Last Updated on April 29, 2020 by admin
झाऊ क्या है ? : What is Jhau (Tamarisk) in Hindi
झाऊ झााड़ीदार छोटा वृक्ष होता है। इस वृक्ष की शाखाओं पर एक प्रकार के कीड़े के छिद्र करने और इन छिद्रों में अपने अण्डे रखने से, वहाँ पर मटर से लेकर अरीठे के बराबर या माजूफल जैसी, भीतर से फैली ग्रन्थियां बन जाती हैं। इन ग्रन्थियों को ही इनका फल समझा जाता है। ये फल किंवा कीट ग्रन्थि ही “माई” के नाम से जानी जाती है। इसकी मुख्यत: “छोटी माई” और “बड़ी माई” के भेद से दो जातियाँ हैं। बड़ी माई विशेषतः औषधिकार्यार्थ उपयोग में लायी जाती है। छोटी मांई बड़ी माई का प्रतिनिधि द्रव्य है। इसकी अन्य भी बहुत सी प्रजातियां हैं।
इस वृक्ष की शाखाओं पर यवासशकर्रा के समान एक प्रकार की शर्करा भी उत्पन्न होती है। इस शर्करा को “झावक-शर्करा‘ या “गंजगबीन” कहते हैं। बहुत देर तक रखने से यह पिघल कर शहद के समान हो जाती है। यह शर्करा भारतीय झाऊ-वृक्षों पर उत्पन्न नहीं होती है। भारत में बड़ी माई एवं गंजगवीन का आयात मुख्यत: अरब एवं फारस से होता है। यहाँ पर बड़ी माई के स्थानापन्न रूप से भारतीय माई या छोटी माई का ही व्यवहार किया जाता हैं।
झाऊ का पेड़ कहां पाया या उगाया जाता है ? : Where is Jhau Tree (Tamarisk) Found or Grown?
झाबुक कुल (टैमरीकेसी) का प्रसिद्ध वृक्ष झाऊ नदियों के किनारे बालुकामय तथा समुद्रवर्ती प्रदेशों में होता है। उत्तर भारत में गंगा-यमुना के किनारों पर, उत्तर गुजरात एवं आबू की पहाड़ियों पर इसके वृक्ष पाये जाते हैं। यूरोप, अफ्रीका, फारस, अफगानिस्तान आदि में भी ये पाये जाते हैं।
झाऊ के पेड़ का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Jhau Tree (Tamarisk) in Different Languages
Tamarisk Tree in –
- संस्कृत (Sanskrit) – झाबुक, बहुग्रन्थिका,
- हिन्दी (Hindi) – झाऊ, फरास, झाव, पिलपी
- गुजराती (Gujarati) – झाऊ, झाव, प्रांश
- मराठी (Marathi) – झाऊ
- बंगाली (Bangali) – झाव
- फ़ारसी (Farsi) – गज
- अंग्रेजी (English) – टेमरिस्क (Tamarisk)
- लैटिन (Latin) – टेमरिस्क टूपियाई (Tamarix Troupii Hole)
झाऊ फल के नाम –
- हिन्दी (Hindi) – बड़ी माई
- फ़ारसी (Farsi) – माईकला, कजमाजज
- अंग्रेजी (English) – टेमरिस्क गाल (Tamarix Gall)
झाऊ शर्करा के नाम –
- संस्कृत (Sanskrit) – झाबुक-शर्करा
- हिन्दी (Hindi) – झाऊ की शक्कर
- फ़ारसी (Farsi) – गंजगबीन
- अंग्रेजी (English) – टेमरिस्क मेन्ना (Tamarix Manna)
झाऊ का पेड़ कैसा होता है ? :
यह झााड़ीदार, गुल्म या छोटा वृक्ष होता है। इसकी ऊँचाई 6 से 12 फुट तक होती है। इसकी शाखायें कोमल, सरल या झुकी हुई होती हैं।
झाऊ के पत्ते – लम्बे, पतले, तीक्ष्णाग्र और चिकने होते हैं।
झाऊ के फूल – सफेद या गुलाबी, लम्बी-कोमल मंजरियों में लगते हैं। ये पुष्प शरद् ऋतु में लगते हैं।
झाऊ के फल (बड़ी माई) – बड़ी माई के भीतर का भाग प्रायः खोखला होता है और इसका रंग बाहर से कुछ हरा या भूरा होता है। इसे तोड़ने पर कभी-कभी इसका निर्माण करने वाला कीट भी मिल जाता है।
झाऊ के पेड़ का रासायनिक विश्लेषण : Jhau Tree (Tamarisk) Chemical Constituents
- इसकी माई (झाऊ के फल) में 40-42 प्रतिशत टेनिन पाया जाता है।
- इसकी शर्करा में इक्षुशर्करा, ग्लुकोज और द्राक्षाशर्करा पायी जाती है।
- इसके पत्तों में टेमेरिक्सिन नामक ग्लुकोसाईउ पाया जाता है।
झाऊ के पेड़ का उपयोगी भाग : Beneficial Part of Jhau Tree (Tamarisk) in Hindi
मूल, पत्र, माई (फल), शर्करा
सेवन की मात्रा :
- स्वरस – 10 से 20 मि.लि.
