Last Updated on September 7, 2019 by admin
चंदन सुगंध और शीतलता का दिव्य प्रतीक है। यह परिवेश और वातावरण को सुगंध से भर देता है एवं अंतर को भी महका देता है। चंदन के दिव्य गुणों से शरीर शीतल, मन प्रसन्न और हृदय पवित्रता से सराबोर हो उठता है। इसकी सात्विकता और सुगंधरूपी विशेषता के कारण ही इसे हर धार्मिक कृत्यों में प्रयुक्त किया जाता है। चंदन की धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्ता के अलावा भी इसका आधार चिकित्सकीय महत्त्व वाला है। इससे बनी औषधियाँ विभिन्न प्रकार के रोगों में अचूक एवं कारगर सिद्ध होती हैं। इसकी अनेकों विशेषताओं ने आधुनिक चिकित्सकों को आकृष्ट किया है तथा आधुनिक शोध-अनुसंधान के परिणाम बड़े ही चमत्कारिक एवं अद्भुत हैं।
परिचय : चंदन का वृक्ष
चंदन सदाबहार वृक्ष है। यह सदा हरा-भरा रहता है तथा इसका कद मध्यम होता है। इसकी ऊँचाई २५ से ३० फीट (लगभग ७.५ से ९ मीटर) के बीच होती है। वनस्पतिविज्ञानी इसके पत्ते को अभिमुख अंडाकार बताते हैं। पुष्प छोटे बैंगनी रंग के एवं गुच्छों में खिलते हैं। फल बैंगनी रंग के मांसल होते हैं। अप्रैल और मई के मध्य तथा अक्टूबर व नवंबर के बीच ये फलने लगते हैं। चंदन के एक वृक्ष को परिपक्व होने में लगभग ६० वर्ष का दीर्घ समय लगता है, परंतु कम आयु से ही इसका उपयोग आरंभ हो जाता है।
चंदन का वृक्ष कहां पर पाया जाता है ?:
इसके पेड़ तमिलनाडु से कर्नाटक तक दक्षिण के २०० किलोमीटर के दायरे में फैले पठार में पाए जाते हैं। दक्षिण के पठार में चंदन के पेड़ों की बहुलता है। इस पठार में चंदन के पेड़ स्वतः उगने-पनपने लगते हैं।
चंदन का वृक्ष बनाता है वातावरण को अत्यंत समृद्ध और सात्विक :
भीषण गरमी के इस पठार में चंदन के पेड़ों की उपस्थिति इसके वातावरण, परिवेश एवं जलवायु को अनुकूल बनाए रखती है। यहाँ का वातावरण अत्यंत समृद्ध और सात्विकता से भरा हुआ है। यह शोध का विषय है कि चंदन अपने आस-पास के वातावरण तथा इस वातावरण में रहने वाले व्यक्तियों की मानसिकता में किस प्रकार परिवर्तन लाता है। मनोवैज्ञानिक एवं प्रकृतिविद् दोनों ही इस तथ्य से सहमत हैं कि परिवर्तन सकारात्मक होता है। परंतु अन्य पेड़ों की तुलना में किस प्रकार यह सकारात्मक एवं विधेयात्मक प्रभाव डालता है, इस गुत्थी को वे सुलझा नहीं पा रहे हैं।
कुछ रसायनशास्त्री इसके समाधान में अपनी रासायनिक प्रयोग-विधियों का सहारा लेते हुए कहते हैं कि इस पेड़ का रासायनिक संगठन ही इसके लिए जिम्मेदार है। रासायनिक रूप से चंदन के तेल में अल्फा, वीटा, सेण्टालोल, एल्डीहाइड, कीटोन, सेण्टेनॉन तथा सेण्टालोन पाए जाते हैं। इसके काष्ठ सार में राल, टैनिक अम्ल एवं उड़नशील तेल पाए जाते हैं। संभवतः ये सुगंधित एवं दुर्लभ तत्त्व ही परिवेश के साथ मानसिकता में प्रभाव डालते हैं।
पर्यावरणविदों की मान्यता है कि चंदन का एक पेड़ लगभग सौ मीटर के दायरे में अपनी भीनी-भीनी सुगंध बिखेरता रहता है। कृत्रिम रूप से इतनी सुगंध को फैलाने के लिए २४ घंटे में हजारों रुपये खरचने पड़ेंगे, जो कि प्रकृति चंदन के माध्यम से अनायास ही फैलाती रहती है। इस प्रकार चंदन का पेड़ अपने आस-पास सुगंध के साथ प्राणवान ऑक्सीजन का सघन भंडार जमा करता रहता है। इसी कारण व्यक्ति इस परिवेश के संपर्क में आते ही सजग, सजीव एवं चैतन्य हो उठता है। भारतीय
