Last Updated on June 2, 2024 by admin
अतिबला क्या है ? (Atibala in Hindi)
अतिबला मधुरस्कन्ध की औषधि है। इसकी भी गणना बला की भांति बल्य, बृंहणीय (च.) एवं वातसंशमन (सु.) गणों की गई है। यह भी कापार्स कुल (मालवेशी) की वनौषधि है।
अतिबला का विभिन्न भाषाओं में नाम (Name of Atibala in Different Languages)
Abutilon indicum in –
- संस्कृत (Sanskrit) – अतिबला, कंकतिका, भद्रौदनी
- हिन्दी (Hindi) – कंघी, ककही गुज- खपाट, डाबली, कांसनी
- मराठी (Marathi) – मुदा
- बंगाली (Bangali) – पेटारि, झांपी
- तामिल (Tamil) – परियारा हुट्टि
- तेलगु (Telugu) – तुत्तुराबेंदा
- मलयालम (Malayalam) – बेल्लुल
- कन्नड़ (kannada) – तुट्टि
- अरबी (Arbi) – अश्तुल गोला
- फ़ारसी (Farsi) – दरख्तशान
- अंग्रेजी (English) – कण्ट्री मैलो (Country Mallow)
- लैटिन (Latin) – एब्युटिलन इण्डिकम (Abutilon Indicum Lin)
अतिबला का पौधा कहां पाया या उगाया जाता है ? :
अतिबला का पौधा समस्त भारत के उष्ण एवं समशीतोष्ण प्रदेश तथा श्रीलंका आदि में पाया जाता है।
अतिबला का पौधा कैसा होता है ? :
- अतिबला का पौधा – इसका मखमली गुल्म (झाडीनुमा पौधा) होता है।
- अतिबला के पत्ते – पत्र दन्तुर एवं मृदुरोमश होते हैं।
- अतिबला का फूल – पुष्प पीतवर्ण, लगभग एक इंच व्यास के होते हैं। जिसमें पुष्प दण्ड पत्रवृन्त से दुगना या तिगुना बड़ा होता है। स्त्री केशर 15 या इससे अधिक होते हैं। पुष्प की गंध पारश पीपल जैसी होती है।
- अतिबला के फल – फल गोलाकार किन्तु ऊपर की ओर कंघी की तरह दांत होते हैं। इस पर वर्षा ऋतु में पुष्प तथा शीतकाल में फल लगते हैं।
- अतिबला का बीज – बीज 15-20 की संख्या में भूरे या काले होते हैं, इसके बीजों को भी बीजबन्द कहते हैं।
अतिबला का उपयोगी भाग (Beneficial Part of Atibala Plant in Hindi)
अतिबला के मूल, छाल, पत्र, बीज एवं पंचांग सभी उपयोग में आते हैं।
अतिबला के प्रकार :
अतिबला की अनेक जातियां जिनमें दो प्रसिद्ध हैं इन्हें छोटी अतिबला (एब्युटिलन इण्डिकम) और बड़ी अतिबला के नाम से जाना जाता है।
बड़ी अतिबला –
बड़ी जाति का क्षुप बड़ा होता है तथा शाखाओं में पुष्प दण्डों पर लगे रोम होते हैं।
छोटी अतिबला –
इसकी एक छोटी जाति जो जमीन पर बिछी होती है इसके सभी अंग बड़ी जाति से छोटे होते हैं ।
अतिबला के औषधीय गुण (Atibala ke Gun in Hindi)
अतिबला के गुण धर्म एवं प्रयोग बला की भांति है। महाविषगर्भ तैल इसका मुख्ययोग है।
आयुर्वेद मतानुसार अतिबला के गुण –
- अतिबला स्निग्ध, ग्राही, वृष्य, बल्य तथा दाह, तृषा, छर्दि (उल्टी), कृमि, वातरक्त, रक्तपित्त, ज्वर, मूत्रविकार आदि रोगों में उपयोगी है।
- पत्र – अतिबला के पाते स्नेहन, मृदुताकारक एवं वेदनाहर तथा अर्श (बवासीर), फिरंग (उपदंश), कास (खांसी), कामला (पीलिया), व्रण (घाव), उन्माद, वालशोष, शिरःशूल (सरदर्द) आदि रोगों में लाभप्रद है।
- फल – अतिबला का कच्चा फल, वातकारक और पका फल प्रतिश्याय (साइनस) नाशक है।
