यह ग्रंथि अधिक सक्रिय हो जाती है तो बालक अपेक्षाकृत अधिक लम्बा हो जाता है और अगर यह ग्रंथि शिथिल अथवा कम सक्रिय हो तो बच्चे का क़द पूरी तरह विकसित नहीं हो पाता और वह बोना रह जाता है।
  • यह ग्रंथि बालों और हड्डियों के विकास को सन्तुलित रखती है।
  • मानसिक प्रतिभा, रक्त के दबाव, प्रजनन अंगों के विकास पर इस ग्रंथि का गहरा प्रभाव पड़ता है।
  • स्त्रियों में प्रसूति के समय गर्भाशय में लचीलापन आना तथा स्तनों में दूध का नियन्त्रण इसी ग्रंथि द्वारा होता है।

पीयूष ग्रंथि के रोग ? (piyush granthi ke rog in hindi)

  • यदि यह ग्रंथि बराबर कार्य न करे तो कमज़ोरी, अधिक प्यास लगना, अधिक पेशाब आना, बालों का झड़ना, समय से पूर्व सफ़ेद होना, गंजापन, मानसिक विकास का अवरुष्ट होना, स्मरण शक्ति बराबर न होना आदि रोग हो सकते है।
  • यह ग्रंथि हमारी जीवन पद्धति, प्रवृत्तियों, स्वभाव, मनोवृत्तियों को नियन्त्रित करती है।
  • झूठ बोलने वालों, शरारती लोगों चोरों, घमण्डी, क्रोधी, दुराचारी, पागल व्यक्तियों की यह ग्रंथि बराबर कार्य नहीं करती है।
  • अधिकांश आत्महत्याओं का कारण इसका असन्तुलन होता है। यह ग्रंथि व्यक्ति को तनावमुक्त, प्रसन्न, उत्साहित, समभावी, पारस्परिक प्रेम सम्बन्ध बनाये रखने में बहुत महत्वपूर्ण है।
  • इसमें सूजन आ जाने से हृदय की धड़कन बढ़ जाती है, आंखें बाहर आने लगती हैं एवम् शरीर कमज़ोर होने लगता है।
  • इसके अधिक सक्रिय होने पर व्यक्ति वाचाल, अस्थिर, बात-बात में स्वभाव (मूड) बदलने वाला, अत्यधिक संवेदनशील, पैनी दृष्टि वाला होता है तथा इससे बाल चमकीले एवम् त्वचा गर्म रहने लगती है।

पिनियल ग्रंथि (Peneal Gland in Hindi) :

पिनियल ग्रंथि कहाँ होती है ? (pineal granthi kaha hoti hai)

यह ग्रंथि मस्तिष्क के पीछे स्थित होती है जिसका आकार राई के दाने से भी छोटा होता है जिसको वैज्ञानिक आज तक नहीं देख पाये।

पिनियल ग्रंथि का काम ? (pineal granthi ke karya)

  • पिनियल ग्रंथि भले छोटी हो पर यह ग्रंथि प्रधान सचिव की भांति शरीर की व्यवस्था एवम् गतिविधियों के संचालन का कार्य करती है।
  • सभी ग्रंथियों एवम् अवयवों को सन्तुलित रखना, उनका विकास करना एवम् आवश्यक कार्य करवाना इसके अधीन है।
  • संकट से बचने के लिए आवश्यक निर्देश देना एवम् शीघ्र क्रियान्वित कराना इसका प्रमुख कार्य है। यह कामेच्छा को जागृत करती है एवम् निर्णयात्मक शक्ति को नियन्त्रित करती है।
  • यदि यह ग्रंथि बराबर कार्य न करे तो व्यक्ति अस्थिर हो जाता है एवम् उसकी निर्णयात्मक तथा नेतृत्व क्षमता कम हो जाती है जिससे समय पर सही निर्णय नहीं ले पाता।
  • इसको प्रकृति की तीसरी आंख कहते हैं।
  • यह ग्रंथि शरीर में पोटेशियम, सोडियम एवम् पानी के प्रमाण को सन्तुलित रखती है

