Last Updated on April 28, 2020 by admin
बदहजमी (अपच) क्या होती है ? : Badhajmi in Hindi
बदहजमी (अपच) याने जो हम खाएं उसका ठीक से पाचन न होना। यह एक ऐसी व्याधि है जो हमारा खाया पिया व्यर्थ तो करती ही है, साथ ही शरीर को दोष और विकारों से ग्रस्त भी कर देती है। शरीर कमज़ोर होता जाता है और नाना प्रकार के रोगों का शिकार भी। यह बहुत महत्वपूर्ण और प्रमुख मुद्दा है अतः अपनी सामान्य शैली में चर्चा करने से पूर्व ज़रा शास्त्र पर आधारित चर्चा करना बेहतर होगा।
आहार की महत्ता कौन नहीं जानता ? दो रोटी कमाने के लिए मनुष्य को कितने पापड़ बेलना पड़ते हैं, कितने जुगाड़ करना पड़ते हैं । अगर इन्सान पेट के कारण, भूख मिटाने के लिए आहार जुटाने को मजबूर न होता तो इस दुनिया में न कोई किसी की सुनता, न कोई किसी से दबता। लेकिन पेट की ज्वाला अच्छे अच्छों को पिघला देती है, झुका देती है और ऐसे – वैसों को तो जला कर खाक़ कर देती है।
यह कैसे मज़े की बात है कि इतना ताना बाना बुन कर दौड़धूप और हाय-हाय करके आदमी दो रोटी जैसे तैसे कमाए और उस रोटी को ठीक से हज़म ही न कर सके ! यही वजह है कि आदमी जितना अधिक धनसम्पन्न होता जाता है उसकी भूख और नींद उतनी ही कम होती जाती है। उसका हाज़मा खराब हो जाता है। वह जीभ के स्वाद का आनन्द भले ही उठा ले पर उस पदार्थ को पचा कर शरीर के लिए उपयोगी नहीं कर पाता। आहार से उसके शरीर को उतना लाभ नहीं हो पाता जितना कि हो सकता है या होना चाहिए। ऐसा क्यों होता है इसे ज़रा समझें।
भोजन के ठीक पाचन से होने वाले शारीरिक लाभ :
आहार शरीर के लिए क्यों ज़रूरी है यहां से शुरू करें। आयुर्वेद कहता है –
त्रयः उपस्तम्भा इत्याहारः स्वप्नो ब्रह्मचर्यमिति ।
अर्थात् – आहार, नींद और ब्रह्मचर्य – ये तीन आधार (खम्बे) हैं जिन पर हमारा स्वास्थ्य टिका
रहता है। इनमें से एक भी खम्बा कमज़ोर हुआ या गिरा कि हमारे स्वास्थ्य का महल धड़ाम से धराशायी हो जाता है।
इन तीनों में आहार को सबसे पहले रखा है क्योंकि भूखे पेट कुछ नहीं सूझता।
आहार की महिमा इस प्रकार बताई गई हैं –
आहारः प्राणिनः सद्योबलकद्देह धारकः ।
आयुस्तेजः समुत्साहस्मृत्योजोऽग्निविवर्धनः ।।
अर्थात् – भोजन ही प्राणियों में तत्काल नया बल और देह को धारण किये रहने की शक्ति प्रदान करता है। आहार से ही आयु, तेज, उत्साह, स्मृति, ओज (जीवन शक्ति) तथा शरीराग्नि की वृद्धि होती है लेकिन कब ? तब ही जबकि भली भांति पच जाए। खाया पिया ठीक से पचने का परिणाम क्या होता है, इस प्रश्न का उत्तर आयुर्वेद इस प्रकार देता है –
षटत्रिशतं सहस्राणि रात्रीणां हितभोजनः ।
जीवत्यनातुरो जन्तुर्जितात्मा संमतः सताम्।।
अर्थात – हित भोजन याने सन्तुलित पथ्य पूर्वक भोजन ग्रहण करने वाला संयमी व्यक्ति छत्तीस हजार रात्रि अर्थात् सौ वर्ष तक पूर्ण निरोग अवस्था में जीवित रह सकता है।