- बीज – अतिबला के बीज स्निग्ध, मूत्रल, मृदुरेचक, बाजीकरण, सुजाक, बस्तिप्रदाह शुक्रमेह, अर्श आदि रोगों में हितकारी है। अधिक मात्रा में लेने से मलावरोधक है।
- मूल – इसका मूल वातहर, रसायन, मूत्रल, शोथ, कुष्ठ, ज्वर, दाह, रक्त प्रदर, आदि रोगों में सुखावह है छाल – इसकी छाल ग्राही संकोचक, मूत्रल, मलावरोध, पूयमेह, मूत्रकृच्छ आदि रोगों को दूर करने वाली है।
यूनानी मतानुसार अतिबला के गुण –
- अतिबला के लुआबदार बीज पौष्टिक होते हैं, ये सीने की तकलीफों में लाभ पहुंचाते हैं।
- अतिबला बच्चों की खांसी, वायुनलिकाओं की जलन, बवासीर और सुजाक में बहुत मुफीद है।
- इसके पत्ते दांतों की पीड़ा, कमर की वादी और बवासीर में लाभदायक है।
- अतिबला की छाल, पथरी और पेशाब सम्बन्धी रोगों में अपना असर दिखाती है।
- इसकी जड़ का क्वाथ, ज्वर, पथरी तथा मूत्र के साथ खून आने की बीमारी में फायदा करता है।
रासायनिक संगठन :
- अतिबला की पत्तियों में पिच्छिल द्रव्य, टैनिन, कार्बनिक अम्ल कुछ स्पेरेगिन तथा भस्म (जिसमें क्षारीय सल्फेट, क्लरोइड, मैगनीशियम फास्फेट और कैल्शियम कार्बोनेट होते हैं) पाये जाते हैं ।
- अतिबला के मूल में भी स्पेरेगिन होता है ।
- इसके बीजों में भी म्युसिलेज होता है।
अतिबला सेवन की मात्रा :
अतिबला का प्रयोग या सेवन चिकित्सक के मार्गदर्शन में करें।
अतिबला का उपयोग (Uses of Atibala in Hindi)
- अतिबला की छाल, जड़, पत्ते ओर बीज सभी का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है।
- अतिबला के पत्तों को पानी में गलाने से एक प्रकार का जो चिकना लुआब निकलता है यह मूत्र निस्सारक,शान्तिदायक, ज्वर, सीने में दर्द, सुजाक, मूत्रनली की सूजन में लाभदायक माना गया है।
- इसके बीजों को अच्छी तरह से पीसकर कफ निस्सारक और विरेचक औषधि के रूप में दिया जाता है। अतिबला की छाल मूत्रल व संकोचक है इसकी जड़ ज्वर में फायदेमंद है।
- अतिबला के बीज व संपूर्ण पौधा ही मूत्रल, शान्तिदायक और मृदुविरचेक है।
- यह मूत्र सम्बन्धी बीमारियों में पुराने अतिसार में, जीर्णज्वर में तथा सूतिकारोग में उपयोगी है।
- औषधि प्रयोग में विशेषकर अतिबला के बीज की काम में लिये जाते हैं।
रोगोपचार में अतिबला के फायदे (Benefits of Atibala in Hindi)
1. वृश्चिक दंश में लाभदायक अतिबला : अतिबला की जड़ को घिसकर लगाने से बिच्छू का जहर उतरता है। ( और पढ़े – कीड़े-मकोड़े बिच्छू ततैया काटने के 40 घरेलू उपचार )
2. दन्तरोग की उपयोगी औषधि अतिबला :
- अतिबला पत्र स्वरस के कुल्ले करने से दन्तशूल, मसूढ़ों के विकार मिटते हैं।
- अतिबला की छाल के क्वाथ से कुल्ले करने से मसूढ़ों की शिथिलता दूर होती है। ( और पढ़े – दाँतों का दर्द दूर करने के चमत्कारी नुस्खे )
3. कृमिरोग में अतिबला से लाभ : बच्चों की गुदा में होने वाले चुन्ने कृमि पर अतिबला बीजों की धूनी गुदा में दी जानी चाहिये।
4. सूजन (शोथ) में अतिबला हितकारी : अतिबला के बीजों को पानी में पीस गरम कर लेप करने से शोथ (सूजन) का शमन होता है जड़ को पीस लेप करना भी हितकारी है।