पिनियल ग्रंथि के रोग ? (pineal granthi ke rog in hindi)

जब यह ग्रंथि बराबर कार्य न करे तो शरीर गुब्बारे की भांति फूल सकता है एवम् गुर्दे बराबर कार्य नहीं करते।

थायरॉइड ग्रंथि (Thyroid Gland in Hindi) :

थायरॉइड ग्रंथि कहाँ होती है ? (thyroid granthi kaha par hoti hai)

यह ग्रंथि गहरे लाल रंग की होती है और कण्ठ के नीचे गले की जड़ में दो भागों में विभक्त होती है।

थायरॉइड ग्रंथि ग्रंथि का काम ? (thyroid granthi ke karya)

  • थायरॉइड ग्रंथि का पाचन क्रिया से सीधा सम्बन्ध होता है ।
  • यह भोजन को रक्त, मांस, मज्जा, हड्यिों एवं वीर्य में बदलने में सहयोग करती है।
  • इसका प्रजनन अंगों से सीधा सम्बन्ध हैं जिससे कामेच्छा को गति देने एवम् प्रजनन अंगों को स्वच्छ रखने तथा मासिक धर्म को नियन्त्रित करने का काम करती है।
  • पेशाब रोकने की क्षमता का नियन्त्रण करना, आक्सीजन के उपयोग को नियन्त्रित तथा कार्बन डाई आक्साइड के निष्कासन को प्रभावित करती है।
  • शरीर के सभी अंगों को, शक्ति उत्पन्न करने के आवश्यक स्राव भेजना, श्वसन का संचालन, शरीर में कैल्शियम, आयोडिन, तथा कोलेस्टेरोल पर नियन्त्रण रखती है जो हड्डियों के विकास, घाव भरने एवम् रक्त के प्रवाह को नियन्त्रिण करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • आवाज का नियन्त्रण (मधुर, मोटी, पतली, तेज, धीमी आदि) ।
  • स्वभाव का नियन्त्रण जैसे फुर्तीला अथवा आलसी, क्रूर अथवा दयावान, अधीर या धैर्यवान, उत्सुक अथवा उदासीन आदि इससे सम्बन्धित है।
  • यह ग्रंथि दाम्पत्य एवम् पारिवारिक जीवन में विशेष महत्त्व रखती है। क्योंकि से पति-पत्नी, जिनकी ये ग्रंथियां एक दूसरे से विपरीत होती हैं, अर्थात एक की सक्रिय एवम् दूसरे की अपेक्षाकृत निष्क्रिय हो तो उनसे स्वभाव में तालमेल बैठना कठिन होता है।
  • यह ग्रंथि शरीर के मोटापे और वज़न पर नियन्त्रण रखने का काम करती है।

थायरॉइड ग्रंथि के रोग ? (thyroid granthi ke rog)

  • थायरॉइड ग्रंथि का कार्य स्पार्क जनरेटर अथवा स्टोरेज बैटरी के समान होता है। यदि हम हमारी बैटरी को जल्दी डिसचार्ज कर देते हैं तो हमें थकावट का अनुभव होने लगता है एवम् वज़न बढने लगता है परन्तु यदि उसको ओवरचार्ज करते हैं तो व्यक्ति हतोत्साहित, चिड़चिड़ा, कमज़ोर, एवम् दुबला होने लगता है। इसके स्राव शरीर को बाह्य वातावरण के अनुकूल बनाने में सहयोग करते हैं।
  • इस ग्रंथि की अधिक सक्रियता की स्थिति में शरीर का तापमान सामान्य डिग्री से अधिक रहने लगता है, वज़न घटना शुरू हो जाता है, गर्मी सहन करने की क्षमता कम हो जाती है, पसीना ज्यादा आने लगता है, व्यक्ति को ज्यादा बेचैनी एवम् घबराहट होने लगती है जिससे साधारण सी छोटी-छोटी बातों पर उत्तेजित होना, बहुत अधिक संवेदनशील होना, शीघ्र मूड बदलना जिसे आसानी से नियन्त्रित न किया जा सके, जैसी स्थिति होने लगती है।
  • बहुत से बच्चों में बचपन से ही ज्यादा चाकलेट/टाफियें खाने अथवा अन्य पैतृक कारणों से थायरॉइड ग्रंथि निर्बल हो जाती है जिससे उस बच्चे की मानसिकता का उचित विकास नहीं हो पाता और न ही उसका यौनांग ही समुचित विकसित हो पाता है। ऐसे बच्चे प्रायः शारीरिक रूप से विकृत हो जाते हैं।