सन्तुलित आहार जब ठीक से पचता है तो सबसे पहले इसका ‘रस’ बनता है जिससे आगे शरीर की धातुएं पोषित होती हैं और दैनिक कार्यों के लिए शरीर में शक्ति व स्फूर्ति पैदा होती है। यदि रस निर्माण में ज़रा भी गड़बड़ या कमी होती है तो शरीर में कमज़ोरी, थकावट, पिंडलियों में दर्द और तबीयत में गिरावट आदि शिकायतें होने लगती हैं।
बदहजमी के कारण : Badhajmi ke Karan in Hindi
☛ अत्यधिक गर्मी का वातावरण हो, शरीर ज्वर से ग्रस्त हो, मन क्रोधाग्नि से झुलस रहा हो या चिन्ता की ज्वाला में जल रहा हो या कामाग्नि की ऊर्जा से उबल रहा हो – ईन सब प्रकार के तापों का यही परिणाम होगा कि पाचन प्रणाली कमज़ोर या नष्ट होने लगे। इसलिए चिन्ता, तनाव, घुटन
और निरन्तर रूप से किसी घोर संकट से त्रस्त रहने पर भूख और पाचनशक्ति दोनों ही कम हो जाती है।
☛ अतिसार (दस्त लगना) होने पर रोगी की कमर इसीलिए ढीली पड़ जाती है कि आमाशय में आम का ठीक से पाचन न होने से खाया हुआ आहार दस्तों के रूप में निकल जाता है, रस नहीं बन पाता।
☛ चिन्तापूर्ण,क्रोधपूर्ण, शोकपूर्ण और वासना से अभिभूत मानसिक स्थिति का पाचन तन्त्र पर सबसे अधिक और सशक्त प्रभाव या कहिए कि प्रहार होता है इसीलिए कई स्त्रीपुरुषों को किसी तीव्र शोकयुक्त एवं चिन्ताजनक बात सुन कर ही दस्त लग जाते हैं।
यदि भोजन ठीक से पचे तो इसके तीन प्रमुख परिणाम होते हैं। इसका स्थूल और निस्सार अंश मल व सार पूर्ण मध्यम अंश मांस बन जाता है और सूक्ष्म अंश मन का पोषण करता है। जल का उचित पाचन होने से स्थूल अंश मूत्र व मध्यम अंश रक्त का पोषण करता है और सूक्ष्म अंश प्राण को पोषण प्रदान करता है।
घृत मख्खन आदि तेजस पदार्थ भी तीन भागों में बंट जाते हैं। इनका स्थूल तत्व हड्डी बन जाता है, मध्यम तत्व मज्जा और सूक्ष्म ‘वाणी’ को पोषण प्रदान करता है। इसका सारांश यह है कि अन्न से मन, जल से प्राण और तेज से वाणी का पोषण और निर्माण होता है इसीलिए कहावत है कि जैसा खाए अन्न वैसा बने मन । पानी के बिना तीव्र प्यास से प्राण तड़पने लगता है और तेज के बिना वाणी कमज़ोर हो जाती है और एक स्टेज यहभी आ जाती है जब डाक्टर रोगी को बोलने के लिए मना करता है। यह सब बदहजमी के दुष्परिणाम हैं इसलिए हमें बदहजमी (अपच) को मामूली चीज़ नहीं समझना चाहिए।
बदहजमी के दुष्परिणाम : Badhajmi ke Nuksan
बदहजमी होने का मतलब ही कुल इतना है कि कैसा भी खाओ पिओ, शरीर के लिए किसी मतलब का नहीं।खाने पीने से उनके शरीर को उतना लाभ नहीं होता जितना होना चाहिए उलटे गिरह की शक्ति खोना पड़ती है।
अच्छी पाचन शक्ति होने पर ही खाए हुए अन्न जल आदि पदार्थों का उचित पाचन होता है और जैसे दूध का तरल रूप जम कर दही बनता है और दही को भली प्रकार मथने पर सार-सूक्ष्म अंश ऊपर उठकर मख्खन के रूप में प्रकट होता है वैसे ही तरल रूपी आम का, रस से रक्त मांस