5. गरमी के चट्टे से छुटकारा दे अतिबला : अतिबला की छाल के साथ इसके पुराने पत्तों को पीसकर क्वाथ कर इन चट्टों को बार-बार धोना चाहिये।
6. घाव (व्रण) में फायदेमंद अतिबला की पत्तियां : व्रण पर अतिबला के कोमल पत्तों को रखकर बांधने से वे शीघ्र भर जाते हैं।
7. स्नायुशूल मिटाएं अतिबला के पत्ते : अतिबला पत्र क्वाथ का सेक करने से स्नायुशूल समाप्त होकर लाभ मिलता है।
8. गर्भस्राव से रक्षा करे अतिबला की जड़ :अतिबला की जड़ कन्या के द्वारा कमर में बांधने से गर्भस्राव नहीं होता।
9. मूत्रकृच्छ की लाभदायक औषधि अतिबला :
- अतिबला मूल का क्वाथ सब प्रकार के मूत्रकृच्छ में हितकारक है।
- जड़ का हिम बनाकर 3-3 घंटे बाद पिलावें।
10. रक्तप्रदर में अतिबला का प्रयोग लाभदायक : अतिबला के मूल को चबाकर खाना चाहिये तथा मूल के चूर्ण में मिसरी मिलाकर शहद से सेवन करना चाहिये। इससे रक्तप्रदर में लाभ मिलता है। ( और पढ़े – रक्त प्रदर के लक्षण ,कारण ,दवा और आयुर्वेदिक इलाज )
11. बुखार (ज्वर) में लाभकारी है अतिबला का प्रयोग :
- अतिबला मूल के साथ सोंठ मिला क्वाथ बना पिलाने से शीत, कम्प एवं दाह युक्त ज्वर दो-तीन दिनों में दूर हो जाता है।
- इसकी जड़ का फांट ज्वर की उष्णता, मूत्रावरोध एवं रक्त मूत्रता को दूर करता है।
12. रक्तमेह में लाभदायक अतिबला के औषधीय गुण : पेशाब में रक्त आता हो तथा मूत्राशय में शोथ हो तो अतिबला के पत्तों का हिम (सर्बत) बनाकर मिश्री मिलाकर पिलावें।
13. पित्तोन्माद कम करने में अतिबला करता है मदद : अतिबला के पत्ते सात नग लेकर जल के साथ पीस छानकर मिश्री मिलाकर दिन में दो बार पिलावें। कुछ दिनों के सेवन से लाभ होता है। यह उपदंश में भी हितकारी है।
14. पूयमेह में अतिबला के इस्तेमाल से फायदा : रोग में अतिबला का पत्र क्वाथ पिलाना चाहिये अथवा इसके पत्तों को पानी में भिगोकर जो लुआब निकलता है वह पिलाना पूयमेह में बहुत हितकर है।
15. खांसी (कास) में अतिबला का उपयोग लाभदायक :
- अतिबला का पत्र फांट पुरानी खांसी में लाभदायक है।
- अतिबला बीज और वासा पत्र क्वाथ, सूखी खांसी में हितकारक है।
- अतिबला के बीजों का चूर्ण मधु से चटाने से कफ सरलता से निकलकर लाभ होता है। ( और पढ़े – खांसी और कफ दूर करने के घरेलू उपचार )
16. उपदंश (फिरंग) मिटाए अतिबला का प्रयोग : अतिबला पत्र 20 ग्राम को जल में पीसकर छानकर 21 दिनों तक पिलाना लाभदायक है।
17. श्वानविष में अतिबला के उपयोग से लाभ : अतिबला पत्र स्वरस 50-60 मिली. तक कुछ दिनों तक पिलाना चाहिये।
18. अतिसार में अतिबला सेवन फायदेमंद : अतिबला पत्र स्वरस में समभाग घृत मिलाकर सेवन करने से पित्तातिसार में लाभ होता है।
छाल का क्वाथ पिलाना अतिसार में लाभदायक है।
19. कुष्ठ रोग में हितकारक अतिबला का उपयोग : अतिबला छाल का फांट (सर्बत) कुष्ठ के रोगी के लिये हितकारक है।
20. प्रमेह में अतिबला प्रयोग से लाभ : प्रमेह में मूत्र साफ लाने के लिये अतिबला की छाल का चूर्ण दूध के साथ व मिश्री के साथ देते हैं।
21. धातु दौर्बल्य में लाभकारी है अतिबला बीज का सेवन :
