Last Updated on September 24, 2022 by admin
काली मूसली क्या है? : What is Kali Musli in Hindi
काली मूसली हिमाचल में 6 हजार फुट की ऊंचाई पर तथा दक्षिण भारत के जंगली क्षेत्रों में पायी जाती है। इसके अतिरिक्त आबू पर्वत की श्रेणियों में भी इसके पौधे पाये जाते हैं।
काली मूसली का पौधा कैसा होता है ? : Kali Musli ka Paudha Kaisa Hota Hai
काली मूसली का 30 सेमी. ऊंचा कोमल पौधा होता है। यह एक से अधिक वर्षों तक जीवित रहने वाला पौधा है। इसके पत्र तालपत्र (ताड़ वृक्ष का पत्ता) के समान 6 से 8 इंच लम्बे होते हैं।ये रेखाकार- भालाकार होते है। वृत्त 6 इंच तक लम्बे होते हैं ।
इसके पुष्प रोमश कोष-पत्र पुष्पकों से आवृत रहते हैं।
पुष्प ध्वज एक इंच लम्बा, भूमिगत,भालाकार होता है। इस पर आधा से पौन इंच व्यास के छोटे चमकीले पीले पुष्प जमीन से थोड़े ऊपर लगते हैं।
इसके फल आधा इंच लम्बे आयताकार होते हैं तथा इसके फलों में एक से चार तक बीज निकलते हैं इसके ये बीज चमकीले काले, लम्बे, धारीदार, उभारयुक्त होते हैं।
इसका मूल स्तम्भ सीधा, मोटा व एक फुट लम्बा होता है।
औषधि में जड़ों का व्यवहार मुशलीकंद के नाम से होता है। इस पौधे पर पुष्पन क्रिया अगस्त में होती है, पत्ते गर्मियों में निकलते हैं और शीतकाल में नष्ट हो जाते हैं।
काली मूसली का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Kali Musli in Different Languages
Kali Musli in –
- संस्कृत (Sanskrit) – तालमूली, तालपत्री, कृष्णमुशली।
- हिन्दी (Hindi) – स्याह मुशली, काली मुसली
- गुजराती (Gujarati) – काली मुसली।
- मराठी (Marathi) – काली मुसली।
- बंगाली (Bangali) – तालमूली, तल्लूर।
- तेलगु (Telugu) – नेल ततिगड्डा
- लैटिन (Latin) – कुर्कलिगो ओर्किआयडिस (Curculigo Orchioides Gaertn)
काली मूसली का रासायनिक विश्लेषण : Kali Musli Chemical Constituents
काली मूसली कन्द में राल, वसा, स्टार्च, कुछ कषाय द्रव्य और सुखाये हुये कंद की राख में चूना होता है।
काली मूसली के औषधीय गुण : Kali Musli ke Gun in Hindi
- इसके गुण धर्म प्राय: सफेद मुशली के समान हैं किन्तु निघन्टु रत्नाकर ने इसे सफेद मुशली की अपेक्षा अधिक पौष्टिक माना है।
- तालमूलीकुल (एमारिल्लिडेसी) की इस वनौषधि का वर्णन प्रियव्रत जी ने शुक्रजनन द्रव्यों के अन्तर्गत सफेद मुशली के साथ ही किया है।
- सफेद मुशली की भांति काली मूसली भी वृष्य (वीर्य और बल बढ़ाने वाला) योगों में बहुतायत से डाली जाती है और इसे स्वतंत्र रूप से भी उपयोग में लाते हैं।
- मणिमालाकार कहते हैं कि इन मुशलीद्वय (दोनों प्रकार की मुशली) का सेवन करने वाला मुशली (बलराम) के समान ही है ,अर्थात इनके सेवन से बलराम के समान मनुष्य बलवान हो जाता है।
- इसकी जड़ में संकोचक और पौष्टिक तत्व रहते हैं । यह मस्तक शूल, ज्वर, कामला, बहरापन और सिर के चक्कर को दूर करती है । जहर के उपद्रवों को दूर करने की शक्ति भी इसमें रहती है और ऐसा विश्वास किया जाता है कि सांप के विष पर भी यह लाभ पहुंचाती है ।
- रस – मधुर, तिक्त,
- गुण – गुरु, स्निग्ध, पिच्छिल
- वीर्य – उष्ण
- विपाक – मधुर
- दोषकर्म – वातपित्तशामक, कफवर्धक
- अन्य कर्म – बाजीकरण, शुक्रजनन, वीर्य पुष्टिकर, बल्य, बृंहण, मूत्रल, दीपन, अनुलोमन, कास श्वासहर आदि।
काली मूसली का उपयोगी भाग : Useful Parts of Kali Musli
भूमिगत कन्द जड़
सेवन की मात्रा :
3 से 6 ग्राम।
