Last Updated on May 27, 2024 by admin
अपराजिता क्या है ? : What is Clitoria Ternatea (Aparajita) in Hindi
महाकवि कालिदास के ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ में बालक सर्वदमन के रक्षासूत्र को जब राजा उठा लेता है तो तपस्विनी कहती है-“श्रृणोतु महाराज:-एषा अपराजिता नामौषधिरस्य जातकर्मसमये भगवता भारीचेन दत्ता” (महाराज सुनिये, यह अपराजिता नाम की औषधि है। यह देवगुरु भगवान् मारीच ने जातकर्म संस्कार के समय इसको दी थी)। यहाँ पर अपराजिता नामक वनौषधि का जातकर्म संस्कार में रक्षोघ्न हेतु उल्लेख किया गया है।
चरक संहिता (सू.अ.2 एवं वि. अ. 8) तथा सुश्रुत संहिता (सू.अ. 39) में शिरोविरेचन द्रव्यों के अन्तर्गत अपराजिता का ग्रहण किया गया है। शिम्बीकुल (लेगूमिनोसी) की यह वनौषधि प्रयोग करने पर पराजित नहीं होती अतएव इसे अपराजिता यह नाम दिया गया है।
अपराजिता का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Clitoria Ternatea (Aparajita) in Different Languages
Aparajita (butterfly pea) in –
- संस्कृत (Sanskrit) – अपराजिता, गिरिकर्णिका, विष्णुक्रान्ता
- हिन्दी (Hindi) – अपराजिता, कोयल
- गुजराती (Gujarati) – गरणी, गरानी
- मराठी (Marathi) – गोकर्णी
- बंगाली (Bangali) – अपराजिता
- तामिल (Tamil) – नीलगंटुना, गिलर्निका
- अंग्रेजी (English) – बटरल्फाइ पी (butterfly pea)
- लैटिन (Latin) – क्लीटोरिआ टेरनाटेआ (Clitoria Ternatea)
अपराजिता का पौधा (बेल) कैसा होता है ? :
- अपराजिता की बेल – इसकी बेल प्राय: बाग-बगीचों में, गांवों के आसपास पाई जाती है। दक्षिण भारत में यह विशेष रूप से होती है। अपराजिता की आरोही लता बसन्त में खिलती है। इसका काण्ड सुन्दर एवं पतला होता है।
- अपराजिता के पत्ते – इसके पत्ते पक्षक रूप में लगे रहते हैं प्रत्येक पक्षक में शोभांजन की पत्तियों के आकार की गोल गोल पत्तियाँ होती हैं। दो-दो पत्तियाँ आमने-सामने रहती हैं। पक्षक के अग्रिम भाग में एक पत्ती लगी रहती है।
- अपराजिता के फूल – पुष्प नीले या सफेद रंग के, गाय के कान की सी आकृति होती है।
- अपराजिता की फली – इसकी फली चपटी 2-3 इंच लम्बी होती है। जिसमें धूसरवर्ण के चिकने चपटे बीज होते हैं।
अपराजिता के प्रकार :
पुष्पभेद से यह दो प्रकार की है श्वेत अपराजिता और नील अपराजिता। नील अपराजिता का एक और उपभेद होता है जिसमें दोहरे फूल लगते हैं। इनमें श्वेत फूलों वाली अपराजिता अपेक्षया अधिक श्रेष्ठ है।
अपराजिता का उपयोगी भाग : Beneficial Part of Aparajita plant in Hindi
इसके मूल, बीज और पत्ते औषधि के रूप में प्रयुक्त होते हैं।
सेवन की मात्रा :
- पत्र स्वरस – 3 से 6 मि.लि. (इससे अधिक मात्रा वामक होती है।)
- मूल (जड़) चूर्ण – 2 से 3 ग्राम
- बीज चूर्ण – 1 से 2 ग्राम
कहीं कहीं अपराजिता के बीज कालादाना के नाम से बेचे जाते हैं, दोनों पृथक द्रव्य हैं अतएव कालादाना के नाम से इसके बीजों का ग्रहण करना युक्तियुक्त नहीं है।
अपराजिता का रासायनिक विश्लेषण : Aparajita Chemical Constituents
इसके मूल की छाल में श्वेतसार, टैनिन और राल आदि तत्व पाये जाते हैं। बीजों में एक स्थिर तैल, एक तिक्त राल (जो इसका सक्रिय घटक है।) एवं टैनिन आदि पाये जाते हैं।
अपराजिता के औषधीय गुण : Aparajita ke Gun in Hindi
- अपराजिता रस में तिक्त कषाय ।