- अतिबला बीज चूर्ण दूध के साथ प्रातः सायं सेवन करना लाभदायक है।
- अतिबला बीज चूर्ण का हलुवा या पाक बनाकर सेवन करने से धातु दौर्बल्य दूर होकर कामोद्दीपन होता है।
22. खूनी बवासीर (रक्तार्श) में अतिबला बीज का उपयोग लाभदायक :
- अतिबला बीजों के चूर्ण को बिना चबाये जल के साथ निगल जाना रक्तार्श में हितकर है। इससे अर्श की वेदना एवं रक्तस्राव रुकता है।
- रक्तार्श के रोगी को अतिबला के पत्तों का शाक बनाकर खाना चाहिये।
23. कब्ज (विबन्ध) में अतिबला बीज के इस्तेमाल से फायदा : अतिबला बीजों का चूर्ण दूध के साथ सेवन करने से कोष्ठ मृदु होकर विबन्ध (कब्ज) दूर होता है।
24. पेशाब का बार-बार आना : खरैटी की जड़ की छाल का चूर्ण यदि चीनी के साथ सेवन करें तो पेशाब के बार-बार आने की बीमारी से छुटकारा मिलता है।
25. प्रमेह (वीर्य प्रमेह) : अतिबला के बारीक चूर्ण को यदि दूध और मिश्री के साथ सेवन किया जाए तो यह प्रमेह को नष्ट करती है। महावला मूत्रकृच्छू को नष्ट करती है।
26. गीली खांसी : अतिबला, कंटकारी, बृहती, वासा (अड़ूसा) के पत्ते और अंगूर को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लेते हैं। इसे 14 से 28 मिलीमीटर की मात्रा में 5 ग्राम शर्करा के साथ मिलाकर दिन में दो बार लेने से गीली खांसी ठीक हो जाती है।
27. सीने में घाव (उर:क्षत) : बलामूल का चूर्ण, अश्वगंधा, शतावरी, पुनर्नवा और गंभारी का फल समान मात्रा में लेकर चूर्ण तैयार लेते हैं। इसे 1 से 3 ग्राम की मात्रा में 100 से 250 मिलीलीटर दूध के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से उर:क्षत नष्ट हो जाता है।
28. मलाशय का गिरना : अतिबला (खिरेंटी) की पत्तियों को एरंडी के तेल में भूनकर मलाशय पर रखकर पट्टी बांध दें।
29. बांझपन दूर करना : अतिबला के साथ नागकेसर को पीसकर ऋतुस्नान (मासिक-धर्म) के बाद, दूध के साथ सेवन करने से लम्बी आयु वाला (दीर्घजीवी) पुत्र उत्पन्न होता है।
30. मसूढ़ों की सूजन : अतिबला (कंघी) के पत्तों का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन 3 से 4 बार कुल्ला करें। रोजाना प्रयोग करने से मसूढ़ों की सूजन व मसूढ़ों का ढीलापन खत्म होता है।
31. नपुंसकता (नामर्दी) : अतिबला के बीज 4 से 8 ग्राम सुबह-शाम मिश्री मिले गर्म दूध के साथ खाने से नामर्दी में पूरा लाभ होता है।
32. दस्त : अतिबला (कंघी) के पत्तों को देशी घी में मिलाकर दिन में 2 बार पीने से पित्त के उत्पन्न दस्त में लाभ होता है।
33. पेशाब के साथ खून आना : अतिबला की जड़ का काढ़ा 40 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम पीने से पेशाब में खून का आना बंद हो जाता है।
34. बवासीर : अतिबला (कंघी) के पत्तों को पानी में उबालकर उसे अच्छी तरह से मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े में उचित मात्रा में ताड़ का गुड़ मिलाकर पीयें। इससे बवासीर में लाभ होता है।
35. रक्तप्रदर :
- खिरैंटी और कुशा की जड़ के चूर्ण को चावलों के साथ पीने से रक्तप्रदर में फायदा होता है।