पेराथायरॉइड ग्रंथि (Parathyroid Gland in Hindi) :

पेराथायरॉइड ग्रंथि कहाँ होती है ? (parathyroid granthi kaha hoti hai)

यह गले में थायरॉइड ग्रंथि के पीछे दोनों तरफ दो-दो अर्थात् कुल चार छोटी-छोटी ग्रंथियां होती हैं।

पेराथायरॉइड ग्रंथि का काम ? (parathyroid granthi ke karya)

  • पेराथायरॉइड ग्रंथियां शरीर का सर्वाधिक रक्तमय अंग है तथा रक्त के रासायनिक तत्वों को ठीक रखने में सहायक होती हैं ।
  • शान्ति, धैर्य, स्थिरता, सहयोग देने की भावना पेराथायरॉइड ग्रंथि के ही कारण स्थित रहती हैं।
  • इस ग्रंथि के स्राव, रक्त में कैल्शियम एवम् फासफोरस के प्रमाण का सन्तुलन रखते हैं।

पेराथायरॉइड ग्रंथि के रोग ? (parathyroid granthi ke rog)

  • शरीर में सन्तुलन बिगड़ने से बांयटे (Cramps) आने लगते हैं। रक्त में कैल्शियम का अनुपात काफ़ी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह रक्त के बहाव को रोकने अर्थात् कोलेस्टेरोल को नियन्त्रित रखने, नाड़ियों तथा मांसपेशियों की गतिविधियों को संचालित करने हेतु आवश्यक है।
  • रक्त में कैल्शियम की मात्रा अधिक होने से गुर्दो में कैल्शियम जमने लगता है जिससे गुर्दो की पथरी हो सकती है।
  • जब कैल्शियम मांस पेशियों के तन्तुओं पर जमा होने लगता है तो रियुमेटिज्म हो जाता है और यदि कैल्शियम जोड़ों पर जमने लगता है तो आर्थराईटिस हो जाता है।
  • क्रोध से यह ग्रंथि खराब हो जाती है और कभी-कभी अत्यधिक आवेग से पक्षाघात (लकवा) तक हो सकता है।

थायमस ग्रंथि (Thymus Gland in Hindi) :

थायमस ग्रंथि कहाँ होती है ? (thymus granthi kaha hoti hai)

यह ग्रंथि गर्दन के नीचे तथा ह्रदय के कुछ ऊपर स्थित होती है।

थायमस ग्रंथि का काम ? (thymus granthi ke karya)

  • इसको बच्चों की धायमाता भी कहते हैं क्योंकि यह रोगों से, बच्चों की रक्षा करती है।
  • यह ग्रंथि बालकों के शरीर विकास एवं जननेन्द्रिय के विकास पर नियन्त्रण रखती है।
  • युवा अवस्था प्रारम्भ होने पर इसके पिण्ड धीरे-धीरे लुप्त होने लगते हैं अर्थात् यह ग्रंथि अपना कार्य बन्द कर देती है।

थायमस ग्रंथि ग्रंथि के रोग ? (thymus granthi ke rog)