- विपाक में कटु एवं शीतवीर्य है।
- यह त्रिदोषशामक है विशेषतः कफवातहर।
- यह शोथहर, व्रणपाचक, शिरोविरेचन, चक्षुष्य, मेध्य, कुष्ठघ्न, आमपाचन, विषघ्न, मृदुभेदन, मूत्रजनन और श्वासकासहर है।
- इसका मूल भेदन, वेदना स्थापन, मूत्रजनन और शिरोविरेचन है।
- इसके बीज मदभेदन है।
- ये आंतों में मरोड़ उत्पन्न करते हैं।
- इसके पत्र आमदोष नाशक और विषहर हैं।
- ये बाह्य प्रयोग के द्वारा आम पाचन, विषघ्न और शोथहर हैं।
- आमवात, जलोदर और श्लेष्मिक विकारों में इसके बीजों का प्रयोग अच्छा रहता है।
अपराजिता के फायदे और उपयोग : Benefits of Aparajita in Hindi
1. आधा सिर दर्द (अर्धावभेदक) मिटाए अपराजिता का उपयोग : अपराजिता (विशेषतः सफेद फूलों वाली) की जड़ का स्वरस निकालकर नस्य कराया जाता है। इसके पत्तों को पीसकर सिर पर लेप किया जाता है। इसकी जड़ को सोंठ और पीपल के साथ पीसकर लेप करने से भी आराम मिलता है। सोते समय तकिये के नीचे भी इसके पत्ते रखना चाहिये-इससे भी लाभ होता है। ( और पढ़े – आधा सिर दर्द के घरेलू इलाज )
2. परिणामशूल में अपराजिता के सेवन से लाभ : परिणामशूल (तीव्र चुभन वाला दर्द जो कि पीठ व गुप्तांगों की तरफ बढ़ता है) रोग में अपराजिता के मूल का कल्क बना उसमें घी, मिश्री और मधु मिलाकर पीना चाहिये।
3. गलगण्ड ठीक करे अपराजिता का प्रयोग : गलगण्ड (एक रोग है जिसमे गला फूल जाता है) रोग में श्वेत अपराजिता के मूल चूर्ण को घी में मिलाकर सेवन करना चाहिये।
4. गंडमाला (अपची) रोग में अपराजिता से फायदा : गंडमाला (इसमें गले की ग्रंथियाँ बढ़ जाती हैं और उनकी माला सी बन जाती है) रोग में पुष्यनक्षत्र के समय उखाड़ी गई सफेद अपराजिता के मूल को गले में धारण करना चाहिये तथा गोघृत के साथ इसी का चूर्ण सेवन करते रहना विशेष उपयोगी है। ऐसा राजमार्तण्डकार ने उल्लेख किया है।
5. श्वेतकुष्ठ मिटाए अपराजिता का उपयोग : श्वेत अपराजिता मूल को ठण्डे पानी के साथ पीसकर एक महीने तक सफेद दाग (श्वेत कुष्ठ) पर लेप करते रहना चाहिये। ( और पढ़े – सफेद दाग 40 अनुभूत घरेलू इलाज )
6. बालकों का श्वास कास (खाँसी) में अपराजिता के सेवन से लाभ : अपराजिता के बीजों को थोड़ा भूनकर पीसकर रखें। इसमें सेंधानमक और गुड़ मिलाकर बालकों को श्वास कास में दें। इससे दस्त के साथ कफ निकलकर आराम हो जाता है।
7. सुजाक रोग में अपराजिता के इस्तेमाल से फायदा : सुजाक (यौन संचारित बीमारी (एसटीडी)) रोग में अपराजिता की जड़ की छाल 3 ग्राम, शीतल चीनी 2 ग्राम और एक-दो कालीमिर्च तीनों को जल में पीसकर छानकर नित्य प्रात: सात दिनों तक पिलावें। साथ में ही इसके पंचांग का क्वाथ बनाकर उसमें गुह्यांग (जननेंद्रिय) को डुबोये रखने से शीघ्र लाभ होता है। इससे मूत्रत्याग के समय होने वाली जलन और मवाद आना दूर होता है।
8. पथरी में लाभकारी है अपराजिता का प्रयोग : पथरी में लाभ के लिए अपराजिता की जड़ को चावलों के धोवन के साथ पीसकर छानकर प्रातः सायं पिलावें।
9. विस्फोट (फोड़ा) के उपचार में लाभकारी अपराजिता : अपराजिता की जड़ को गन्ने के सिरके के साथ पीसकर लेप करने से फोड़ा बैठ जाता है।
10. अपराजिता के इस्तेमाल से व्रण (घाव) में लाभ : अपराजिता के पत्र स्वरस और मूल कल्क द्वारा सिद्ध किये गये तिल तैल को समस्त व्रणों पर लगाने से वे शीघ्र भरने लगते हैं। यह तैल शोथ (सूजन) को मिटाता है और सन्धि पीड़ा को भी दूर करता है। कर्णपूय में यह तैल शहद मिलाकर डालना चाहिए।
