Last Updated on September 21, 2020 by admin
प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को ‘जीवन का विज्ञान’ कहा गया है। आयुर्वेद का उद्देश्य “स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं, आतुरस्य विकार प्रशमनं च” अर्थात् स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा रोगी के विकारों को दूर कर स्वस्थ बनाना है। आयुर्वेद मात्र चिकित्सा पद्धति न होकर, सच्चे जीवन, नियम, संयम, आहार-विहार एवं औषधीय निर्देशन से प्रकृति एवं मानव जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित करता है।
खेल (sports) के क्षेत्र में चिकित्सा विज्ञान महत्वपूर्ण रोल निभाता है। खेल के दौरान शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ व सक्षम रहना हर खिलाड़ी की आधारभूत आवश्यकता है। आयुर्वेद में शारीरिक व मानसिक रूप से स्वयं को कैसे स्वस्थ रखा जाए, इसके अनेकों उपाय बताएगए हैं। दिनचर्या, रात्रिचर्या, ऋतुचर्या, सद्भूत आदि का वर्णन किया गया है। इसके अनुसार जीवनयापन करने से मनुष्य स्वस्थ रहकर अपने सभी कार्य सफलतापूर्वक कर सकता है। अतः हर खिलाड़ी आयुर्वेद के नियमों का पालन कर जीत हासिल कर सकता है। रोगग्रस्त होने पर उसका उपचार भी सही तरीके से आयुर्वेदानुसार किया जाए तो वह पूर्ण रूप से ठीक होकर अपने कार्य में सफल होता है।
खेल के दौरान लगी चोट का आयुर्वेदिक उपचार (Managing Sports Injury with Ayurveda in Hindi)
आयुर्वेद द्वारा खेल में लगी चोट का इलाज कैसे करें ? –
योगासन, व्यायाम (Exercise), मसाज और स्वस्थ रहने के अन्य उपायों तथा अनेक औषधियों का स्पोर्ट्स इन्जरी (चोट) के दौरान उपयोग किया जा सकता है।
1). योगासन या व्यायाम –
स्पोर्ट्स में फिट रहने के लिए व्यायाम बहुत जरूरी है। इससे मांसपेशियों की स्ट्रेन्थ और टोनिसिटी इम्प्रूव होती है, हृदय व श्वास सम्बन्धी कोई समस्या नहीं होती है तथा खेल सम्बन्धी सभी क्रियाएं उचित रूप से होती हैं। वास्तव में हमारे प्राचीन आयुर्वेदज्ञ इन लाभों के बारे में जानते थे। निरंतर व्यायाम का अभ्यास केवल खेल का ही भाग नहीं है, बल्कि दैनिक चर्या के रूप में इसका लाभ होता है। आजकल व्यायाम और योगासन को एक ही समझा जाता है, जबकि ये अलग-अलग हैं।
व्यायाम का प्रभाव केवल शरीर की मांसपेशियों एवं हड्डियों पर ही होता है। शारीरिक व्यायाम शीघ्रतापूर्वक और अधिक श्वास-प्रश्वास की क्रिया के साथ किया जाता है। खिलाड़ियों में मांस व हड्डियों के विकास हेतु शरीर को पुष्ट करने वाले व्यायाम उपयुक्त होते हैं।
व्यायामों से भिन्न योगासन है। आसनों का अभ्यास आराम व एकाग्रता से किया जाता है। इसका प्रभाव बाहय तथा आंतरिक दोनों अंगों पर पड़ता है। पहले व्यायाम फिर योगासन किया जाए तो शत-प्रतिशत लाभ होता है।
वास्तव में न्यूरो मस्कुलो स्केलेटन सिस्टम (Neuro-Musculo-Skeleton System) की कार्यक्षमता में विकास व वृद्धि व्यायाम व योगासनों के प्रयोग से प्राप्त की जाती है, जो खेल में बहुत जरूरी है। योगासनों का अभ्यास कुशल योगाचार्य की देखरेख में किया जाना चाहिए।
2). अभ्यंग/ मालिश (Massage) –
शारीरिक श्रम या व्यायाम के बाद आयुर्वेद में मालिश या अभ्यंग करने पर बल दिया जाता है। वास्तव में अभ्यंग के प्राचीन तरीके खेल के क्षेत्र में महत्वपूर्ण हैं, जो खिलाड़ियों के ट्रेनिंग पीरियड के दौरान चुस्त रखने तथा स्पोर्ट्स इन्जरी के बाद किए जाते हैं।
मालिश वास्तविक रूप से मांसपेशियों का व्यायाम है, जिसका प्रभाव त्वचा, मांसपेशियों, स्नायुओं, रक्तनलिकाओं पर समान रूप से पड़ता है। इसके फलस्वरूप रक्तसंचार में होने वाली अतितीव्रता से शरीर में नवीन ऊर्जा व स्फूर्ति की उत्पत्ति होने लगती है। यही ऊर्जा व स्फूर्ति खिलाड़ियों के लिए आवश्यक है ताकि वे अपना अच्छा प्रदर्शन कर सकें।
आचार्य चरक द्वारा व्यायाम के बाद अभ्यंग या मालिश करने को कहा गया है, जिससे खेल या शारीरिक श्रम करने से हुई थकान दूर हो जाती है। यदि खिलाड़ी चोटग्रस्त है, तो मालिश से उसे दर्द को सहन करने की शक्ति प्राप्त होती है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी मानता है कि मालिश करने से इन्जरी वाले भाग से रक्त के थक्के (Haematoma) दूर होकर रक्तप्रवाह बढ़ता है।