- माई चूर्ण – 2 से 5 ग्राम,
- पत्र चूर्ण – 3 से 4 ग्राम
- शर्करा – 10 से 30 ग्राम
झाऊ के औषधीय गुण : Jhau ke Gun in Hindi
- रस – कषाय
- गुण – लघु, रूक्ष
- वीर्य – शीत
- विपाक – कटु
- दोषकर्म – कफपित्तशामक
- लेखन, प्रमाथी एवं छेदन होने से इसको प्लीहाशोथ में उपयोग में लाते हैं।
- झाऊ प्लीहा को संकुचित करता है तथा उसकी वृद्धि और कठिनता को दूर करता है।
- यह शोथहर होने के साथ ही रक्तशोधक, रक्तस्तम्भन एवं ग्राही है।
- शोथ एवं कुष्ठ में मलक्वाथ तथा शीघ्रपतन में झाऊ के पत्र स्वरस भी देते हैं।
- गंजगबीन शर्करा (झाऊ की शक्कर) अनुलोमन, कफघ्न, लेखन, स्वरशोधक, प्रतिश्याय कास श्वासहर है।
- झाऊ की शक्कर के सेवन से सरलतापूर्वक आसानी से शौच हो जाता है।
- बालकों के विबन्ध (कब्ज) पर इसे विशेषतया प्रयुक्त किया जाता है।
झाऊ के फायदे और उपयोग : Benefits of Jhau Tree (Tamarisk) in Hindi
तिल्ली (प्लीहा) वृद्धि में झाऊ के प्रयोग से लाभ
प्लीहा के स्थान पर झाऊ के पत्र कल्क का लेप करना चाहिये तथा रोगी को झाऊ की लकड़ी के बने पात्र में पानी रखकर पिलाना चाहिये। सेवन के लिये पत्र चूर्ण 3 ग्राम में बराबर मिश्री मिलाकर अनुपान के रूप में पत्र क्वाथ पिलाना चाहिये। यूनानी चिकित्सक इसमें अन्य द्रव्य मिलाकर सेवन कराते हैं।
एक योग है-”कुर्स कजमाजज” (माई की गोलियां) इसकी निर्माणविधि श्री मंसाराम शुल्क ने यू. चि. सागर में इस प्रकार लिखी है –
कजमाजज (बड़ी या छोटी माई) 20 ग्राम, सफेद मिर्च, संबुल (शु. संखिया), तगर, उशक (एक प्रकार का गोंद) ये सभी द्रव्य 10-10 ग्राम लेकर पहले उशक को जंगली प्याज के सिरके में घोटकर फिर शेष द्रव्यों को चूर्ण को इसी सिरके में मिलाकर गोलियां बनालें। इन गोलियों को 4.5 ग्राम की मात्रा से सिकंजबीन के अनुपान से सेवन करावें। इसके कुछ दिनों तक सेवन करने से प्लीहा का कड़ापन समाप्त होकर वह पूर्व स्थिति में आ जाती है।
( और पढ़े – बढ़ी हुई तिल्ली (प्लीहा) के घरेलू उपचार )
गुदाभ्रंश (prolapsus ani) में झाऊ के इस्तेमाल से लाभ
माई (झाऊ का फल) चूर्ण को शतधौत घृत (100 बार धोया हुआ घी) में या शुद्ध तिल तैल में मिलाकर मरहम बनाकर लगाने से गुदभ्रंश (मलद्वार का बाहर निकलना) , गुदविदार और वातार्श में लाभ होता है। गुदभ्रंश के रोगी को इसके मूल या पत्र क्वाथ में अवगाहन कराने से शान्ति मिलती है। श्वेतप्रदर की रुग्णा को भी इस क्वाथ में बिठाना चाहिये।
( और पढ़े – गुदाभ्रंश के सरल घरेलू उपचार )
खाँसी में झाऊ के सेवन से लाभ
झाऊ के पंचांग के क्वाथ में शहद मिलाकर सेवन करने से सूखी खांसी में आराम मिलता है।
झाऊ के इस्तेमाल से घाव में लाभ
झाऊ पत्र क्वाथ से व्रणों को धोयें, व्रणों में पत्र चूर्ण डालें और पत्तों की धूनी दें, इससे व्रणों का शीघ्र रोपण होता है। उपदंशज व्रणों पर पंचांग के घन क्वाथ का लेप करना चाहिए।
बालों की समस्या दूर करे झाऊ का प्रयोग
- (क) झाऊ मूल की छाल और आंवला दोनों को भृगराज स्वरस में पीसकर, पानी में मिलाकर सिर को धोते रहने से बालों का गिरना रुकता है।