11. पीलिया (कामला) रोग में अपराजिता से फायदा : अपराजिता के जड़ का चूर्ण मक्खन निकाले तक्र के साथ कामला के रोगी को देने से लाभ होता है।
12. प्रसवकाल की पीड़ा मिटाए अपराजिता का उपयोग : अपराजिता (aparajita) की लता को स्त्री के कमर पर लपेट देने से शीघ्र ही प्रसव होकर पीड़ा शान्त होती है। ( और पढ़े – प्रसव पीड़ा को दूर करने उपाय )
13. गर्भपात से रक्षा करने में अपराजिता करता है मदद : अपराजिता की जड़ की छाल को अथवा पत्तों को बकरी के दूध में पीसकर उसमें थोड़ा शहद मिलाकर पिलाने से गर्भपात नहीं हो पाता और न कोई पीड़ा होती है।
14. भूतोन्माद में लाभकारी है अपराजिता का प्रयोग : अपराजिता की जड़ की छाल के स्वरस में चावलों का धोवन और घृत मिलाकर पिलाने से और इसका ही नस्य देने से भूतबाधा या भूतोन्माद में लाभ होता हैं अपस्मार, उन्माद, हिस्टीरिया आदि में इसके पंचांग से सिद्ध घृत का सेवन कराना चाहिए।
15. हिचकी (हिक्का) में अपराजिता का उपयोग फायदेमंद : अपराजिता (aparajita) के बीजों का चूर्ण चिलम में रखकर धूम्रपान कराना चाहिये।
16. गुदभ्रंश रोग में लाभकारी अपराजिता : गुदभ्रंश (मलद्वार का बाहर निकलना) रोग में अपराजिता की जड़ (मूल) को कमर में बांधते हैं। यह नील अपराजिता हो तो अधिक ठीक है।
17. थायरायड (चुल्लिका) ग्रन्थि विकार में अपराजिता के इस्तेमाल से फायदा : चुल्लिका ग्रन्थि (थायरायड ग्लेन्ड) से स्रवित रस या हार्मोन को थाइराक्सीन कहते हैं। यह वृद्धि उत्प्रेरक तथा उपापचयी क्रियाओं को नियन्त्रित करता है। इसकी कमी से बच्चे बौने हो जाते हैं। तथा शरीर में मोटापा बढ़ जाता है। इसकी अधिकता शरीर को सक्रिय बना देती है और शरीर का भार बढ़ जाता है। इसकी विकृति में लवण रहित भोजन देना चाहिए। साथ में यह औषधि –
- श्वेत अपराजिता पंचांग चूर्ण – 300 मि.ग्रा.
- जलकुम्भी भस्म – 200 मि.ग्रा.
- हरिद्रा चूर्ण – 200 मि.ग्रा.
- रस सिन्दूर – 10 मि.ग्रा.
- वरुण चूर्ण – एक ग्राम
- कांचनार गूगल – एक गोली
- कैशोर गूगल – एक गोली
इस प्रकार की एक मात्रा दिन में तीन बार जल से दें। -वैद्य श्री दयाराम अवस्थी
18. पेशाब की बीमारी में : मूत्राशय की सूजन में अपराजिता की फांट (घोल) सुबह-शाम खाने से लाभ होता है।
19. कान में सूजन एवं जलन : कान के चारों ओर अगर सूजन आने की वजह से नसें बढ़ गई हो तो अपराजिता के पत्तों को सैन्धव (सेंधानमक) के साथ पीसकर लगाने से लाभ होता है।
20. जिगर का रोग : अपरजिता के बीजों को भूनकर, कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर 3 ग्राम चूर्ण हल्के गर्म पानी से सुबह-शाम सेवन करें, इससे यकृत वृद्धि मिट जाती है।
21. जलोदर (पेट में पानी का भरना) :
- अपराजिता की जड़ की छाल को डेढ़ से 3 ग्राम की मात्रा में पीसकर पीने से मूत्र के द्वारा पेट साफ हो जाता है।
- अपराजिता की जड़, शंखपुष्पी की जड़, दन्तीमूल और नील की जड़ को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर रख लें, फिर 6 ग्राम की मात्रा में लेकर पानी में पीसकर 40 ग्राम की मात्रा में गाय के पेशाब में मिलाकर पीने से जलोदर में लाभ होता है।
22. त्चचा के रोग : अपराजिता के पत्तों का फांट (घोल) सुबह और शाम पिलाने से त्वचा सम्बंधी सारे रोग ठीक हो जाते हैं।