आदि धातुओं के रूप में विकास होने के बाद मख्खन रूपी शुक्र-धातु का निर्माण होता है और शरीर में ओज पैदा होता है। इसे रौनक कहते हैं। इसी से स्फूर्ति, शक्ति, ऊर्जा और मेधा उपलब्ध होती है।
तो संक्षेप में बदहजमी के विषय में इतना विवेचन पढ़ कर आप अपच के परिणामों से भली भांति परिचित हो ही चुके होंगे। अब बदहजमी को कैसे न होने दिया जाए और हो जाए तो कैसे मिटाया जाए इस पर चर्चा की जानी चाहिए। क्योंकि आयुर्वेद का मूल उद्देश्य ही यह है कि –
प्रयोजनं चास्य स्वस्थस्य स्वास्थ्यरक्षणमातुरस्य विकार प्रशमनं च।
अर्थात् – आयुर्वेद का मुख्य प्रयोजन प्राथमिक रूप से स्वस्थ के स्वास्थ्य की रक्षा करना और दूसरे, अस्वस्थ होने पर व्याधि का शमन करना ही है।
बदहजमी (अपच) से बचने के उपाय : Badhajmi ke Upay in Hindi
कब्ज से बचाव करता है बदहजमी को ठीक –
पहले तो कब्ज न होने देने के उपाय करना और हो ही जाए तो इसको दूर करने के उपाय करना यह सिद्धान्त समस्त रोग व्याधियों पर लागू होता है। ऐसे ही सिद्धान्तों से भरे ज्ञान के महासागर का नाम ‘आयुर्वेद’ है। आयुर्वेद याने आयु का वेद (ज्ञान) याने साइंस ऑफ लाइफ। जीने की कला, जीने का ढंग और जीने के विज्ञान का नाम आयुर्वेद है। चूर्ण, काढ़ा, जड़ी-बूटी आसव अरिष्ट का नाम आयुर्वेद नहीं है।
बदहजमी से बचाव स्वस्थ रहने और स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए आहार विहार एवं पथ्य-अपथ्य का पालन करना पहली शर्त है। इस प्रकार आप प्रकृति के अनुशासन और नियम व्यवस्था से सहयोग करते हैं और प्रकृति की शक्ति का उपयोग कर लाभ उठाते है। जैसे किसी गाड़ी या मशीन का उचित उपयोग आप तभी कर सकेंगे जब उसका सारा सिस्टम इन आर्डर (In order) हो और उसके सभी कल पुर्जे ठीक काम कर रहे हों। इसके लिए आपको मशीन की उचित देखभाल (मेन्टेनेन्स)और आवश्यक सेवा सम्हाल (सर्विसिंग) करना होती है वरना उसके खटारा होने में देर नहीं लगती। जो ऐसा नहीं करते या नहीं कर पाते उनकी मशीन खटारा हो जाती है। गरज यह कि कई लोग खटारा मशीन बने रहते हैं और जब तब रिपेयरिंग कराते रहते हैं, कुछ गेरिज में भरती ही हो जाते है। अच्छा, मशीन या गाड़ी के इंजिन के स्पेयर पार्ट्स तो मिल भी जाते हैं पर इस इंसानी मशीन के स्पेयर पार्ट्स बाज़ार में मिलते भी नहीं।
समय से भोजन करें बदहजमी से बचे –
तो बदहजमी से बचाव करना होगा क्योंकि सारे शरीर को बल व पोषण प्रदान करने की बुनियाद है यह पाचन प्रणाली। यदि नींव ही कमज़ोर होगी तो मकान कब तक खड़ा रह सकेगा ? तीक समय पर सुपाच्य भोजन करना सबसे जरूरी शर्त है लेकिन यदि हक़-ईमान की बात पूछे तो यह शर्त ही पूरी करना आज अधिकांश लोगों के लिए मुश्किल हो रहा है। जो भाग्यवान और संयम-प्रेमी इस शर्त को पूरी करते हुए जीवन जीते हैं दर असल वे ही सही जीवन जी रहे हैं और तन्दुरुस्ती के मज़े ले रहे हैं। अब यह अपनी मर्जी की बात है कि हम क्या चुनते हैं । हम सिर्फ इतना इशारा कर देना काफ़ी समझते हैं कि निश्चित समय पर नियम पूर्वक भोजन करना सिर्फ इसलिए ज़रूरी होता है कि आप जिस वक्त भोजन करने का नियम बना लेंगे उस वक्त प्रकृति के नियमों के अनुसार खुद ब खुद और खुल कर भूख लगेगी। भूख लगने का मतलब है कि पेट की भट्टी धधक उठी है याने जठराग्नि प्रबल हो चुकी है। यह तो आप भी जानते होंगे कि दाल तभी ठीक से पकेगी जब चूल्हे की आग तेज़ हो। ठण्डे चूल्हे पर रसोई नहीं पकती।