काली मूसली के उपयोग : Uses of Kali Musli in Hindi
- शुक्रक्षय एवं नपुंसकता में इसका प्रयोग सर्व विदित है।
- कामावसाद और शुक्रमेह (वीर्य के क्षय होने का एक रोग) में इसके चूर्ण में चीनी मिलाकर खिलाते हैं।
- भावमिश्र ने इसे वृष्य (वीर्य वर्धक) एवं रसायन गुणों से भरपूर तथा गुद स्थित कुपित वात को शान्त करने वाली कहा है।
- चरक ने चिकित्सा अध्याय 18 में इसे कास (खाँसी) में धूम्रपान के रूप में उपयोगी कहा है।
- सुश्रुत ने इसे अश्मरी(पथरी), विद्रधि (पेट का फोड़ा) और श्वास के रोग के प्रयोगों में उपयोगी बताया है ।
- इसके सेवन से यकृत को बल मिलता है और रोग क्षमता बढ़ती है।
- इसकी जड़ की छाल को छाया में सुखाकर उसका चूर्ण करके देने से दमें में बहुत लाभ होता है।
- उदरशूल (पेटदर्द), बवासीर और बच्चों के आक्षेप रोग में भी इसका उपयोग किया जाता है। मूत्र-सम्बन्धी अव्यवस्था और व्यभिचार जनित रोगों में भी इसका उपयोग किया जाता है।
- इसकी सूखी जड़ों का चर्ण शक्कर के साथ मिलाकर देने से मनुष्य की कामशक्ति बढ़ती है ।
- इस चूर्ण को तुलसी के पत्तों के रस के साथ मिलाकर देने से गुर्दे का शूल बन्द होता है ।
- हकीम लोग अनैच्छिक वीर्यस्राव को रोकने के लिये इसका बहुत अधिक उपयोग करते हैं ।
काली मूसली के फायदे : Benefits of Kali Musli in Hindi
1. दुर्बलता में काली मूसली के प्रयोग से लाभ (Kali Musli Benefits in Weakness in Hindi)
काली मूसली, सफेद मूसली , असगंध, विदारीकंद, शतावरी और गोखरु 100-100 ग्राम लेकर इनका चूर्ण तैयार कर लें। इस चूर्ण में 100 ग्राम शहद और 300 ग्राम गाय का घृत तथा 300 ग्राम मिश्री मिलाकर 20-20 ग्राम के मोदक (लड्डू) बना लें। एक एक मोदक दूध के साथ प्रातः सायं सेवन करने से बल वीर्य की वृद्धि होकर शरीर पुष्ट होता है। ( और पढ़े – कमजोरी दूर करने के घरेलू उपाय )
2. शुक्रक्षय में लाभकारी है काली मूसली का सेवन (Kali Musli Beneficial in Low Sperm Count in Hindi)
250 मिली दूध में 8-10 ग्राम स्याह मुसली का चूर्ण मिलाकर उसे आग पर रखकर रबड़ी जैसा गाढ़ा कर लें फिर इसमें 25-30 ग्राम मिश्री, 20-25 ग्राम बादाम (छिलके हटाकर काटकर) और 8-10 ग्राम घी मिलाकर सेवन करने से वीर्य में वृद्धि होती है और वीर्य गाढ़ा होता है। इसमें जायफल और इलायची का थोड़ा चूर्ण (एक-दो ग्राम) मिला दिया जाय तो यह अधिक गुणकारी होता है। ( और पढ़े – बलवर्धक चमत्कारी नुस्खे )
3. रक्तप्रदर मिटाए काली मूसली का उपयोग (Kali Musli Cures Metrorrhagia in Hindi)
काली मूसली का चूर्ण तीन ग्राम और गुड़हल के पुष्प की कलिका (पूर्ण खिला हुआ पुष्प नहीं पुष्प की कली ही लेवें) 2-3 को पीसकर उसमें शक्कर मिलाकर सेवन करने से तथा ऊपर दूध पीने से रक्तप्रदर में लाभ होता है।
4. मूत्रकृच्छ रोग में काली मूसली का उपयोग फायदेमंद (Kali Musli Uses to Cure Dysuria in Hindi)
काली मूसली चूर्ण में बराबर शक्कर मिलाकर उसमें चन्दन के तेल की 4-5 बूंद मिलाकर सेवन करने से मूत्रकृच्छ, पूयमेह (सुजाक) आदि में लाभ मिलता है। दूध में स्याह मूसली चूर्ण एवं शक्कर मिलाकर भी सेवन किया जा सकता है।
5. काली मूसली के दुष्प्रभाव : Kali Musli ke Nuksan in Hindi
काली मूसली के कोई ज्ञात दुष्प्रभाव नहीं हैं फिर भी इसे आजमाने से पहले अपने चिकित्सक या सम्बंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ से राय अवश्य ले ।
(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)