साधारणतः सरसों या नारियल का तेल मालिश के काम में लाया जाता है, लेकिन रोगानुसार तेल का प्रकार निर्धारित किया जाता है। महानारायण तेल, महामाष तेल, चूर्ण, लेप (पेस्ट) आदि चिकित्सक की सलाह के अनुसार प्रयुक्त किए जाते हैं।
3). स्वेदन या सिंकाई –
मालिश के बाद यदि स्वेदन या सिंकाई की जाती है, तो सोने पर सुहागा होता है। शरीर के अंगों की सिंकाई (रूक्ष व आर्द्र) आदि के द्वारा स्वेद (पसीना) बाहर निकालने को स्वेदन कहते हैं। इसके द्वारा शरीर में हलकापन, स्फूर्ति एवं अंगों की जकड़न दूर होती है, रक्तसंचार तेज होता है। इसलिए आंतरिक स्पोर्ट्स इन्जरी में चिकित्सक की देखरेख में खिलाड़ी की सिंकाई की जाए तो अच्छा लाभ होता है।
4). रसायन (Tonic) –
खिलाड़ियों के शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य तथा त्रिदोष (वात-पित्त-कफ) और सप्तधातुओं (रस-रक्त-मांस-मेद-अस्थि-मज्जा-शुक्र) को सम रखने के लिए आयुर्वेद में रसायन का प्रयोग बताया गया है। रसायन ओज व रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए उपयुक्त होते हैं। आयुर्वेदिक ग्रंथों में रसायन का प्रयोग दो तरह से बताया गया है। पहली वातातपिक विधि तथा दूरी कुटी प्रावेशिक विधि ।
A). वातातपिक विधि – इसमें सामान्य जीवन व्यतीत करते हुए रसायन का सेवन किया जाता है।वातातपिक विधि को बहिरंग रसायन सेवन विधि कहते हैं। इसमें शोधन की आवश्यकता नहीं होती है। खिलाड़ियों के लिए वातातपिक विधि अंतर ज्यादा उपयुक्त है। इसमें रसायन औषध और योग का समावेश होता है।
- सामान्य स्वास्थ्य के लिए – अश्वगन्धा, मूसली, काकोली, बला, विदारी, कुष्माण्ड, शालपर्णी, खर्जुर, आम, केला आदि का प्रयोग किया जाता है।
- खनिज द्रव्य जैसे – शिलाजीत, अभ्रक, गोदन्ती आदि का प्रयोग किया जाता है।
- हड्डियों के लिए – लाक्षा, वंशलोचन, पृश्नपर्णी, शुक्ति, शंख, अस्थिश्रृंखला आदि का प्रयोग किया जाता है।
B). कुटी प्रावेशिक विधि – इसमें व्यक्ति को कुटी (Indoor) में रसायन का सेवन कराया जाता है। इसे अंतरंग रसायन सेवन विधि कहा जाता है, जिसमें शोधन (पंचकर्म) आवश्यक होता है।
5). भग्न या फ्रैक्चर में आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग –
खेलों में फ्रैक्चर होना सामान्य है। आयुर्वेद में फ्रैक्चर के लिए अनेक औषधियों (जड़ी-बूटियों व खनिज द्रव्यों) का प्रयोग किया जाता है, जैसे –
मन्जिष्ठा, यष्टिमधु (मुलेठी), रक्तचन्दन, अस्थिश्रृंखला, गुग्गुलु, गिलोय, पाठा, मोचरस, धाय का फूल, लोध्र, प्रियंगु, कायफल, पिठिवन, गिलोय आदि।
चरकसंहिता में सन्धानीय महाकषाय में वर्णित भग्न सन्धानक तैल, लाक्षादि गुग्गुलु, अश्वगन्धाबलादि तैल, शिलाजीत, गोदंती, कुक्कुटाण्ड त्वक भस्म आदि का प्रयोग कराया जाता है। फ्रैक्चर हो जाने पर तुरन्त अस्थिरोग विशेषज्ञ को दिखाकर उनके दिशा-निर्देशों का उचित पालन करना चाहिए।
6). आहार –
खिलाड़ियों को फिट रहने के लिए पोषक आहार जरूरी है। तरल पदार्थ गंभीर खेलों में लगे खिलाड़ियों के लिए उपयुक्त होते हैं। आहार में फल, सब्जियां, साबुत अनाज, डेयरी उत्पाद और आवश्यक वसा को शामिल करना चाहिए। भोजन के साथ फलों का रस पिएं और सोते समय दूध अवश्य लें। आयुर्वेद उचित आहार लेने पर विशेष जोर देता है क्योंकि अनुचित आहार से ही रोग होते है।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में खिलाड़ियों को बीमारी, चोट से ग्रस्त होने और अन्य रोगों के लिए जो औषधियां प्रयोग की जाती हैं, जैसे – एन्टी इन्फ्लेमेटरी, एनालजेसिक, एन्टी बायोटिक आदि (Toxicity) पैदा कर खिलाड़ियों के स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। आयुर्वेदिक औषधियां विकार नहीं पैदा करती हैं, यदि उन्हें प्रवीण चिकित्सक की सलाहानुसार व देखरेख में लिया जाए।
स्पोर्ट्स इन्जरी में खिलाड़ियों द्वारा प्रयुक्त आयुर्वेदिक उपचार उन्हें स्वस्थ रखने में बहुत ही लाभप्रद सिद्ध होता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलों में भारतीय खिलाड़ियों को उनके श्रेष्ठतम प्रदर्शन करने में आयुर्वेदिक पद्धति मदद करती है क्योंकि यह सर्वोत्तम, सर्वश्रेष्ठ, स्वदेशी चिकित्सा प्रणाली है।