- खिरेंटी के जड़ का मिश्रण (कल्क) बनाकर उसे दूध में डालकर गर्म करके पीने से रक्त प्रदर में लाभ होता है।
- रक्तप्रदर में अतिबला (कंघी) की जड़ का चूर्ण 6 ग्राम से 10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम चीनी और शहद के साथ देने से लाभ मिलता है।
- अतिबला की जड़ का चूर्ण 1-3 ग्राम, 100-250 मिलीलीटर दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से रक्तप्रदर में लाभ मिलता है।
36. श्वेतप्रदर :
- बला की जड़ को पीसकर चूर्ण बनाकर शहद के साथ 3 ग्राम की मात्रा में दूध में मिलाकर सेवन करने से श्वेतप्रदर में लाभ प्राप्त होता है।
- खिरैटी की जड़ की राख दूध के साथ देने से प्रदर में आराम मिलता है।
37. दर्द व सूजन में : दर्द भरे स्थानों पर अतिबला से सेंकना फायदेमंद होता है।
38. पित्त ज्वर : खिरेटी की जड़ का शर्बत बनाकर पीने से बुखार की गर्मी और घबराहट दूर हो जाती है।
39. रुका हुआ मासिक-धर्म : खिरैटी, चीनी, मुलहठी, बड़ के अंकुर, नागकेसर, पीले फूल की कटेरी की जड़ की छाल इनको दूध में पीसकर घी और शहद मिलाकर कम से कम 15 दिनों तक लगातार पिलाना चाहिए। इससे मासिकस्राव (रजोदर्शन) आने लगता है।
40. पेट में दर्द होने पर : खिरैंटी, पृश्नपर्णी, कटेरी, लाख और सोंठ को मिलाकर दूध के साथ पीने से `पित्तोदर´ यानी पित्त के कारण होने वाले पेट के दर्द में लाभ होगा।
41. मूत्ररोग :
- अतिबला के पत्तों या जड़ का काढ़ा लेने से मूत्रकृच्छ (सुजाक) रोग दूर होता है। सुबह-शाम 40 मिलीलीटर लें। इसके बीज अगर 4 से 8 ग्राम रोज लें तो लाभ होता है।
- खिरैटी के पत्ते घोटकर छान लें, इसमें मिश्री मिलाकर पीने से पेशाब खुलकर आता है।
- खिरैटी के बीजों के चूर्ण में मिश्री मिलाकर दूध के साथ लेने से मूत्रकृच्छ मिट जाती है।
42. फोड़ा (सिर का फोड़ा) : अतिबला या कंघी के फूलों और पत्तों का लेप फोड़ों पर करने से लाभ मिलता है।
43. शरीर को शक्तिशाली बनाना :
- शरीर में कम ताकत होने पर खिरैंटी के बीजों को पकाकर खाने से शरीर में ताकत बढ़ जाती है।
खिरैंटी की जड़ की छाल को पीसकर दूध में उबालें। इसमें घी मिलाकर पीने से शरीर में शक्ति का विकास होता है।
अतिबला के अन्य विशेष लाभदायक प्रयोग :
1). फोड़ा (विद्रधि) – अतिबला की कोमल पत्तियों को बारीक पीस लुगदी (कल्क) बनाकर फोड़े पर रखना चाहिये और उस पर कपड़े का तह बनाकर उस पर ठण्डा पानी डालते रहना चाहिये। इस प्रयोग से विद्रधि में होने वाली जलन और दर्द बन्द होता है। इससे विद्रधि जल्दी पक कर फूट जाती है। – श्री यज्ञेश्वर गोपाल दीक्षित (वनौषधि गुणादर्श)
2). बवासीर (अर्श) – अतिबला पत्र 21 नग तथा कालीमिर्च एक दाना दोनों को पीसकर सात गोलियां बना एक-एक गोली नित्य प्रातः जल के साथ लेने से वातार्श में लाभ होता है। यदि रक्तार्श हो तो मंद आंच पर औटाते हुए दूध को इसकी कोमल टहनी से चलाते रहने से जब दूध जम जाए तो उसे कपड़े में बांधकर लटका दें, जो पानी (दूध का तोड़) निथरे उसे बार-बार पिलाने से लाभ होता है। – श्री कृष्ण प्रसाद त्रिवेदी (धन्व. वनौषधि विशे.)