  • यदि किसी कारणवश यह ग्रंथि वयस्क होने पर भी क्रियाशील रहे तो शरीर में जड़ता आ जाती है, सुस्ती आने लगती है तथा जल्दी-जल्दी थकावट का अनुभव होने लगता है।
  • जब तक यह ग्रंथि सक्रिय रहती है प्रजनन अंग उत्तेजित नहीं होते एवं मन में कामवासना के विकार जागृत नहीं होते।
  • ऐसा कहां जाता है कि वृद्धावस्था में यह ग्रन्धि पुनः सक्रिय हो जाती है।

एड्रीनल ग्रंथि (Adrenal Gland in Hindi) :

एड्रीनल ग्रंथि कहाँ होती है ? (adrenal granthi kaha hoti hai)

यह ग्रंथि दोनों गुर्दो के ठीक ऊपर होती है

एड्रीनल ग्रंथि का काम ? (adrenal granthi granthi ke karya)

  • शरीर की समस्त गतिविधियों जैसे संचार व्यवस्था, हलनचलन, श्वसन, रक्त परिभ्रमण, पाचन, मांस पेशियों का संकुचन अथवा फैलाव, पानी अथवा अन्य अनावश्यक पदार्थों का निष्कासन आदि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • इसका कार्य शरीर की अवरोधक / प्रतिकारात्मक क्षमता विकसित करना है। इसके लिए आवश्यक सभी प्रकार की दवाओं का शरीर में निर्माण इस ग्रंथि का स्राव बनाने में सहयोग करते हैं।
  • यह व्यक्ति को साहसी, निर्भय, सहनशील, आशावादी बनाती है एवम् आत्मविश्वास जागृत करती है।
  • शरीर को सभी प्रकार की एलर्जी एवम् रोगों से बचाती है।

एड्रीनल ग्रंथि ग्रंथि के रोग ? (adrenal granthi ke rog)

अत्यधिक भय अथवा साधारण से रोगों में दवाई लेने तथा बाल्यकाल में बच्चों के अवरोधक टीके लगाने से यह ग्रंथियां बराबर कार्य नहीं करतीं।

पेन्क्रियाज ग्रंथि (Pancreas Gland in Hindi) :

पेन्क्रियाज ग्रंथि कहाँ होती है ? (Pancreas granthi kaha hoti hai)

यह पेट में स्थित 6″ से 8″ लम्बी ग्रंथि है

पेन्क्रियाज ग्रंथि का काम ? (Pancreas granthi ke karya)

  • पेन्क्रियाज ग्रंथि का ऊपरी भाग पाचक रस बनाता है जो क्षारीय स्वभाव का होने से शरीर में आम्लीय तत्त्वों पर नियन्त्रण रखता है।
  • इसमें अनेक तत्त्व होते हैं जो कठोर भोजन को पतला बनाने में सहयोग करते हैं जिससे आंतें उनको ग्रहण कर सकें ।
  • इसका नीचे वाला भाग इंसुलिन नामक रस बनाता है जो शरीर में ऊर्जा हेतु मुख्य तत्त्व है यह ग्लूकोज़ को ग्रहण करने में सहायता करता है तथा शरीर में उसकी मात्रा को सन्तुलित एवम् नियन्त्रित रखता है।
  • जब तक इंसुलिन उचित मात्रा में बनता है तब तक यकृत भी अतिरिक्त ग्लूकोज़ को ग्लाईकोजिन में बदल कर अपने पास एकत्रित रख सकता है ताकि आवश्यकता पड़ने पर पुनः ग्लूकोज़ में बदल कर कोशिकाओं तक पहुँचा सके।

पेन्क्रियाज ग्रंथि के रोग ? (Pancreas granthi ke rog)