23. पसीने से दुर्गन्ध आना : 10 मिलीलीटर अपराजिता के पत्तों का रस अदरक के रस के साथ मिलाकर पीने से पसीना रुक जाता है। यह पसीना रोकने का बहुत ही उत्तम नुस्खा है।
24. सिर दर्द : अपराजिता की फली के 8-10 बूंदों के रस को अथवा जड़ के रस को सुबह खाली पेट एवं सूर्योदय से पूर्व नाक में टपकाने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है। इसकी जड़ को कान में बांधने से भी लाभ होता है।
25. आधाशीशी यानी आधे सिर का दर्द (माइग्रेन) :
- अपराजिता के बीजों के 4-4 बूंद रस को नाक में टपकाने से आधाशीशी का दर्द भी मिट जाता है।
- अपराजिता के बीज शीतल और विषनाशक होते हैं। इसके बीज और जड़ को एक समान मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर नाक में टपकाने से आधासीसी दूर होता है।
- श्वेत अपराजिता की जड़ के रस को सूंघने से आधासीसी का दर्द बंद हो जाता है।
26. गलगण्ड (घेंघा) : सफेद अपराजिता की जड़ के एक से दो ग्राम चूर्ण को घी में मिलाकर पीने से अथवा कड़वे फल के चूर्ण को गले के अन्दर घर्षण करने से गलगण्ड रोग शांत होता है।
27. स्वर भंग (गले में खराश) : 10 ग्राम अपराजिता के पत्ते, 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर आधा शेष रहने पर सुबह-शाम गरारे करने से, टांसिल, गले के घाव तथा स्वरभंग में लाभ होता है।
28. कामला या पीलिया :
- पीलिया, जलोदर और बालकों के डिब्बा रोग में अपराजिता के भूने हुए बीजों के आधा ग्राम के लगभग महीन चूर्ण को गर्म पानी के साथ दिन में 2 बार सेवन कराने से पीलिया ठीक हो जाती है।
- कामला में अपराजिता की जड़ का 3-6 ग्राम चूर्ण छाछ के साथ देने से लाभ मिलता है।
29. बच्चों का पेट दर्द : अफारा (पेट में गैस बनना) या डिब्बा रोग पर इसके 1-2 बीजों को आग में भूनकर गाय के दूध अथवा घी के साथ बच्चों को देने से शीघ्र लाभ होता है।
30. मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कठिनाई या जलन) : अपराजिता के सूखे जड़ के चूर्ण के प्रयोग से गठिया, मूत्राशय की जलन और मूत्रकृच्छ का नाश होता है। 1-2 ग्राम चूर्ण गर्म पानी या दूध से दिन में 2 या 3 बार प्रयोग करने से लाभ होता है।
31. प्लीहा वृद्धि (बढ़ी हुई तिल्ली) : अपराजिता की जड़ बहुत दस्तावर है। इसकी जड़ को दूसरी दस्तावर और मूत्रजनक औषधियों के साथ देने से बढ़ी हुई तिल्ली और जलोदर (पेट में पानी की अधिकता) आदि रोग मिटते हैं तथा मूत्राशय की जलन भी मिटती है।
32. अंडकोष वृद्धि : अपराजिता के बीजों को पीसकर गर्म कर लेप करने से अंडकोष की सूजन बिखर जाती है।
33. गर्भस्थापना (गर्भ ठहराने के लिए) : सफेद अपराजिता की लगभग 5 ग्राम छाल को अथवा पत्तों को बकरी के दूध में पीस-छानकर तथा शहद मिलाकर पिलाने से गिरता हुआ गर्भ ठहर जाता है तथा कोई पीड़ा नहीं होती है।
34. सुख प्रसव : कोयल की बेल को स्त्री की कमर में लपेट देने से शीघ्र ही प्रसव होकर पीड़ा शांत हो जाती है।
35. सूजाक :
- अपराजिता की जड़ का चूर्ण 3-6 ग्राम तक, शीतल चीनी 1.5 ग्राम, कालीमिर्च एक, तीनों को पानी के साथ पीसकर तथा छानकर सुबह-सुबह 7 दिनों तक पिलाने से या मूत्रेन्द्रिय को उसमें डुबोये रखने से सूजाक में शीघ्र लाभ होता है।
- अपराजिता की 5 ग्राम जड़ को चावलों के धोवन के साथ पीस-छानकर कुछ दिन सुबह-शाम पिलाने से मूत्राशय की पथरी कट-कट कर निकल जाती है।
