Last Updated on November 21, 2019 by admin
प्रश्न- कान के विषय में आम आदमी को क्या-क्या जानकारी रखनी चाहिए ?
उत्तर- इसके लिए कान की बनावट के विषय में उपयोगी व आवश्यक ज्ञान हर व्यक्ति को होना चाहिए। कान की बाहरी नली लगभग एक इंच गहरी होती है जिसके अन्तिम छोर पर सफ़ेद मोती जैसा चमकीला पर्दा होता है। इस पर्दे को, बाहरी कान को खींच कर, फैला कर, टार्च की रोशनी डाल कर देखा जा सकता है। यदि कान में मैल इकट्ठा हो जाए तो यह पर्दा ढक जाता है और मैल साफ़ करने पर ही देखा जा सकता है।
प्रश्न-इस पर्दे का क्या कार्य होता है ?
उत्तर-यह पर्दा ही तो सुनने का काम करता है। ध्वनि तरंगें (आवाज़ या शोर होने पर) इस पर्दे से टकराती हैं तो इस पर्दे में कम्पन्न होता है जिससे बीच के कान तक यह कम्पन पहुंच कर, सुनने की तीन हड्डियों के माध्यम से अन्दर के कान तक पहुंचा कर सुनने की प्रक्रिया में योगदान करता है।
प्रश्न- क्या यह पर्दा हमेशा चमकीला सफ़ेद रंग का होता है ?
उत्तर- नहीं, एक माह से कम उम्र के शिशु में । यह हलका सा लाल रंग का होता है। इसी प्रकार – सर्दी, खांसी या एलर्जी से पीड़ित होने पर यह मटमैला सफ़ेद रंग का दिखाई देता है। परदे के पीछे बीच के कान में तरल पदार्थ इकट्ठा होने की बीमारी होने पर भी यह मटमैला सफ़ेद दिखाई देता है।
प्रश्न- कान के परदे में सूजन भी हो सकती है? kaan ke parde ki sujan
उत्तर- जी हां, हो सकती है। जब नाक-गले का संक्रमण (इन्फेक्शन) कान व नाक को जोड़ने वाली (यूस्टेशियन) नली के माध्यम से बीच के कान में पहुंच जाता है तब पर्दे में सूजन हो जाती है और पर्दे का रंग आंशिक या पूर्ण रूप से लाल हो जाता है।
प्रश्न- सूजन होने के लक्षण और परिणाम क्या होते हैं ?
उत्तर- कान में भारीपन होना, दर्द होना, सुनाई कम देना मुख्य लक्षण हैं। यदि इन लक्षणों के प्रकट होने पर शीघ्र इलाज न किया जाए। तो कान में जो मवाद पैदा होता है वह पर्दे को
फोड़ कर बाहर आने लगता है। इसे कान बहना कहते हैं। इससे आगे चल कर बहरापन भी हो सकता है।
प्रश्न- क्या सूजन के कुछ और कारण भी होते हैं ?
उत्तर- कान में खुजली या दर्द होने पर या भारीपन का अनुभव होने पर, बिना चिकित्सक से परामर्श किये, अपनी मनमर्जी से कान में गर्म तैल या झागवाला इयर ड्राप्स आदि कोई दवा डालने से सूजन हो सकती है। छोटे बच्चों को यह तकलीफ़ अक्सर होती देखी गई है।
प्रश्न- कान में सूजन या अन्य व्याधि न हो इसके लिए क्या उपाय या सावधानी बरतना चाहिए?
उत्तर- सर्दी जुकाम खांसी हो तो परहेज़ का पालन करते हुए शीघ्र उचित चिकित्सा करें, ज़ोर से नाक न छींकें, सर्दी जुकाम से पीड़ित रोगी से दूर रहें, घर पर विश्राम करे, कान नाक गले के विशेषज्ञ चिकित्सक से सलाह लिये बिना कान में कोई दवा न डालें। सबसे खास बात यह है कि कान में कुछ भी तकलीफ़ या गड़बड़ का अनुभव हो तो चिकित्सक से परामर्श लेने में विलम्ब न करें ।
कान के रोग के आयुर्वेदिक उपचार | kan ke rog ka ilaj in hindi
1- १० ग्राम आंवला, १० ग्राम सोंठ, १० नीम के पत्ते, ३ ग्राम कबीला (जड़ी-बूटी) और मिर्च १ ग्राम नीला थोथा को २५० ग्राम सरसों के तेल में डालकर गर्म कर लें, फिर उसमें कबीला डाले. इस रस को कान में डालने से आराम होगा।
2- १० ग्राम रतनजोत को २०० ग्राम सरसों के तेल में डालकर गर्म कर लें. रतनजोत जलने को हो जाए, तो आंच से उतार लें. इस तेल को रोज़ाना कान में डालने से कान बहना बंद हो जाएगा ।
3- हल्दी और फुलाई हुई फिटकरी का चूर्ण बना लें. इसे कान में डालने से आमतौर पर कान का बहना शीघ्र बंद हो जाता है ।
4- एक चम्मच तिल के तेल में लहसुन की आधी कली डालकर गुनगुना करके दर्द वाले कान में चार-चार बूंदें टपकाकर, दूसरी करवट दस मिनट तक लेटे रहें ।
5- शाल वृक्ष की छाल और वनप्याज का रस शहद में मिलाकर दो से पांच बूंदें कान में डालने से कान का बहना बंद हो जाता है ।
6- बेल की जड़ को नीम के तेल में डुबोकर उसे जला दें, इससे रिसनेवाले तेल को ठंडा कर कान में डालें, इससे कान के दर्द और संक्रमण में बड़ी राहत मिलती है ।
7- स्त्री के दूध में रसौत और शहद मिलाकर कान में डालने से कान का बहना स्थाई रूप से बंद हो जाता है ।
कान के रोग की दवा : kan ke rog ki ayurvedic dawa
अच्युताय हरिओम फार्मा द्वारा निर्मित “कर्ण बिंदु” कान में दर्द, मवाद का बहना व बहरापन जैसे कान के रोगों में लाभकारी आयुर्वेदिक औषधि है।
प्राप्ति-स्थान : सभी संत श्री आशारामजी आश्रमों( Sant Shri Asaram Bapu Ji Ashram ) व श्री योग वेदांत सेवा समितियों के सेवाकेंद्र से इसे प्राप्त किया जा सकता है ।
नोट :- किसी भी औषधि या जानकारी को व्यावहारिक रूप में आजमाने से पहले अपने चिकित्सक या सम्बंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ से राय अवश्य ले यह नितांत जरूरी है ।