  • इंसुलिन की कमी के कारण शरीर ग्लूकोज को चर्बी के रूप में भी नहीं रख पाता फलतः ग्लूकोज़, जिसे शरीर पूरी तरह से ग्रहण नहीं कर पाता, मूत्र द्वारा बाहर हो जाता है एवं मधुमेह रोग हो जाता है। इस रोग का रोगी अन्दर ही अन्दर, दीमक लगी लकड़ी के समान, शक्तिहीन होने लगता है।
  • इसके विपरीत यदि पेन्क्रियाज़ अधिक कार्य करे तो इंसुलिन ज्यादा बनने लगेगा, जिससे रक्त में ग्लूकोज़ की मात्रा कम होने लगेगी। इस परिस्थिति में भूख ज्यादा लगती है, पसीना अधिक आता है, रक्तचाप घट जाता है, सिर दर्द होता है एवम् कमज़ोरी का अनुभव होता है।
  • रोगी कभी-कभी बहकी-बहकी बातें करने लगता है और यदि रक्त में ग्लूकोज़ की मात्रा बहुत कम हो जाय तो अचानक बेहोशी की अवस्था में पहुंच कर मृत्यु तक हो जाती है।
  • आंखे एवम् गुर्दे इसकी खराबी से जल्दी प्रभावित होते हैं।
  • तनाव इस रोग का मुख्य कारण है।
  • खुराक का नियन्त्रण, पाचन सम्बन्धी नियमों का पालन, प्राणायाम, नियमित भ्रमण, स्वाध्याय, भक्ति, सचिन्तन, तनावमुक्त आचरण, कड़वे स्वादों का सेवन इस रोग के निवारण में प्रभावशाली भूमिका निभाते हैं।
  • पेन्क्रियाज़ बहुत ही संवेदनशील अंग है एवम् इसकी मामूली खराबी से शरीर की सारी रासायनिक क्रियाएं प्रभावित होती हैं।

प्रजनन ग्रंथि (Sex Gland in Hindi) :

प्रजनन ग्रंथि के कार्य (prajanan granthi ke karya)

  • यह ग्रंथियां कामेच्छा को नियन्त्रित कर विपरीत लिंग (सेक्स) में आकर्षण पैदा करता है।
  • प्रजनन का कार्य अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होने से अन्य ग्रंथियां भी इस कार्य में प्रमुख भूमिका निभाती हैं। पिनियल जहां कामेच्छा जागृत करती है, थायरॉइड उसे गति देती है तथा पीयूष ग्रंथि प्रजनन अंगों का विकास करती है वहीं यह ग्रंथि सारे प्रजनन तन्त्र के कार्यों का संचालन करती है।
  • प्रजनन ग्रंथियां एवम् एड्रीनल ग्रंथियां एक दूसरे के हारमोन बनाने में आपस में सहयोग करती हैं जिससे शरीर एलर्जी से बच सके।

प्रजनन ग्रंथि के रोग (prajanan granthi ke rog)

  • शल्य चिकित्सा द्वारा जिन महिलाओं का गर्भाशय निकाल दिया जाता है उनके रक्त को, ओवरीज़ से हारमोन मिलना बन्द हो जाता है, अतः ऐसे रोगियों की एड्रीनल, पीयूष एवम् थायरॉइड ग्रंथियों को सक्रिय करने से, आवश्यक हारमोन्स की पूर्ति सम्भव है। ऐसे रोगियों की प्रायः सभी ग्रंथियां शिथिल हो जाती हैं अतः सभी ग्रंथियों के प्रतिवेदन बिन्दुओं पर नियमित दबाव देना चाहिए।
  • ये ग्रंथियां बराबर कार्य न करें तो जननेन्द्रिय सम्बन्धी रोग हो जाते हैं।
  • चेहरे का आकर्षण, तेज, व्यक्तित्व इसी ग्रंथि की क्षमता दर्शाता है।
  • यह ग्रंथि बालों को बढ़ाने, स्वर सुधारने, शरीर के तापक्रम तथा आकार को सन्तुलित रखने में सहयोग करती है।