भूख जम कर लगे तो ही खाने का मजा है। ऐसी सूरत में जो कुछ रूखा सूखा खा लेंगे वह भी अंग लग जाएगा और अच्छी व सच्ची भूख न हो तो मोहन भोग भी खाएं तो बेकार जाएगा। यही वजह है कि मेहनत मशक्कत करने वाले साधारण भोजन करके भी बलिष्ठ और स्वस्थ बने रहते हैं जबकि डायनिंग टेबल पर सारे फल और नाना प्रकार के स्वादिष्ट भोजन होते हुए भी कई लोग ज्यादा कुछ हज़म नहीं कर पाने के कारण खाना कम और गम ज्यादा खाते हैं।
कहावत है कि भूख न देखे सूखे टुकड़े, नींद न देखे टूटी खटिया। पर ऐसी तेज़ भूख और बढ़िया मीठी नींद आजकल दुर्लभ होती जा रही है। तो अपच न हो, इसकी पहली शर्त है कि आप दोनों टाइम ठीक वक्त पर सारे काम छोड़ कर भोजन’ किया करें। आखिर सारे काम भी आप उदर पोषण के लिए ही तो करते हैं फिर यह उदर शोषण क्यों कर रहे हैं ?
पानी पीने का सही तरीका बदहजमी दूर करने में लाभदायक –
दूसरी शर्त है कि भोजन के आधा घण्टा पहले से और एक घण्टा बाद तक जल न पिएं। भोजन के मध्य में २-३ चूंट पी सकते हैं भोजन को ही प्रेम पूर्वक इतना चबा-चबा कर खाएं कि पानी बन कर उतर जाए। जल्दी-जल्दी कौर ठूसना ठीक नहीं। सब चिन्ता फिक्र दिमाग़ से अलग कर शान्ति और एकाग्रता से भोजन ग्रहण करें, भले ही सिर्फ़ दाल रोटी हो ।
सुपाच्य भोजन का सेवन नही होने देता बदहजमी की समस्या –
तीसरी शर्त, ज्यादातर सादा, हलका और सुपाच्य भोजन किया जाना चाहिए। पूरी, पराठे तले हुए पदार्थ कभी-कभी खा लें तो कोई मुज़ायक़ा नहीं लेकिन हमेशा ही इनका सेवन करना उचित नहीं। इस आहार से और तेज़ मिर्च मसाले, खटाई और घटिया क़िस्म के वेजीटेबल घी के अधिक सेवन से पित्त कुपित रहने लगता है जिससे अम्लपित्त (हायपरएसेडिटी) की शिकायत हो जाती है। आज कल यह व्याधि आम तौर पर होती पायी जाती है।
समय से करें शाम का भोजन नहीं होगी बदहजमी –
चौथी शर्त, शाम का भोजन सोने से दो ढाई घंटे पूर्व अवश्य कर लेना चाहिए। देर से भोजन करके सो जाने या सहवास करने से बदहजमी हो जाता है जिससे क़ब्ज़ और गैस ट्रबल (वायु कुपित होना) की शिकायत हो जाती है। यह व्याधि भी आज खूब हो रही है।
बदहजमी से बचना है तो करे सब्जीयों का अधिक सेवन –
पांचवी शर्त, भोजन के साथ कच्चा सलाद और शाक सब्जी का सेवन अधिक और रोटी की मात्रा कम रखें तो पाचन शक्ति बहुत बढ़िया रहेगी और शरीर में बल की वृद्धि होगी।
बदहजमी से बचने के अन्य घरेलू उपाय –
- तुअर (अरहर) की दाल या तो चावल के साथ खाएं या १-२ चम्मच शुद्ध घी डाल कर ।
- आलू का सेवन छिलके सहित करें।