36. बुखार : लाल सूत्र के 6 धागों में अपराजिता की जड़ को कमर में बांधने से तीसरे दिन आने वाला बुखार छूट जाता है।
37. श्वेत कुष्ठ (सफेद दाग) : श्वेत कुष्ठ तथा मुंह की झांई पर अपराजिता की जड़ 20 ग्राम, चक्रमर्द की जड़ 1 ग्राम, पानी के साथ पीसकर, लेप करने से लाभ होता है। इसके साथ ही इसके बीजों को घी में भूनकर सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से डेढ़ से 2 महीने में ही श्वेत कुष्ठ में लाभ हो जाता है। अपराजिता की जड़ की राख या भस्म को मक्खन में घिसकर लेप करने से मुंह की झांई दूर हो जाती है।
38. श्लीपद (हाथीपांव): श्लीपद व नहारू पर अपराजिता की 10-20 ग्राम जड़ों को थोड़े पानी के साथ पीसकर, गर्म कर लेप करने से तथा 8-10 पत्तों की लुगदी की पोटली बनाकर सेंकने से लाभ होता है।
39. व्रण, जख्म या घाव : हथेली या उंगलियों में होने वाला अत्यंत पीड़ायुक्त जख्म पर अपराजिता के 10-20 पत्तों की लुगदी को बांधकर ऊपर से ठंडा पानी छिड़कते रहने से जख्मों में अति शीघ्र लाभ होता है।
40. फोड़ा : सिरके के साथ इसकी 10-20 ग्राम जड़ को पीसकर लेप करने से उठते हुए फोड़े फूटकर बैठ जाते हैं।
41. खांसी :
- अपराजिता के बीजों को सेंककर, चूर्ण बनाकर उसमे 60 से 120 मिलीग्राम गु़ड़ और थोड़ा सा सेंधानमक मिलाकर सेवन करने से खांसी और श्वांस (सांस) के रोग में लाभ मिलता है। इससे दस्त के साथ बलगम शरीर से बाहर निकल जाता है जिसके कारण रोगी को बहुत आराम मिलता है।
कफ विकार (बलगम के रोगों) में बच्चों को अपराजिता की जड़ को दूध में घिसकर रोजाना आधा से 1 चम्मच दिन में 3 बार देने से लाभ होता है।
अपराजिता के कुछ अनुभूत प्रयोग :
(1) गले के टांसिल पर- अपराजिता (aparajita) के पत्ते 20 ग्राम की मात्रा में जौकुट कर 400 ग्राम पानी में औटावें। आधा पानी शेष रहने पर कुछ समय गले में धारण करके कुल्ले करने से टांसिल तथा गले के वृणों में लाभ होता है।
(2) कर्णपूय एवं कर्ण मूल शोथ में – अपराजिता के सिद्ध तैल की कुछ बूंदे कान को स्वच्छ करके डालने से कर्णपूय में लाभ होता है। कर्णमूल शोथ में अपराजिता के पत्तों की लुगदी गरम करके सूजन युक्त स्थान पर थोड़ा सेंधानमक मिलाकर लगाने से लाभ होता है।
(3) अंगुलि व्रण में – अंगुलियों में होने वाले पीडायुक्त व्रण में अपराजिता के पत्तों की लुगदी में बांधकर इसके ऊपर पानी से सिंचन करने से शीघ्र लाभ होता है।
(4) सफ़ेद कोढ़ (श्वित्र) में – सफ़ेद कोढ़ में इसकी जड़ 2 भाग तथा चक्रमर्द की जड़ 1 भाग मिलाकर जल के साथ मिलाकर लेप करने से श्वित्र में लाभ होता है।
(5) शिरःशूल में – शिर की पीड़ा में अपराजिता की ताजी जड़ के रस का नस्य देने तथा इसके पत्तों का शिर पर लेप करने से लाभ होता है।
उपरोक्त सभी प्रयोग अनुभूत है। पाठक इनका प्रयोग कर लाभ उठा सकते हैं।
-वैद्य गोपालशरण गर्ग
अपराजिता के दुष्प्रभाव : Aparajita ke Nuksan in Hindi
- अपराजिता लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
- अपराजिता (aparajita) को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
- अपराजिता के बीजों में मरोड़ उत्पन्न करने का अवगुण है अत: इसे दूर करने के लिये, इसके साथ सोंठ या सौंफ देनी चाहिये। मूलस्वरस से अधिक वमन होने पर एला और घृत देना चाहिये।
अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।