- (ख) झाऊ की ताजी जड़ को जौकुट कर, समभाग तिल तैल तथा दुगना जल मिलाकर, मन्द अग्नि पर पाक कर, तैल सिद्ध कर इस तैल को लगाने से धीरे धीरे असमय में सफेद हुये बाल काले होने लगते हैं।
कुष्ठ रोग ठीक करे झाऊ का प्रयोग
- (क) झाऊ मूल के क्वाथ में जैतून का तैल या तुवरक तैल मिलाकर देना चाहिये।
- (ख) खाज-खुजली, छाजन आदि क्षुद्र कुष्ठ में माई (झाऊ का फल) के चूर्ण को कबीला के तैल में या नारियल के तेल में मिलाकर लगाना चाहिए।
सूजन मिटाए झाऊ का उपयोग
शोथ रोगी को झाऊ के मूल का क्वाथ पिलावें तथा मांई (झाऊ फल) चूर्ण को गोमूत्र में मिलाकर लेप करें।
( और पढ़े – मोच एवं सूजन के घरेलू उपचार )
स्तनों का ढीलापन (कुच शैथिल्य) दूर करे झाऊ का प्रयोग
झाऊ की छाल और अनार की छाल को बारीक पीसकर उसे कच्चे दूध में मिलाकर दिन में दो बार स्तनों पर लेप करना चाहिये।
योनि का ढीलापन (योनि शैथिल्य) दूर करने में लाभकारी झाऊ
माई (झाऊ फल) के बारीक चूर्ण की स्वच्छ बारीक पतले कपड़े में छोटी सी पोटली बनाकर योनि में धारण करने से योनि का ढीलापन दूर होता है। पोटली जामुन की आकार की बनानी चाहिये और उसमें एक लम्बा धागा बांध देना चाहिये जिससे धागे को खींचकर पोटली निकाली जा सके। पोटली को रातभर धारण करने के बाद योनि को बबूल के छाल के क्वाथ से या फुलाई हुई फिटकरी पानी में मिलाकर धोना चाहिये। इसके बाद पुनः दूसरी पोटली रखनी चाहिये। इस प्रकार कुछ दिनों के प्रयोग से लाभ होता है। इससे रक्तप्रदर, श्वेतप्रदर आदि सभी प्रकार के योनिगत स्राव रुकते हैं। झाऊ के पत्तों के क्वाथ की उत्तर बस्ति (योनि मार्ग से दी जाने वाली बस्ति) भी लाभदायक है।
अनैच्छिक मूत्रस्राव में फायदेमंद झाऊ के औषधीय गुण
झाऊ के पत्र 10 से 12 ग्राम को जल में पीसकर छानकर पिलाते रहने से तीसरे दिन से लाभ होने लगता है तथा 21 दिन में मूत्र स्वाभाविक रूप से होने लगता है।यह श्री राजकिशोर सिंह का अनुभूत योग है।
दाँतों के रोग दूर करने में झाऊ फायदेमंद
माई (झाऊ फल) चूर्ण का मंजन कर झाऊ के पत्र क्वाथ से कुल्ले करते रहने से दन्तशूल, दन्तपूय, शीताद आदि विकारों का शमन होता है।
शीघ्रपतन में झाऊ से फायदा
माई चूर्ण को दूध के साथ देना चाहिये। पत्र स्वरस भी शीघ्रपतन एवं शुक्रदौर्बल्य में उपयोगी है।
रक्तपित्त में लाभकारी झाऊ
माई के चूर्ण को दूर्वास्वरस या उशीरासव के साथ देने से रक्तपित्त में लाभ होता है।
रक्तस्राव रोकने में में झाऊ के इस्तेमाल से फायदा
किसी चोट के लगने से रक्तस्राव हो, तो माई (झाऊ फल) का चूर्ण बुरकने से रक्त रुक जाता है।
दस्त में झाऊ का उपयोग फायदेमंद
माई चूर्ण को या झाऊ की छाल के क्वाथ को सेवन करने से अतिसार, प्रवाहिका, संग्रहणी में लाभ होता है।
झाऊ के दुष्प्रभाव : Jhau ke Nuksan in Hindi
- झाऊ के उपयोग से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
- झाऊ का अधिक मात्रा मे सेवन पेट दर्द ,मरोड़ ,मतली जैसी समस्याओं को जन्म दे सकता है ।
दोषों को दूर करने के लिए : शहद
(उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)