लिम्फ ग्रंथि –

उपरोक्त ग्रंथियों के अतिरिक्त एक लिम्फ ग्रंथि भी होती है जो यद्यपि अन्तःस्रावी नहीं है फिर भी उसका कार्य काफ़ी महत्वपूर्ण हैं। इसका कार्य शरीर में पीब को उत्पन्न होने से रोकना है।
यह ग्रंथि शरीर की विकृति को दूर करने का महत्वपूर्ण कार्य करती है परन्तु जब शरीर में विकृति ज्यादा बढ़ जाती है तब इस ग्रंथि को ज्यादा काम करना पड़ता है जिससे यह कमज़ोर हो जाती है।
कैंसर के बारे में भी यह ग्रंथि सर्व प्रथम चेतावनी देती है। इस ग्रंथि के प्रतिवेदन बिन्दुओं पर दबाव दे कर इसको सक्रिय बनाया जा सकता है।

उपसंहार :

एक्यूप्रेशर पद्धति द्वारा इन ग्रंथियों का जितना सरल, सहज, प्रभावशाली उपचार हो सकता है उतना अन्य चिकित्सा पद्धतियों द्वारा प्रायः असम्भव है इसीलिए भारत में इस पद्धति को संवेदना अथवा चैतन्य चिकित्सा पद्धति भी कहते हैं, क्योंकि ग्रंथियों के उपचार से शरीर के उपचार के साथ मानसिक एवम् आध्यात्मिक विकास में ग्रंथियां महत्वपूर्ण योगदान करती हैं और मानवीय गुणों का विकास करती हैं। आज चारों तरफ़ क्रूरता, हिंसा / आतंकवाद, क्रोध, स्वच्छन्दता, घमण्ड, माया, लोभ, घृणा, द्वेष, तनाव आदि दुष्प्रवृत्तियां बढ़ रही हैं। इन दुष्प्रवृत्तियों से सम्बन्धित ग्रंथियों का उचित उपचार किया जाए और इन्हें स्वस्थ रूप में रख कर इनको, ठीक से सक्रिय रहने की स्थिति बनाई जाए तो ऐसी सभी दुष्प्रवृत्तियों को बड़ी आसानी से बदला जा सकता है।

हम सभी विचारशील और प्रबुद्ध पाठकपाठिकाओं से यह अपेक्षा रखते हैं कि वे इस विवरण को ध्यान से पढ़ें, समझें और इस जानकारी को अमल में लेने की भरपूर कोशिश करें ताकि शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ तथा निरोग रह सकें। अपनी ग्रंथियों को विकारग्रस्त होने से बचाने के लिए उन दृश्यों को न देखें जो आज कल टी वी पर विज्ञापनों और सीरियलों में दिखाये जा रहे हैं, जिन्हें देख कर मन में उत्तेजना और आवेग पैदा होता है। ऐसे सीरियल दिखाने वालों को पैसा भी मिलता है और शोहरत भी पर हम देखने वालों को मिलती है विकृति, व्यर्थ की उत्तेजना और दूषित बातें !

ज़रा सोचिए तो, दिनों दिन डॉक्टर और केमिस्ट बढ़ रहे हैं, अस्पताल और क्लिनिक बढ़ रहे हैं फिर भी रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है सो क्यों? हमारी सहन शक्ति और रोग प्रतिरोधक शक्ति क्यों कम होती जा रही है? शिक्षा और विज्ञान, सम्पन्नता और सुख साधनों की इतनी उन्नति होने पर भी हम दुःखी और तनावग्रस्त क्यों हैं? इन सवालों का जवाब अपने आपसे मांगिए और विचार कीजिए कि यह जो गड़बड़ घोटाला हम कर रहे हैं इसे कब तक यूं ही चलने देंगे? यह भी सोचिए कि आखिर इसके जो भी परिणाम होंगे या कि अभी हो रहे हैं, इसके लिए हम नहीं तो और कौन ज़िम्मेदार है?

Share to...