ऋषि-मनीषी चंदन की दिव्य विशेषताओं से भली भाँति परिचित थे । इसी कारण अन्य क्षेत्रों में चंदन की लकड़ी से ही इस देवोपम विशेषता की अभावपूर्ति करते थे। वर्तमान समय में वंदन से अगणित सुगंधित द्रव्य, लेप आदि वस्तुओं का उत्पादन किया जा रहा है। हाँ, इतना अवश्य है कि हम वस्तुओं का मात्र भोग के लिए ही उपयोग करते हैं, भावभरी मन:स्थिति से प्रयोग न कर पाने के कारण ही इसकी संपूर्ण उपयोगिता से वंचित हो जाते हैं। प्रसिद्ध पश्चिमी मनीषी एवं वैज्ञानिक चेलेक के अनुसार यदि हम अपनी भोगवादी मानसिकता को बदलकर भावप्रवण रूप से चंदन का प्रयोग करें तो इसकी दिव्य विशेषता हमारे हृदय को सात्विकता और पवित्रता से ओत-प्रोत कर देगी।
चंदन का भारतीय इतिहास :
भारत चंदन की संपूर्ण विशेषताओं से परिचित है। लिखित इतिहास के अतीत में झाँकने से पता चलता है कि चंदन का उपयोग ईसा पूर्व पाँचवीं सदी से होता आया है। अठारहवीं सदी के मध्य तक भारत ही चंदन का मुख्य स्रोत था। भारत में चंदन की तीनों प्रजातियाँ-श्वेत चंदन, लाल चंदन एवं पीला चंदन पाई जाती हैं । इतिहास लेखक परिफ्लस के अनुसार प्रथम शताब्दी में यूनान को भारत से चंदन निर्यात किया जाता था। उन दिनों भारत में चंदन से विभिन्न प्रकार के श्रेष्ठकोटि के उत्पाद बनाए जाते थे और इसी का प्रमाण है कि प्रथम शताब्दी से तीसरी शताब्दी तक रोम भारत से चंदन तेल का प्रमुख आयातक देश था। छठी शताब्दी में अरब देश इस ओर आकृष्ट हुए और वे भारत से चंदन तेल का आयात करने लगे। इस प्रकार चंदन का व्यावसायिक एवं व्यापारिक महत्त्व अति प्राचीन है।
चंदन के औषधीय गुण और उपयोग :
भारत पुरातनकाल से इसकी आयुर्वेदीय महत्ता और विशेषता से भी परिचित था।
चंदन का ओषधीय गुण है-शीतल, तिक्त, रक्त स्तंभक, दाहप्रशामक, ग्राही, विषघ्न, मूत्रल, स्वेदजन, वाजीकर आदि। इसके इन गुणों के कारण ही इसे ज्वर, रक्तपित्त, तृषा, वमन, मूत्रकृच्छ्, मूत्रघात, श्वेतप्रदर, प्रवाहिका, चर्मरोग, विसर्प, श्वेदराजिका में प्रयोग किया जाता है। विभिन्न रोगों में चंदन का प्रयोग चिकित्सक के परामर्श के अनुरूप ही करना चाहिए।
1- दर्द या सूजन में –
आयुर्वेद के चिकित्सकों के अनुसार पिसे हुए चंदन को जल में भिगोकर दर्द या सूजन वाले स्थान पर तथा ज्वर में लेप करने से आराम मिलता है।
2- विसर्प में –
विसर्प, स्वेद राजिका में त्वचा पर ठंडक लाने के लिए चंदन को जल में घिसकर
लगाया जाता है।
3 – चर्म रोगों में –
चर्मरोगों में भी चंदन का लेप लाभदायक होता है।
4 – तृषा रोग में –
तृषा में चंदन को नारियल के जल में घिसकर पिलाने से लाभ होता है।
5 – रक्तातिसार में –
रक्तातिसार में चावल के धोवन में चंदन घिसकर शहद व मिसरी मिलाकर पिलाने से रोग कम होता है।
6 – वमन में –
वमन होने पर चंदन का आँवले के रस के साथ सेवन किया जाता है।
7 – श्वेतप्रदर में –
श्वेतप्रदर तथा प्रमेह में चंदन का क्वाथ बनाकर लिया जाता है।
चंदन के तेल के फायदे और उपयोग :
चंदन के तेल का प्रयोग अनेक रोगों में किया जाता है। यह मूत्रजनन, वृक्कोत्तेजक, कृमिनाशक तथा कफ निस्सारक है।
