काजल, सुरमे के प्रयोग में बरतें सावधानी

Last Updated on April 28, 2021 by admin

चेहरे का सौंदर्य बढ़ाने में आंखों का बड़ा महत्त्व होता है, इसीलिए कालीकजरारी व खूबसूरत आंखें आकर्षण का केन्द्र होती हैं। दूसरों के सामने अपनी आंखों को सुंदर और आकर्षक दिखाने की लालसा के कारण ही आजकल काजल, सुरमे का प्रचलन सबसे ज्यादा होने लगा है।

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घर पर काजल बनाने की प्रथा :

गांवों में घर पर ही काजल बनाने के लिए प्राय: सरसों के तेल का दीया जलाकर उसकी कालिख उपर किसी पात्र को रखकर इकट्ठी कर ली जाती है। उस कालिख में देसी घी मिलाकर काजल तैयार किया जाता है।

कछ लोग सरसों के तेल के स्थान पर बादाम की गिरी जलाकर भी इसी विधि से काजल बनाते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि इस काजल से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है। घर में बने काजल में 65 से 70 प्रतिशत कार्बन की मात्रा होती है।

सस्ते सौंदर्य प्रसाधन की दुकानों में उपलब्ध काजलों में सस्ता लेड सल्फाइड मिलाया जाता है, जिससे आंखे भले ही आकर्षक दिखती हों, परन्तु उसका कप्रभाव न केवल आंखों पर, बल्कि पूरे शरीर पर धीरे-धीरे पड़ता है। आंखों के सफेद भाग के माध्यम से खून में पहुंचा यह सस्ता लेड शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा सामान्य मात्रा में भी नहीं बनने देता हैं।

काजल को यदि लगाना ही चाहे तो अच्छी कंपनियों वाले ही लगाएं। लगाने के लिए हाथ की उंगलियों से लगाने के बजाय सलाइयों का प्रयोग करें। फिर भी सुरमें में मिले लेड यौगिक तो पहुचते ही है। अत: आंखों को नुकसान पहुंचने की पूरी संभावना रहती है।

सीसे के दुष्परिणाम :

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि काजल सुरमे जैसी चीजों का लगातार प्रयोग करने से आप अपनी आंखों की सफेद झिल्ली के माध्यम से खन में लेड (सीसा) पहंचा देते हैं। जब शरीर में आवश्यकता से अधिक मात्रा में सीसा पहंचता हैं, तो यह अनेक प्रकार की बीमारियों को जन्म देता है। एक अध्ययन में पाया गया है कि जो व्यक्ति रोजाना दिन में एक बार अपनी आंखों में सुरमा डालता है, उसके खून में हर हफ्ते 140 माइक्रोग्राम सीसा चला जाता है।

भारत, पाकिस्तान , सऊदी अरब, बंगला देश, सूडान, लेबनान आदि जगहों में सामान्यतया प्रयोग में लिए जाने वाले कई परम्परागत आंखों के सौंदर्य प्रसाधनों का विश्लेषण कर सीसे की विषाक्तता के मामले में एक अध्ययन किया गया और पाया कि इनमें से अधिकांश लेड सल्फाइड से बनाए जाते हैं। यह चट्टानों में पाए जाने वाले सीसे का एक प्राकृतिक स्वरूप है।

अक्सर सुरमा लगाने वालो को सुरमा लगाते ही आंखों में जलन महसुस होती है जिससे वे आंखों को सीधे हाथ से मलने लगते हैं। ऐसा करने से सरमा हाथ की उंगलियों में लग जाता है। इसी हाथ से अथवा ठीक तरह से हाथों की सफाई न होने से सुरमे का सीसा भोजन के साथ पेट में पहंच जाता है।

मेंथाल के कारण आँखों से आंसू गिरने लगते है, इन्हें हाथों से पोंछने पर भी हाथों में सीसा आशिक रूप से आ ही जाता है।

घर की महिलाएं सुरमा लगाने के बाद अंगली साफ न कर आटा गूंथने लगती हैं जिससे रोटी में सीसा पहुंचकर शरीर में खाने के माध्यम से भी पहुंच सकता हैं।

बच्चे जब थूक लगी उंगलियों से कॉमिक्स की स्याही पर पृष्ठ पलटते है, तो अनायास ही स्याही में उपलब्ध सीसा उनके पेट में पहंच जाता है। पेट में पहंचा सीखा जब खून में मिलता हैं तो शरीर में हीमोग्लोबिन का बनना बंद हो जाता हैं। जिससे खून में लाल कणों को कमी हो जाती हैं।

सीसे की विषाक्तता का असर हर आयु के व्यक्ति पर भिन्न-भिन्न रूप में देखने में आता हैं। बच्चों के दांतों में सीसे की मात्रा बढ़ने पर उनका आई. क्यू. घट जाता है। वे मंदबुद्धि के शिकार होकर चिड़चिड़े हो सकते हैं। उनमें समय समय पर कंपकंपी, उत्तेजना एवं शरीर की तंत्रिकाओं पर भी बुरा असर होता है।

बड़ी आयु के लोगों में भूख न लगना, पाचन क्रिया गड़बड़ा जाना पेट दर्द होना, दस्त लगना, मुंह का स्वाद बिगड़ना, नींद का उचट जाना, सिर दर्द, चक्कर आना दृष्टिदोष जैसी बीमारियां, तकलीफें पैदा हो सकती हैं।

अधिक विषाक्तता के प्रभाव से लगभग 25 प्रतिशत व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है तथा शेष करीब 50 प्रतिशत विभिन्न प्रकार के मानसिक विकारों से ग्रस्त हो जाते है, क्योंकि सबसे अधिक क्षति मेरुदंड, मस्तिष्क और केन्द्रीय स्नायुतंत्र जैसे महत्त्वपूर्ण अंगों को पहुंचती है।

गर्भवती महिलाओं पर सीसे का सबसे घातक प्रभाव पड़ता है और गर्भनाल के माध्यम से यह गर्भस्थ शिशु की मृत्यु का कारण बनता है।

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कैसे बचें :

  • हमारा शरीर सीसे की विषाक्तता से बचा रहे, इसके लिए यह जरूरी है कि भोजन ऐसा लें, जिसमें कैल्शियम और विटामिन्स की पर्याप्त मात्रा मिल सके। इससे शरीर की सीसा अवशोषण क्षमता घट जाएगी।
  • काजल, सुरमों का प्रयोग सावधानी पूर्वक किया जा सकता है।
  • हमेशा प्रसिद्ध कंपनियों दवारा निर्मित सुरमे ही खरीदें।
  • काजल आंखों के अंदर न लगा कर बाहरी की कोर पर ही लगाएं। इससे यह आंखों में न जाकर खून में मिलेगा और न ही आंखों के बाहर फैलेगा।
  • जहां तक हो सके, एक-दूसरे का काजल न लगाएं, क्योंकि इससे आंखों का संक्रमण फैलने का खतरा बना रहता है।

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