3). वृक्क शूल – सिकता (मूत्र में लाल रंग की तलछटा जमना) के कारण वृक्क में शूल हो तो अतिबला के 60 ग्राम पत्तों को पीसकर छोटी-छोटी टिकिया बनाकर 60 ग्राम गोघृत में आगपर उन्हें पकावें जब टिकिया जल जावें तब उन्हें निकालकर फेंक दें तथा घृत को छान कर थोड़ा-थोड़ा यह घृत सुखोष्ण ही रोगी को पिला दें, इससे वेदना शीघ्र शान्त होती है। सिकता बाहर निकल जाती है। – श्रीदलजीत सिंह (आयु. वि. कोष)
4). न्यून रक्तदाब – तालमखाना 5 ग्राम, केंवाच के बीज 10 ग्राम, गेहूं का चोकर 20 ग्राम, विदारीकंद 40 ग्राम, अश्वगंधा 50 ग्राम, शतावरी 50 ग्राम, सफेद मूसली 50 ग्राम, जीवन्ती 60 ग्राम, अतिबला 60 ग्राम, नागबला 60 ग्राम, महाबला 70 ग्राम मिश्री सबके बराबर । इन सबको एकत्र करके कपड़छन चूर्ण करें फिर उसमें मिश्री मिला शीशी में भर कर रख लें।
मात्रा – 3-4 ग्राम प्रातः सायं दूध से या एक ग्राम मक्खन या मलाइ में मिलाकर चाटें। इससे न्यून रक्तदाब में आशातीत लाभ होता है। यह मेरा वर्षों का अनुभूत प्रयोग है। – डा. महेश्वर प्रसाद उमाशंकर
5). पथरी (अश्मरी) – फल पक जाने पर इसके पूरे पौधे को उखाड़कर छाया में सुखाकर जला लें इस राख को पानी में घोलकर तीन दिनों तक रख दें। प्रतिदिन लकड़ी से इसे कई बार हिला दिया करें। पश्चात् ऊपर का निथरा पानी लेकर पकावें। पानी के जल जाने पर क्षार को एकत्र कर पीस सुरक्षित रखें। यह क्षार मूत्रकर व अश्मरी नाशक है।
मात्रा – यह क्षार 500 मिग्रा. सफेद जीरा 3 ग्राम, कुलथी 3 ग्राम, तथा सोंफ 6 ग्राम प्रातः एवं इसी प्रकार सायं सेवन करने से शीघ्र कुछ दिनों में ही अश्मरी (पथरी) खंड-खड होकर निकल जाती है।
कफज कास एवं श्वास पर इस क्षार की 500 मिग्रा. मात्रा को शहद से चटावें।
रक्तार्श पर यह क्षार एक भाग शु० रसांजन दो भाग एकत्र खरलकर चना जैसी गोली बना दो-दो गोली प्रातः सायं खिलावें । इससे अर्श का खून बन्द हो जाता हैं तथा इसे दीर्घकाल तक सेवन करते रहने से धीरे-धीरे अर्शकुर विलीन हो जाते हैं। – वैद्यराज श्री दलजीत सिंह (आयु. वि. कोष)
6). अतिबला कुछ अनुभव –
अतिबला या कंघी एक सुलभ एवं उपयोगी औषधि के रूप में प्रस्थापित है इसके कुछ प्राप्त अनुभव यहां प्रस्तुत हैं –
व्रणरोपण – सद्योव्रण रोपण के लिए यह एक उपयोगी औषधि है इसके पत्तों के कल्क की टिकिया को मधुसर्पि द्वारा या यों ही व्रण पर रख बांधने से सद्योव्रण शीघ्र ठीक हो जाते हैं देखने में आया है कि इसके द्वारा रोहित व्रण के व्रणचिन्ह शेष नहीं रहते हैं।
एड्स – यह बल, आजोवर्धक तथा क्षय नाशक औषधि के रूप में भी निघण्टुकारों द्वारा स्वीकृत औषधि हैं। इसी दृष्टि से एड्स की प्रथम द्वितीय अवस्था के रुग्णों में पालनार्थ किया प्रयोग उत्साह जनक पाया गया हैं।
अतिबला के दुष्प्रभाव (Atibala ke Nuksan in Hindi)
- अतिबला लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
- अतिबला को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)