- मूंग की दाल भी छिलके सहित खाएं।
- भोजन के तुरन्त बाद पानी न पिएं। इससे जठराग्नि मन्द हो जाती है और पुनः गरम होने में समय लगने से पाचन देर से होता है। मोटापा और पेट भी इसी कारण बढ़ता है।
- जो कुछ भी आहार लें, सो बड़ी प्रीति पूर्वक, प्रसन्नता और सहजता के साथ ग्रहण करें। जैसा भी है अन्न ब्रह्म है इसी भावना से आदर के साथ ग्रहण करें तो आपका शरीर भी इसे स्वीकार कर पचा लेगा।
बदहजमी का इलाज : Badhajmi ka Ilaj in Hindi
राई से बदहजमी की बीमारी का उपचार-
भारी पदार्थ खाने से बदहजमी हो तो थोड़ी सी साबुत राई पानी के साथ निगल लेने से अपच ठीक होता है।
( और पढ़े – राई के 35 लाजवाब फायदे )
अदरक के उपयोग से बदहजमी का इलाज –
भोजन के पूर्व अदरक बारीक करके इस पर सेन्धानमक बुरक कर खा लें फिर भोजन करें। इससे भूख बढ़ती है व पाचन ठीक होता है।
बदहजमी का घरेलू उपचार सोडा से –
खाने का थोड़ा सोडा, पानी में घोल कर पीने से बदहजमी दूर होता है।
बदहजमी की आयुर्वेदिक दवा लवण भास्कर चूर्ण –
- छाछ या पानी मिले दही में १ चम्मच लवण भास्कर चूर्ण घोल कर रख लें और भोजन के साथ १-१ चूंट कर पीते रहें। इससे भी अपच मिट जाता है।
- लवण भास्कर चूर्ण पानी या छाछ के साथ ५ ग्राम मात्रा में लेने से बदहजमी मिट जाता है।
( और पढ़े – लवण भास्कर चूर्ण खाने के 6 लाजवाब फायदे )
बदहजमी में लाभदायक पानी का प्रयोग –
सुबह शौच से पूर्व ठंडा पानी पीने से अपच मिटता है।
( और पढ़े – सुबह खाली पेट पानी पीने के 14 बड़े फायदे )
अधिक जागरण और अधिक सोने से बचे –
चिन्ता, ईर्ष्या और क्रोध करते रहने से बदहजमी रोग जरूर होता है। अतः यथाशक्ति इनसे बचने की पूरी कोशिश करना चाहिए। अधिक जागरण और अधिक सोना भी अपच का कारण होते हैं।
बदहजमी दूर करने में लाभदायक है वज्रासन –
भोजन के बाद घुटने मोड़ कर वज्रासन में १५-२० मिनिट बैठने से पाचन अच्छा होता है।
( और पढ़े – वज्रासन के अदभुत लाभ और विधि )
बदहजमी दूर करे सुबह की सैर –
नियमित रूप से प्रातः योगासन और वायुसेवन हेतु भ्रमण करने से अपच मिटता है, पहले तो होगा ही नहीं।
उपवास भी है बदहजमी का इलाज –
सप्ताह में एक बार निराहार रहना चाहिए। सिर्फ फल या दूध लेकर उपवास करना चाहिए। ‘लंघनम् परमौषधम्’ अर्थात् भोजन का लंघन कर जाना परम औषधि है।
( और पढ़े – उपवास रखने के 5 बड़े फायदे )
बदहजमी का घरेलू उपाय –
बदहजमी होने पर नीबू के रस में जायफल जरा सा घिस कर चाटने से दस्त साफ़ आता है और पेट हलका हो जाता है।
भोजन चबा-चबा कर करने से बदहजमी होती है दूर –
बदहजमी दूर करने का एक प्राकृतिक उपाय भी है। आप भोजन करते समय अपना ध्यान भोजन पर ही रखें, शान्तिपूर्वक भोजन किया करें और प्रत्येक कौर को इतना चबाएं कि पानी जैसा पतला हो जाए। बस, अपच खत्म !
( और पढ़े – भोजन चबा चबाकर खाने के फायदे )
(उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)