1 – सोजाक में –
सोजाक में चंदन के तेल की प्रतिदिन दो बार १५-२० बूंदें देने से लाभ होता है। चंदन तेल छोटी इलायची एवं सौंठ के फाँट के साथ लिया जाता है।
2 – मूत्ररोग में –
मूत्ररोग में बताशे में दो-तीन बूंद चंदन तेल डालकर दूध के साथ प्रयोग किया जाता है।
3 – खाँसी में –
इसके अतिरिक्त कफ युक्त कास में भी इसका उपयोग लाभकारी है।
4 – कान के दर्द में –
कर्णशूल, दंतशूल में चंदन तेल प्रयोग किया जाता है।
5 – खुजली में –
खुजली तथा फुसियों में चंदन के तेल में सरसों तेल का समभाग मिलाकर प्रयोग करने से अत्यंत लाभ देखा गया है।
चंदन से हृदय रोग का इलाज :
भारत में पाए जाने वाले चंदन से हृदय रोग का उपचार संभव है। चीन में पाए जाने वाला
लाल चंदन मूत्राशय का संक्रमण दूर करने में अति उपयोगी होता है।
अमेरिका के सैनफ्रान्सिस्को स्थित ले विलेपिने हेल्थ केयर सेंटर के डॉ० डब्ल्यू जे० निकोल्सन ने उल्लेख किया है कि भारत में पाए जाने वाले चंदन में कई उपयोगी प्रतिरोधक तत्त्व पाए जाते हैं। इससे कई प्रकार की व्याधियाँ, मुख्यतः हृदय रोग का इलाज किया जा सकता है। डॉ. निकोल्सन ने अपने चिकित्सकीय अनुसंधान से पाया कि चंदन का विशेष रूप से प्रयोग करने पर रक्तधमनियों की दीवारों में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम जमती है और ये दीवारें मोटी नहीं हो पाती तथा उनके अवरुद्ध होने की आशंका नहीं होती। इसके अलावा इसमें पाए जाने वाले एण्टीबैक्टीरियल तत्त्व रक्तनलिकाओं और रक्त को किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचाते हैं।
डॉ. निकोल्सन के अनुसार श्वेत चंदन शीतल होता है। इससे लू का प्रकोप, अतिसार, त्वचा के रोग, कफ, श्वासनली में संक्रमण, बुखार, जलन, जिगर और पित्ताशय की बीमारियाँ दूर की जा सकती हैं। फफूंद के कारण होने वाला संक्रमण भी चंदन से दूर किया जा सकता है। जर्मनी के चिकित्सकों को मूत्राशय में होने वाले संक्रमण से विजय पाने में सफलता मिली है। इन प्रयोगों के अलावा चंदन के ओषधीय महत्त्व को जाननेसमझने के लिए विश्व की अनेक प्रयोगशालाओं में प्रयोग किए जा रहे हैं और आशातीत सफलता मिल रही है। हमें भी इसके इस लाभ से वंचित नहीं होना चाहिए।
चंदन के आध्यात्मिक लाभ :
चंदन में अत्यंत आध्यात्मिक विशेषताएँ समाहित होती हैं। मस्तिष्क को शांत, शीतल एवं सुगंधित रखने की आवश्यकता का स्मरण कराने के लिए चंदन धारण किया जाता है। इसकी सुगंध से अंत:करण संतोष एवं
आनंद से भर उठता है। इसी कारण चंदन को पवित्र. पावन, पापनाशक, लक्ष्मीप्रदाता तथा आपदा-विपदा से रक्षा करने वाला कहा गया है। इस प्रकार इस दिव्य सुगंधित तत्त्व का उचित प्रयोग कर भौतिक एवं आध्यात्मिक, दोनों प्रकार के लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं! अतः हमें चंदन को धार्मिक कर्मकांडों की प्रतीकपूजा में ही समेट नहीं देना चाहिए, बल्कि इसका व्यापक प्रयोग कर इसके अनेक गुणों एवं विशेषताओं का लाभ लेना चाहिए।
(दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)
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• चंदन के 21 अनोखे फायदे
• लाल चंदन के फायदे और उपयोग